Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah
View full book text
________________
जंपिरी तमप्पइ " किमदेयं वा सिणेहस्स” ॥ ८ ॥ संगोवियं समग्गं तेणवि तं बंधिऊण परिहाणे । "इयरंपि सुग्गहीयं कुणति दक्खा किमु न दुई" ॥ ९ ॥ भणियं च तीए पिययम तुह कजे मारिऊण दइयंपि । इह पत्तत्ति पयासह पयईतुच्छत्तमित्थीणं ॥ ७१० ॥ तं सोउं सो सुहडो जंपइ एयं तए कयमजुत्तं । जं सो हओ "न गरुया पावपवत्तावि निक्करुणा" ॥ ११ ॥ पररमणीपरिभोगो एवं बीयं तु तीए अवहरणं । तइयं धणावहारो तुरियमविणासिनरहणणं ॥ १२ ॥ जइ हं नागच्छंतो ता हुतं एकमवि न पावं मे। आगंतुं चत्तारिवि पावाई मए कयाई पिए ॥ १३ ॥ एक्केकंपि समत्थं दाणे नेरइयदारुणदुहस्स । उपावभरकंतो कहिं हयासो गमिस्समहं ॥ १४ ॥ नंदंतु नरा तेच्चिय चिरं न चिंतावि जाण संजाया । पररमणिविसयविसया सीलालंकारकलियाण ॥ १५ ॥ हा हा हयविहिविहि ओह मिह महापावमंदिरं तुमए । कहमन्नह मं पत्ता एवंविहपावरिछोली ॥ १६ ॥ गब्भाउ किं न गलिओ बालो मिलिओ न किं बिडालीए । जमहमकज्जपरंपरपत्तं जाओ अणज्जमई ॥ १७ ॥ एवं वेरग्गवसा वागरमाणं निसामिय तयं सा । चिंतइ नूण विरत्तो एसो एरिससमुल्लावा ॥ १८ ॥ ता मह सवत्तिपुत्ताण गोससमयंमि साहिही नूणं । ते मं कयत्थिऊणं दुम्मरणेणं हणिस्संति | ॥ १९ ॥ ता किं इमिणा मह रक्खिएण नियवेरिणत्ति चिंतेइ । “खणरायविरायन्तं पायं पयई महिलियाण " ॥ ७२० ॥ |पहु मह खमसुति पर्यपिऊण खामणमिसेण तप्पाए । उप्पाडिऊण अयडे झडत्ति सुहढं खिवइ पावा ॥ २१ ॥ तिब्बाणुराय (इ) णीविय संज्झ विराइणी दुयं जाया । “खणरायविरायत्ते महिलाणहवा किमच्छरियं” ॥२२॥ दद्दूण भडं अपडे पक्खित्तं हयहरो विचिंतेइ । “धिद्धी घिरत्थु इत्थीण णत्थसत्थेकमूलाण” ॥२३॥ उम्मीलिओ वि दूरं इमंमि सुहडे इमाए अणुरातो । सहसच्चिय पणट्ठो पवणायसरयजलओब ॥ २४ ॥ जस्संगं अप्पिज्जिह दिज्जइ दुद्देयसङ्घदद्वंपि । सो वि हु एवं हम्मइ "अहो महेलाण मूढत्तं" ॥ २५ ॥ पंचविहं विसयसुहं उवभुक्तं जेण सह सिणेहेण । तबेलं चिय सोवि हु
धूपपूजायां धूपसुंदरकथा

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90