Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रुतज्ञानअमीधारा सीरीज नंबर ५ विश्वहितबोधिदायक श्रीअमीविजयगुरुभ्यो नमः सुगृहीतनामधेय श्रीमन्नेमिचंद्रसूरीश्वरगुम्फितं श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टक संपादक आचार्य विजयक्षमाभद्रसूरिः "विक्रम संवत् १९९७ ५ प्रकाशक शाह रायचंद गुलाबचंद मु० अच्छारी, पोष्ट भिलाड (गुजरात) वीरसं. २४६६ इसवी सन १९४० Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Published by Shah Raychand Gulabchand, Acchari Station Bhilad, B. B. &. C. I. Ry. Printed by Ramchandra Yesu Shedge, at the Nirnaya Sagar Press, 26-28, Kolbhat Street, Bombay. प्राप्तिस्थानम्-आचार्य श्रीविजयदानसूरीश्वर जैनग्रन्थमाला गोपीपुरा-मु० सुरत. पोष्टेज पेकिंग खर्च चार आना Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनन्त० १ श्रीश्रुतज्ञानअमीधारा ग्रन्थाङ्क नंः ५ श्रीमन्नेमिचन्द्रसूरीन्द्रगुम्फितं श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् । विश्वहितबोधिदायक श्रीअमीविजयगुरुभ्यो नमः । जयह जुगाइजिनिंदो परिविलसिरसमवसरणच उरूवो । वागरिडं पिव सुहदाणसीलतवभावणाधम्मे ॥ १ ॥ सो जयइ जिणोणंतो देसणदंसणंसुणो सया जस्स । केवलरविकिरणा इव तममवर्णिता वियंभंति ॥ २ ॥ सिरिवद्धमाणसामिं नमामि कणयाभदेहदित्तीए । कुणमाणं पिव भुवणं सवंपिय अत्तणो तुलं ॥ ३ ॥ सम्मत्तनिश्चलत्तं किरियाए जीए होइ तं कहह । जह निश्चंपि हु पहु सिद्धिसाहयं तं करेमि अहं ॥ ४ ॥ तो आह तिजयनाहो नरिंद निसुणेसु तस्स निश्चलया । जायइ जिणपूयाए भत्तीए तिसंज्झविहियाए ॥ ५ ॥ जिणपूया पावहरी जिणपूया जायए भवंतकरी | जिणपूया सव्वाणवि कल्लाणमणीण भंडारो ॥ ६ ॥ अवहरइ दरिद्दत्तं पणामए तिजयलच्छिविच्छडुं । जिणपूया कीरंती पणा|सए सवदुरियाई ॥ ७ ॥ कुसुमक्खयफलजलधूवदीवनेवज्जवासनिम्माया । पूया जिणेसराणं सा अट्ठविहा विणिद्दिट्ठा ॥ ८ ॥ वरपरिमलेहिं कुसुमेहिं पूयए जो जिणे सबहुमाणं । पूयापत्तं जायइ जिणप्पसाया गुरूणवि सो ॥ ९ ॥ जो जिणपयपडमपुरो पूयत्थं खिवइ अक्खए खिप्पं । सासयसोक्खे मोक्खम्मि अक्खओ होइ सो पत्तो ॥ १० ॥ एकेणावि फलेणं जिणरन्नो जो उवायणं कुणइ । ता तप्पसायओ लहइ सो धुवं सङ्घसिद्धिसिरिं ॥ ११ ॥ पत्तगएण जिर्णिदं कुसुम- पूजायां कुसुमशेखरकथा Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 95955555555555995 कुसुमपूजायां कुसुमशेखरकथा ॥१॥ श्रीअनन्त मनाजो सच्छस्साउसीयलजलेण । पूयइ सो तेणेवय पक्खालइ नियमलं निवमा ॥ १२॥ जो घणसारं अगरुं च दहइ नाथचरि जिणअंगधूवणनिमित्तं । सो घणसारो जायइ अगुरू धणओ वि जस्स पुरो ॥१३॥ जो मंगलप्पईवेण पूयए सामिसात्रादुद्धृतं लजिणचंदं । सो दीवसिहा उज्जलमुत्ती सग्गसिरिं रमइ ॥ १४ ॥ जे निरवजं भोज नेवजे जिणवरस्स जच्छंति । पूजाष्टकम् भोत्तूण ते अ(5)णवजाइंल(भ)वसुहाई सिवं जंति ॥१५॥ जो सुहवासेहिं जिणेसरस्स पूएइ पायसयवत्तं । सो सुहवासं मि सया सिवालए सासओ वसइ॥ १६॥ एयाओ अट्ठवि कुणइ जो सया भत्तिनिब्भरो भयो। सो अट्ठकम्ममुको |संपज्जइ सासओ सिद्धो ॥१७॥ सबाहिंवि असमत्थो एक्काएवि पूयए जइ जिणं जो । ता सोवि भावसुद्धीए पावए सिद्धिसंबंध ॥ १८ ॥ एयाउ राय कहियाउ तुब्भ पूयाउ इय जिणुत्तम्मि । भणइ निवो पणयपहू सीमंतयरइयकरकोसो ॥ १९॥ जयनाह साहसु महं महंतकोऊहलाउलमणस्स । दिटुंते अट्ठाणवि पूयाणिण्हि कयपसाया ॥ २०॥ जंपइ जिणेसरो सुणसु राय कयअप्पमत्तमणवित्ती। संपइ साहिजंते दिढते अट्ठ पूयासु ॥ २१॥ इह दुग्गदेव दुग्गयपडाय वानरय चंदैतेयक्खा । साहससार अकिंचण रॅणसूर धणावहा पुरिसा ॥ २२ ॥ होउं कमेण एकेकपूयकरणेण गरुयरायाणो । सिरिकुसुमसेहरक्खयकित्तिप्फलसारजलसारा ॥२३॥ सिरिघूवसुंदरो तह मुँवणपईवो पईवसिहवत्तो । मुंवणप्पमोयगो गंधबंधुरो सिवपुरि पत्ता ॥ २४ ॥ कुलयं । कुसुमेहिं जेण पूइय जिणेसरं पाविया महारिद्धी । तं कुसुमसेहरकहं कहिज्जमाणं निसामेह ॥ २५ ॥ पुरमत्थि एफुरियमहापहाविरायंतरयणपायारं । रयणप्पायारं नाम गुरुविमाणं सुरपुरं व ॥ २६॥ रयणीसु जत्थ ससिरयणचंदसालागलंतसलिलेण । भवणाई नीरयाई भवंति मुणिमाणसाइं व ॥२७॥ तत्थत्थि हत्थियरहजोहोहपसाहियाहियसमूहो । विलसिररयणाभरणो रयणाभरणोत्ति नरनाहो ॥ २८ ॥ आयड्डियासिपडिफलियतरणिकिरणावलीकलियकाओ। पयडपयावप्पसरोव जो E SULELEVALण्डन Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुसुमपूजायां कुसुमशेखरकथा HISTLESSEL रणे रीण दुनिरिक्खो ॥ २९ ॥ सर्वतेउरतरुणीपहुत्तपयवीपइट्ठिया जाया। तस्सत्थि हत्थिमंथरगइगमणा रयणमालत्ति ॥ ३० ॥ चित्तव चित्तवासा अमुक्कपासा सकीयछायव । निययप्पयइव सया जा दुम्मोया मणायंपि ॥ ३१॥ ताणस्थि तारतारुनललियलायन्नपुन्नसबंगी। अंगीकयसयलकला कन्ना रयणावली नामा ॥ ३२ ॥ पीयाए सुराए हाइव दिहाएवि जीए होइ उम्माओ । तरुणाण विवेईणवि अविवेईणं तु का गणणा ॥ ३३ ॥ सा जत्थ जत्थ कीला करणकए जाइ रूवविजियरई ॥ गच्छंति तत्थ तत्थय परवसा सेवयत्व नरा ॥ ३४ ॥ कइयावि मयंकमुही सहीजुया |सा सुहासणासीणा। सियछत्तचलिरचमरालंकरिया निग्गया नयरा ॥ ३५ ॥ पत्ता य मत्तमहुयरनामे सिसिरहुमम्मि आरामे । दहण मयणभवणं उत्तिन्ना जा विसइ तत्थ ॥ ३६॥ ता नियइ रंगमंडवगवक्खभद्दासणट्ठियं एकं ।। रायकुमारं मयणं व निग्गयं भवणगब्भाओ॥ ३७॥ करकलियकेलिकमलं नियरूवनियंबिणीजणियमयणं । सुसि|णिमुद्धदीहच्छिजोण्हधवलीकयग्गनहं ॥ ३८ ॥ तं पेच्छिउं मयच्छी चिंतइ को एस दीसइ महप्पा । अञ्चब्भुयरूव धरो सिंगारी चारुतारुन्नो ॥ ३९ ॥ नूणं पञ्चक्खोच्चिय एसो धम्मो इमाउ संजायं । जं मज्झ अणिमिसत्तं सहसत्ति | निरंतरायसुहं ॥ ४०॥ पुत्वभवुप्पन्नमहापुन्ना रायेण तीए फलियत्वं । तूलिब अंगसंगं इमस्स जा पाविही बाला ॥४१॥ सच्चिय जयप्पवित्ता विलसन्तसुवन्नरयणरमणीया । जा मुद्दियत्व लहिही करगहणमिमस्स सुहयस्स ॥ ४२ ॥ सच्चियउत्तमगमणा विन्भमरहिए सुपत्तरसजाए। रमिही इमस्स जा माणसे सया रायहंसिव ॥४३॥ इय चिंतती जायासमसज्झससेयकंपकलियंगी । पक्खलियपया पविसइ अविइण्हं तं पलोयंती ॥४४॥ वरदाणपरंपि मम मुत्तुमिमा नियइ अन्नमइनेहा । इय चिंतिय कुविएणव कामेण सरेहिं पहया सा ॥ ४५ ॥ मयणेण नडिजंती थिरसरलसिणिद्धबंधुरच्छीहिं । सच्चविया असरिसरुवहरियहियएण कुमरेण ॥ ४६॥ एयाए अहो रूवं मोहइ मणमवि F USULLCLPI PA Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूजायां श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् कुसुम शेखरकथा ॥ २ ॥ पसंतमोहाण । गुरु रायायत्ताणं मह सरिसाणं तु का वत्ता ॥४७॥ सोच्चिय गुरुरायधरो सोच्चिय सरसो इमाए बालाए। सवंगसंगम जो लिहिही घुसिणगरागोछ । ४८ । सो चेव चारुवन्नो पवित्तगुरुमुत्तसियगुणमहग्यो । एयाए मयच्छीए हियए हारोब जो वसिही ॥ ४९ ॥ इए चिंततो संतो मयणायत्तो ठिओ कुमारोवि । सूरचरिओवि कायरनरनियरनिदरिसणं जाओ ॥ ५० ॥ धवलइ कुमरं बाला नियच्छिजोहाए सोवि रायसुयं । पञ्चुवयरंति सिग्धं गरुया रइओवयारम्मि ॥ ५१॥ तं पेच्छरी कुमारी पत्ता पासंचि कामपडिमाए । सविणयपणामपुवं पूर्व काउं समारद्धा ॥ ५२ ॥ परिपूर्यती मयणं पुणो पुणो पेच्छिरी कुमरवयणं । दंसह मयणस्सव तं दइयमिमं देहि मज्झत्ति ॥५३॥ पूयाए जाइ मयणे तद्दिट्ठी निवसुएणुरायेण । रूवंतरंव दटुं पइक्खणं कामकुमराण ॥ ५४॥ पुच्छइय मयणियं नाम नियसहिं को वयंसि एस जुवा । तीए कुमारथइयावहाउ नाऊण कहियं से ॥ ५५ ॥ सहि सुणसु कुसुमसुंदरनयरे निययप्पयावजिय| तरणी । कुसुमावयंसयनिवो भज्जा कुसुमस्सिरी तस्स ॥ ५६ ।। पउरगुणपउरनयरं ताण सुओ कुसुमसेहरो नाम । सयलकलाकलियतणू नियजोवणरमणिमणहरणो ॥ ५७ ॥ भत्तस्स विणीयस्सवि नीइपरस्सावि तस्स नरवइणा । केणावि कारणेणं पराभवो विरइओ दूरं ॥ ५८॥ तं अवमाणं काऊण माणसे अद्धरत्तसमयम्मि । परिमियपरिवारजुओ चलिओ देसंतरे कुमरो ॥ ५९॥ इह पत्तो विनातो तुह जणएणं अणिच्छमाणोवि । गंतुं पञ्चोणीए रिद्धीए पवेसिओ एत्थ ॥ ६०॥ संमाणिऊण भणितो मा गच्छसु वच्छ अच्छसु इहेव । जं मज्झ तुझ जणओ मित्तो अचंतगोरबो ॥६१॥ ठाउमणिच्छंतोवि हु निवोवरोहा इहट्ठिओ स इमो। अणभिमयं पि न गरुया दक्खिन्नपरा परिहरंति ॥६२॥ तं सोउं रायसुया चिंतइ जुत्तो इमंमि अणुराओ। नवरं एसो रत्तो नो वा संपइ न याणामि ॥६३।। कुमरेणुत्तो थइयावहो अरे मंतियं किमेयाए । तेणु निवकन्नासहीए तुह पुच्छियं चरियं ॥ ६४ ॥ कुमरनिरिक्खणलुद्धा निवत्तियकामपडिम | ॥ २ ॥ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूयावि । तब्भवणपेच्छणछला महई वेलं ठिया बाला ॥ ६५ ॥ वारं वारुं चलसुत्ति सोविदलीहिं विन्नविज्जंती । पक्खलियकमं तं पेच्छिरी गया जाणमारुहिउं ॥ ६६ ॥ गच्छंती कुमरेणं पलोइया सोवि तीए सच्चविओ । अणुरते जंताई धरि को तरइ नेत्ताई ॥ ६७ ॥ नयणपद्मइकंताए तीए अरई कुमारमणुपत्ता । लहइच्चिय अवयासं कइयावि अणिट्ठभज ॥ ६८ ॥ रंमंपि तविओए उज्जाणं पिइवणंव दुक्खकरं । कलयंतो कुमरो तुरियं तुरयमारुहिय संचलिओ ॥ ६९ ॥ नयरपउलिं पविट्ठो सुणइ समाउलियलोयहलबोलं । नियइ य गुरुतरुघरपुरसालारूढं सभयलोयं ॥ ७० ॥ किमिमंति कयवियको पेच्छइ सुन्नासणं गयाहिवई । पाडतं पासाए मारंतं तुरय-नर-करहे ।। ७१ ।। चरणागरिसियसंकलसरेण नियडयखडक्खडाए य । गलगज्जिएण य जणं जो जाणावन्तो व धावेइ ॥ ७२ ॥ मा महभारकंता भूमी मुच्छिज्जउत्ति कलिडं व । सिंचंतो गुरुफुक्कारसिक्करासारसलिलेण ॥ ७३ ॥ चलकन्नतालचालियस सहर सिय| चारुचमरजुयलेण । जो वीयइ दंतसुहासणट्ठियं रायलच्छि व ॥ ७४ ॥ दहुं सुहासणट्टियनिवतणयं धाविओ करि तो । सा ज्झंपाए समुत्तिना नियडेणत्थे थिरो को वा ॥ ७५ ॥ पीणपओहरगुरुतरनियंबभरमंथरक्कमगईए । नासिउमतरंती सा गहिया करिणा कुरंगच्छी ॥ ७६ ॥ दूरुक्खित्ताए पवणप्पसारिओ तीए कुंतलकलावो । समयगयकडतडुड्डीणभमरनियरोव रेहेइ ॥ ७७ ॥ वियसियसिरीसकुसुमोहसमहियप्फासलालसेणं व । गाढं गएण नियकरदंडेणालिंगिया बाला ॥ ७८ ॥ करिणा हरिणंकमुही सुमुही विहिया विहाइ गयणयले । नियकुंभतत्थणाण व पीणत्तं दहुकामेण ॥ ७९ ॥ मा मह भएण एसा मुच्छिज्जड इय विभाविऊण करी । तं वीयइव चलकन्नतालजुयताल| घंटेहिं ॥ ८० ॥ तं दद्धुं रायसुओ झडित्ति मुत्तुं तुरंगमं वेगा । उद्धाइओ गयं पइ हक्कतो कक्कससरेण ॥ ८१ ॥ रे रे | दुट्ठ गयाहम मोतुं नारं वलेसु मह समुहं । जइ सत्तमत्थि इय सुयकुमरालावा भणइ कुमरी ॥ ८२ ॥ मह कीडिय - कुसुमपूजायां कुसुमशेखरकथा Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अनन्त - नाथचरि त्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् ॥३॥ कप्पाए कज्जे भुवणोवयारकरणखमं । नररयण मा विणाससु अत्ताणं करिकयंताओ ॥ ८३ ॥ सुयकुमरीविन्नवणो सो जंपइ तंपि भुवणगब्भम्मि । वससि तओ रक्खिस्सं चइउं पाणेवि तं नियमा ॥ ८४ ॥ मह करगयावि चाटूणि करेइ कुमरस्स इय विभावेउं । कुविएण व करिणा सा खित्ता दूरं गयणमगे ॥ ८५ ॥ विज्जाहरिं व गयणे गच्छंतिं तं पलोइरो कुमरो । जाओ पमत्तचित्तो तो संगहियो गईदेण ॥ ८६ ॥ मिलसु नियवल्लहाए तुमंपि इय चिंतिउं व कुविएण । करिणा कुमरो वि नहे खित्तो तीए पडतीए ||८७|| मरिही एसा एद्दहद्दूरा रयनिवडियत्ति कलिऊण । परिसत्ता करुणाए नेहेण व | तेण सा गाढं ॥ ८८ ॥ आलिंगियाए तीए पडइ अहो निवसुओ निराहारो । थीफासलालसाणं अहोगईए न संदेहो ॥ ८९ ॥ एत्थंतरंमि वेगागएण नहयरनरेण एक्केण । तद्दुगमवि अवरुंडिय नरनयणागोयरे नीयं ॥ ९०॥ तो पलवंतो लोगो अतरंतो लग्गिउं खयरमग्गे । गंतूण कहइ रन्नो कुमारकुमरीणमवहरणं ॥ ९१ ॥ तं सोउं आउलितो चलितो राया निरिक्खणे ताणं । पेरियतरलतुरंगो परियडइ पुरस्स चउपासं ॥ ९२ ॥ अप्पत्ततप्पउत्ती दुरयरमहिं पलोइउं वलिओ । रुयइ रुयावि - | यलोगो सहमागंतुं गुरुसरेण ॥९३॥ हा वच्छे हा वच्छे हहा अतुच्छे हहा विणयदच्छे(क्खे) । हा सुकुमाले बाले अवरिया केण तं कह || ९४|| हे देव निद्दतो तं बालं पुत्तं तया हरेऊण । कंन्नंपि अवहरंतो खयंमि खारं खिवसि खुद्द ॥ ९५ ॥ हा मह सहा वि सुन्ना तुह विरहे कुसुमसेहरकुमार। एरिसदुह (दं) सणत्थं पवसंतो तं मए धरिओ ॥ ९६ ॥ अंतेउरपरजणेणं राइणा तह तथा तर्हि रुन्नं । जह नयणजलासारो वित्थरितो वरिसयालोव ॥ ९७ ॥ एवं पलवंताणं ताणं तइए दिणे तरणिउदये । | खयरविमाणगणेणं पत्तो कुमरीजुतो कुमरो ॥ ९८ ॥ पणतो य महीवइणो सखेयरो निवसुयावि तं नमइ । आपुच्छिय कुसलाई ताइं निविट्ठाइं निवपुरतो ।। ९९ ।। रायाह कुमर साहसु हरणागमणाण निययवुत्तंतं । तो तं कुमराणाए कहि | लग्गो खयरचक्की ॥ १००॥ देवत्थि दियवरम्मिँ व वेयड्डे गुरुगिरिम्मि मणिभवणं । नयरं रहनेउर चक्कवाल नामं मणभि कुसुम पूजायां कुसुमशेखरकथा ॥ ३ ॥ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुसुमपूजायां कुसुमशेखरकथा रामं ॥१॥ तं परिपालइ विजाहराहिवो नयणवेग अभिहाणो। गहियन्वयभरसिरिकिरिणवेगखयरिंदअंगरुहो ॥२॥ दाहिणनंदीसरगरुयवेगवलिएण तेण सच्चवियं । अन्नोन्नं परिसत्तं पडन्तमित्थीपुरिसजुयलं ॥ ३॥ अञ्चतरूवरमणीरमणं पइ रइयबुद्धिणा तेण । तहुगमवि अवहरिउं नीयं सेले विसालग्गे॥४॥ तो थंभणीए विजाए थंभिउ पुरिसमाह रमणिं सो। मं अणुरत्तं भत्तं भत्तारं सुन्भु मन्नेसु ॥५॥ तीउत्तं तं सुपुरिस भाया मह नियसहोयरसरिच्छो । ता उभयभवविरुद्ध तुमए नो किंपि वत्तवं ॥६॥ अवरं च न सायत्ता अहं जतो जणायदिन्निया कन्ना। वीवाहिजइ सेच्छा जुत्ता न भवारिसाणंपि ॥७॥ तुम्हारिसावि उत्तमकुलुब्भवा जइ मुयंति मजायं । ता बंधव अकुलीणाण पावकारीण का वत्ता ॥ ८ ॥ किं नियपियासरीराउ मह सरीरम्मि समहियं किंपि । दिद्वं जं भाय तुमं संपइ जंपसि अवत्तवं ।। ९॥ वित्थरइ जरा परिगलइ जोवणं जाइ जीवियपि । किं नाम सासयं तुह देहे जमकजसजोसि ॥ ११० ॥ मुत्तंतपुरीसवसावासे दुग्गंधमलविलीणमि । मह देहे किं सारं जं रायरसे तुहुक्करिसो ॥ ११॥ एत्थंतरंमि चउनाणनायनियपुत्तपाववुत्तंतो। तबोहत्थं सिरिकिरणवेगसूरी सहिं पत्तो ॥ १२ ॥ तेणुत्तं भो सावय किं तुज्झ कुलकमो इमो जमिमं । पारद्धं तुमए निंदणिजमुत्तमनराण जतो ॥ १३ ॥ लजिज्जइ जेण जणे मइलिजइ नियकुलक्कमो जेण । कंठट्ठिएवि जीए कुणंति न कयाइ तं सुयणा ॥ १४ ॥ किं पुत्त पिइपियामहपमुहेहिं वयं कयं हवइ जेसिं । ते इव निम्मजाया तुमं व पावप्पिया हुंति ॥१५॥ अवरं च इमा भइणी सहोयरा तुह मुणेमि नाणेण । जं रयणप्पायाराहिवरयणाभरणभूवइणो ॥ १६ ॥ तं अंगरुहो जेट्ठो एसावि सुया कणिट्ठिया तस्स । वच्छ मए तं हरिओ निवभवणा मासमेत्तवओ॥ १७ ॥ कुमरीवयणविरत्ते चित्ते पिइसिक्खणेण संवेगो। लग्गो खेयरवइणो पासियवत्थम्मि रंगोब ॥ १८॥ तो तेण पायजुयले लग्गेऊणं खमाविया भइणी । उत्थंभिउं कुमारं पणमिय सूरीण विन्नत्तं ॥ १९ ॥ पहु मोहमहाकूवे अविवेयजले DUDELCULELLEGESSES595555555-ha Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् ॥ ४ ॥ ॥ | निमज्जिरो तुमए । नियवयणवरत्ताए उद्धरिओ हं दयानिहिणा ॥ १२० ॥ परिभोगो इयराएवि पररमणीए पयच्छए नरयं । किं पुण नियभइणीए आजम्मं पूयणिज्जाए ॥ २१ ॥ ता पहु कंनाए समं नियरज्जं अप्पिऊण जणयस्स । संगहियसबविरई तुह चरणाराहओ होहं ॥ २२ ॥ ठायबं तुम्भेहि रहनेउरचक्कवालनयरम्मि । इय जंपिय गुरु कुमरी कुमरजुओ सो गओ सपुरे २३ ॥ दुगमवि सम्माणेउं वत्थाहरणेहिं खयरबलकलिओ । इह पत्तो तुम्ह सुतो सो हं इय साहियं तुम्ह ॥ २४ ॥ ता ताय अहं जाओ दुप्पुत्तो तुम्ह जं मए दिनं । नियविरहेणं कुमरीहरणेण य दारुणं दुक्खं ॥ २५ ॥ इय जंपतो भणितो निवेण मा पुत्त खेयमुवहसु । दोसो न अम्ह दोण्हवि किं तु इमं दुकयकम्मफलं ॥ २६ ॥ पुवभवे तवचरणं कयं मए किं तु संतरायं तं । जं तुह सरिसो पुत्तो जातो हरिओ य मिलिओ य ॥ २७ ॥ जायं कन्नाहरणं कन्नाहरणंव परमकल्लाणं । जस्सप्पभावतो मे सुचिरेणवि पुत्त मिलिओ तं ॥ २८ ॥ इय जंपिऊण गाढं जणएणालिंगितो सुतो तयणु । जणणीए नओ तीयवि अवरुंडिय चुंबिओ भाले ॥ २९ ॥ खेयरवइणा वुत्तो जणतो तं गिन्ह ताय मह रज्जं । परिवज्जियसावज्जं पवज्जं पुण अहं काहं ॥ १३० ॥ तं भणइ पिया परिणयवयस्स मज्झवि य जुज्जए दिक्खा । काहं नाहं विरहं इण्हिपि तए समं जाय ॥ ३१ ॥ दोपि सम्मएणं कुमरिं परिणाविऊण कुमरस्स । दिन्नं तं रज्जं तो पत्ता सधेवि वेयड्ढे ॥ ३२ ॥ तत्थवि अहिसिंचिय कुसुमसेहरं खयररायरज्जम्मि । खेयरनरनाहेहिं गहिया दिक्खा गुरुसयासे ॥ ३३ ॥ पणमित्तु कुसुमसेहरांया पुच्छइ गुरुं कहह भयवं । मह पुवजम्मसुकथं जं जाओ हं खयरचक्की ॥ ३४ ॥ आह पहू आयन्नसु रयणवईए पुरीए तं राय । कम्मयरो आसि अईवदुग्गओ दुग्गदेवोत्ति ॥ ३५ ॥ कइयावि नाणनिउणाभिहाणसूरीहिं भवपरिसाए । साहिष्पतं निसुयं जिनिंदपूयट्ठगं तेण ॥ ३६ ॥ तहाहि ॥ फलकुसुमक्खयजलधूवदीवनेवज्जवासनिम्माया । कीरइ एसा अट्टप्पयारपूया जिनिंदाण || ३७ ॥ सङ्घाओवि असत्तो काउं सयवत्तपमु कुसुम पूजायां कुसुमशेखरकथा ॥ ४ ॥ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 हसुमणेहिं । पूयइ जो जिणचंदे सो सामी हवइ सुमणाण ॥ ३८ ॥ माणुसभवेवि नूणं जिणपूया पुन्नपगरिसपभावा । अंगंपि कुसुमपरिमलमुग्गिरइ सयावि सत्ताण ॥ ३९ ॥ किं बहुणा भोत्तूर्ण असुरनरामरपह्नुत्तरिद्धीतो । सिद्धिं पि धुवं पावर पाणी जिणनाहपूयाए ॥१४०॥ इय आयन्निय बावन्नदेवउलियाजुयम्मि पत्तो सो । कीर विहाराभिहजिण हरम्मि मणिकणयघडियम ॥ ४१ ॥ जाईसरेण जं कीरपक्खिणा भणिय पुत्तजयसेणं । कारवियं नायज्जियधणेण बहुमाणसारेण ॥ ४२ ॥ जं चउदिसिपडिबिंबियपाडलकलियाहिं भमिरभमराहिं । नियइव भावरिउणो कोवारुणनयणनिय - | रेण ॥ ४३ ॥ आभाइ निरब्भनिसिप्पडिबिंबियतारतारयप्पयरं । जं भत्तिनिब्भरामरविरइयसियकुसुमवरिसं व ॥ ४४ ॥ तम्मिं पविसिय नायज्जिएण दद्वेण गहिय कुसुमाई । आणंदपुलइयतणू पूयइ सो रिसहजिणनाहं ॥ ४५ ॥ तप्पुन्नपभावेणं रिद्धिं भोक्तुं भवम्मि तम्मि ततो । जातो तं खयरवई इय कहियं राय तुह चरियं ॥ ४६ ॥ तं सोडं | जाईसरणनाणविन्नायपुवभवचरिओ । रायाह जह पहूहिं कहियं दिट्ठ मएवि तहा ॥ ४७ ॥ तो रयणाभरणमुणी भणइ मुर्णिदं कहेह मह भयवं । किं सुयसुयाण विरहो बहुथोवदिणाणि जाओ मे ॥ ४८ ॥ आह पहू आरामियपुत्तो कणकिन्ननामगामम्मि । आसी अंड ( ब ? ) यनामो कीरसुओ गोविओ तेण ॥४९॥ तो तं अनियंतं कीरजुयलमञ्चंतदुक्खियं जायं । करुणं कूयइ अंसूणि मुयइ मुच्छियएणुकलं ॥ १५० ॥ जणएणुत्तं पुत्तय मुंचसु तणयं सुयाणमिहिपि । मा पुत्तवित्ताणं | इमाणमञ्चाहियं होही ॥ ५१ ॥ तो तेणमइकंतेसु नवमुहुत्तेसु सुयसुओ मुक्को । तो संजातो तोसो कीरीकलियम्स की रस्स | ॥ ५२ ॥ समयंतरंमि कम्मिवि अवहरिया सारसीसुया तेण । तो तज्जणणिं दुहियं दहुं सहसति सा मुक्का ॥ ५३ ॥ कइयावि मासखमणे आरामे तंमि संतियं साहुं । निचंपि पज्जुवासइ भत्तिब्भरनिब्भरो संतो ॥ ५४ ॥ भोयणकरण निविद्वेण | तेण तत्थेव मासपारणए । पडिला हितो मुणी सो सद्भासहियेण परमन्नं ॥ ५५ ॥ तप्पुन्नपभावा सो अमरो होउं तुमं कुसुमपूजायां कुसुमशेखर कथा Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अनन्त - नाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् ॥५॥ निवो जातो । कीरजुएण वि भमिउं भवम्मि समुवज्जिउं (अं) सुकयं ॥ ५६ ॥ कीरो जाओ हूं किरणवेगखयराहिवो सुई वि हु | मे | किरणावलित्ति कन्ना जाया नवरं अपुत्तो हं ॥५७॥ जा अंब ( ड ? ) एण हरिया सारसिया तीए सरतडे जणणी । बाणेण | लोइएणं विद्धा खवगेण सच्चविया ॥ ५८ ॥ पंचपरमेट्ठिमंतो दिन्नो से तेण तयणु सा सग्गे । अमरत्तसिरिं भोत्तु संजातो तुह इमो पुत्तो ॥ ५९ ॥ नहयलचलिएण मए दिट्ठो सपिएण मासमेत्तवओ । कीरहरणुत्थपावोदएण तुह सो मए हरिओ ॥ १६० ॥ पडिवन्नो पुत्तत्तेण नयणवेगोत्ति तयणु कयनामो । समयंमि तस्स रज्जं दाउं दिक्खा मए गहिया ॥ ६१ ॥ नंदीसरवलिएणं हरिया तुह कन्नया तओ तेण । अंबयभवसमुवज्जियसारसियाहरणपाववसा ॥ ६२ ॥ अट्ठारसघडियाहिं अट्ठारसवच्छराणि सुयविरहो । जाओ तह दिवसतिगं सुयाए सह अप्पपावेण ॥ ६३ ॥ ता सुमुणि कोउउप्पाइयं पिइय | दुक्खदायगं पावं । रागहोसवसकयं तं पुण वियरइ भवोहदुहं ॥ ६४ ॥ इय कहियं तुह चरियं तो रायरिसीवि जाइसर - णेण । तं नाउमाह एवं जह पहु तुब्भेहिं कहियंति ॥ ६५ ॥ नवदिक्खियमुणिजुत्तं नमिऊण गुरुं निवो कइवि दिवसे । भोक्तुं खेयररज्जं रयणप्पायारमणुपत्तो ॥ ६६ ॥ नीईए तत्थ पालइ रज्जं भुंजइ पियाए सह भोए । निञ्चंपि कुणइ तित्थप्पभावणं पूयइ जिर्णिदे ॥ ६७॥ दंडिप्पवेसिएणं कइयावि हु जणयमंतिणा राया। नमिउं विन्नत्तो देव तुह पिया गिव्हिही दिक्खं ॥ ६८ ॥ | रज्जारिहोत्ति केणइ हणिज्जिही एस इय विभावेडं । पिउणावमाणिओ तं न चेव पहु रागदोसेहिं ॥ ६९ ॥ ता तुम्हे पिउरज्जस्ति| रिमागंतुं अलंकरह पहुणो । कारणकयावमाणणविसए खेओ न जुत्तो जं ॥ १७० ॥ तं निसुणिऊण सम्माणिऊण तं तेण संजुओ राया । तत्थ गओ पयपणओ पिउणा आलिंगिओ गाढं ॥ ७१ ॥ संभासिय ससिणेहं निवेसिओ नियपए तओ | रन्ना । गीयत्थगुरुसयासे रिद्धीए कथं वयग्गहणं ॥ ७२ ॥ पालई सो रज्जतिगं नरखेयररायर इयपयसेवो । नंदीसराइठाणेसु १ 'संजाओ तुह नरवर अट्ठारसवच्छराणि सुअविरहो' इति पाठान्तरम् । 1 कुसुम पूजायां कुसुम शेखरकथा ॥५॥ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | जाइ सासयजिणे नमिउं ॥ ७३ ॥ उवभुंजिऊण रज्जेसु तिसुवि लच्छि पभूयकालं सो । रयणावलीसुयं कुसुमपरिमलं नाम ठविय पए ॥ ७४ ॥ गुरुनयणवेगपासे घेत्तुं दिक्खं कलत्तकलिएण । उपपन्नकेवलेणं पत्तं मोक्खम्मि नरवइणा || ७५ || कुसुमेहिं जहा रइया पूया एएण भूमिनाहेण । परमाणंदसुहत्थं कज्जा अन्नेण वि तहेव ॥ ७६ ॥ - कुसुमपूजा - 555 5 5 एसो हु कुसुमपूयाफलम्मि सिरिकुसुमसे हरो कहिओ । अक्खयपूयाए कहं अक्खयकित्तिस्स निसुणेह ॥ ७७ ॥ 55555 मसिणियघुसिणरसेणव अरुणारुणरयणभवणकिरणेहिं । रंजंती दिसिवयणाई कित्तिकलिया पुरी अत्थि ॥ ७८ ॥ मणि| कुट्टिमसंकंताहिं जीए निसि गिहिणीउ मुद्धातो । विलयाओ वेलविज्जंति मोतियाई ति ताराहिं ॥ ७९ ॥ ससहरजोहाभरसरिस कित्तिपब्भारभरियभुवणययलो । निम्मलकित्ती नामेण नरवई विलसए तत्थ ॥ १८०॥ वामकरेणेक्केणं इय|| रेणुब्भामियासिजणिएण । फरएणव बिइएणं धरिएण रणंमि जो सहइ ॥ ८१ ॥ पट्टमहादेवीपयपहुत्तमुबहइ तस्स सिय| सीला । लीलायमाणदेहा कित्तिसिरी नामिया दइया ॥ ८२ ॥ अञ्च्चन्भुयस्सरूवं जीए रूवं पलोइउं दूरं । अरईए परिग्गहिया रई वि सह तरुणलोएण ॥ ८३ ॥ तीए समत्थि गुरुअत्थिसत्थपविइन्नअत्थवित्थारो । पुत्तो अक्खय कित्ती नामेणं कम्म - गाविसया ॥ ८४ ॥ यस्सी दित्तिपहुच ईसरसिरसेहरो ससहरोध । पसमरसियमई सबया सुसाहुब जो सहइ ॥ ८५ ॥ निम्मलकलाकलावं परिकलयंतस्स तस्स पुणरुत्तं । जंति दिणाई निरंतरपिउपयसेवापसत्तस्स ॥ ८६ ॥ सहितो कयाइ | समवयसिंगारियरायउत्तमित्तेहिं । आरुहिय तुरंगं तुरयवाहियालीए संपत्तो ॥ ८७॥ पुलभमिवारिकाहिं (?) वाहिय तुरयं | निवारिडं मित्ते । दाऊण कसाघायं सो मुक्को तेण वेगेण ॥ ८८ ॥ विरइयगुरुतरवेओ हओ गतो जाव दुरदेसम्म । | मित्तेहिं ततो तुरया कुमरपहे पेरिया तुरियं ॥ ८९ ॥ महमग्गम्मि महीए इंति इमे नो नहत्ति कलिडंव । सहसत्ति समुप्पइतो कुमरतुरंगो नहयलेण ॥ १९० ॥ गुरुपवणनयणमणजवजइणा वेगेण जाइ गयणयले । कुमरतुरओ रयेणं जेउं पिव अक्षतपूजायां अक्षतकीर्तिकथा Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अनन्तनाथचरश्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् ॥ ६॥ रविरहतुरंगे ॥ ९१ ॥ उग्गीवाणं मं पेच्छिराण पीडा भडाण भवहित्ति । परिभाविडं व तुरओ तन्नयणागोयरे पत्तो ॥ ९२ ॥ रायगरुहे हरिए हियहियतो इव समग्गपरिवारो । कायद्यविमूढमई पत्तो रायंतियं झत्ति ॥ ९३ ॥ साहइ कुमारहरणं तं सोउं मुच्छिओ महीनाहो । तबेलमेव जाओ निचेट्ठो चत्तपाणो ॥ ९४ ॥ चंदण रसछडासेयवस समुवलद्धचेयण सहावो । रुयइ सकरुणं पागयनरोब अंतेउरेण जुतो ।। ९५ ।। हा हा कुमार हा भुवणसार हा रइयरम्मसिंगार । हा विहलिय अब्भुद्धार हा हहा समरदुबार ॥ ९६ ॥ हा जाय जाय हा विहियनाय हा धरियरायमज्जाय । हा हा पररमणीभाय हा हहा भुवणविक्खाय ॥ ९७ ॥ को उच्छंगे धरिऊण मह काम कुमर कोमलकरेहिं । संवाहंतो काही आणंद महूसवुक्करिसं ॥ ९८ ॥ कुंडलसरलुत्तरियाकंकण के ऊरमणिमयाभरणे । रंजिज्जतो दाही दाणे को बंदिविंदाण ॥ ९९ ॥ इय पलवंते संतेउरे निवेमंतिणा विमलमइणा । कुमरनिरिक्खणकज्जे तुरयाणीयं समाइटुं ॥ २०० ॥ तंपि दुवाल सजोयणमाणम्मि महियले परिब्भमिडं । नवरं कुमारवत्तामेतंपि न तेण संपत्तं ॥ १ ॥ तइयम्मि दिणे पसरंतसोय संभारनिब्भरे नयरे । कुमरो खयरविमाणाऊरिय गयणंगणो पत्तो ॥ २ ॥ नयणेहिं समं हरिसं वियासयंतो नरिंदलोयाण । पणओ जणणीजणयाण तेहिं आलिंगिओ गाढं ॥ ३ ॥ तो चेडीचक्कजुया कुमरगुरूणं नया कुमरवहुया । आसिहिं ताण तुट्ठा सुद्धते संठिया गंतुं ॥ ४ ॥ जंपइ जणओ तुमए दिनो किं अम्ह पुत्त दुःखभरो । सो भणइ सुहदुहाणं दाया देखो न चैव अहं ॥ ५ ॥ रायाह सुहदुहाणं जं अणुभूयं तएवहरिएण । तं साहसुति तो कुमरसुमरिओ आगओ अमरो ॥ ६ ॥ तं दहुं मणिकुंडलकिरी डकेयूरकंकणाहरणं । बिम्हियमणो नि ( वो ) पूई ऊण तस्सासणं देइ ॥ ७ ॥ तत्थुवविसिउं सो कुमरपेरिओ कहइ हरिणवृत्तंतं । प्रायामि पुरी अस्थि चमरचंचत्ति मणिभवणा ॥ ८ ॥ जीए सामारुणसियमणिभवण पहाहिं संवलिज्जन्ता । अमरा भ्रमन्ति मयणाहिघुसिणचंदणविलित्तव ॥ ९ ॥ तथावट्ठियजोवणसुरंगणा अक्षत पूजायां अक्षतकीर्तिकथा ॥ ६॥ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अक्षतपूजायां अक्षत. कीर्तिकथा गणविलासदुल्ललिओ। धुवंतचारुचमरो चमरो नामेण अमरवई ॥२१०॥ निवसंति तत्थ रवितेयचंदतेयाभिहा अमरकुमरा । रविचंदा इव भमिरा हरंति तेएण तिमिराई ॥ ११॥ निहालसाइसरीरलिंगनिच्छइयचवणसब्भावो। जंपइ रवितेओ मित्त चवणसमओ इमो मज्झ ।।१२।। ता में पत्तनरत्तं पडिबोहेजसु तुम अवसरम्मि । इय जपिउं चुओ सो सुमरियजिणगुरुचरणकमलो ॥१३॥ नयरम्मि धरासारे मणिमंदिररइयधरणिसिंगारे । जाओ राया सिरिरयणसुंदरो नाम रम्मंगो ॥ १४ ॥ विलसंतरूवजोवणअभग्गसोहग्गसंगयंगीहिं । दइयाहिं समं विसए उवभुजंतो गमइ कालं ॥ १५॥ कइयावि चंदतेएण मित्तदेवेण तस्स रयणीए । कहिओ सुरभवरइओ नरत्तपडिबोहवुत्ततो ॥ १६॥ तं सोउं जाईसरणनाणनयणेण दिट्ठपुत्वभवो। जंपइ राया तुमए पडिवनं पालियं किंतु ॥ १७ ॥ पहु जोवणं नवं मणहरा सिरी असमसुहयरा वि सया । रत्ताओ कंताओ भत्ता मित्ता अपुत्तो हं ॥ १८ ॥ ता अज्ज वि असमत्थो अप्पहियं काउमाह अमरो वि । परमत्थविमूढमईण राय इय उत्तराई जओ ॥ १९ ॥ रोयजराजोयविणस्सिरस्स तरुणियणमणहरस्सावि । का राय सारया जोवणस्स मोत्तुं तवच्चरणं ॥ २२० ॥ चोरानलजलरायग्गहाइबहुविहअवायसज्झाए । धम्मट्ठाणवयमंतरेण न सिरीए अत्थि गुणो ॥ २१॥ सरिसवसमसोक्खकरा सुरगिरिगुरुदुक्खदाइणो दूरं । अच्चासत्तीए तणुक्खयं न किं दिति निव विसया ॥ २२ ॥ अंतो निन्नेहाणं पवंचरयणाहिं रंजियजणाणं । किं सारं कंताणं मरणंताणत्थहेऊणं ॥ २३ ॥ परदइयादवग्गहविरइयमेत्ती कुसुद्धहिययाण । किं वन्नेसि नरेसर सकजसज्जाण मित्ताण ॥२४॥ परिपालिया वि परिपाढिया वि अप्पियधणावि निव नूणं । पुत्ता न परित्ताणं कुणंति नरए पडताणं ॥ २५॥ भववासलालसाणं हवंति आलंबणाई एयाई। अणुसरियसीहवित्तीण न उण आसन्नसिद्धीण ॥ २६ ॥ थिरजोवणाहिं अणुराइणीहिं पयईए सुरहिगंधाहिं। विसए देवीहिं समं भोत्तूण चिरं न जइ तित्तो ॥ २७ ॥ ता गलिरजोवणाओ अनन्त०२ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् अक्षतपूजायां अक्षतकीर्तिकथा ॥७॥ FULSESSIFFEREETITLESSHEETHELELESESE कित्तिमरायाओ दुरहिगंधाओ । नारीओ असुइभरियाओ विलसिरो किमिह तिप्पिहिसि ॥ २८ ॥ वसिउ समग्गसुहवत्थुपरिमलुग्गारसुरहिसुरलोए। वसियस्स असुइगम्भे न विराओ तुह हहा मोहो ॥ २९ ॥ नियपडिवण्णे निरिणों जाओहं राय तुह हियं कहिउं । ता कुणसु जमप्पहियं मा मज्जसु मूढ भवकूवे ॥२३०॥ इय सुयउवसमरसअमयवरिससमअमरदेसणो राया। सिरविरइयकरकोसो संविग्गमणो भणइ अमरं ।। ३१ ॥ पहु तुमए अमएणव महमोहमहाविसं हरेऊण । उप्पाइओ पबोहो उवयारपराऽहवा गुरुणो (पाठांतर भवे गुरुणो) ॥३२॥ ता इण्हि गिहिस्सं दिक्खं परिणाविउंदुहियमेगं । दाउं रजंपि वरस्स मित्त ता आणसु तयंति ॥ ३३ ॥ एवंति भणिय अमरो पत्तो नयरीए चमरचंचाए। अमरविणोयपमत्तो रायवरं सरइ दसमदिणे ॥ ३४ ॥ अक्खयकित्तिकुमारं हरिऊणं रयणसुंदरनिवस्स । अप्पसु झडत्ति इय भणिय पेसिएणुचरममरं सो ॥ ३५॥ इय पडिवज्जिय नयरीए कित्तिकलियाए झत्ति संपत्तो । कुमरे तुरंगनिचयं आवाहंतं पुरीए बहिं ॥३६॥ विहियममरेण निवसुययरूवं तमि निवसुओ चडिओ। तो गंतुं दुरपहे गयणेण गओ हओ सहसा ।। ३७ ॥ गरुयगिरिसरियनयराइं गयणमग्गेण इक्कमंतेण । अमरतुरएण वेरी सच्चविओ उज्जओ इतो ॥३८॥ तं दटुं सो नट्ठो मोत्तुमणवलंबणं नरिंदसुयं । अप्पंमि विणस्संते परोवयारी हवइ विरलो ॥३९॥ निवडइ रायंगरुहो रएण गयणंगणा निराहारो। सट्ठाणभट्ठाणं गरुयाणवि होइ वा पडणं ॥२४०॥अवरुंडिऊण धरिओ निवपुत्तो वानरीए निवडतो। सुहपुन्नपरिणईए जंतो जीवो व नरयम्मि ।। ४१॥ कोमलकिसलयनिचये निवेसिउं तं जलासया सलिलं । घेत्तूण पत्तपुडए धोयइ दासिब तच्चरणे ॥ ४२ ॥ खजरकयलिफलदाडिमाइ भोयविय पाइओ सलिलं । तीए मिउदलरइए सथ्थरए सोविओ तयणु ॥ ४३ ।। उल्लयपूगप्फलनागवेल्लिदलदावदद्धगिरिचुनं । आणित्तु तीए दिन्नं तंबोलं भुंजइ कुमारो॥४४॥ उवविसिय सम्मुही सा करकयकयलीदलेण कुमरतणु । बीयंती अवलोयइ रायसुयं | להלהלהלהלהלהלהלהלהלהלהלהלהלהלהלהלהלהלהבהבהבהבהבהבהל Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अक्षतपूजायां अक्षतकीर्तिकथा pelelezierannasshShenshensyASULULUGULUCU SLSLSLSLSLSLLULUCUELELCULEL2L2L2NPP साणुरायच्छी ॥ ४५ ॥ भंजइ अविरयमंगं समुबहती समुच्चरोमंचं । परिकंपिरंगजट्ठी सज्झसासेयमुबहइ ॥ ४६॥ दहण वानरीविलसियं तयं सत्वमेव निवपुत्तो। असरिसविम्हयपरवसमणवित्ती चिंतिउं लग्गो ॥ ४७ ॥ एद्दहदूरयरा निवडिरं न मं वानरी जइ धरती। ता नूण विवजंतो अहं विभिन्न ट्ठिसंहाणो ॥४८॥ आसणपयसोहणभोयणाई तंबोलदाणपज्जंतं । अणुरत्तपियाए इव इमीए मह सागयं विहियं ॥ ४९ ॥ एयं तु महच्छरियं जमिमा मं साणुराय नयणेहिं । मयणवियारविनडिया नियइ तिरिच्छीवि तरुणिव ॥ २५० ॥ तह वानराण जाई सया चला होइ विजुलहाइयव । एसा उ थिरप्पयई दूरं लक्खिजइ महिव ॥५१॥ ता निच्छयमेयाए वानरित्तम्मि कारणं किंपि । इय | चिंतिय निवपुत्तो सप्पणयं तं पयंपेइ ॥५२॥ मह पाणे दाऊणं उवयारपरंपरा कया तुमए । ता तुह साहामई कं करेमि मह कहसु उवयारं ॥ ५३॥ रायसुओवि हु उवयारकरणपवणोवि तुह तिरिच्छीए। किमहं काहं दिन्ना ता नियपाणावि तुब्भ मए ॥ ५४॥ तो कामवियारेहिं विनडिजंतीए तीए कुमरपुरो । गहिऊण गवलखंडं लिहिया गाहा महीए इमा ॥५५॥ मह दाहिणं वियारिय ऊरं कवित्तु मूलियं नाह । नामेण कित्तिमालं मं निवकन्नं विवाहेसु ॥५६॥ तं वाइऊण ऊरू वियारिया निवसुएण छुरियाए। कड्रिय मूलि बद्धा वणम्मि संरोहिणीमूली ॥ ५७॥ तो सा जाया रयणीयराणणा तय हरिणसमनयणी। कंचणगोरी घणपीवरत्थणी नववया रमणी ॥ ५८ ॥ दट्ठण तमच्छरियं उच्छलियअतुच्छकोउओ कुमरो। भणइ मयच्छि असद्धेयमत्तणो कहसु वुत्ततं ।। ५९॥ सा आह नाह निसुणसु अस्थि जहत्थे पुरे धरासारे । सिरिरयणसुंदरनिवो तस्स अपुत्तस्स पुत्ती हं ॥ २६० ॥ नामेण कित्तिमाला कीलंती सह सहीहिं भवणग्गे। खयराहमेण हरिऊणमेत्थ एक्केण आणीया ॥ ६१ ॥ भणिया य मह महातेखयरचक्किस्स भारिया भवसु । अविरुद्धमिणं जं कन्नया तुमं हमवि तुह रत्तो ॥ ६२ ॥ इय भोगत्थं अब्भत्थिया बहुं सामदाण Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अनन्त - नाथचरि त्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् ॥ ८ ॥ दंडेहिं । जीवियनिरवेक्खाए वमन्निओ सो मए दूरं ॥ ६३ ॥ तो तेण वियारिय ऊरुयाए खिविऊण मूलियं विहिया । वानरिया द्दं संरोहिणीए वणमबिय रोहवियं ॥ ६४ ॥ गंतूण नियट्ठाणे समेइ नियंपि पत्थिउं भणइ । जइ मं मन्नसि दइयं ता साहसु गवलवन्नेहिं ॥ ६५ ॥ इय कुवंतस्स गयं दिणनवगं सामिसाल खयरस्स । अजं तु सुकयकम्मेण आगया मज्झ इह तुब्भे ॥ ६६ ॥ उप्पाइयपेम्मंपि हु दाही मह तुम्ह दंसणं दुक्खं । जं सो खेयरराया मायावी दुज्जओ एही ॥ ६७ ॥ दहुं मह महिलत्तं मा काही किंपि तुम्ह सो णत्थं । ता पविसद्द तरुगुम्मे आगंतुं जाव सो जाइ ॥६८॥ आह नरनाहपुत्तो बहारिहो इयरदवचोरोवि । माणुसचोरस्स पुणो लुणामि सीसं सहत्थेण ॥ ६९ ॥ किं होइ वराएणं | तेण न बीहेमि हूं जमस्सावि । इय जंपते कुमरे पत्तो सहसति खयरोवि ॥ २७० ॥ पिच्छेउं नियरूवं कुमरिं कुमरंपि तीए नियडठियं । कोवकयभीमभिउडी अवयरइ पयंपिरो एवं ॥ ७१ ॥ रे दुट्ठ को तुमं मह पियाए पासे समागतो कहसु । कुमरेणुत्तं रे रमणिचोर कह तुह पिया एसा ॥ ७२ ॥ तेणुत्तं एसा जह महप्पिया तह कहेमि खग्गेणं । इय भणिरो करवालं कड्डेउं धाविओ खयरो ॥ ७३ ॥ हुंकारंतो कुमरोवि उट्ठितो उक्खिवित्तु असिघेणुं । दोन्निवि दट्ठोट्ठा भिउडिउभडा जाब जुज्झति ॥७४॥ ता अणुचरामरेणं कहिओ कुमरावहारवुत्तंतो । रिउदंसण- नियनासणपज्जंतो चंदतेयस्स ॥ ७५ ॥ नूणमणवलंबो निवडिऊण रायंगतो मओ होही । इय सविस ओ पत्तो कुमरसमीवे सुरो सहसा ॥ ७६ ॥ दद्दूण कुमरमारणसज्जियघायं तयं खयरखेडं । बद्धो अमरेण अदिट्ठमोरबंधेहिं सो झत्ति ॥ ७७ ॥ संमाणिऊण (निव) नंदणस्स अवहरणकारणं कहिउं । भणितो खयरो जीवसि जइ होसि कुमारभिचो तं ॥ ७८ ॥ मरिसि धुवमन्नहा तं सोडं सो भइ देहि मे पाणे । पहु तुह आणं काहं तो सो मुक्को सुग्वरेण ॥ ७९ ॥ अमरं कुमरं कुमरिं च पणमिडं खामिउंच | तेणुतं । चलह जह रज्जमप्पिय कुमरस्स भवामि भिञ्चो हं ॥ २८० ॥ तो सवाणि वि सुरकयविमाणमारुहिय झत्ति अक्षत पूजायां अक्षत कीर्तिकथा ॥ ८ ॥ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अक्षत पूजायां अक्षत कीर्तिकथा HEREFFEREFERES-55 पत्ताणि । वेयड्डत्तरसेढीए गयणवल्लहपुरे ताणि ॥८॥ उववेसिउं सहाए कुमरं खयराहिवेण रज्जसिरी । उवणीया भणिरेणं तं सामी सेवगो हं ते ॥ ८२ ॥ कुमरेणुत्तं विलससु नियलच्छि जं मएवि तुह दिन्ना । नवरं मए समाणं अणुहवमाणो सिणेहभरं ॥८३॥ तं सोउं खयरिंदेण हिट्ठहियएण पूइउं अमरं । कुमरकुमरीण रइओ सम्माणो नियसिरिसरिसो॥८४॥ तो अमरो कुमरीकुमरखेयराहिवबलेहिं संजुत्तो। चलिओ पत्तो य धरासारे नयरे गुरुरएण ॥८५॥ कुमरी अवहरणससोयलोयपिहियावणं तमिक्खंतो। पत्तो विसन्नसिंगारहीणनिवलोयमत्थाणं ॥ ८६ ॥ दटुं अमरं कुमरीए संगयं नट्ठसोयसंतावो। राया पूइय अमरं आलिंगइ कन्नयं हिट्ठो ॥ ८७ ॥ काउं कुमारखयरेसराण सम्माणममरमुल्लवइ । | मित्त सुयावुत्तंतं हरणागमणाण मह कहसु ।। ८८ ॥ तो अमरेण समग्गं कन्नाकुमराण हरणवुत्तंतं । कहिउं भणिओ राया परिणावसु कन्नयं कुमरं ॥८९॥ ठविउं रज्जम्मि इमं अप्पहियं कुणसु गहियपवज्जो । इय भणिए जा चिंतइ विवाहसामग्गियं राया ॥ २९० ॥ ता अमरेण ससचीए झत्ति मणिथंभयावलीकलिओ। वीवाहमंडवो पंचवन्नधयमालिओ विहिओ ॥ ९१ ॥ रइया य हट्टसोहा समंतओ देवदूसविसरेण । किंबहुणा निवचिंतियममरेण कयं समग्गपि ॥ ९२ ॥ गुरुरिद्धीए कुमरी दिन्ना कुमरस्स तेण परिणीया । करमोयणम्मि दिन्नं रजं सत्तंगमवि तस्स ॥९३ ॥ एथ्थंतरंमि उज्जाणपालओ दंडिसूइओ पत्तो । पल्लवओ नामेणं नमिउं विन्नवइ नरनाहं ॥ ९४ ॥ देवुजाणे कलकोइलाभिहे केवली समोसरिओ। सोऊण तइं वियरइ राया पीइप्पयाणं से ॥ ९५ ॥ गुरुरिद्धीए सुरखेयरिंदनवनिवइपरिगओ तुरियं । पत्तो उज्जाणे नमिय केवलिं तत्थ उवविट्ठो॥ ९६ ॥ दहण केवलिं नवनिवई मुच्छाए महियले पडिओ । सिसिरकिरियासमुवलद्धचेयणो पुच्छिओ रन्ना ।। ९७ ॥ किं राय मुच्छिओ तं सो जंपइ केवलिं पलोएउं । मह जाइसरणसंसूयगा इमा आगया मुच्छा ।।९८॥ दिट्ठो नियपुवभवो हुँतो कासीभिहाण देसे हैं। दुग्गयपडागनामो आजम्मदरिदिओ विप्पो॥१९॥ HTTES Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअनन्तनाथचरि LEUCLELELES AS A त्रादुद्धृत पूजाष्टकम् ॥९ ॥ ६॥ ता जिसो चिंतइ न पुचजम्मेवाहवि जो। भोत्तुं सय देसेसु परियडतो कयाइ उववासतिगसुसियदेहो । पत्तो मज्झण्हे कणयसालपुर-तिलयउजाणे ॥ ३००॥ दट्टण तत्थ अक्षतनवसालितंदुले विकिणंतए वणिए । आह अहं पहसंतो तिलंघणो देह ता किं पि ॥ १॥ तो तेहिं सालितंदुलपसइदुगं पूजायां गुरुदयाए दिन्नं से । तं घेत्तूण पविट्ठो उज्जाणभंतरे जाव ॥ २ ॥ ता नियइ केवलिमुणिं जिणपूयफलं जणाण अक्षतसाहंतं । जो कुणइ जिणस्सट्ठवि पूया तो लहइ सो सिद्धिं ॥ ३ ॥ ताओ फलजलनेवजदीवधूवक्खएहिं परमेहिं । वासेहिं कीर्तिकथा कुसुमेहि य भणियाओ समयसन्थेसु ॥ ४ ॥ सवाओ वि असत्तो तं कुणइ जिणस्स अक्खएहिंवि जो। भोत्तुं सयलसिरीओ सो अक्खयसोक्खमवि लहइ ॥ ५ ॥ तं सोउं सो चिंतइ न पुबजम्मे मए कओ धम्मो । तेण न संपज्जइ मे भमिरस्स वि भेक्खमेत्तंपि ॥ ६ ॥ ता जिणपूयं सालीए काउमज्जेमि सुकयसंभारं । जं भिक्खाभमणेणवि भविहीर | मह छहपरित्ताणं ॥ ७ ॥ इय चिंतिय भत्तीए नमिय मुणिं भणइ कहह कत्थ जिणो । पूएमि जहा तो सावएण सो जिणहरे नीओ ॥ ८ ॥ जं कणयमयं मणि किरणकिन्नवणराइविलसिरउवंतं । कंचणगिरिव कप्पडमावलीवेढियं सहइ ॥ ९ ॥ तंमि पविट्ठो पेच्छइ पसंतरूवं जिणेसरं रिसहं । आणदअंसुजलकलियलोयणो भत्तिकंटइओ ॥ ३१०॥ मणिमयकुट्टिममिलमाणभालमभिनमिय सामिणो तेण । अक्खयढोयणपूया विहिया बहुमाणसारेण ॥ ११॥ दडूण तस्स भत्तिं नियगेहे सावएण से दिन्नं । निडुण्हभोयणं तद्दिणाउ सो सुत्थिओ जातो ॥ १२ ॥ तो कालगतो समभावसंगतो निवसुतो हमुप्पन्नो । दट्रूण केवलिमिमं जाईसरणं समुप्पन्नं ॥ १३ ॥ निब्भग्गस्सवि मज्झं रिद्धी सुगुरूवएसनायाए । | जिणपूयाए कयाए जाया इय साहियं तुम्ह ॥ १४ ॥ तं सोउं संजाओ जणस्स जिणपूयणम्मि बहुमाणो। रायावि ॥९ ॥ सावरोहो दिक्खं गिण्हइ गुरुसयासे ॥ १५॥ पणमिय गुरुणो नवदिक्खिए य संभासिऊण नवनिवई । खेयरवई च अमरो गओ सठाणम्मि कयकिच्चो ॥१६॥ नवदिक्खियमुणिजुयकेवलिक्कमे नमिय नहरिंदजुतो। पत्तो पासाए तत्थ सुस्थयं SUSLSLSLSLSLSUCUCUCUCUCUCUCULUCULULUCUCULULLCLCULU Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रइय रजस्स ॥ १७ ॥ खेयर विमाणसेणार तुम्ह चरणंतियं समणुपत्तो । नमिय निविट्ठो पुट्ठो नियहरणं कहसु वच्छत्ति ॥ १८ ॥ तो एय सुमरिओ चंदतेयअमरो समागतो सो हं । कहितो य हरणहेऊ जुत्तं तुम्हंपि हियकरणं ॥ १९ ॥ तं सोडुं नरनाहो जंपइ भो अमर सुयणसिररयणं । निक्कित्तमोवयारी तमेव जो एवमुवइससि ॥ ३२० ॥ नियमेण वयं काहं रज्जं दाउ सुयरस इण्हिपि । इय जंपिरे नरिंदे सहसत्ति तिरोहितो अमरो ॥ २१ ॥ तो रन्ना नवनिवई अणिच्छ| माणोवि ठाविओ रज्जे । गीयत्थगुरुसयासे सयं तु अंगीकया दिक्खा ॥ २२ ॥ कइयावि हु सम्माणिय विसज्जिओ राइणा खयरचक्की । कज्जेसु ममाएसो देउत्ति पयंपिय गओ सो ॥ २३ ॥ पइदियहं पि पवुडूप्पयावपब्भारदुस्सहो दूरं । रिमंडलाई राया परितावइ गिम्हरणिव ॥ २४ ॥ कइयावि हु वेयड्ढे विलसइ विज्जाहदिवाहरिओ । कइयावि धरासारे रज्जसिरिं चिंतए गंतुं ॥ २५ ॥ पयडइ नीइं पालइ पयाउ पूयइ जिणे गुरुं नमइ । साहइ देसे एवं वञ्चति निवस्स दिवसाईं ॥ २६ ॥ कालेण कित्तिमालादेवीए उदारवित्तिनाम सुओ। जातो संगहियकलो विवाहितो रायन्नाओ ॥ २७ ॥ तं रज्जे अहिसिंचिय गिण्हइ सपिओ वयं जणयपासे । कयतवचरणो उप्पन्नकेवलो सिद्धिमणुपत्तो ||२८|| जह अक्खएहिं विहिया जिनिंदपूया इमेण नरवइणा । सिद्धिसुहकंखिणा तह कज्जा अण्णेणवि नरेण ॥ २९॥ अक्षतपूजा भणिओ अक्खयकित्ती अक्खयपूयाए संपयं तुब्भे । फलपूयाए निसामह फलसारं वागरिज्जतं ॥ ३३० ॥ 55555 विष्फुरिय- भूरिकरदुरवलोय मणिमंदिरावलिकलियं । सुरोहकयावासं व अत्थि सूरप्पहं नयरं ॥ ३१ ॥ अन्नोन्नमिलियमणिगिहकर किन्ननहम्मि पक्खिणो नूणं | वित्थारियजालंमिव न जंमि पविसंति बंधभया ॥ ३२ ॥ सारयरविकरपसरियपयाव संतावियाहिओ तत्थ । अस्थि प्पयावसारो नामेण निवो रणवसणी ॥ ३३ ॥ सवंगचंगनियरूवगवनिज्जिणिय अच्छराविसरा । तस्सत्थि हत्यिकुंभत्थलत्थणी जयसिरी जाया ॥ ३४ ॥ तन्नयणब्भमरगणं फलपूजायां फलसारकथा Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलपूजायां फलसारकथा श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् ॥१०॥ आणंदइ सुमणपत्तभरपरमो। फलसारो नामेणं दुमोब दूरुन्नतो कुमरो ॥ ३५॥ कइयावि सहासीणे निवंमि कुमराइरायमंतिजुए। झणहणिरकिंकणिगणं विमाणमेगं समणुपत्तं ॥ ३६॥ तम्मज्झाउ पसरंतमणिमयाभरणकिरणदुनिरिक्खो । रविरहरयणाओ रविव खेयरो झत्ति नीहरिओ ॥ ३७॥ पडिहारकयपवेसस्स तस्स संमाणपुवमवणिवई । खयराहिराय साहसु आगमणत्थंति जंपेइ ॥३८॥ सो आह ससहरसिओ वेयड्डो नाम वामदेवोव । गंगासिंधुपरिगतो अत्थि गिरी गरुयनयरसिओ ॥ ३९ ॥ नयनायरगुणनिजियसमग्गपुरपत्तवेजयंतित्व । तत्थत्थि वेजयंती नयरी मणीभवणकमणीया ॥ ३४०॥ गोरीपन्नत्तीपमुहसिद्धविजापभावदुजेओ। विजाहरराया तत्थ अत्थि सिंगारसारोत्ति ॥ ४१ ॥ निम्मलनहकयसोहा पवित्तसब्भावभासियदिसोहा । तारावलिब जाया जाया तारावली तस्स ॥ ४२ ।। तीसे असेसभुवणेक्कभूसणं रूवरेहविजियरई । जाया मणुन्नकन्ना सिंगारतरंगिणी नाम ॥४३॥ सद्धिं सुहवण्णेणं कलाकलावण तारतारुणं । जायं तीसे सिंगारगारवुग्गारपरिकलियं ॥ ४४ ॥ कइयावि सा सहीयणसहिया मणिमत्तवारणासीणा । गयणे जंतं चारणमुणिंदमिक्खिय गया मुच्छं ॥ ४५ ॥ चंदणरसच्छडासेयसिसिरकिरिओवलद्धचेयन्ना । संसुसहीहिं सा पुच्छिया तुमं मुच्छिया किमिह ॥ ४६॥ आयन्नहत्ति जंपिय सा मुच्छाकारणं कहइ तासि । संसारसरूवंपिव अत्थि अरन्नं अदिद्रुतं ॥४७॥ गुरुभूरिसाहिसाहासहस्सअंतरियअंतरिक्खंमि । सावयभीउव जहिं पक्खिवइ करे न सूरोवि ॥ ४८ ॥ पेच्छिज्जंतकुरंगं दरिद्दगामीण देवहरयं व । जं विगयरायचित्तं विरायए केवलिकुलं व ॥४९॥ तरुणो व विलसिरवओ विसालतो सरसकमलनियरो व। तत्थप्पसरियसालो अत्थि वडो पुरनिवेसोब ॥ ३५० ॥ बालायवदलनिम्मावियं व सवंगपिंगपहरोमं । अचंतचंचलं जं तरुणीअणुरायरइयं व ॥ ५१ ॥ धरमाणमरुणवयणं मसिणियघणघुसिणरसविम्मिस्सं व । वानरजुयलं परिवसइ पायवे तम्मि घणनेहं ॥ ५२ ॥ जुयलं ॥ ॥१०॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 959595555 फलपूजायां फलसारकथा कइयावि करहखरवसहसगडसेरहसहस्स-संजुत्तो। संपत्तो सत्थाहो नामेण धणावहो तत्थ ॥ ५३॥ आवासिओ य वडविडवितडकए गडुरे गहीरम्मि । गुणिणीविमाणयाइसु जहजोग्गं सेखलोगोवि ॥ ५४॥ एत्थंतरंमि तवतेयभासुरो रइयउत्तरासंगो । गिम्हतरणिव चारणसमणमुणिंदो हयतमोहो ॥५५॥ अंगीकयविरइरतो अनिरुद्धसुओ अविग्गहो सययं । जयजणमणकयवासो सोहंतो कामदेवोव ॥५६॥ गयणंगणेण पत्तो तत्तो सत्थाहिवो सबहुमाणं । तं नमिय निसीयावइ पट्टम्मि निसीयइ सयंपि ॥ ५७ ॥ दटुं तं नवजोवणमब्भुयरूवं भणेइ सत्थाहो । किं पहु तुह वेरग्गं जं लहुएणवि वयं गहियं ॥ ५८ ॥ आह पहू सत्थाहिव आयन्नसु अत्थि उडलोगम्मि । बहुपुन्नपावणिज्जो सोहम्मो नाम सुरलोओ ॥५९॥ जम्मि बहुरविकरदुरवलोयमणिमयविमाणहयतिमिरे। लज्जंतोब न पविसइ कायरपुरिसोब सूरोवि ॥ ३६० ॥ पुन्नप्पयरिसवसही निरुवमरूवो असीमइस्सरिओ। तं परिपालइ सक्को कयरिउगणमाणसधसको ॥६१ ॥ तस्सत्थि परममित्तो समस्सिरीओ समाणसिंगारो । नामेण सरीरेणय विक्खाओ अमियतेओत्ति ॥ ६२ ॥ विलसिरतणुकंतिमई कंतिमई नाम सहयरी तस्स । दइयवियोगं सा विसयलालसा न सहइ खणंपि ॥ ६३ ॥ भणइय में मोत्तुं तं मा गच्छसु सामि सक्कपासम्मि । जंतुह विरहुकरिसो दूरं विहुरइ सरीरं मे ॥६४॥ पत्तमहाणंदा इव अमयदहसंगसुहियदेहव । तुहसंगसंगया सामिसाल हं होमि नियमेण ॥६५॥ इय तब्बयणस्सवणा नियदेहाओ वि नियधणाओ वि। अब्भहियं तं मन्नइ दइयं सो जीवियाओवि ॥ ६६ ॥ सुरलोयसंभवासमविसयस्सासंगसत्तचित्तस्स । अन्नाओञ्चिय गच्छइ कालो से चत्तधम्मस्स ॥६७॥ समयंतरंमि महई वेलं ठाउं सुरिंदपासम्मि । जा गच्छइ ता पेच्छइ न भारियं नियविमाणमि ॥६८॥ कत्थ गया मे कंता कंतिमई इय विभाविउं जाव । तविरहविहुरिओ तं नाणेण पलोइउं लग्गो ॥