Book Title: Anusandhan Swarup evam Pravidhi
Author(s): Ramgopal Sharma
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुसंधान की परिभाषा एवं उद्देश्य - सृष्टि में जो कुछ है, उसे जानने के लिए अनेक मार्ग मनुष्य ने निकाले हैं। कोई व्यक्ति समस्त सृष्टि-तत्त्व को बुद्धि से समझना चाहता है, कोई उसे चिन्तन से पाना चाहता है और कोई उसके लिए वैज्ञानिक विश्लेषण तथा प्रयोग की पद्धति अपनाता है । यह कार्य अनन्त काल से चल रहा है, किन्तु सृष्टि के सम्पूर्ण रहस्यों का पता आज तक नहीं चल सका । दर्शन के सभी चिन्तन जिस दिशा में अग्रसर हैं, विज्ञान के चमत्कार भी उसी दिशा में चलते रहते हैं। जहाँ बड़े-बड़े दार्शनिकों ने अपने ज्ञान-चक्षुओं से सृष्टि के अनेक रहस्यों का उद्घाटन करने में सफलता पाई है, वहीं विज्ञान ने भी आधुनिक युग में अनेक चमत्कार-पूर्ण आविष्कार कर डाले हैं। इतना मानव-प्रयास भी अभी नगण्य ही कहा जाएगा, क्योंकि अभी भी बहुत कुछ जानने तथा प्रमाणित करने के लिए शेष है। जहाँ विज्ञान अन्तरिक्ष में नगर बसाने की संभावना प्रस्तुत करता है, वहीं वह यह भी स्वीकार करता है कि भूचाल आने, ज्वालामुखी फटने, भयंकर समुद्री तूफान चलने आदि जैसे भीषण दैवी प्रकोपों को वह नहीं रोक सकता, किन्तु यह आज का सत्य है। हो सकता है कि कल नये आविष्कार हों और इन पर भी नियंत्रण पाना संभव हो जाये । इसलिए यह स्वीकार करना पड़ता है कि अनुसंधान की सीमा अनन्त काल तक फैली हुई है तथा मानव के ज्ञान को चुनौती-पूर्ण बनाती है। परिभाषा “अनुसंधान" की पहचान क्या है ? कैसे किसी कार्य को अनुसंधान का परिणाम माना जाये ? इस प्रकार के अनेक प्रश्नों का उत्तर पाने के लिए यह आवश्यक है कि अनुसंधान के शब्दार्थ एवं भावार्थ को व्यवस्थित रूप से समझा जाए तथा उसके पर्यायवाची शब्दों की भी व्याख्या की जाए। ___“अनुसंधान" शब्द के मूल में संस्कृत की “धा" धातु विद्यमान है । “धा" धातु का अर्थ धारण करना, रखना आदि होता है। “अनु” उपसर्ग है, जिसका अर्थ है-पीछे For Private And Personal Use Only

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