Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah

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Page 59
________________ 5 959555555555555 5 5 | सारो देवपसाएण जीवियवस्स । पत्तस्स चरिय चरणं भवहरणं सहलयं काहं ॥ ९३ ॥ जइ नो देवो देंतो पाणे मह दीपक नूण ता अहं इण्हि । उभयभवसंभवाणवि चुकतो चेव सोक्खाण ॥ ९४ ॥रायाह वच्छ कस्सइ कयाइ भववासमहि- पूजायां | वसंतस्स । दुक्कम्मेण अवाया हवंति ता मा समुवियसु ॥ ९५ ॥ मा कुणसु वयकिलेसं धम्मो संतस्स होइ गिहिणोवि । भुवन| "को नाम कुणइ कहँ सइ कजे सोक्खसज्झम्मि" ॥ ९६ । सो भणइ सामि एवं विडंबणा होइ जाण कज्जम्मि । मह प्रदीपकथा होउ तेहिं विसएहिं वयमहं संपइ गहिस्सं ॥ ९७ ॥ जंपइ सेट्ठी बुज्झवह देव एसेव जं सुओ मज्झ । करहपडियं व भंडयमिमं विणा फुडइ हिययं मे ॥९८॥ पुत्तेणुत्तं जइ अन्ज पहु तए हं विणासिओ हुन्तो। हुता केत्तियमेत्ता ता पुत्ता मज्झ जणयस्स ॥ ९९ ॥ जणया जणणीउ पियाउ पुत्तया बंधुणो य संसारे । मुक्का भूरिभवेसुंता मोहो कहह को तेसुर ॥१०००॥ "परमत्थेणं न कयावि वल्लहो अत्थि कोइ कस्सावि । सोयइ सबोवि जणो नियकज चेव सीयंत" ॥१॥ ता अहमवि नियकज्जप्पसाहणे उजओ इयाणिपि । ता मा भवह भवंतो सधे धम्मंतरायपरा ॥ २॥ गहिऊण वयं अजं मुंजिस्सं अन्नहा महाणसणं । तो नायनिबंधेणं निवेण मोयाविओ सेट्ठी ॥ ३ ॥ जणणीवि तत्थ पत्ता पुत्तेण कमे नमित्तु विणयपरं । पाएसु लम्गिऊणं बलावि मोयाविया अप्पं ॥४॥ सम्माणिउं विसज्जइ वत्थाईहिं सपियं सुयं सेटिं। राया पवंचमइयंपि भणिय नायुजया होज ॥५॥ कुमइंपि भणइ वाहरिय मा पुणो इय करेज अन्नायं । पुणरुत्तं न खम्मिस्सं ति भणिय तं पि हु विसज्जेइ ॥ ६॥ हाणाइसबसिंगारसुंदरो सिवियमारुहिय पत्तो । इह एसो सेट्ठिसुओ' पवइओ तुज्झ पच्चक्खं ॥ ७॥ खयराहिराय वेरग्गकारणं पुच्छियं जमेयस्स । तं कहियं "ता मोत्तुं कुसंगमायरह गुणिसंगं ॥ ८॥ पायं विणस्सइच्चिय पत्तकुसंगो जणो सुवित्तोवि । उयरगओ असुइत्ते जुज्जइ परमोवि आहारो॥९॥ सगुणमि गुणाहाणं पावइ पत्तो जणो अजन्तोवि । रमणिनयणे कलुसंपि कज्जलं सोहमुबहइ ॥ १०१०॥ कायवो 1955555555555555555555555

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