६९॥ ता अंबरसिहरगिरिंदसंदवणदक्खमंडवतलम्मि । विसयासत्तं अवरामरेण सद्धिं तमिक्खेइ ॥ ३७० ॥ गुरुरोसावेगा Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् 5EFESSESSFERE फलपूजायां फलसारकथा ॥११॥ 5 रत्तनेत्तपहभरपिसंगियग्गनहो। तहुगदहणनिमित्तं निसट्टगुरुतेउलेसोच ॥ ७१ ॥ तो ताण मारणत्थं काउं वेगं गतो | गिरिसिरे सो। नट्ठाई दुयं दोन्निवि को ठाइ पुरो दुजयरिउणो ॥ ७२ ॥ नढे दुगेवि वेरग्गवासणावासिओ विचिंतेइ ॥ पेच्छ अहं वेलवितो विवेयकलिओवि पावाए ॥ ७३ ॥ तुहविरहविहुरियाहं ठाउं चेट्ठामि नो निमेसपि । ताण भणियाण जायं अवसाणं एरिसमिमीए ॥ ७४ ॥ घिद्धी धिरत्थु इत्थीण ताण जाहिं विमोहिया संता । मइरामत्तव विवेइणोवि मृढत्तणं जंति ॥ ७५ ॥ जिणचवणजम्मदिक्खाकेवलनिवाणपत्वपूयणओ । सुकयं समजियं नो मए पियामोहमूढेण ॥ ७६ ॥ जाण कए पाणावि हु तणगणणाए सया गणिजंति । तासिं इमं सरूवं ता घिद्धी धी सिणेहस्स ॥ ७७ ।। घेप्पंति रूवजोवणविज्जाविन्नाणनाणदविणेहिं । नो पावप्पयईतो ता धिद्धी थीसिणेहस्स ॥ ७८ ॥ विस्सासिऊण वाहंति दासवित्तीए मह समं मूढं । अप्पंति पुण न अप्पं ता घिद्धी थीसिणेहस्स ॥ ७९ ॥ वञ्चंतु खयं विसया पजत्तं मज्झ सबभजाहिं । जो हं अणप्पवसओ विंडंबणं एवमणुपत्तो॥३८०॥ वेरग्गसंगओवि हु न सबविरइवयस्स जोग्गो हं । |ता इह लोयसुहस्सव चुक्को परलोयसोक्खस्स ॥ ८१ ॥ ता इह भजादुच्चरियसुमरणत्थं करेमि किंपि अहं । जं दर्दु परलोए उप्पज्जा मज्झ पडिबोहो ॥ ८२ ॥ इय चिंतिऊण तेणामरेण विप्फुरियकिरणरयणेहिं । गेहणगिरिसिहरंपिव रुंद जिणमंदिरं रइयं ॥८३॥ गीयत्थसूरिमज्झ(हत्थ?)प्पइट्ठियं तत्थ कारियं तेण । सिरिरिसहनाहबिंब जाणंव भवन्नबुत्तरणे - ॥ ८४ ॥ ता सक्केण सयं तत्थ अट्ठदिवसाइं ऊसवो विहिओ । इय अणुदिण जिणपूयणसजियसुकओ चुओ अमरो॥ ८५ ॥ उपपन्नो वेयड्ढे दाहिणसणीए अयलनामाए । नयरीए विजयप्पहरायपियाए जयाए सुतो ।। ८६ ॥ विजुप्पहोत्ति विजावियक्खणो मित्तमंडलीकलिओ। चलिओ नहेण कइयावि कीलिउं तं गिरि पत्तो ॥ ८७ ॥ दह्ण जिणहरं जायजाइसरणो पयासइ सु(स?)हीण । कुमरो अमरत्ते नियपियाकुसीलत्तवेरग्गं ॥ ८८ ॥ निंदइ दुस्सीलाओ जबES55 55555555 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | महिलाओ कहइ धम्मसबस्सं । भणइय भवं जायं जमज्जमिह कीलिडं पत्ता ॥ ८९ ॥ भज्जा दुच्चरियस्सरणकारणविरइयं जिणाययणं । जायइ जेण विराया भवंतरे सङ्घविरई मे ॥ ३९० ॥ ता गिव्हिय सामन्नं निस्सामन्नं तवं चरिसामि । ता मित्ता खमियवं जं तुम्ह मए कयमजुत्तं ॥ ९१ ॥ तो संविग्गा ते बिंति तुम्ह मग्गं वयंपि अणुसरिमो । तो सबै मा (मो) यावियजणया दिक्खं पवज्जंति ॥ ९२ ॥ कयबालकालबंभवयावि संजायबहुसुया सधे । ता गुरुणा विपज्जुहो ठवितो जोगोत्ति सूरिपए ॥ ९३ ॥ सो सवत्थवि भवे पडिबोहंतो विहारमायरइ । अज्जं पुण नंदीस रजिणबिंबे वंदिउं चलिओ ॥ ४ ॥ इह पत्तो सत्थाहिव तुमए वेरग्गकारणं जमहं । पुट्ठो तं तुह कहियं तं सोउं भणइ सत्थाहो ॥ ९५ ॥ च्छंति मच्छीणं पहु सबेवि हु पभूयविलियाई । नवरं कस्सवि जायइ न पडिबोहो जहा तुम्ह ॥ ९६ ॥ एयाउच्चिय भवसंभव सुहसवरसमेव मूढाण | रायरहियाण दूरं दुक्खपयं न उणमन्नयरं ॥ ९७ ॥ नूणं पहु | बहुकल्लाणठाणमत्ताणमेत्थ मन्नामि । रन्नेवि जेण पत्ता तुब्भे ता कहह सुहहेउ ।। ९८ ।। आह पहु भववासो आवासो तिक्खदुक्खलक्खाण । ता पत्तं मणुयत्तं मा हारह करह अप्पहियं ॥ ९९ ॥ तं पुण सु- देवगुरुधम्मतत्तजोएण जायए | नियमा । ता रागद्दोस अदूसियंमि देवे मई कुणह || ४०० ॥ आराहह निग्गंथं अणीहयं धम्मियं सुसीलगुरुं । जम्मि चराचरजीवाण रक्खणं कुणह तं धम्मं ॥ १ ॥ वीयरायदोसेहिं दंसियं मुणह तं सया तत्तं । जं चत्तारि वि | चउगइहराई एयाई भवाण ॥ २ ॥ जइ वि हु गुरुप्पमाया गिहिणो न कुणंति सव्वगिहिधम्मं । तहवि हु जिणपूया तेहिं | अट्ठहा भवहरी कुज्जा ॥ ३ ॥ तहाहि । जलधूवदीवनेवज्जकुसुमफलवास अक्खयसहावा । पूया अट्ठपयारा कीरइ बेहिं अरिहाण ॥ ४ ॥ इय जइवि बहुविहा सा तहवि हु सुमहुररसुत्तमफलेहिं । अंबयबिज्जउराईहि विरइया वियरइ सुहाई ॥ ५ ॥ सुनरामरत्तसिवसुहफलाई भत्तीए विरइया नूणं ॥ फलपूयकराण वियरए जेणिमं भणियं ॥ ६ ॥ फलपूजायां फलसारकथा Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअनन्तनाथचरि फलपूजायां फलसारकथा त्रादुद्धृतं पण पूजाष्टकम् ॥१२॥ एकंपि फलं पुरओ जो ठवइ जिणस्स परमभत्तीए । तस्स फलंति अवस्सं नरस्स सयलाउ विदिसाउ ॥७॥ तं सोउं सत्थवई भत्तिभरप्पणयगुरुकमंबुरुहो । अंगीकरइ सयावि हु जिणपूयाभिग्गहं विणई ॥८॥ साहागयेण साहामएण इय देसणं सुणेऊण । भणिया भज्जा दइए सुकरो धम्मो इमो अम्ह ॥ ९॥ जेणेह फलाहारो विहिणा अम्हाण निम्मिओ पायं । संतिच्चय सुरसफला इह रत्ने भूरितरुणोवि ॥४१०॥ नूणं न किंपि सुकयं कयमम्हेहिं भवंतरम्मि पिए। जायाइं तेण दोन्नि वि निंदियतेरिच्छजाईए ॥११॥ एत्तो विहु नियचावल्लदोससंजायपाय(व)पोसाण । अम्हाणं उप्पत्ती कत्थइ भविही न याणामो ॥ १२॥ ता सुलहफलेहिं वयं पूइत्तु जिणं भवन्नवं तरिमो। साहामई पयंपइ कुणह इमं चलह पउणम्हि ॥ १३ ॥ एत्थंतरम्मि भणिओ गुरुणा सत्थाहिवो वयं जामो। अंबरसिहरगिरिम्मि जिणिंद-15 पयवंदणनिमित्तं ॥ १४ ॥ तो आह सत्थवाहो पहु सो केत्तियपहे गिरी कहह । भणइ गुरू एसोच्चिय आसण्णो गयणगयसिंगो ॥ १५ ॥ सत्थाहिवो पयंपइ अहंपि पहु तत्थ आगमिस्सामि । तो संचलिया गुरुणो सपरियणो) सत्थवाहोवि ॥ १६ ॥ उत्तरिय दुमाओ दुयं कइद्गमवि सूरिणोणुमग्गेण । गच्छइ तरच्छकरिहरिणसवरसंचरजुए रन्ने ॥ १७ ॥ तंमज्झे तरणिभया पिंडीहूओब तमभरो तेहिं । अंबरसिहरो नामेण सामलो सो गिरी दिट्ठो ॥१८॥ सामलसिहरानिलचलतमालदल अंतरुल्लसिरधाऊ । जो नवघणोब ईसिप्फुरंततडिसजुतो सहइ ॥ १९ ॥ तम्मि सीयर| निवडिरनिज्झरणनीरसिक्करसमूहवि(व)हवाए(?) । आरूढा गुरुसत्थाहि(य)वानरा(र)म्मआरामे ॥ ४२० ॥ तस्सग्गे पिंगमणिप्पहापिसंगियसमग्गदिसियकं । रविरहरयणंव नियंति उदयसेलम्मि जिणभवणं ॥ २१ ॥ रयणीसु जं विरायइ पडिबिंबिय भूरितारयप्पयरं । केवलमुत्ताजालयविरइयसिंगारचंगव ॥ २२ ॥ पेच्छंति तत्थ उवसंतकंतमुत्तिं जिणेसरं रिसहं । जहजोग्गं ण्हवणचणथवणे काउं निवट्टा(विट्ठा ?)ते ॥२३॥ दट्टण जिणवरं वानराइं बहुमाणजायपुलयाई । आणं जनजनमानपत Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IFFFFFF फलपूजायां फलसारकथा FFFFFFFFFFFEELS दवसपवत्तंसुपन्ननयणाई पणमन्ति ॥ २४ ॥ तो तेहिं पक्कगंवरअंबयनारंगबीजपूरेहिं । कयलीफलदक्खादाडिमेहि गंतुं जिणिंदपुरो ॥ २५ ॥ पसरियभत्तिभरुभिजमाणरोमंचअंचियंगेहिं । रइय बलिं मुक्कं बीजपूरयं सामिकरकमले ॥ २६ ॥ जुयलं ॥ तत्तो अन्तो उल्लसियअसमआणंदमंदिरच्छीणि । भूपुट्ठभालवटुं नमंति तिहुयणपहुं ताई ।। २७ ॥ तो भत्तीए गुरूणं नमिउं जंपंति निययभासाए । पहु तुम्ह पसाएणं अम्हेहिं समजिओ धम्मो ॥२८॥ भणइ गुरू धम्माओ नन्नं भुवणे वि अत्थि सारतरं । ता तिरियावि हु तुब्भे धन्नाइं जेसिमिय बुद्धी ॥ २९ ॥ इय अणुसासिय वानरजुयलं आपुच्छिऊण सत्थाहं । नमिय जिणं अन्नत्तो गयणेणं विहरिया गुरुणो ॥ ४३०॥ उत्तरिउ सत्याहो गओ जहाभिमयदेसमसढमई । पावित्तु आउयंतं वानरजुयलंपि कइयावि ॥ ३१ ॥ मज्झिमपरिणामज्जियनरत्तभावाहमेत्थ वेयड्ढे । उप्पन्ना सो कत्थइ मज्झ पिओ तं न याणामि ॥ ३२ ॥ जह पुत्वजम्मसद्धम्मदायगो एस चारणमुणिंदो। जं दटुं संजायमह जाइसरणनाणमिणं ॥ ३३ ॥ मोत्तुं परभवदइयं सद्धम्मुच्छाहयं पवंग मे । न नरंतरपरिणयणे मणो मणोरहमवि करेइ ॥ ३४ ॥ तं सोऊण सहीहिं सबंपि हु साहियं खयरपहुणो। तेणवि वाहरिय सुयं वुत्तं जुत्तं इमं पुत्ति ॥ ३५ ॥ किंतु न नजइ चउगइभवगहणे सो कहिंपि उप्पन्नो । ता मोत्तुमसग्गाहं अवरवरं (वर) सु तं वच्छे ।।३६॥ सा आह मज्झ अंगे लग्गइ सो सुहयरो अहव अग्गी । तं सोऊणं जणओ जाओ चिंताउरो दूरं ॥ ३७ ॥ एत्थंतरंमि सुयदुंदुहिस्सरो दारवालमवणिवई । किमिमंति पुच्छिओ सोवि तस्स |तं मुणिय विन्नवइ ॥ ३८ ॥ पहु इण्हिचिय पत्तस्स सूरिणोणतनाणमुप्पन्नं । तो केवलिमहिममिणं कुणंति अमरा सबहुमाणं ॥ ३९ ॥ तं सोउं भत्तीए खयरवई कन्नयाजुओ सबलो। केवलिपासे पत्तो पणमिय तं देसणं सुणइ ॥ ४४०॥ आह पहू संसारो धुवं असारो विणस्सरा रिद्धी । खणरायिणीउ रमणीउ गंतुरं जीवियत्तंपि ॥४१॥ इय देसणावसाणे अनन्त०३ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् फलपूजायां फलसारकथा ॥१३॥ खयरिंदो नमिय केवलिं भणइ । पहु मह सुयाभवंतरपई कई कत्थ उप्पन्नो ॥ ४२ ॥ तो कहइ विमलनाणी फलपूया- करणपत्तपुन्नभरो। मरिउ सो सूरप्पहपुररायपयावसारस्स ॥ ४३ ॥ पुत्तो जाओ फलसारनामओ अत्थि चारुतारुन्नो । तं सोउं खयरवई पणयपहू मंदिरे पत्तो॥४४॥ तो हं आलोचेउं सह भज्जासवमंडलीएहिं । तुब्भ सयासे पत्तो नियतणयाए वरनिमित्तं ॥४५॥ ता राय भणसु नियपुत्तयं जहा मह सुयं विवाहेइ । तं सोउं नरनाहो जंपइ खेयरवई एवं ॥ ४६ ॥ पाविजइ खयराहिव अणप्पपुन्नेहिं तुह समो सयणो । चिंतामणिसंजोगो जायइ कि मंदभग्गाण ॥४७॥ इयरंपि खयरकुमरिं कल्लाणसिरिव को न ईहेइ । किं पुण भवंतरस्सरणजायनेहं तुहंगरुहं ॥ ४८ ॥ एत्थंतरे कुमारो जाइसरणेण नायपुत्वभवो । जंपइ तह ताय तयं जह कहियमिमेण तुम्ह परो ॥ ४९ ॥ तं सोउं गुरुपरिओसपूरितो कुमरमाह नरनाहो। गंतुं खेयरकन्नं विवाहिउं वच्छ आगच्छ ॥ ४५० ॥ इय जंपिय सम्माणियखयरवई वत्थभूसणगणेण । पेसइ सह तेण सुयं राया चउरंगबलकलियं ॥ ५१ ॥ विजाहरिंदविजाबलेण पत्तो नहेण वेयड्ढे । विहितो | तस्स पवेसे महूसवो खेयरजणेण ॥ ५२ ।। सबुत्तुमम्मि लग्गे घणाणुराया महाणुरायेण । परिणीया कुमरेणं सिंगारतरंगिणी कुमरी ॥५३॥ गुरुगोरवप्पहिट्ठो दिणदसगं तत्थ संठिओ कुमरो। पच्छा ससुरमणुनविय आगओ नियपुरे सपिओ ॥५४॥ पिउणा पुरप्पवेसे सुयस्स असमो महूसवो विहिओ । अत्थाणठियं जणयं नमिय निविट्ठो तयाणाए ॥५५॥ नवरंगयनीरंगीअवगुंठियवयणपंकया वहुया। नयससुरा तस्सासीतुट्ठा अंतेउरे पत्ता ॥ ५६ ॥ अत्थाणट्ठियं जणयं सेवइ गोसप्पओससमएसु । न मुयइ कयाइ कुमरो कलाण पुणरुत्तमब्भासं ॥ ५७ ॥ काउं कयाइ रज्जाहिसेयपरमूसवं कुमारस्स । गहियवउ निवो पत्तकेवलो मोक्खमणुपत्तो ॥ ५८ ॥ नवनिवईवि नएणं पालेइ पयाओ दंडए दुढे । मन्नइ महायणीए पूयइ पुजे खले चयइ ।। ५९ ॥ पुत्वभवोवज्जियसुकयकम्मसंभारभावतो सके। खोणीवइणो तं देवयंव ॥१३॥ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जलपूजायां जलसार-कथा आराहयंति सया ॥ ४६० ॥ एगायवत्तधरणीवइत्तसंपत्तउत्तमजसस्स । तस्सुप्पन्नो कइयावि पुत्तओ पट्टदेवीए ॥६१॥ विहिउं वद्धावणयं नाम कुमरस्स कित्तिसारोत्ति । दिन्नं रन्ना सम्माणिऊण निस्सेसपुरलोयं ॥ ६२ ।। परिवदिउमारद्धो कमेणमज्झावयाणमुवणीओ। समहीयकलो जातो समलंकियजोवणो कुमरो ॥ ६३ ॥ परिणाविओ य उबणजोबणकमणीयरायकुमरीओ। समयंमि तमभिसिंचिय रजे राया गुरुविराया ॥६४ ॥ नाणधरसूरिपासे गहिउं दिक्खं तवं तविय तिक्खं । उप्पन्नणंतनाणो पत्तो सो सिद्धिसंबंधं ॥६५॥ जह विहिया फलपूया फलसारेणं महामहीवइणा । अन्नेणवि सिवसुहमिच्छुणा तहच्चेव कायवा ।। ६६ ।। -* फलपूजा - फ लपूयं अणुसरिउ फलसारो भूवई इमो भणिओ। इण्हि जलपूयाइ जलसारकह निसामेह ॥ ६७ ॥5555+ भूरिहिमनिम्मिओ इव पुंजियकप्पूरदलसमूहोब । रुप्पयमओ विसालो वेयड्डो नाम अत्थि गिरी ॥ ६८ ॥ रुप्पयमयम्मि तम्मि तमालकंकेल्लिकयलिसंडाइं । दिट्ठारुणमरगयमणिसिहराइं पिव विरायंति ॥ ६९ ॥ तम्मि य रहनेउरचक्कवालनामं समत्थि गुरुनयरं । जम्मि तिमिराणभिन्नो लोओ मणिमहपहालोए ॥४७॥ जत्थ गुरुमुत्तियाओ हरिसहिययाओ सुपयचक्कातो। सउणासियसयवत्ता सईउ सरसी उवहसंति ॥ ७१ ॥ पणमंतखयरनिवइसिरपिंगमणिप्पहापिसंगपओ । जलहरसारो नामेण तत्थ खेयरवई अस्थि ।। ७२ ॥ नियदाणबुद्धिजियजलहरावली जलहरावलीनाम । तस्सत्थि हत्थिमंथरसंचारा सहयरी सारा ॥ ७३ ॥ तीए समत्थि जलरासिसिविणसूइयगहीरयावासो। जलसच्छप्पयईचिय कुमरो नामेण जलसारो ॥ ७४ ॥ मयणोब अतणुरूवो समग्गजणविहियहिययवासो जो। कमलायरोब गुरुमित्तदंसणुल्लसियसुवियासो।। ७५ ॥ उत्तमकुलावयंसो वयंसजणसंगतोवि रायसुतो। कीलाकए कयाइवि पत्तो सायरगयगिरम्मि ॥ ७६ ॥ वेलजलचलणविघुट्टफुट्टगुरुसुत्तिमोत्तियप्पयरो। सामे जम्मि दिणम्मिवि विभाइ 卐ESH Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् जलपूजायां जलसार कथा ॥१४॥ SSSSSSSSSSSSSFEREFESSES तारयसमूहोच ॥ ७७ ॥ तम्मि समित्तो कुमरो आरामपरंपरं परिभमिरो । आयन्नइ पक्काओ हक्काओ भिडंतसुहडाण ॥ ७८ ॥ के नाम इमे जुझंति किंवि (वा?) वेरस्स कारणमिमेसिं। पेच्छामो पुच्छामोत्ति जंपिरो सो गतो तत्थ ॥ ७९ ॥ तो तेण ज्झत्ति दिट्ठा दोन्नि भडा दंतदट्ठनियउट्ठा । कयभीमभिउडिभाला रोसारुणलोयणकराला ॥ ४८० ॥ समरारंभस्समवसगलंतपस्सेयबिंदुजालेण । रेणुप्पसमणकजे रणरंगं सिंचयंतव ॥८१॥ जुयलं ॥ मा जुज्झह मा जुज्झह ता मह नियवेरकारणं कहह । इय कुमरवारियावि हु जुझंति समच्छरा दोवि ॥ ८२॥ परारंति (पेरंति ?) अवसरंति य घडंति विहडन्ति दिति करणाई । उम्मुक्कसीहनाया वग्गंतिय खग्गवग्गकरा ॥ ८३ ॥ अन्नोन्नछलप्पहरप्पवंचअन्नायखग्गघाएहिं । दोण्हवि पडियाई महीयलम्मि सहसत्ति सीसाइं ॥ ८४ ॥ ता तेसिं सीसाई पमुक्कहुंकारपेक्कहकाहिं । अन्नोन्नं उच्छलिउं दंतेहिं डसंति अणुवेलं ॥ ८५ ॥ अवरोप्परासिदंडप्पहारजज्जरियअंगुवंगाई । जुझंति कबंधाइंवि अच्छरियकराई कुमरस्स ॥ ८६ ॥ कुमरेणुत्तं मित्ता सीसकबंधाण रणरसुक्करिसं । पेच्छह अतुच्छअच्छरियकारयं रोसवस याण ॥८७॥ ते बिंति देव सिविणेवि नेव जं तंपि एत्थ सच्चवियं । इय जंपिराण पडियं धडदुगमवि पहरजजरियं ॥८८॥ सियदंतकोडितोडियअवरोप्परवयणगंडखंडाई। निच्चेट्टाई होउं तस्सीसाइंपि पडियाई ॥ ८९ ॥ तो ज्झत्ति पिंगकेसरसडाकडारियसमग्गदिसियत । तडिपुंजपिंजरीकयजयंव जायं सरहजुयलं ॥ ४९० ॥ उक्खित्तकरप्पमुक्कफारफुत्कारसिकरोसारो। वित्थारिजइ जेहिं दिणेवि तारयभरोब नहे ॥ ९१ ॥ अइघोरगजियारवरोद्दत्तं पेच्छिउं नरिंदसुओ। विम्हियहियओ जाओ भएण नट्ठा पुण वयस्सा ॥ ९२ ॥ तो भेरवभयजणयं सरहदुगंपि हु तिरोहियं सहसा । पेच्छइ य पुरो बहुसूरकिरणभरसमहियं तेयं ॥ ९३ ॥ तं पेच्छिय विम्यतो चिंतइ कुमरो किमिंदयालमिमं । मइमोहधाउखोहाणमहब मह किंपि अन्नयरं ॥ ९४ ॥ इय चिंतंतो कुमरो जा थिरकयलोयणो तयं नियइ । ता तेयअंतरट्ठियनर ॥१४॥ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जलपूजाया जलसार कथा IFFEREFERESHEEFLEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE सरिसं पेच्छए किंपि ॥ ९५ ॥ नयणाणिमिसत्तप्पमुहलिंगविनायअमरसब्भावं । रइयकरकमलकोसो तं नमिय पयंपइ कुमारो ॥ ९६ ॥ को पहु तुमं किमेवं भीसणरूवो ठिओ कहसु मज्झ । इय तेणुत्तो अमरो कुमरं पइ भणइ सुणसुत्ति ॥ ९७ ॥ अस्थि असमत्थसुहडं समत्थसुहडोहपत्तविजयंपि । जयसारं नाम पुरं विजयावहरायलंकरियं ॥ ९८॥ तत्थथि वित्तसियकरवियरणसंजणियजणमणपमोओ । सम्मयसहितो चंदोव चंदतेउत्ति अत्थवई ॥ ९९ ॥ चंदप्पहाभिहाणा मणोहरा तस्स पिययमा अस्थि । चंदप्पहमइरा इव सरूवकयजणमणुम्माया ॥ ५०० ॥ बहुधणवईवि दवजणाय सो कुणइ भूरिववहारे । कयकिच्चेहिं वि महिओ जलही रयणत्थि अमरेहिं ॥ ५०१॥ काउं कयाणयाइं कयाई पउणाई पवहणे चडिओ। चलियो य मलयसिंघलकडाहकेसाइदीवेसु ॥ २॥ गच्छइ पोओ दूरा नीरभरं मच्छए तरंगे य। फाडतो तासंतो भंजंतो भूरिवेगेण ॥ ३॥ अणुकूलवायविहिमणवियंभणप्पेरियंव जलजाणं । थेवेहिवि दिवसेहिं बंछियदीवेसु संपत्तं ॥ ४ ॥ तत्थ मणवंछियत्तहियजायबहुलाहपत्तपरिओसो । गहिउं सदेसजोग्गे कयाणए तयणु बाहुडिओ ॥५॥ पवणप्पसराऊरिजमाणसियवडपयंडवेएण । थोवदिणेहिंवि पत्तो पोओ जलरासिमज्झम्मि ॥६॥ जाएत्यंतरे अकालियघणपडलेहिं समेग्गनहमग्गो। जीवोब अकजब्भवपावेहिं कलुसिओ दूरं ॥ ७॥ नहदप्पणे समुद्दो संकतो अह घणो जलहिसलिले । जणयंति विब्भमं दोवि सामला पेच्छिरनराण ॥ ८॥ झंपाए समुल्लसिरो सिंधुजले निवडिऊण तडिपुंजो। वडवानलोब रेहइ नहमंडलजंतजालोहो ॥ ९॥ अञ्चंतथूलामलजलधारासारसलिलसंभारं । मुंचइ मेहो मोयाविउंव जलहिं समजायं ॥ ५१०॥ सामघणाली गयणे सामुक्कलियावली समुद्दम्मि । गजंतीओ पसरंति दोवि गुरुगयघडाओध ॥ ११ ॥ नीतो होइ घणो जलभरेण उल्लसइ तेण य समुद्दो । दोन्निवि मिलिणनिमित्ता परोप्परं संचरंतिव ॥ १२ ॥ एवं अकालभवमेहमंडलाडंबरं पलोएउं । सबोवि पवहणजणो जातो कायबमूढमणो ॥ १३ ॥ रोरसमी Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृत पूजाष्टकम् ॥ १५॥ 5555555555555555555555555595959595 रुकलियातोडियतणियागणो सियवडोवि । पवह्णवइहिययंपिव पडितो सह कूवखंभेण ॥ १४ ॥ गुरुकल्लोलारोहावरोह- जलपूजायां आवत्तगत्तभमणाई । अणुभविऊणं अब्भिडिय गिरितडे विहडिओ पोओ ॥ १५ ॥ अंगीकयगुरुकट्ठा तरिया केवि हु जलसारभवं व नीरनिहिं । अवरे उ अगुरुकट्ठा भवेव मग्गा समुद्दम्मि ॥१६॥ पवहणवईवि बहुधणविणासदसणविसायविव- कथा संगो । मग्गो अगाहसलिले भववासे को सया सुहिओ ॥ १७ ॥ तयणु जलमाणुसीए मयणायत्ताए निययदइओत्ति । आलिंगितो जहट्ठियवत्थु न नियंति रायंधा ॥ १८ ॥ आयड्डिय सलिलाओ भोगत्थं तीए गिरितडे नीओ । सुहपरिणईए l जीवोब कडिओ नरयमज्झातो ॥ १९॥ सा तं दटुं न इमो पिउत्ति भीया गया जले झत्ति । सावायपरहाणे को चिट्ठइ नायपरमत्थो ॥५२०॥ सेलतडसिलासीणो चिंतेई मज्झ चेव पडिकूलो । एस हयविहिविलासो पुवज्जियदुकयवसयस ॥ २१॥ ज अञ्चब्भुयधणकणभरियपि पवहणं विहडियं मे । मरणंतबसणं सिंधुमजणाहमवि संपत्तो ॥ २२ ॥ जं जस्स जया जायइ सुहमसुहं वा तयं तया तेण । धेजमवलंबिऊणं सहियवं जेणिम भणियं ॥ २३ ॥ जंचिय विहिणा | लिहियं तं चिय परिणमइ किं वियप्पेण । इय जाणिऊण धीरा विहुरेवि न कायरा हुंति ॥ २४ ॥ एवं विभावणागयविसायवसजायमणअवटुंभो। अवलोइउ पवत्तो रमणीए पचयपएसे ।। २५ ।। गुरुसिहरगुहाकंदरनियंबनिज्झरसयाई पेच्छन्तो। भक्खंतो य फलाई कइवयदिवसाइं तत्थ ठिओ॥२६॥ किच्छेणमवरदिवसे तग्गिरिसिहरंमि दुगामे चडिओ। अवलोयइ अइबहलं वणसंड मेहखंडंव ॥ २७ ॥ अनिलतरलाओ जत्तो निवडतो नजए कुसुमनियरो । सुक्कोदयऽत्थभवघणपडलाउ व करयनिउरूंबो ॥२८॥ ज मज्झट्ठियकंचणमणिमयजिणभवणकिरणकबुरियं । कप्पहुमसंडंपिव सोहइ आभरणगणजुत्तं ।। २९ ॥ तंमझे गयणंगणगयसिंगं जिणहरं सुबन्नमयं । मेरुंपिव अवलोयइ तलसंठियभदसालवणं ॥ ५३०॥ आभाइ जस्स सिहरे संकतानिलचला सियधयाली । सुरगिरिजिणण्हाणपवत्तदुद्धजलपवहपंतिव ॥ ३१ ॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तम्मि पविट्ठो सो नियइ निरुवमं रिसहसामिणो बिंबं । उम्मीलियभत्तिव सुल्लसंतरोमंचकंचुइतो ॥ ३२ ॥ नमइ य तं भारतलग्गमिलियम हिमंडलो पहरिसेण । रइयकरजुयलकोसो नियइ य नाह अणिमिसच्छो ॥ ३३ ॥ एत्थंतरम्भि एगो चारणसमणो नहेण संपत्तो । कयतिप्पयाहिणो रिसहसामियं थोउमादत्तो ॥ ३४ ॥ तिहुयणगुरुणो सिरिरिसहसामिणो नमियपायसयवत्तं । कयकर कोसो आनंदअंचिओ संथवं काहं ।। ३५ ।। कणयच्छविणो अंसावलंबिणो कसिणकुंतला तुम्भ । मंदरगिरिणो पंडगतमालतरुणोब रेहति ॥ ३६ ॥ जे सामिसाल तुह पयलीणा दीणावि ते नरा दूरं । भवताववज्जियंगा विलसिरपमालया हुंति ॥ ३७ ॥ मइयओहीमणपज्जवाणि तुह केवलम्मि मग्गाणि । तारयनक्खत्तग्गहससिणोब सहस्सकरते ॥ ३८ ॥ तं सामि समवसरणंमि सोहसे रइयरम्मचउरूवो । नारयतिरियनरामरच उगइजणबोणत्थं व ॥ ३९॥ रायाणं रंकाण य धम्मुवएसं तुमं समं दिससि । किं जयमुज्जोयंतो मेच्छकुलाई चयइ सूरो ।। ५४० ।। तुह मिलणे मह | जाओ बहुमाणव सेण रम्मरोमंचो | घणसमयंमि कयंबस्स सबओ कुसुमनियरो ॥ ४१ ॥ इय नीइचक्कसि रिनेमिचंदमुणिनानमियपयपम । जह जाया तुह सिद्धी तं तह मज्झवि पहु पयच्छ ॥ ४२ ॥ इय थोडं रिसहजिणं उवविट्ठो तयणु चंदतेओ से । पणमिय कथंजलिउडो उवविसिओ भणइ मुणिमेवं ॥ ४३ ॥ भयवं नरत्तनियजम्मजीवियद्वाण वसणठाणाण । देवगुरुदंसणेणं मन्ने अज्जेव सहलत्तं ॥ ४४ ॥ ता पहु मह कहसु अवत्थसमुचियं धम्ममह कहइ साहू । पूइज्जइ एस पहू अट्ठपगाराहिं पूयाहिं ॥ ४५ ॥ तहाहि । नेवज्जगंध अक्खयदीवय फलसलिलकुसुमधूवेहिं । जिणपूया भत्तीए रइया विरइ सिवसुहाई ॥ ४६ ॥ दूरे धणक्कयुब्भववा सप्पमुहाउ सत्तपूयाओ । एक्कावि मुहा लब्भा जलपूया हरइ संसारं ॥ ४७ ॥ जओ । जलभरियपत्तमेत्तो संसारमहोयही फुडं तस्स । जो ठवइ जिणस्स पुरो सीयलजलपूरियं पत्तं ॥ ४८ ॥ फलिद्देण व सच्छेणं अमएणव साउणा जिणवरिंदं । सीएणं सिसिरेण व जलेण अचंति कयपुन्ना ।। ४९ ।। जेण जिणाउ न जलपूजायां जलसारकथा Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अनन्तनाथचरिश्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् ॥ १६ ॥ T अन्नं पूयापत्तं समत्थि तिजएवि । ता पूइऊणमेयं सहलं मणुयत्तणं कुणसु ।। ५५० ॥ तं सोउं सो जंपइ नमिऊण मुणिं निबद्ध कर कोसो । भयवमणुग्गहिओ हं समयोचियधम्मकणेण ॥ ५१ ॥ इय जंपिउं गओ गिरिनिज्झरणनि वायरुंदकुंडम्मि । कयकमलपत्तपुडए गहिय जलं जिणहरं पत्तो ॥ ५२ ॥ दहूणं भुवणगुरुं सुमरियपुबिल्लनियसिरिष्फुरणो । चिंतइ तइया नाहो जिणनाहो मज्झ जइ हुंतो ॥५३॥ ता हूं नियसिरिवित्थर समवत्थगणेण (?) नूणमच्चंतो । इहि एयावत्थो करे मि एपि जलपूयं ॥ ५४ ॥ इय चिंतिय असमुल्लसियभत्तिपव्भारपुलइयसरीरो । पसरन्तभूरिआणंद सुदंतु रियपम्हच्छो ॥ ५५ ॥ मुंबई पहुणो पुरतो जलपुडयं अत्तणो परिकलंतो । नरजम्मजीवियबाण सहलयं भुवणपणयस्स ॥ ५६ ॥ भणइ मुणी धन्नो तं पयडइ पुलओ तुहतरं भक्तिं । इति न दुद्धे पीए उग्गारा आरेनालस्स ॥ ५७ ॥ सिवलच्छिपेच्छियाणं उच्छाहो होइ एरिसोवम्मं । नहि सुकयसंगयाणं धम्मम्मि अणायरो होइ ॥ ५८ ॥ तेणुत्तं भयवं मे भवंतरे विहु भवेज तं चैव । देवगुरुधम्मतत्ताण देसओ विरइयपसाओ ॥ ५९ ॥ इय जंपिय तेण नओ गओ मुणी नहह्यलं अलंकरिउं । सोवि गुरुविरहविहुरो खणमेत्तमचेयणोव ठिओ || ५६० ॥ नमिउं बहुमाणपुरस्सरं जिणं निग्गतो जिणाययणा । नियपुरगमणोवायं चिंतंतो गमइ दिणसेसं ॥ ६१ ॥ एत्थन्तरम्मि नहमग्गसंगिनग्गोहसा हिसिह रम्मि । अल्लीणा आगंतूण पक्खिणो झत्ति भारुंडा ॥ ६२ ॥ ते माणुसभासाए नियवुत्तंते कहिंति पुत्ताणं । एक्केण जंपियमहं जयसारपुराउ संपत्तो ॥ ६३ ॥ तप्पुरसमग्गवणिवग्ग अग्गणीचंद तेयनामो जो । संभिन्नपवहणो सो मओ अपुत्तोत्ति जणवाओ || ६४ || निसुओ निवेण तो से गहितो निल्लूडिऊण घरसारो । जे जोयंति असंतंपि ते न किं संतमिह छिद्दं ॥ ६५ ॥ गुत्तपि धणं कहियं कयत्थणाकंपिराए कंताए । अप्पंमि व णस्संते कज्जं किं सयणदविणेहिं ॥ ६६ ॥ एवं आरामियजणकहिज्जमाणं मए सुयं वच्छा । इय भारुंडपर्यंपियसवणा सो चिंतइ ससोओ ॥ ६७ ॥ पेच्छ जहा मह लच्छी पसरंत जलपूजायां जलसारकथा ॥ १६ ॥ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जलपूजायां जलसारकथा FF सुवन्नतारसारावि । सिंग्यपि खयं पत्ता गिम्हसमुन्भूयरयणिव ॥ ६८ ॥ अत्थजणदु बुद्धी दिना दिवेण मज्झ रुद्वेण ।। किं देइ करचवेडं कयाइ कुविओ विहिविलासो ॥६९ ॥ किविणाण चकवट्टी जाओहं सबहा जओ न मए । दवचओ विरइओ सुपत्ततित्थेसु धणिणावि ॥ ५७० ।। किं सायरतरणधणजणं विणा मज्झमासि न वहतं । जं मे गया सिरी जीवियपि संदेहमणुपत्तं ॥ ७१ ॥ पत्तावि पलइच्चिय अपुन्नवंताण निच्छियं लच्छी । किमभग्गगिहल्लीणा होइ थिरा कामदुधेणू ॥ ७२ ॥ सुकुमालतणू पेम्मेक्कमंदिरं विमलसीलकलियंगी। कह सहिही मह कन्ता कयत्थणं रायभडज|णियं ॥ ७३ ॥ नूणं न मए रम्मो धम्मो विहिओ भवंमि पुबिल्ले। जमहं विडंबणाडंबरं इमं इह भवे पत्तो ॥ ७४ ॥ तत्थ गमणुस्सुतोवि हु गच्छामि कहं उवायहीणोहं । कहमकमचंकमणो पंगू वंछियपुरं जाइ ।। ७५ ॥ जइ जामि तत्थ लञ्छि ता निवघत्थंपि नूण वालेमि । गुरुविसवेगविलुत्तंपि चेयणं मंतवाइव ॥ ७६ ॥ इय तस्स धणविणासासुहियस्स निसा ठिया पहरसेसा । पुत्ताण गमणठाणाणि कहिय गच्छंति भारुंडा ॥ ७७ ॥ जो चलिओ तन्नयरे पाए सो तस्स दढयरं लग्गो। उड्डीणो भारुंडो मणनयणजवेण जाइ नहे ॥ ७८ ॥ नवरं सो विहिविलसियवसेण विच्छुट्टि-- ऊण तप्पाया । पडिओ समुद्दसलिले विमुहविही कुणइ नो किं वा ॥ ७९ ॥ मजंतेणं तेणं जिणगुरुचरणाण सुमरियं 5 सहसा। तस्साणुभावओ मरिउमञ्चुए सो सुरो जाओ ॥ ५८० ॥ कालेण चारणस्समणतग्गुरू तंमि चेव कप्पम्मि । जातो सुरो वहा पुत्वभवभवो ताण नेहोवि ॥ ८१ ॥ नाऊणं नियचवणं तेणुत्तो गुरुसुरो सुही एवं । पत्ते मणुयत्ते में पडिबोहेजसु तुम मित्त ॥ ८२ ।। पडिवन्नं तेण तयं तो सो चविऊणमेत्थ वेयड्डे । खयरिंदसुओ जाओ चलिओ य पकीलिउं एत्थ ॥ ८३ ॥ एत्थंतरे मए सुरसुहसंगविमोहओ बहुदिणेहिं । सरिया पुवभवदुगपडिबोहब्भत्थणा तुज्झ ॥८४ ॥ तो भडधडसिररणसरहरूवप(पभईय)विरइयं पच्छा । नियसाहावियरूवं तुह विन्भमकारणे कुमर ।। ८५ ॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अनन्तनाथचरि त्रादुद्धृतं. पूजाष्टकम् ॥ १७ ॥ ता वच्छ अपत्थं पिव नराण रज्जपि होइ असहाय । गिम्हनईनीरंपिव झिज्जर अणुदिवसमवि आउं ॥ ८६ ॥ नरनयणाणिमित्तंव जोवणं नो कयाइ ठाइ थिरं । कलुससहावा सया बहुलनिसाओव मयच्छीओ ॥ ८७ ॥ किं बहुणा सपि हु विणस्सरं भवसमुब्भवं वत्थु । सारयघणोव सोयामणिव जलबुबुतोहोव ॥ ८८ ॥ ता वीयरायदेवं पडिवज्जसु तं सरायमुज्झित्ता । पाविय वंछियफलयं कप्पतरुं सरइ को निंबं ॥ ८९ ॥ निग्गंथंमि गुरुंमिं गुरुबुद्धिं कुणसु मा पुण थे । पत्तम्मि सुणसंगे मग्गइ किं कोइ खलगोडं ॥ ५९० ॥ मुत्तुमतत्ते अंगीकरेसु जीवाइयाइं तत्ताई | को गुंजाओ गिण्हइ चइऊण महग्घरयणनिहिं ॥ ९१ ॥ पडिबोहिउं तुममहं जाओ निरिणो नियम्मि पडिवन्ने । तं सुणिय जाइसरणेण नियभवे पेच्छिय कुमारो ॥ ९२ ॥ जंपइ पणामपुवं पडिवनं पालियं तए साभि । तं मत्तुं नन्नो तिहुयणेवि परमोववयारी मे ॥ ९३ ॥ इहिं गिहधम्ममहं काहमसत्तोन्हि सवविरईए । मयमुहगयसज्यं कज्जं काउं तरइ को ॥ ९४ ॥ इय तेणुत्ते तियसे सहसत्ति तिरोहिए गतो तेओ । अब्भंतरिए तरणिंमि दुरवलोओ पावो ।। ९५ ।। संपत्तमित्तजुत्तो पत्तो नयरे गुरुक्कमे नमिउं । गिन्हइ गिहत्थधम्मं कल्लाणे को पमायपरो ॥ ९६ ॥ रंकेण व रयणनिही वरविज्जो वाहिणव संपत्तो । सद्धमो तेणं सो कयकिचं कलइ अप्पाणं ।। ९७ ।। उम्मत्तजोबणुद्दामकामकमणीयकायकंतीओ। नहयर नियंविणीओ पुत्तो परिणाविओ पिउणा ॥ ९८ ॥ तं अहिसिंचिय रज्जे पवज्जं गिण्हए | खयरराया । इहलोइयपारलोइयसुहकज्जे उज्जया गरुया ||१९|| जलसारखयरचक्की परचक्ककमणकयमणुक्करिसो । पालइ परंतपो नियरज्जसिरिं सुरिंदो ॥ ६०० ॥ लीलाए परिचलिरम्मि जम्मि माणिक्कमयविमाणेहिं । गयणयलमलं किज्जइ |सयावि किंकिणिकलरवेहिं ॥ १ ॥ वंदइ गुरुणो पूयइ जिणेसरे कुणइ संघबहुमाणं । जिणजत्ताउ पवत्तइ मंदरनंदी जलपूजायां जलसारकथा ॥ १७ ॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सराई ॥ २ ॥ इय सद्धम्मं रज्जस्सिरिं च परिपालिऊण बहुकालं । नामेण रयणसारं कुमरं रज्जे ठवेऊण ॥ ३ ॥ नियजणयचरणमूले दिक्खं गहिऊण कयतवञ्चरणो । पावियकेवलनाणो "पिउणा सह सिद्धिमणुपत्तो ॥ ४ ॥ विहिया जह जलपूया सिवसुहहेऊ इमस्स संजाया । तह जायइ खन्नस्सवि भत्तीए तीए ता जयह ॥ ५ ॥ ( जलपूजा 34 फफफफफ भणिओ जलपूयाए जलसारो संपयं पयंपेमि । निव धूवसुंदरकहं आयन्नह धूवपूयाए ॥ ६ ॥ 55555 अस्थि फुरियमहानीलमणिसिलासालफलिहकविसीसं । सिरकुसुमियवणपरिवेढियंव नयरं महासालं ॥ ७ ॥ | पडिमंदिरमणिभित्तिप्पडिबिंबियतरणिभासुरत्तेण । जं पेच्छिउंपि तीरइ न तस्स कत्तोरिपरिभूई ॥ ८ ॥ थिरमइपयावजियगुरुअहिमयरो जलनिहिब गंभीरो | चंदोव पवित्तकरो राया नयसुंदरोत्थि तहिं ॥ ९ ॥ बहुसंखमंडलग्गप्पहारपरजयपवित्तयाकलिओ । जो एकमंडलग्गप्पहारपरजयपवित्तोवि ॥ ६१० ॥ तस्संतेउरतरुणीपहुत्तपयमस्सिया पिया अस्थि । नामेण कम्मणावि हु विजयवई सीलकुलभवणं ॥ ११ ॥ उज्झतागुरुनवधूवसुंदरी धूवसुंदरो नाम । तीएत्थि हत्थिमंथर गई रईसोवमसरीरो ॥ १२ ॥ समराइओ सुसाहुब समणधम्मोव जो सुहयमुत्ती । सक्कमलच्छि - | विलासो गयकरवाहो महुमहोब || १३ || कुमरो कयाइ आरुहिय खंधरं गुरुकरेणुरायस्स । छत्ततिरोहियतरणी तरुणीकरचलिरसियचमरो ॥ १४ ॥ पुरओ पयट्टहयघट्टचडियनियमित्तपत्ति (पंति ? ) संजुत्तो । पविसिय सहाए पणमिय पिउणो | पुरओ समुवविट्ठो ॥ १५ ॥ एत्थंतरम्मि रणवीरराइणो दारवालविन्नत्तो । दूतो दुयं नरिंदं नमिडं विन्नबिमारद्धो ॥ १६ ॥ पहु पिहुपयावपावयपुलुट्ठपरिपंथिसत्थसलहेण । गयनयर पहुरणवीरेण पेसिओ तुह सयासे हं ॥ १७ ॥ मह पहुणा तुह आणा पट्ठविया जह पयच्छ पइवरिसं । मह करमह न पयच्छसि धरियधणू होसु ता समुह ॥ १८ ॥ | असरिस सामत्थेणवि तेण तुमं नीइपुवयं भणिओ । को महुरोसहसज्झे रोए कडुओसहं देइ ||१९|| ता हरिही रज्जपि हु धूपपूजायां धूपसुंदरकथा Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धूपपूजायां श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् धूपसुंदरकथा ॥१८॥ जइ न धरसि तस्स सासणं सीसे । हरिणाहिवम्मि हरिणावमाणणा नणु अणत्थाय ॥ ६२० ॥ कहियं हियं तुह मए तं कुणसु नरिंद जं मणोमिमयं । सप्पुरिसपयडियंपिहु गिण्हंति हियं न देवया ॥ २१ ॥ छन्नोवि रायरोसो दूउत्तस्सवणओ ठिओ पयडो। किं उद्यहिओ अग्गी जालिजंतो न पज्जलई ॥ २२ ॥ भिउडिघडणा निवइणो समंपि विसमत्तमुवगयं भालं । धिजाइयस्स वत्थंवमंदपवमाणतरलणओ ।। २३ ॥ भणियं निवेण रे दूय तुह पहू मह कर गहितुकामो। अयं तु नियकरेणं रणे गहिस्सं सिरं तस्स ॥ २४ ॥ तं पेसिय तुह पिहुणा विरोहिओ हं धुवं सनासाय । निदायत्तमइंदप्पडिबोहो कि सुहं देइ ॥ २५ ॥ आणसु तं नियनाहं नाहं जं से सहिस्समवराहं । साहूणं सिंगारो अविणयसहणे न निवईणं ॥ २६ ॥ दूएणुत्तं निव नियघरट्ठिओ जह वहेसि भडवायं। तह जइ समरुच्छंगेवि ता तुमं चेव वीरवई ॥ २७ ॥रायाह जाहि आणेहि नियनिवं दूय देससीमाए । जह रणनिहसो दसइ पोरुसकणयुब्भवं | वन्नं ॥ २८ ॥ इय जंपिय सम्माणिय विसज्जितो राइणा गतो दूतो । अञ्चत्तं कुवियावि हु उज्झंति नरेसरा न नयं ॥ २९ ॥ ताडाविया निवइणा रणभेरी भीरुभूरिभयजणणी । तो नयनिवेण कुमरेण पत्थिया समरगमणाणा ।। ६३०॥ नाऊण निबंधममञ्चमंडलीजंपिएण दिन्ना से । रणगमणाणा तो सो चलिओ चउरंगबलकलिओ॥ ३१ ॥ गुरुगयघडासु तुरयावलीसु रणझणिरकिंकिणिरहेसु । रायाणो सामंता मंडलिया चडिय संचलिया ॥ ३२ ॥ परिकलयंता बहुआउहाई आओहणाय जोहोहा । कुमरं परिचारता जंति पहे समरनिवडिया ॥ ३३ ॥ विरइयबहुप्पयाणयसयलंघियनिययदे|ससीमाए। पत्तो कुमरो रिउनरवईवि सबलो सदेसंते ॥ ३४ ॥ उवभुत्तसपहुगरुयप्पसायनिक्यकयुजमा सुहडा । | अब्भिडिया असमुच्छलियमच्छरुच्छाहसंजुत्ता ॥ ३५ ।। हरिकरिरहचडिएहिं हयगयसंदणठिया पडिक्खलिया। पय ॥१८॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धूपपूजायाँ धूपसुंदरकथा चारिणो विरुद्धा समच्छरं पायचारीहिं ॥ ३६ ॥ बावल्लसेल्लभल्लयमल्लीनारायसरपहारेहिं । मिजंता गुरुगयघडमडतुरया जन्ति जमगेहं ॥ ३७॥ अन्नोन्नं दंतेहिं तोडंति सिराई मुक्कहक्काई। निप्पसरअसिप्पहरे वियरंति य वग्गिरधडाई ॥ ३८ ॥ नवरंगमेहडंबरसियछत्तेहिं मही जहिं सहइ । रत्तुप्पलइंदीवरपुंडरियकयोवहारव ॥ ३९ ॥ खग्गाहयगयकुंभग्गनिग्गयाउ पडन्तमुत्ताओ। रेहन्ति खग्गपाणीयगलिरगुरुबिंदुणोध जहिं ॥६४०॥ असिघायुच्छलियठियं गयस्स जस्सन्तिगे मुहं करिणो । सो सहइ तेण दुकरोष सचउकुंभोव दुमुहोव ॥४१॥ एयारिसे रउद्दे रणम्मि रणवीररायकुमरेहिं । पारद्धं पहरेउं परोप्परं करडिचडिएहिं ॥ ४२ ॥ लल्लक्कमुक्कहक्काछलप्पहारेहिं दोवि पहरति । भिदंति य अन्नोन्नं दंतप्पहरेहिं करिणोवि ॥ ४३॥ रिउकरिणा कुमरकरी निवाडितो दसणपहरजजरिओ । पडिओ कुमरो गहिओ य वेरिकरिणा करग्गेण ॥४४॥ उच्छालिओ य गयणे निवडन्ते निवसुए रिउनिवेण । धरिओ खग्गो उद्धं (हेर्ट?) जह भिजइ निवडिरो कुमरो ॥ ४५ ॥ निवडतेणं तेणं रिउखग्गं वंचिउं तओ झत्ति । पयघाएणं पट्ठीए पहणिउं पाडिओ वेरी ॥ ४६॥ पडिओ सो करिपुरओ कोवमयंधेण तयणु तेणावि । दिन्नो पाओ सीसे दलियकवालो मओ राया ॥४७॥ दटुं वेरिविणासं असुरामरखेयरेहिं परिमुक्का । कुमरसिरम्मि निवडिया अलिउलमुहला कुसुमबुट्ठी ॥४८॥ अहियंमि हए गहिया कुमरेणमनायगा सिरी सयला । "को वा कुणइ पमायं लाहे अच्चन्भुयत्थस्स" ॥४९॥ मोत्तुं निय|पहुपुत्तं रिउसामंता कुमारमणुसरिया । "लज्जति जियंताणवि सबे विरलच्चिय मयाणं" ॥६५०॥ तो झत्ति समरवीरो रिउपुत्तो कुमरमस्सिओ सरणं । "समयाणुवत्तणं सइ नीई किं पुण इय अवाए" ॥५१॥ कुमरेणावि विइन्नो तप्पिट्ठीए | निओ अभयहत्थो । "इयरम्मि वि निरणुसया किं पुण सरणागए गरुया" ॥ ५२॥ काराविय नियआणं दिन्नं तस्सेव तजणयरजं । “असमाणश्चिय निच्चं कोवपसाया महंताण" ॥ ५३ ॥ तेणवि सिंगारसिरिभइणि परिणाविओ नरिंद अनन्त०४ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अनन्त - नाथचरि त्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् ॥ १९ ॥ सुओ । “पशुवयरियबे नो कालविलंब कुणइ गरुओ" ॥ ५४ ॥ चलिओ सदेससमुहो रायंगरुहो जयज्जियजसोहो । "सिद्धे कज्जे को वा वसइ सयन्नो विएसम्मि" ॥५५॥ कुमरेण समं नवनरवईवि चलिओ सकीयबलकलिओ । “नियपहुपयसेवच्चिय मूलं लच्छीए न पमाओ" ॥५६॥ आगच्छंतो कुमरो पत्तो वियडाडईए एक्काए । हिंतालतालतालीतमालवडसालकलियाए ॥ ५७ ॥ जा उत्तमसोहंजणविसालअक्खा मणोहर पवाला । पाडलअहरा पबयपओहरा सहइ रमणिव ॥ ५८ ॥ विलसंतसरलचित्ता गुरुहयमाराय साहुसेणिव । भवावलिब संजायपत्तबोही असोया जा ॥ ५९ ॥ मज्झमि ती वणसंडवेढियं गयणलग्गगुरुसिहरं । सप्पायारंपि भयावहारयं नियइ जिणभवणं ॥ ६० ॥ रेहन्तरूवदारं नरिंद मिव पत्तमूलरेहं जं । संपूरियसुयणासं लसिरामलसारसहियं च ॥ ६१ ॥ सबत्तो अनिलचला कंकेल्लितमालसाहिणो जस्स | जिणरायभयुब्भन्ता रागद्दोसब कंपंति ॥ ६२ ॥ दद्दूण देवमंदिरमावासइ तत्थ निवसुओ सबलो । तम्मि पविट्ठोश्चिय झत्ति मुच्छिओ पेच्छिऊण जिणं ॥ ६३ ॥ सिसिरकिरियाविरयणा संपावियचेयणो ठिओ सत्थो । आपुच्छिओ य मुच्छाए कारणं मंतिवग्गेण ॥ ६४ ॥ जंपइ कुमरो मह देवदंसणा जाइसरणमुप्पन्नं । सञ्चवियं तेण भवद्दुगमायनह तयं तुभे ॥ ६५ ॥ पत्तरहराइयंमि सरेब आरामरम्मगामंमि । साहससारो नामेण आसि एगो तुरयचोरो ॥६६॥ गंतूण दूरदेसे अत्थत्थी हरइ गुरुरयतुरंगे । विक्किणइ य दूरतरे “का वा लुद्धाण मज्जाया" ॥ ६७ ॥ नियभोगंमि निजुंजइ दविणं वियरइ य दीणबंदीणं । "मोत्तूण चागभोगे नन्नं लच्छिफलं अहवा" ।। ६८ ।। कइयावि कडीतडबद्धखग्गघेणू तुरंगहरणत्थं । पत्तो सुवासनामे गामे दिणपच्छिमे जामे ।। ६९ ।। मणपवणजवे विलसन्तलक्खणे |तेयतरलयाकलिए । पेच्छइ अतुच्छदुवादलाई चरमाणए तुरए ॥ ६७० ॥ तो सो चिन्तइ एयाण मज्झओ जइ हरामि एक्कंपि । दालिहस्साजंमं ता देमि जलंजलिं नूणं ॥ ७१ ॥ इय चिंतियप्पओसे लग्गो मग्गंमि सो तुरंगाण । "जो जक्कज्जे धूपपूजायां धूपसुंदरकथा ॥ १९ ॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धूपपूजाया धूपसुंदरऋथा. 555555555555HIEFEEL पत्तो स पमायं कुणइ किं तम्मि" ॥७२॥ गामाहिवस्स गेहे गया हया सूरतेयनामस्स । दारेश्चिय सो रहिओ "परघरमाविसइ को सहसा" ॥७३॥ पविसन्तगोउलुच्छलियरयभरादिस्सदेहजट्ठी सो।तम्मि पविट्ठो "अप्पं न चोरजारा पयासन्ति" ॥७४॥ मं पेच्छिही महीए कोवित्ति विचिन्तिउं वडे चडिओ। "जह होइ अप्परक्खा दक्खा तह संपयट्टति" ॥ ७५ ॥ वडसंठिएण दिट्ठी पक्खित्ता तेण गेहमज्झम्मि । दिट्ठा य दीवउज्जोयपयडिया अंगणा एगा ॥ ७६ ॥ हरिजिंदखाममज्झा हरिणंकमुहीय हरिणसमनयणी । विहुमअहरा पीवरपओहरा कणयवन्नधरा ॥७॥ तं पेच्छिऊणमस्सावहारओ चिंतए कयत्थो सो । नियरूवसिरी अहरीकयस्सिरी जस्सिमा भज्जा ॥ ७८ ॥ एत्थंतरम्मि दुद्धासु सयलसुरहीसु | सेरहीसुं च । बढेसु तुरंगेसुं जणप्पयारे ठिए विरले ।। ७९ ॥ परिपालन्ते अस्सावहारिपुरिसम्मि हयहरणसमयं । मंदं |मंदं गेहाओ निग्गया सा मयंकमुही ॥६८०॥ तं दटुं संचरिओ सो झत्ति वरंडओवरिमसाहं । आगच्छंति तो नियइ वडतले दारमग्गेण ॥८१॥ संपत्ता वडतलवियडअयडतडनियडविडभडसयासे । तीए अवलोइओसो नववयदिढदेहसंठाणो॥८२॥ मयणाहिमांसलामोयमणहरो रइयरम्मसिंगारो। परिपीडियतूणीरो करकलियपयंडकोदंडो॥ ८३ ॥ दट्टण तयं उक|ठियाए तकंठठवियबाहाए । आलिंगिऊण भणियं किं सुहय तुहेत्तिया वेला ॥ ८४ ॥ सो जंपइ सुयणु जणप्पयारपसमं ठिओम्हि पालन्तो। "अहवेरिसकजरओ पयडइ किं कोवि अत्ताणं" ॥८५॥ तुह मोहमोहियमई मयच्छि अहमागतो गुरुरएण । “लीलावईविलासावहियमणाणं कुओ थिरया" ॥८६॥ गयगमणि तुह कज्जे मुत्तुं कंतं सिरिं च इह पत्तो । | "अहवा तं सबस्सं जंमि मणो निबुइं वहइ" ॥ ८७ ॥ सा आह कहं तुमए नाओ अपयासिओ वि संकेओ। तेणुत्तं |बिंबाहरि आयन्नसु तुज्झ साहेमि ॥ ८८ ॥ गुरुरयतुरयं आरुहिय 'आगतोहमिह अप्पकज्जेण । सञ्चविओ तुमएवि हु वियसियकुवलयदलच्छीए ॥८९॥ यकीलणच्छलेणं मयच्छि तं पेच्छिया मए सुइर। "तुह रुवस्स न तित्ती पत्ता जरि Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9 श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् ॥२०॥ एणव जलस्स" ॥६९०॥ असमस्सिणेहसबस्सरसवसुप्फुल्लनयणकमलेहिं । अवलोइओ तए वि हु अहमणिमिसविन्भम-15 पपूजायां धराए ॥ ९१ ॥ नाओ तुहाणुराओ मए तए वि हु ममाणुराओवि । "नयणेहिंचिय नजइ अहवा हिययडिओ भावो" धूपसुंदर॥ ९२ ॥ एत्यंतरम्मि तुमए धम्मिल्ला छोडिऊण कुसुमाइं। खित्ताई इह पएसे अमिलाणाई पि तवेलं ॥ ९३ ॥ मं कथा। पेच्छिरीए उबेल्लिऊण केसेहि विरइया वेणी । आमीलिय नयणाई मं पेच्छिय तं गया सगिहं ॥ ९४ ॥ नाओ मएवि भावो जह मह दिन्नो इमाए संकेओ। कहमन्नह अमिलाणाई एत्थ कुसुमाइं खित्ताई ॥ ९५ ॥ केसेहिं निसितमंमि तह नयणनिमीलणेण सुत्तजणे । अहमाहूओत्ति वियड्याए नायं मए जेण ॥ ९६॥ "वंकभणियाई कत्तो कत्तो अद्धच्छिपेच्छियाइं च । ऊससियंपि मुणिजइ छइल्लजणसंकुले गामे" ॥९७॥ ता रंभोरु तुहत्थे एत्थ अहं आगओ तुह विओगा। पजलियजलणजालाजलिरंगो इव दिणं गमिउं ॥ ९८ ॥ सा जंपइ चउजामोवि सामि मह वासरो सहसजामो । तुह | विरहविहुरयुम्मायजायतावाय संजाओ ॥९९॥ अमयमओ पिय तं जं तुह मिलणे मे गओ विरहतावो। "किं सिसिर-2 किरणजोण्हाजोगो धम्मं न पसमेइ" ॥ ७० ॥ इय रम्मपेम्मसबस्समुखहंतेहिं तेहिं तत्थेव । रइया रयकीला उल्लसंतमयमयणमत्तेहिं ।। १ ॥ तविरइयरयविनाणविरयणा हरियहिययवावारा । सा आह कुणसु तह नाह जह सया होइ णे जोगो ॥२॥ फुट्टइ हिययं दज्झइ सरीरयं जाइ जीवियद्धपि । मह तुह विरहे ताहमवि सहं तए आगमिस्सामि ॥३॥ तन्नेहमोहिओ सो जंपइ ता चलसु तयणु तीउत्तं । गहिउँ निययाभरणं इहिपि समागमिस्सामि ॥ ४॥ ता अप्पसु नियच्छुरियं जह पेडं दारिगं तमाणेमि । जायइ खडक्खडा तालयस्स उग्घाडणे जेण ॥५॥ तेणावि खग्गघेणू समप्पिया ॥२०॥ गहिय तं गया सावि । नवरं महईवेलाए आगया तस्स पासंमि ॥ ६॥ कूवयकंठनिविट्ठस्स ज्झत्ति तीए समप्पिया छुरिया। "सिद्धे कजे को वा परवत्थु धरइ सकरम्मि"॥७॥ सह अप्पणा इमंपि हु पहु दिन्नं तुह सममामाभरणं । इय 59595999999 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंपिरी तमप्पइ " किमदेयं वा सिणेहस्स” ॥ ८ ॥ संगोवियं समग्गं तेणवि तं बंधिऊण परिहाणे । "इयरंपि सुग्गहीयं कुणति दक्खा किमु न दुई" ॥ ९ ॥ भणियं च तीए पिययम तुह कजे मारिऊण दइयंपि । इह पत्तत्ति पयासह पयईतुच्छत्तमित्थीणं ॥ ७१० ॥ तं सोउं सो सुहडो जंपइ एयं तए कयमजुत्तं । जं सो हओ "न गरुया पावपवत्तावि निक्करुणा" ॥ ११ ॥ पररमणीपरिभोगो एवं बीयं तु तीए अवहरणं । तइयं धणावहारो तुरियमविणासिनरहणणं ॥ १२ ॥ जइ हं नागच्छंतो ता हुतं एकमवि न पावं मे। आगंतुं चत्तारिवि पावाई मए कयाई पिए ॥ १३ ॥ एक्केकंपि समत्थं दाणे नेरइयदारुणदुहस्स । उपावभरकंतो कहिं हयासो गमिस्समहं ॥ १४ ॥ नंदंतु नरा तेच्चिय चिरं न चिंतावि जाण संजाया । पररमणिविसयविसया सीलालंकारकलियाण ॥ १५ ॥ हा हा हयविहिविहि ओह मिह महापावमंदिरं तुमए । कहमन्नह मं पत्ता एवंविहपावरिछोली ॥ १६ ॥ गब्भाउ किं न गलिओ बालो मिलिओ न किं बिडालीए । जमहमकज्जपरंपरपत्तं जाओ अणज्जमई ॥ १७ ॥ एवं वेरग्गवसा वागरमाणं निसामिय तयं सा । चिंतइ नूण विरत्तो एसो एरिससमुल्लावा ॥ १८ ॥ ता मह सवत्तिपुत्ताण गोससमयंमि साहिही नूणं । ते मं कयत्थिऊणं दुम्मरणेणं हणिस्संति | ॥ १९ ॥ ता किं इमिणा मह रक्खिएण नियवेरिणत्ति चिंतेइ । “खणरायविरायन्तं पायं पयई महिलियाण " ॥ ७२० ॥ |पहु मह खमसुति पर्यपिऊण खामणमिसेण तप्पाए । उप्पाडिऊण अयडे झडत्ति सुहढं खिवइ पावा ॥ २१ ॥ तिब्बाणुराय (इ) णीविय संज्झ विराइणी दुयं जाया । “खणरायविरायत्ते महिलाणहवा किमच्छरियं” ॥२२॥ दद्दूण भडं अपडे पक्खित्तं हयहरो विचिंतेइ । “धिद्धी घिरत्थु इत्थीण णत्थसत्थेकमूलाण” ॥२३॥ उम्मीलिओ वि दूरं इमंमि सुहडे इमाए अणुरातो । सहसच्चिय पणट्ठो पवणायसरयजलओब ॥ २४ ॥ जस्संगं अप्पिज्जिह दिज्जइ दुद्देयसङ्घदद्वंपि । सो वि हु एवं हम्मइ "अहो महेलाण मूढत्तं" ॥ २५ ॥ पंचविहं विसयसुहं उवभुक्तं जेण सह सिणेहेण । तबेलं चिय सोवि हु धूपपूजायां धूपसुंदरकथा Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अनन्त - नाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् ॥ २१ ॥ RAK खित्तो पावाए कूवंमि ॥ २६ ॥ दट्ठूण कूडकवडाई नूण महिलाण पुबरायाणो । मुत्तुं तणंव ताओ झत्ति तवञ्चरणमकरिंसु ||२७|| पवगिव चलसहावा महिला लूयव जणियसंतावा । उप्पाइयवसणसया कुविंदसालब पडिहाइ ॥ २८ ॥ सुंदरवन्ना आमोयमणहरा सुहरसाय भुज्जंती । महिला किंपागफलावलिब उप्पायइ अणत्थं ॥ २९ ॥ सूरोवि कयत्थिज्जइ खंडिज्जइ सबयावि रायावि । राहुसिरीए इव महिलयाए कलुसस्सहावा ॥ ७३० ॥ अंतोहुंतुम्मीलियपकामरसपूरिया परिब्भमरी । गयणं व कुलं मइलइ महिला नवमेहमालब ॥ ३१ ॥ दुहन्ता कुडिलगई परमपियविवज्जिया सुइविहूणा । कस्स न भयमुप्पायइ नियंबिणी सप्पिणीव सया ॥ ३२ ॥ कज्जम्मि जाण कीरइ धणज्जणं चोरियाइ काऊण । ताणेरिसं सरूवं ता “पज्जत्तं ममित्थीहि " ॥ ३३ ॥ असरिसवेरग्गविभावणाव सुल्लसियगुरुतरविवेए । अस्सोवहार पुरिसे एवं परिभावयंतम्मि ||३४|| पविसिय हिंमि गहिऊण हलकुसिं पइगिहे खणइ खत्तं । " किमकज्जं वा वज्जियमज्जायाणं महिलियाण” ||३५|| गंतुं मज्झे धाहावए जह धाह धाह धाहत्ति । पविसिय चोरेणं ठक्कुरो हओ नीयमाभरणं ॥ ३६ ॥ तं सोऊणं सहसा ससंभ्रमा साउहा सपाइका । ठक्कुरपुत्ता परिवेढयन्ति गिहमुग्गहक्करवा ॥ ३७ ॥ तुरयकुडिप्पमुहाई ठाणाइं नियंति केवि दीवकरा । अन्ने उ अंनिसंति य चोरपयं पयइनिउणनरा ॥ ३८ ॥ दहूण गिहावेढं हयावहारी विचिंतए एवं । मह संकडमावडियं छुट्टिस्सं ता कहं इहि ॥ ३९ ॥ न तरेमि विणिग्गंतुं भडपडलावेढियाओ भवणाओ । दुक्कम्मभरावरिओ नरट्ठाणा जीव || ७४०|| जइ देमि गिहा बाहिं निग्गयसाहाए झत्ति झंपमहं । ता वियडे अयडम्मि पडामि सुहडोछ नि भन्तं ॥ ४१ ॥ नूणं मह हयहरणप्पवेसभवपाव पडल विडविस्स । इह मरणेणं कुसुमं फलं तु होही नरयपडणं ॥ ४२ ॥ मं दट्टुमिमे गोसे चोरोत्ति विचिन्तिउं हणिस्सन्ति । ता तमतिरोहिओ वडठिओवि अप्पं पयामि ॥ ४३ ॥ इय चिन्तिय तेणुत्ता ते तुम्हाणं कहेमि सर्वपि । वृत्तंतं मं पच्छा मुंचेज्जहवा हणेज्जाह ॥ ४४ ॥ तं सोउं तेह्रुत्तं इट्ठि - धूपपूजायां धूपसुंदरकथा ॥ २१ ॥ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवि हु कहे तो तेण । कहिओ आमूलाओ नियओ तीए य वृत्तो ॥ ४५ ॥ भणियं च जइ न पत्तियह मज्झ ता नियह कूवयस्संतो । सुहडं धणुतूणीराभरणजुयं संपयं चैव ॥ ४६ ॥ तं सोउं पक्खित्तो तेहिं वरत्ताए दीवओ कुवे । सच्चविओ य तरंतो जहकहियगुणो मओ सुहडो ॥ ४७|| कुवाओ तमायड्डिय गहिऊणाभरणमुज्झियं मडयं । “निजीवेण वि क जेण तयं धिप्पए नन्नं ॥ ४८ ॥ एयविरहं न सत्ता सहिउंति विचिंतिउंव पुत्तेहिं । लहुमायावि हु बद्धा सद्धिं मडएण कुविएहिं ॥ ४९ ॥ तंपि विणिग्गहणिजो चोरोत्ति पयंपिओ हयहरो वि । “पावन्ति चोरजारा जइ वा किं | कत्थई पूयं । ७५० ॥ नवरं तुमए सबंपि साहियं तेण तं विमुक्कोसि । “उवयारओ सदोसोवि मुच्चए जेणिमा नीई" ॥५१॥ मडयं चडावियं सूलियाए निद्धाडिया य लहुजणणी । " रोसो न मयरिउम्मिवि गच्छइ किं पुण जियंतंमि” ॥