Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah
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श्री अनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं
पूजाष्टकम्
॥ ४ ॥
॥
| निमज्जिरो तुमए । नियवयणवरत्ताए उद्धरिओ हं दयानिहिणा ॥ १२० ॥ परिभोगो इयराएवि पररमणीए पयच्छए नरयं । किं पुण नियभइणीए आजम्मं पूयणिज्जाए ॥ २१ ॥ ता पहु कंनाए समं नियरज्जं अप्पिऊण जणयस्स । संगहियसबविरई तुह चरणाराहओ होहं ॥ २२ ॥ ठायबं तुम्भेहि रहनेउरचक्कवालनयरम्मि । इय जंपिय गुरु कुमरी कुमरजुओ सो गओ सपुरे २३ ॥ दुगमवि सम्माणेउं वत्थाहरणेहिं खयरबलकलिओ । इह पत्तो तुम्ह सुतो सो हं इय साहियं तुम्ह ॥ २४ ॥ ता ताय अहं जाओ दुप्पुत्तो तुम्ह जं मए दिनं । नियविरहेणं कुमरीहरणेण य दारुणं दुक्खं ॥ २५ ॥ इय जंपतो भणितो निवेण मा पुत्त खेयमुवहसु । दोसो न अम्ह दोण्हवि किं तु इमं दुकयकम्मफलं ॥ २६ ॥ पुवभवे तवचरणं कयं मए किं तु संतरायं तं । जं तुह सरिसो पुत्तो जातो हरिओ य मिलिओ य ॥ २७ ॥ जायं कन्नाहरणं कन्नाहरणंव परमकल्लाणं । जस्सप्पभावतो मे सुचिरेणवि पुत्त मिलिओ तं ॥ २८ ॥ इय जंपिऊण गाढं जणएणालिंगितो सुतो तयणु । जणणीए नओ तीयवि अवरुंडिय चुंबिओ भाले ॥ २९ ॥ खेयरवइणा वुत्तो जणतो तं गिन्ह ताय मह रज्जं । परिवज्जियसावज्जं पवज्जं पुण अहं काहं ॥ १३० ॥ तं भणइ पिया परिणयवयस्स मज्झवि य जुज्जए दिक्खा । काहं नाहं विरहं इण्हिपि तए समं जाय ॥ ३१ ॥ दोपि सम्मएणं कुमरिं परिणाविऊण कुमरस्स । दिन्नं तं रज्जं तो पत्ता सधेवि वेयड्ढे ॥ ३२ ॥ तत्थवि अहिसिंचिय कुसुमसेहरं खयररायरज्जम्मि । खेयरनरनाहेहिं गहिया दिक्खा गुरुसयासे ॥ ३३ ॥ पणमित्तु कुसुमसेहरांया पुच्छइ गुरुं कहह भयवं । मह पुवजम्मसुकथं जं जाओ हं खयरचक्की ॥ ३४ ॥ आह पहू आयन्नसु रयणवईए पुरीए तं राय । कम्मयरो आसि अईवदुग्गओ दुग्गदेवोत्ति ॥ ३५ ॥ कइयावि नाणनिउणाभिहाणसूरीहिं भवपरिसाए । साहिष्पतं निसुयं जिनिंदपूयट्ठगं तेण ॥ ३६ ॥ तहाहि ॥ फलकुसुमक्खयजलधूवदीवनेवज्जवासनिम्माया । कीरइ एसा अट्टप्पयारपूया जिनिंदाण || ३७ ॥ सङ्घाओवि असत्तो काउं सयवत्तपमु
कुसुम
पूजायां
कुसुमशेखरकथा
॥ ४ ॥

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