Book Title: Anusandhan Swarup evam Pravidhi
Author(s): Ramgopal Sharma
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुसंधान की प्रविधियाँ/ 17 मनुष्य के कार्यों में अन्तर्निहित इच्छाओं का उद्घाटन करके सतत् पहुँचना होता है । व्यक्ति इस प्रविधि का मूल शोध-केन्द्र होता है। कारण भी स्पष्ट है, क्योंकि साहित्य की रचना के मूल में व्यक्ति का मानस एवं तज्जन्य उसके व्यवहार ही रहते हैं। व्यक्तित्व के विकास का अध्ययन करने में यह प्रविधि अधिक उपयोगी सिद्ध होती है, किन्तु एकांगी होने के कारण अन्य प्रविधियों का सहारा लिए बिना इस प्रविधि से अनुसंधान कार्य प्रामाणिक नहीं हो सकता । हिन्दी के अनेक शोधकर्त्ता अन्धानुकरण के रूप में इस शोध प्रविधि को अपना रहे हैं। वे वैज्ञानिक ढंग से मनोविश्लेषण करके रचना और रचनाकार का अध्ययन नहीं करते, बल्कि फ्रायड, युंग एवं एडलर की मान्यताओं को यथावत् आरोपित करके पूर्व-निर्धारित प्रतिमानों के आधार पर रचना का परीक्षण करते हैं जिसका परिणाम ही यह होता है कि वे बाह्य मानसिक संस्कारों में खो जाते हैं। फ्रायडवादी धारणाओं को हमारे साहित्य पर ज्यों का त्यों आरोपित नहीं किया जा सकता । अचेतन, उपचेतन, चेतन इड ईगो आदि के विभाजन में और शास्त्रीय अलंकार, रस, रीति आदि के विभाजन में समान दोष हैं । कोई भी कलाकृति विभिन्न टुकड़ों में नहीं बाँटी जा सकती। चेतन, अवचेतन और उपचेतन का पारस्परिक प्रभावित होना भी भिन्न काल - सापेक्ष नहीं है । कोई भी व्यक्तित्व चेतन और उपचेतन के द्वन्द्व के बिना सार्थक नहीं हो सकता । अतः इनको अलग-अलग करके अनुसंधान करना हास्यास्पद ही कहा जायेगा । 5. प्रायोगिक मनोविज्ञानवादी प्रविधि पाश्चात्य कला या साहित्य में उसके अवयव, अन्वय की क्रिया से ही स्पष्ट हो पाते हैं । “ काव्यप्रकाश” में मम्मट ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है और उसे अन्विताभिधानवाद कहा | संस्कृत के अन्विताभिधानवादी आचार्य अर्थ - सिद्धान्त या शब्द- शक्ति सिद्धान्त तक ही सीमित थे, मनोविज्ञान तक उनकी पहुँच नहीं थी । गैस्टाल्ट- मनोविज्ञानवादियों ने अवयवी की पूर्ण प्रतीति पर पर्याप्त विचार किया। उनका निष्कर्ष था कि वैज्ञानिक अनुसंधानों में अवयवों के विश्लेषण पर दृष्टि केन्द्रित रहती है और अवयवों को समझ कर अवयवी का पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया जाता है। वस्तुतः दृष्ट रूपों में अंशी, अंश को दबा देता है, इसलिए वैज्ञानिक दृष्टि भी अवयवी की प्रतीति के उपरान्त अवयव - विश्लेषण की ओर जानी चाहिए। ठीक इसी प्रकार मानव-व्यवहार की भी व्याख्य होनी चाहिए । मनोविश्लेषणवादी प्रविधि में ऐसा नहीं हुआ । उसमें चेतन-उपचेतन के कृत्रिम विभाजन से वैयक्तिकता का पोषण हुआ है। विभिन्न अंशों में विभाजित करके सत्य का उद्घाटन हास्यास्पद सिद्ध होता है । इसीलिए मनोविज्ञान का प्रायोगिक पक्ष स्वीकार करते हुए कुछ विद्वानों ने “प्रायोगिक मनोविज्ञानवादी प्रविधि” का प्रचार किया है । फ्रायड जीवन के भावात्मक पक्ष के प्रति न्याय नहीं कर सका था। वह केवल पलायन और विरेचन पर ही बल देता रहा, केवल तृप्ति और रेचन को ही समझता रहा, जीवन की मूलभूत For Private And Personal Use Only

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