५२॥ धरिऊण सबहुमाणं दिणत्तिगं अस्सहरयपुरिसंपि । पिउमय किच्चं काउं सम्माणेउं विसज्जन्ति ।। ५३ ।। अप्पं संपइ जायंव जममुहा निग्गयंव मन्नंतो । वश्चंतो नियगामे पत्तो सो इह अरंनंमि ॥ ५४ ॥ पेच्छइ उस्सग्गठियं मुणिमेगं मुत्तिमंतमिव धम्मं । पञ्चक्खं पसमंपिव संकेयंपिव मुणिगुणाण ॥ ५५ ॥ पुषुप्पन्नविराओ अवलोइय सो मुणिं ठिओ हेट्ठो (हिट्ठो ?) । दारिद्दभरकंतो नरोव संपत्तरयणनिही ॥ ५६ ॥ तो तं पणमइ तच्चलणकमलमिलमाणभालफलओ सो । सहलत्तं कलयंतो सजम्मजीवियनरत्ताणं ॥ ५७ ॥ आबद्धपाणिपउमो पुरओ उवविसिय जंपए एवं । रन्ने अमाणुसे पहु किं तवह तवंति मह कहह ।। ५८ ।। पारियकाउस्सग्गो उवविसिउं तस्स साहए साहु । खेयरमुणी महायस अहमिह आयाविडं पत्तो ॥ ५९ ॥ जेणमिह तिरियविरइयकयत्थणा हणइ मज्झ दुक्कम्मं । वेज्जोवइट्ठपरमोसहं व रोयं समग्गंपि ॥ ७६० ॥ तेत्तं पहु मह कहह कंपि धम्मं गिहत्थजणजोग्गं । "तीरइ निबाहेउं जो सो उक्खिप्पर भारो” ॥ ६१ ॥ आह मुणी गिहिणोवि हु जायड़ धम्मो जिनिंदपूयाए । सा होइ अट्ठभेया अट्ठमयट्ठाणनिम्महणी ॥ ६२ ॥ नेवज्जधूवदीवय अक्खय धूपपूजायां धूपसुंदरकथा : Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अनन्त - नाथचरि त्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् ॥ २२ ॥ 1 फलसलिलवासकुसुमेहिं । पूयंति जे जिणं ते पुज्जा तिजयस्स वि हवन्ति ॥ ६३ ॥ कीरंति एक्केकावि हरइ गुरुरोगसोगोगचे । किं पुण सबाओ वि हु विरइज्जंतीड भत्तीए ॥ ६४ ॥ सबाओवि असत्तो काउं जइ कुणइ धूवपूयंपि । ता धूवेण समं सो धुवं नियं दहइ दुक्कम्मं ॥ ६५ ॥ उज्झतधूवभवधूमधूविओ इव सुयंधसवंगो । जायइ भवंतरेवि हु जीवो उक्खिवियजिणधूवो ॥ ६६ ॥ तं सोउं सो जंपर पहु नूणमहं कयत्थजणपढमो । मरणंतबसणविणिग्गएण तं जेण संपत्तो ॥ ६७ ॥ इय भणिय पणमिय मुणी लग्गो सो निययगाममग्गमि । गच्छंतो संपत्तो गामे सिरिसारनामंमि ॥ ६८ ॥ तंमि तवणीयकलसं नहग्गलग्गं जिणालयं नियइ । सिंगग्गसंगिनवतरणिमंडलं उदयसेलंव ॥ ६९ ॥ तं दहं सो चिंतइ दिणदुगसंबलयदविणकीएण । धूवेण जिणं पूइय पुन्नप्पसरं समज्जेमि ॥ ७७० ॥ इय परिभाविय गहिउं कप्पूरागरुविमिस्सियं धूवं । पत्तो जिणालए पेच्छिउं जिणं हरिसिओ दूरं ॥ ७१ ॥ उल्लसिरमणो संंतलोयणो वित्थरन्तरोमंचो । पसरंतभत्तिभावो धूवं उक्खिवइ जगगुरुणो ॥ ७२ ॥ तयणु मणुयत्त नियजम्मजीवियवाण सहलयं कलिउं । वारं वारं भूमिलियभालमभिनमइ जिणनाहं ॥ ७३ ॥ संचलिओ नियगामे पत्तो य तर्हि पमुक्कअन्नाओ । तम्मि वि भवम्मि रिद्धी जाया से धम्ममाहा ॥ ७४ ॥ संपत्तआउअंतो ज्ञातो अमरो सणकुमारे से । नायं च धूवपूयाए अत्तणो तेणममरत्तं ॥ ७५ ॥ परिभावइ य जहाहं करेमि जिणमंदिरं जमिक्खेडं । जायइ भवंतरे मे बोहित्ति विचितिडं तेण ॥ ७६ ॥ रइयं जुगाइजिणजुयमुत्तुंगं जिणहरं कणयकलसं । दुट्ठदमयाभिहसुरो आइट्ठो तस्स रक्खत्थं ॥ ७७ ॥ जिणचवणजम्मदिक्खा केवलनिवाणगमणदिवसेसु । समगममरेसरेण भत्तीए महूसवे कुणइ ॥ ७८ ॥ इय समुवज्जियसुकओ भुतुं सुरलोयसंभवसुहाई । चविय तओ इह जाओ एसो हं तुम्ह पच्चक्खो ॥ ७९ ॥ ता एयं जिणमंदिरमवलोइय | सुमरिया मए जाई । जह जिणधूवुक्खेवो जाओ कल्लाणद्देऊ मे ॥ ७८० ॥ तं सोऊणं मंडलियमंतिणो बिंति जयइ जिण 1 धूपपूजायां धूपसुंदरकथा ॥ २२ ॥ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 धम्मो । अप्पस्स वि जस्स कयस्स हुंति महईओ रिद्धीओ ॥ ८१ ॥ तयणु कुमारेण रिसहस्स सामिणो भत्तिपुलयकलिएण । पणमिय विहिओ अट्ठाहियामहो गरुयरिद्धीए ॥ ८२ ॥ तो चउरंगचमूचयसंचाराऊरियक्खमावीढो । अभंलिहधवलहरे संपत्तो नियपुरे कुमरो ॥ ८३ ॥ ऊसियसिद्धयोहे निम्मियमंचाइमंचकयसोहे । पविसइ पुरम्मि कुमरो विल| सिरसिंगारजियअमरो ॥ ८४ ॥ गंतुं सहाए पणओ पिउणो पयसयदलं तओ तेण । आलिंगिऊण कुसलप्पउत्तिमापुच्छिओ पुत्तो ॥ ८५ ॥ सो आह ताय मह तुह पसायसुहियस्स सबया कुसलं । इय जंपिय उवणीया पिउपुरओ तेण | सन्तुसिरी ॥ ८६ ॥ पणओ सत्तुसुओवि हु तस्स कओ राइणावि सम्माणो । “पणयम्मि वच्छलच्चिय पहुणो सम्मिवि निए " ॥ ८७ ॥ पणयाए वहुयाए भव पुत्तवइत्ति जंपियं रन्ना । "भणइ परे वि हियं चिय गरुओ कि माणुसे न निए" ॥ ८८ ॥ कइवयदिणावसाणे रज्जम्मि निवेसिओ सुओ रन्ना । पुत्तं मुत्तुं नन्नस्स होइ सबरससामित्तं ॥ ८९ ॥ सुवि हियसूरिसयासे गहिया दिक्खा निवेण रिद्धीए । “इहलोइयं जहा तह परभवकज्जंपि कुणइ गुरू" || ७९० ।। चरिय तवं उप्पाडिय केवलनाणं निवो सिवं पत्तो । “किमसज्यं वा दुक्करतवस्स भावेण विहियस्स" ॥ ९१ ॥ नवनिवईवि नयपरो पयाड पालइ अभिद्दवइ दुट्ठे । वंदइ गुरुणो पूयइ जिणेसरे मन्नए मित्ते ॥ ९२ ॥ साहम्मियवच्छलं कुणइ पयट्टावए अमारीओ । किं बहुणा तित्थसमुन्नईकरं कुणइ सर्व्वपि ॥ ९३ ॥ तप्पुन्नपगरिसागरिसियब आगंतुमवणिवइणो तं । सेवंति सबदेसुब्भवावि गुरुभत्तिरायण ।। ९४ ।। तेणावलोइओ जो मन्नइ सो अप्पगममयसित्तं व । आभासिओ पुणो |तिहुयणेकरज्जाहिसित्व ॥ ९५ ॥ एवं बहुकालं पालिऊणमकलंकरज्जमवणिवई । कुमरं पयावसाराभिहं ठवेऊण रज्जमि ॥ ९६ ॥ निग्गंथगुरुसमीवे दिक्खं घेत्तुं कयुग्गतवचरणो । उप्पन्न विमलनाणो संपत्तो मोक्खमक्खेवा ॥ ९७ ॥ जह धूपपूजायां धूपसुंदरकथा Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् दीपकपूजायां भुवनप्रदीपकथा ॥२३॥ धूवुब्भवपूया जाया एयस्स मोक्खसोक्खकए । तह अन्नस्सवि जायइ ता भवा तीए उज्जमह ॥९८॥ धूपपूजा 35555 एसो हु धूवपूयाए साहिओ धूवसुंदरो इहिं । भुवणप्पईवनिवई दीवयपूयाए निसुणेह ॥ ५९॥ 95 फफफ उल्लसियरायसिरिकरणसुंदरं ललियविलयपरिकलियं । अस्थि सरग्गामजुयं गीयंपिव भुवणविजयपुरं ॥ ८००॥ कलहसियरायभवणं कलहसियविरायमाणसुयणं जं। कलहरियरहियसलिलं कलहरियउत्तप्पहीणजणं ॥ १ ॥ पूरिय पउरपयासो सवुत्तमनिद्धपत्तआहारो। दीवोब महीनाहो कुलप्पईवोत्ति तत्थत्थि ॥ २॥ सरहोवि विउलवच्छो विदीहबाहोवि विलसिरगओवि । सारंगोवि न तिरिओ उत्तमपुरिसोच्चिय सया जो ॥ ३॥ गोरीवि अभीमपिया सायरतणयावि अजडसयणसिया । तस्सत्थि धारिणिपिया सईवि जाणिंदपियभोया ॥ ४ ॥ तीए समत्थि परिपंथिहत्थिकुलदलणकेसरिकिसोरो । भुवणप्पईवनामो कुमरो गिरिसोब गुरुकित्ती ॥५॥ अपवउदयजुत्तो अब्भसिअकलोय बीयचंदोब । जो नवरति(वि)व पुवाभासी जयजणसुहकरो य ॥ ६ ॥ समवयवसालंकारसारसामंतमंतिपुत्तेहि । सद्धिं बंधुरकीलं कुछतो गमइ कालं सो ॥ ७ ॥ कइयावि कसिणअट्ठमिनिसीहसमयंमि जग्गए जाव । तो आयनइ आउज्जतालगीयस्सरं कुमरो॥८॥ तस्सरमणुसरमाणो दिहिँ पक्खिवइ मुक्पल्लंको । नियइ दुवालसभुयं पेच्छणयपरं नरं तिसिरं ॥ ९॥ दोहिं करेहिं पडहं दोहिं मुइंगं च दोहि तालाओ । वीणं दोहिं वंसं च दोहिं हत्थेहिं | वायंतं ॥ ८१० ॥ नट्टवसुवेल्लिरभुयकरजुयविन्नाससंचरं तत्थ । घणमणिकुंडलमंडियमहिलाएक्काणणसणाहं ॥ ११॥ बीएण मणोमयरायवासणावसविमुक्काफुक्केग । रमणीमुहेण वंसं वायंतेणं विलसमाणं ॥ १२ ॥ तइएण महुरसरगाममुच्छणाजणियसवणजुयसोक्खं । उग्गायतं गीयं मज्झट्ठियपुरिसवयणेण ॥ १३॥ 'कुलयं ॥ इय अञ्चब्भुयअद्दिद्वपुवपेच्छणयपेच्छणुत्तालो । वंचित्तु पमत्ते अंगरक्खभडचेडपमुहनरे ॥ १४ ॥ नवमेहडंबरवरपावरणालक्खि ) 9559 ॥ २३ ॥ 1995 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूजायां 19545555HRESSESSISTERESTHA यंगसंठाणो । करयलकयकरवालो वासहरा निग्गओ कुमरो ॥ १५॥ 'जुयलं' ॥ तं पेच्छंतो गच्छइ उच्छलियअतुच्छको- दीपक| उउकरिसो । चिन्तइ य अहो एवं भुवणंतवहिभवं किंपि ॥ १६ ॥ जं कुचकलियमेगं नरस्स मुहमित्थियाण पुण दोन्नि । गेवेजयमणिकुंडलभालट्ठियतिलयकलियाई ॥ १७ ॥ सुवंति इह भविस्सासत्थेसु दसाणणत्तिमुंडादो । नवरं ते भुवनपुरिसञ्चिय एसो नरनारिरूवो उ ॥ १८॥ इय चिंतंतो पत्तो रायंगरुहो वि तस्समीवंमि । सोवि हु पच्छाहुत्तं गच्छइ प्रदीपकथा करणकमच्छउमा ॥ १९॥ थोवप्पसरप्पउरावसरणकरणकमे कुणंतेण । तेणाहियहियहियओ दूरं नीओ नरिंदसुओ ॥ ८२० ॥ तदंसिय अवरावरविन्नाणालोयवियलियविवेओ। न मुणइ नयरं दूरे न गणइ मग्गस्समलवंपि ॥ २१ ॥ एत्थंतरम्मि सहसा सो नट्टवरो सरूवमुझेउं । उक्खायनिसायअसी जमोव जाओ भडो कुद्धो ॥ २२ ॥ जंपइ रेन दुट्ठाहम कुमार तं सरसु देवयं इडं । मा भणसु पमत्तो हं विणासिओ केणइ छलेण ॥ २३ ॥ तं निसुणिउ कुमारो चिन्तइ सुरअसुरनहयरन्नयरो। कोवि इमो मह वेरी छलेण जेणाणिओहमिह ॥ २४ ॥ वीसासिऊणमेवं जो जायइ घायगो न मोत्तयो । हंतवोच्चिय भन्नइ सो नूणं नीइसत्थेसु ॥ २५ ॥ इय चिन्तिय आयड्डियखग्गो तं हकए निवसु ओवि । “निकरिओ इयरोवि हु रूसइ किं खत्तिओ नेव" ॥२६॥ दोन्निवि वग्गणकरणकमभमणुब्भामियासिदुद्धरिसा । || निप्पसरप्पहरपरा जुझंति समच्छरुकरिसा ॥ २७ ॥ दंसेउं सिरघायं मोत्तुं पाएसु दिति मुनईओ (?) । निविसिय उच्छ लियावसरिउं च दोन्नि वियवंति ॥ २८ ॥ नेगोवि जयं पावइ दोण्हवि सत्थस्समप्पवीणत्ता । न समिति य जं ते | निच्चं चिय विजयसत्थसमा ॥ २९ ॥ अन्नोन्नखग्गसंघट्टभग्गवारंगखुडियअसिफलया । करकयतिक्खग्गखग्गघेणुणो ते |पुणो मिडिया ॥ ८३० ॥ मुक्कासिघेणुघायं वंचइ करणक्कमेण कुमरो से। रोसेण कुमरछुरियापहारलक्खं हरइ सोवि ॥३१॥ अवरोप्परवामकरप्पहारपडियासिघेणुणो दोवि । जुझंति निजुज्झेणं केसग्गहबाहुबंधेहिं ॥ ३२ ॥ निद्दयकेस Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् दीपकपूजायां भुवनप्रदीपकथा ॥२४॥ 95595959555559595959555555HISHES गहबाहुबंधकरघायजज्जरियदेहा । निवडंत्ति दडत्ति झडत्ति उहिउँ पुणरवि भिडन्ति ॥ ३३ ॥ निदुरकुमारपायप्पहारवच्छय(त्थ)लताडिओ सुहडो। पडिओ धसत्ति घुम्मन्तनेत्तओ भूमिवट्ठम्मि ॥ ३४॥ तो तब्भुयजुय उवरिं दाउं नियपयदुर्ग धरियकेसो । घेत्तुं धराए छुरियं जा तस्स सिरं लुणइ कुमरो॥ ३५॥ ता तेण नमो अरिहंताणं इच्चाई पंचपरमेट्ठी। सरिया असारसंसारसायरुत्तारणतरिव ॥ ३६॥ तं सोउं हा हा हा साहम्मियमारणे महापावं । काऊण नूण नरए उप्पयंतो दुहोहेहं ॥३७॥ इय जंपिरेण खामिय मुक्को सहसत्ति निवसुएण भडो। “अइकुवियाणवि करुणा जायइ जइ वा कुलीणाण" ॥३८॥ सो चिंतइ नररयणं एसोजमणेण मारणपरोवि। मुक्को वेरीवि अहं "गुरूण गणणा न रिउकीडे॥३९॥ होइ न सिरम्मि सिंगं अहमाणं उत्तमाण य नराण । किंतु अकजे कजे य ते मुणिज्जति वटुंता" ॥८४०॥ एएण जीवियचं दाउं दिन्नं समग्गमवि मग्गं । जायइ रजाईणं जं जीवंताणमुवओगो ॥४१॥ भुवणम्मिवि उवयारो न पाणदाणाओ सम| हिओ अत्थि । पचुवयरिउमसत्तेहिं निण्हविजइ न सो जेण॥४२॥ थेपि हु उवयारं मंनइ पुरिसो गिरिंदगरुययरं । निण्वइ खलप्पयई पुरिसो उवयारलक्खंपि ॥४३॥ ता आराहेयवो एस मए देवयव सुगुरुत्व । जणउब जाव जीवं परोवयारप्पसत्तमणो ॥ ४४ ॥ इय चिन्तिय उठेउं पणमिय तं पायपउमजुयलग्गो । जंपइ मह अवराहं खमसु महायस कयपसाओ ॥ ४५ ॥ जइ न तुम मुंचतो संपइ मं पुरिसरयण हुँतो हं। ता मंसगिद्धगिद्धाइयाण भक्खं छुहंताण ॥४६॥ इहि तं चिय सरणं आमरणं तंपि मज्झ वज्झोवि । जमहं न हओ तुमए करुणारसपूरियमणेण ॥ ४७ ।। दुटुं तं खामंतं जंपइ कुमरो अहो महासत्त । तुमए विवेइणावि हु किमिममवेरेवि पारद्धं ॥४८॥ जो जिणमए थिरमणो सुमरइ मरणंमि पंचपरमिटिं । तस्सेयारिसनिग्घिणकम्म जायइ अहो चोज ॥४९॥ जइ मह कहणिज्जमिणं सुपुरिस उवविसिय कहसु ता एत्थ । अब अकहणिजं ता अच्छउ हियइच्छियं कुणसु ।। ८५०॥ सो भणइ जस्स तणया पाणावि ॥२४॥ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनन्त० ५ हु तस्स किं न कहणिज्जं । इय जंपिय उवविसिउं सो कहइ निविट्ठकुमरस्स ।। ५१ । गुरुनयपत्तछाओ घणकसिणसुतारसारसरलक्खो । सुयणो भरहखेत्ते वेयड्डो नाम अस्थि गिरी ॥ ५२ ॥ तम्मि प्फुरंतमणिगणरहनेउरचक्क वालर मणियणं । रयणमयं अस्थि पुरं रहनेउरचक्कवालंति ॥ ५३ ॥ दरियरिउवारवारणगणकुंभवियारणेक्कखरनहरो । तं परिपालइ सिरिश्यणसेहरो नहयराहिवई ॥ ५४ ॥ तस्सत्थि सबसुद्धंतकंत कंता हिवत्तअहिसित्ता । हारस्सिरिब हारस्सिरी पिया वित्तमुत्तगुणा ॥ ५५ ॥ अन्नोन्नरम्मपेम्माणुबंधवर्द्धतमणपमोयाण । पंचविह विसयसत्ताण ताण कालो अइक्कमइ ॥ ५६ ॥ कइयावि हु रयणविमाणसेणिसिंगारियंबरो चलिओ । नंदीसरंमि सिद्धप्प डिमानमणाय खयरिंदो ॥ ५७ ॥ दाहिणिदिसिगयणेणं गच्छंतो नियइ सम्मुहमहीए । मणिमंदिरपुरबाहिं निगच्छंतं जणसमूहं ॥ ५८ ॥ तस्संतोनिलतरलद्वया लिझणहणिर किंकिणिगणाए । सिवियाए समारूढं अवलोयइ तरुणनररयणं ।। ५९ ।। दितं किवणवणीमगजायगदीर्णघदुत्थलोयाण । वछाविच्छेयकरं दाणे मणिकणयरित्थाई ॥। ८६० ।। अवलोयतं पुरतो लउडारसरासए सपेच्छणए । उबवूहिज्जंतं जय जीव तं चिरं इय जणासीहिं ॥ ६१ ॥ दाहिणपास महा सण निविट्ठजणएण संसुवयणेण । समलंकियमप्पंतेण दाणक्कज्जम्मि कणयाई ॥ ६२ ॥ वामद्वाणपरिट्ठियगरिट्ठ विट्ठरनिविट्ठजणणीए । कयलवणुत्तारणयं सोयं सुतंविरच्छी ॥ ६३ ॥ वज्जंतढक्कदुक्का भेरीभंकारभरियभुवणयलं । रम्मारामुज्जाणंमि गुरुयरिद्धीए संपत्तं ॥ ६४ ॥ ॥ कुलयं ॥ को एस किं करिस्सर इह इय बुद्धीए नहयरवईवि । तत्थुत्तिन्नो कंचणकमलगयं केवलिं नियइ ।। ६५ ।। पालियसमग्गसत्तं विरइयछज्जीवकायरक्खंपि । सोमंपि मित्तरूवं सुरयपुरं बंभयारिंपि ॥ ६६ ॥ दहृण केवलिं नहयरेसरो भत्तिनिब्भरो नमइ । “धम्मत्थं पवित्तीओ जइ वा धम्मीण होन्ति सया " ||६७ ॥ सिवियाए समुत्तिन्नो पणयपहू माइपिइअणुन्नातो । परिहरियालंकारो संवेगुलसियरोमंचो ॥ ६८ ॥ सो विज्जाहरवइणो अवलोयंतस्स भक्तिभस्यि दीपकपूजायां भुवनप्रदीपकथा Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीपक श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् पूजायां भुवन प्रदीपकथा ॥२५॥ 99595959555555555555559 मणो । समयविहिणा मुणिंदेण दिक्खिओ विहिय सिरलोयं ॥ ६९ ॥ गहणासेवणसिक्खाकहणते नहयरेसरो नमिठं । पुच्छइ किं वेरग्गं जमिमो मुणिनाह पवइओ ॥८७० ॥ आह पहू आयन्नसु खयराहिव अत्थि एत्थ नयरम्मि । असमप्पयावसारो पयावसारोत्ति नरनाहो ॥७१॥ अवरं च एत्थ निवसंति दोन्नि दुन्नयपराओ महिलाओ। एक्काए पवंचमई नाम बीयाए पुण कुमई ॥ ७२ ॥ भज्जावईण विहडियपेम्माण कुणंति पेम्मसंधाणं । अञ्चंतसुघडियाणवि तं विहडावंति अन्नेसिं ॥ ७३ ॥ उच्चाडणविट्टेसणथंभयवसियरणमारणाईसु । पावकिरियासु सययं वटुंति पमोयपुंनाउ ॥ ७४ ।। कइयावि दोवि दुन्नयजायत्थारूढगरुयगबाओ । रिउसेणाओव सज्जियसराओ विवणीए मिलियाओ ।। ७५ ।। अन्नोन्ननिण्हवुप्पंनमंतुवसविहियगुरुविवायाणं । ताण सयासे मिलिओ बहुओ लोगो कुतूहलओ ॥७६ ॥ महफाडियं न सक्को वि संद्धेउ तरइ इइ कुमइभणिये । इयराह तहा सीवेमि जह न से होइ संधीवि ॥ ७७ ॥ इय विवयंतीओ जणेण ताओ नीयातो मंतिसंनिज्झे । विनायवइयरेणं तेणवि नरवइसमीवंमि ।। ७८ ॥ नाऊण तप्पइन्नं राया विम्हिअमणो | पयंपेइ । कुणह इममिक्कवारं एयत्थे तुम्हमभउत्ति ॥ ७९ ॥ कुमई जंपइ दिणपंचगस्स मज्झमि फोडिइस्सामि । सीविस्सामि तमियराह पहु अहोरत्तमज्झवि ॥८८०॥ इय विरइयप्पइन्नाओ ताओ नमिउं निवं दुयं दोवि । कयजणअच्छरि-5 याओ पत्ताओ नियनियगिहेसु ॥८१॥ कुमईए चिंति एत्थ अत्थि सुप(व)सुरित्थवित्थारो। नामेण अत्थसारो गरिट्ठसिट्ठी सरल दिट्ठी ॥ ८२ ॥ नाययरो बहुलाहो वि कित्तिसारोत्ति अत्थि तस्स सुओ। उज्जलमाणसमुत्तिअपत्तसंतावलेसोवि ॥ ८३ ॥ नवजुब्बणुल्लणाए अभग्गसोहग्गसंगयंगीए । कंतिमइए पियाए सह विलसइ सो सया सुहिओ ॥८४॥ नवरं कंतिमईए सरूवसिंगारगरुयगवाए। आलवियाए वि अहं न नया संभासियाविय नो ॥ ८५ ॥ ता तप्पइणो कीएवि कुरंगनयणीए सह विहिय घडणं । साहेमि निवस्स जहा तीए महंतं दुहं होइ ॥ ८६ ॥ तप्पइणो पुण अयसो SSSSSFERESTHETLESSFUSHISHESEY Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीपकपूजायां भुवनप्रदीपकथा 125555555555555SSSSHALIFE संतोसो मज्झ निवइणो दविणं । "अहव कयावन्नाणं अणत्थउप्पायणं सस्सं" ॥ ८७ ॥ ता एत्थ धणिधणेसरतणया तरुणी धणावली नामा । असई सयंपि ता तग्घडणं सह तेण काहामि ।। ८८ ॥ इय चिंतिय तवेलं पत्ता सा कित्तिसारसन्नेज्झे । काऊण तमेगंते जंपए महुरक्खरगिराए ॥ ८९ ।। सुहय तुमं पइ जंपेमि किंपि मा कुणसु पत्थणं विहलं । सो जंपइ ता संपइ साहसु सा भणइ निसुणेसु ॥ ८९० ॥ इह अत्थि धणेसरसेट्ठिणो सुया कमलकोमलोरुजुया । नियरूवनिजियरई नामेण धणावली बाला ॥ ९१ ॥ नियभवणमत्तवारणगयाए तीए कयाइ सच्चविओ। आगछन्तो तं रम्मरूवजियरइवइविलासो ॥ ९२ ॥ सिंगारसस्ससमवयवयस्ससंदोहसोहियउर्वतो। उत्तमउत्तुंगतुरंगवग्गणक्खणिय-15 मणवित्ती ॥ ९३ ॥ अनिलंदोलणविलसिरसिहिपिच्छच्छत्तजायछायसुहो । हेलाए कीलयंतो जंपाउंपाहिं हयरयणं ॥१४॥ चलसरलधवललीलालसलोयणजुयलबहलजोण्हाए । परमामयवुढिपिव विकिरंतो सेमहरं तुरए ॥ ९५ ॥ सियसोणसाममणिमयभूसणसयभूरिकिरणनियरेहिं । रयणाभरणेहिं पिव अलंकरंतो तुरंगपि ॥ ९६ ॥ दळूण तुम उम्मीलमाणनवनेहनिद्धनयणेहिं । आदिट्ठिपहं अवलोइओ बहुं तीए अवियण्डं ॥ ९७ ॥ सोहग्गरयणरोहण संमोहणमयणबाणसम तुमए । दिट्ठिपहाइक्कते वियंभिओ तीए विरहभरो ॥ ९८ ॥ चिंतंमि तुम चित्ते तुहागिई तुज्झ नाममालवणे । सिविणे समागमो ते सा बाला तम्मई जाया ॥ ९९ ॥ विरहानलजालावलिजलिरसरीराए तीए पारद्धो। संसुवयंसीहिं सयं सययं सिसिरोवयारभरो॥ ९००॥ सतडकारं हारे तणुतावेणं फुडंति मुत्ताओ। सिमिसिमिय सुसन्तिच्चिय नवकुवलयनालमालाओ ।। १॥ घणचंदणागुरुरसछडाउ छंकारपुश्वगं तीसे । तचंगसंगमेणं लग्गंतीओ वि परिसुसंति ॥२॥ गोसावयस्सायस्संदिसाहिसेणिव मुयइ अंसूणि । भंजइ देहं जिंभाउओ भयइ परिभमइ एमेव ॥ ३ ॥ एवमवत्था सा हयरयणं रंपझंपाहिं पाठांतर. २ स मणहरतुरए पाठांतर. HTHANEYASHHHH Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीपक श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् पूजायां भुवनप्रदीपकथा 15555555HRSH तस्सहीहिं मह दंसिया तओ तीए । तं साहियं समग्गंपि तो अहं एत्थ संपत्ता ॥४॥ ता सुहय तुज्झ संगमआसच्चिय धरइ जीवियं तीए। अवहीरियाए तुमए मरणंचिय जेणिमं भणियं ॥ ५ ॥ "दूरयरदेसपरिसंठियस्स पियसंगमं वहंतस्स । आसाबंधोच्चिय माणुसस्स परिरक्खए जीयं" ॥ ६॥ ता मह उवरोहेणं अहवा तज्जीवियवकरुणाए । तं सरसु एक्कवारं दक्खिन्नदयाओ जं गरुए ॥ ७॥ इय जंपती दंतग्गधरियपंचंगुलं नमिय तस्स । तच्चरणमिलियभाला ठिया चिरं चिंतइ तओ सो ॥ ८ ॥ अकलंक मज्झ कुलं सावि पुणो पोढराइणी बाला । एसा वि विणयपणयाज | किं काउं जुज्जए ता मे ॥९॥ एगत्य अकज्जभयं अन्नत्तो मरइ सा मए मुक्का । पासद्गेवि वलग्गइ डमरुयगंठिब मज्झ मणं ॥ ९१० ॥ होयत्वं तं होउ ताणुरत्ताए विरहविहुराए । काहं समीहियमहं इय चिंतेउं तओ तेण ॥११॥ वज्जेउ मज्जायं मयलेउं निम्मलं जसप्पसरं । मोत्तुं कुलाहिमाणं अणुसरिऊणं कुसीलत्तं ॥ १२॥ चइऊणं सच्चरिय अंगीकाऊण नरयगइगमणं । उज्झेउं सद्धम्म भणियं जं भणसि तं काहं ॥ १३ ॥ तं सोउं तीउत्तं एसो विहिओ महापसाओ मे । इय जंपिऊण पत्ता पासंमि धणावलीए सा ॥ १४ ॥ तं पइरिक्के काउं पयंपए सुयणु सुणसु वयणं मे । सा आह अंब जं किंपि जंपियवं तयं भणसु ॥ १५ ॥ तीयुत्तमत्थि इह अस्थिसत्थपविइन्नअस्थिवित्थारो। नामेण कित्तिसारो पुत्तो वणिअत्थसारस्स ॥ १६ ॥ रूवेण मयणमुत्ति कंतीए कलावई मईए गुरुं । सकं सिंगारेणं जो जिणइ धणेण धणयंपि ॥ १७ ॥ तेण तुमं सच्चविया नियमंदिरमत्तवारणासीणा । लीलालोयणलोयणजोण्हाभरपूरियदियंता ।। १८॥ दिहाएवि सुयणु तए मयणसरप्पयरपहरजजरिओ। भवणम्मि कहंकहमवि संपत्तो सो अणुप्पहसो ॥ १९ ॥ तं विरहज्जरविहुरं दहइ जलद्दावि जलणजालव । संताविति ससिकरा खयरंगारव तस्स तणुं ॥ ९२०॥ एमेव हसइ बालोब नियइ सुन्नं पिसायगहिउव्व । नच्चइ गायइ पलवइ मइरामयमत्तमुत्तिव ॥ २१॥ सबप्पणा पराय Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीपक पूजायां भुवन प्रदीपकथा त्तमाणसो दंसिओ वयस्सेण । मह कहिऊणं तुह दंसणाणुरायाओ वियलत्तं ॥ २२ ॥ तो तं संठावेउं तुह पासे हं समागया सुब्भु। ता नररयणस्स तुम समीहियं कुणसु पसिऊण ॥ २३ ॥ तं सोउं सा असई नियमणऊम्मीलमाणउम्माया । जंपइ तुहोवरोहा अंब अकजंपि हु करिस्सं ॥ २४ ॥ तो तीए जंपियं पुत्वगोउरदारदेसदेवउले । आगंतुं मिलियब निसाए पहरस्स तस्स तए ।। २५ ॥ एवं निसुय तदुत्तीए तीए गंतूण कित्तिसारते । नीओ देवउले सो धणावलीविय समणुपत्ता ॥ २६ ॥ कुमईए जंपियं इह पविसिय मज्झम्मि रमह सच्छंदं । लोयागमणालोयणपरा दुवारेहमच्छिस्सं ॥ २७ ॥ तो मज्झपविढेसुं तेसुकंठाविसंठुलंगेसु । तीए कहियं आरक्खियस्स गंतूण तं ज्झत्ति ॥ २८ ॥ तो संनद्धधणुद्धरअसिखेडयकरभडेहिं चउपासं । परिवेढिय देवउलं स आह गोसे धरिस्समिमे ॥ २९ ॥ नो निग्गंमप्पवेसा कस्सइ देया इहत्ति भणिय भडे । गंतूण मंतिनिवईण कहिय तबइयरं सुत्तो ॥ ९३० ॥ दट्ठणं सेविसुओ देवउलं घडियभडढावेढं । उन्भूयभूरिभयवेविरंगजट्ठी विचिंतेइ ॥ ३१ ॥ पेच्छ जहा मज्झ महावसणमिणं दुस्सहं समणुपत्तं । जीवियमरणसरूवे संदेहे जेण पडिओहं ॥ ३२ ॥ "पुबिल्लभवसमुब्भवपावप्पन्भारभावओवस्सं । सुनयापि अवाया इंति न किं कयअनीईणं" ॥ ३३ ॥ गोसे बंधेउं मं नेही आरक्खिओ विवणिवीहिं । जणयाइजणसमक्खं विडं बिही विविहवियणाहिं ॥ ३४ ॥ तुच्छतरविसयलालसमणस्स मह केत्तियं इमं दुक्खं । पररमणिरमणपावा णरए तमणंतसो होही ॥ ३५ ॥ न कयाइ कओ अनओ मए न अनईहिं सह पसंगोवि । एयं चिय गोत्तक्खयहेऊ पढमं कयमकजं ॥ ३६ ॥ अपविणासाय महापावुल्लासाय अयसपसराय । खलओकरिसाय मए एयं दुबिलसियं विहियं ॥ ३७॥ मरणं दारिदं वा विएसवासो व सयणविरहो वा । हुंतु वरं एयाइं मा पुण एसो कुलकलंको ॥ ३८ ॥ न कुणंति जे परिक्खिय कजं ते दुक्खमंदिरं हुंति । पहसिज्जंति जणेणं मइलिजंतिय अकित्तीए SSSSSSSSSFET Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् LUELLEREDEVEL दीपकपूजायां भुवनप्रदीपकथा ॥२७॥ 959595955555555555555559595 ॥ ३९ ॥ पंचिंदियत्तमणुयत्तआरियक्खेत्तेसु सुकुलजम्माई। सबंपि मे निरत्ययमकज्जकरणुज्जमा जायं ॥ ९४०॥ न कओ धम्मो न गुणा समज्जिया सज्जिया न सियकित्ती। चित्तालिहियनरस्स व मणुयत्तं मह मुहा जायं ॥४१॥ आबालकालओ बंभयारिणो जे कयवया जाया । ते पुन्नपयं न वयं विसएहिं विडंबिया इय जे॥ ४२ ॥ जइ देवगुरुपसाया एयवसणाउ कहवि छुट्टिस्सं । गिहिस्सं ता नियमेण सबविरइवयं सुहयं ॥ ४३ ॥ एवं महाणुभावो चिंतइ |सद्धम्ममग्गमणुपत्तो। दूरं धणावलीवि य पकंपए भडभयुब्भंता ॥ ४४ ॥ एत्तोय पवंचमई पहरिसउक्करिसिया कहइ कुमई । इय फाडियं मएयं संधसु जइ संधिउं तरसि ॥ ४५ ॥ इय भणिय गयाए तीए सेद्विणो कहइ सा तमागंतुं । तो सो सुयतवसणो खणं भया निच्चलो जाओ ॥ ४६॥ तियसोब निनिमेसो निब्भरनिदोव नट्ठमणवित्ती । कयमोणो सज्झाणो जायमुच्छोब निच्चेट्ठो ॥४७॥ किं कायश्वविमूढं तं दुटुं जंपए पवंचमई । किं सेट्टि गरिट्ठमई विनबुद्धिव लक्खियसि ॥४८॥ किं कायरोव कंपसि रणरसियभडोब धीरिमं धरसु। केत्तियमेत्तं कजं इमं कुसग्गीयबुद्धीण ॥ ४९ ॥ जइ वि कुमईए कहिए विहिओ रायेण भडदढावेढो । तुह तणओ मरणंतवसणं पत्तो जइवि इहि ॥ ९५०॥ तहवि हु तहा जइस्सं न जहा दबक्खओ ल्हसइ न जसो । न विणस्सइ तुह तणओ जणाणुराओ न जह जाइ ॥५१॥ नवर नियवहुयं मह अप्पसु तं देवमंदिरे खिविउं । जह वंचिय समईए सुहडे कड्डेमि तं असई ॥ ५२ ॥ गोसे वाहरिय निवो जंपइ जइ किंपि ता भणेज तुम । सपिओवि मह सुओ पहु निसाए रुसिउं कहिंपि गओ ॥ ५३॥ एवंति | भणिय बहुयं सिंगारिय से समप्पए सेट्ठी । नियसम्मयमहिलाओ मेलइ गंतुं सगेहे सा ॥ ५४॥ वजिरवद्धावणयच्छंदपणञ्चंततरुणपरियरिया। अयसंकलसंदाणियकमकंतिमईए संजुत्ता ॥ ५५ ॥ सह मियमंजुस्सरतूरिएहिं गायंतकामिणीकलिया। चलिया मंद मंदं पत्ता य कमेण देवउले ॥५६॥ सवणासन्ने ठाउं कित्ती(कंति)मई जंपए पवंचमई । अन्तो गंतुं Filenahan--5555555555 २७॥ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीपक पूजायां भुवनप्रदीपकथा 59595959595HTTEFERS999 तुमए असईवेसो नियसियवो ॥ ५७ ॥ ठायचं पइपासे होइ अणत्थो जहा न से गोसे । अप्पियनियनेवत्थं मह पासे पेसियवा सा ॥ ५८ ॥ इज जंपिऊण चलिया खलिया य भडेहिं इय भणतेहिं । लब्भइ न इह पवेसो रायाएसो जतो एसो ॥ ५९॥ एत्थ पविट्ठो चिट्ठइ रुद्धो असईजुतो नरो कोई । ता पूइजह गोसे देवयमिहि पुणो वलह ॥ ९६० ॥ तो तेसि पवंचमई वियरइ सन्वेसि कुसुमतंबोले । “दूरे इयरे थट्टा वि हुँति दाणेणमणुकूला" ॥ ६१ ॥ पुन्नं मह दुहियाए | उवजाइयमेत्थ तो इमा पत्ता । "अवरावि पूयणिज्जा देवी सप्पञ्चया किन्नो" ॥६२॥ अज्ज इमाए तइज्जो उववासो आसि जं इमं वणियं । ता तुन्भे करुणाए एक्कमिमं चिय पवेसेह ॥६३॥ जइ अज इमा अच्चइ न देवयं ता न भुंजए नूणं । ता मुत्तुमिमं एयाए जीवियत्वं पयच्छेहु ॥६४॥ एत्थ ठिआ वि अम्हे भत्तिं देवीए गीयनदे॒हिं । पयडिस्सामो पसिउं ताप कुणह इमंति तीउत्तं ॥६५॥ तो ते दक्खिन्नदयाहिं पेरिया बिति भइणि तं चेव । एका गंतुं पूइत्तु देवयं झत्ति निग्गच्छ ॥६६॥ तं सोउं कंतिमई पूयापडलं करे कलेऊण । देवउलम्मि पविट्ठा ठिया अणुट्ठिय जहुदिह ॥६७।। नच्चणगाणबग्गाण ताण रमणीण पासमणुपत्ता । कंतिमईनेवत्थप्पच्छाइयतणुलया असई ॥६८॥ वजिरवद्धावणया वलिंउ पत्ता पोलिदे सम्मि । रूवय-अद्धं दाउं विसजिया तूरिया तुरियं ॥६९॥ पहसंतीउ पविट्ठा पुट्ठाओ पउलिरक्खयभडेहिं । किं नो वजइ तूरं पढइ इमं तो पवंचमई ॥९७०॥ अट्ठह तेत्तउं वजइ जेत्तउं पोलिहि बारु । अइरुद्धो वि न रुब्भइ सहुं परिणिए भत्तारु ॥७१॥ रायसमीवंगीकयपुन्नपइन्ना अईव सा तुट्ठा । "थोवावि कन्जसिद्धी तोसकए किं पुण न बहुया" ॥७२॥ पुरमज्झमागयाओ विसजए सा सहीओ सबाओ। "सिद्धप्पओयणाणं किं कजं जणसमूहेण" ॥७३॥ वद्धाविऊण सेटिं गंतूण निए गिहमि सुत्ता सा । "निश्चिंताणं निद्दा जायइ जइवा किमच्छरियं" ॥७४॥ सूरुग्गुमसमयम्मि वि संनझंतम्मि तम्मि (पाठांतर-अइ इटेवि न लब्भइ सहुपरणिए भत्तारु ।) 5555555555555555555555555555555-5555-Ehshansh Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दापक पूजायां श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् सुवनप्रदीपकथा ॥२८॥ FFEREFERESHERSITE भडविंदे । सपिओवि कित्तिसारो निग्गंतुं ते पयंपेइ ॥ ७५ ॥ किं तुब्भे सन्नझह पिउणा अवमाणिओ गहिय भजं । इह | वसिय निसिविरामे जाव विएसम्मि वञ्चिस्सं ॥७६॥ ता इह पविट्ठमेत्तोवि वेढिओ कहह को विणासो मे । ते बेंति निवामच्चे पुच्छसु जे तं धरावेंति ॥७७॥ तेणुत्तं मह ताणवि तणओ न भओ जओ विसुद्धोहं । "किं काहि भवो वि हु विजो नीरोयदेहाए(ण)" ॥७८॥ इय भणिरे सेट्ठिसुए आरक्खियमंतिणो समणुपत्ता । दळूण सेट्ठिपुत्तं सकलत्तं विम्हिया दोवि ॥ ७९ ॥ सुहडाण व तेसि पि हु कहियं सबंपि कित्तिसारेण । रायसयासे नीओ भज्जाजुत्तो वि सो तेहिं ॥ ९८०॥ रायउले निजंतं तणयं नाउं समागओ सेट्ठी । "इयरेवि सायरच्चिय सुयणा किं पुण न नियपुत्ते" ॥८१॥ सुयसेहिसुयनिवंतियनयणा पत्ता दुयं पवंचमई । “का संका सक्खं रायवयणपत्ताभयाणवा" ॥८२॥ असमाणपवंचमइमईए विजियत्ति नागया कुमई । "तत्थ न जन्ति सयन्ना पराजओ जायए जत्थ" ॥ ८३ ॥ गंतूणस्थाणत्थं सब्वेवि निवं नमित्तु उवविट्ठा । "विणयप्पणई सस्सा सव्वत्थवि किं न नमणिजे" ॥८४॥ मंतिसयासा सोउं भणइ निवो कित्तिसार किं एयं । सो आह जह पहू मुणइ तह इमं किं अलीएण ॥ ८५ ॥ "सयमेव देव विसयाहिलासिणो पाणिणो सया तम्मि । जो पुण परोवएसो घयाहुई सा हुयासम्मि" ॥ ८६ ॥ इय जंपिय कुमइविप्पयारणुप्पन्नरायरसपमुहं । कहियं रन्नो "भन्नइ पमाणभूमीए नो अलिय" ॥८७॥ जेण सरीरेण कयं सहउ तयं देव निग्गहदुहाई । "देए पच्छावि रिणे सइ दवे दिजइ न किं तं" ॥ ८८ ॥ आह निवो मा बीहसु जमेकवारं इमाण महिलाणं । अभओ मए विइन्नो फाडणसंधाणकोउयओ ॥८९॥ नामाणुसारिणिच्चिय कुमईए मई महा अणत्थयरी । “अहवा परिपज्जलिरो दहणो दहणोच्चिय जहत्थो" ॥९९०॥ पेच्छ पवंचमईए भजं पक्खिविय कड्डिया असई । नो विनायं केणइ "बुद्धीए अगोयरो नत्थि" ॥९१॥ सेहिसुय नो कयाइवि विस्ससियचं तए कुमहिलाण । जं संपइ विस्ससियस्स आगओ आसि तुह मचू ॥ ९२ ॥ विन्नवइ कित्ति ॥२८॥ S Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 959555555555555 5 5 | सारो देवपसाएण जीवियवस्स । पत्तस्स चरिय चरणं भवहरणं सहलयं काहं ॥ ९३ ॥ जइ नो देवो देंतो पाणे मह दीपक नूण ता अहं इण्हि । उभयभवसंभवाणवि चुकतो चेव सोक्खाण ॥ ९४ ॥रायाह वच्छ कस्सइ कयाइ भववासमहि- पूजायां | वसंतस्स । दुक्कम्मेण अवाया हवंति ता मा समुवियसु ॥ ९५ ॥ मा कुणसु वयकिलेसं धम्मो संतस्स होइ गिहिणोवि । भुवन| "को नाम कुणइ कहँ सइ कजे सोक्खसज्झम्मि" ॥ ९६ । सो भणइ सामि एवं विडंबणा होइ जाण कज्जम्मि । मह प्रदीपकथा होउ तेहिं विसएहिं वयमहं संपइ गहिस्सं ॥ ९७ ॥ जंपइ सेट्ठी बुज्झवह देव एसेव जं सुओ मज्झ । करहपडियं व भंडयमिमं विणा फुडइ हिययं मे ॥९८॥ पुत्तेणुत्तं जइ अन्ज पहु तए हं विणासिओ हुन्तो। हुता केत्तियमेत्ता ता पुत्ता मज्झ जणयस्स ॥ ९९ ॥ जणया जणणीउ पियाउ पुत्तया बंधुणो य संसारे । मुक्का भूरिभवेसुंता मोहो कहह को तेसुर ॥१०००॥ "परमत्थेणं न कयावि वल्लहो अत्थि कोइ कस्सावि । सोयइ सबोवि जणो नियकज चेव सीयंत" ॥१॥ ता अहमवि नियकज्जप्पसाहणे उजओ इयाणिपि । ता मा भवह भवंतो सधे धम्मंतरायपरा ॥ २॥ गहिऊण वयं अजं मुंजिस्सं अन्नहा महाणसणं । तो नायनिबंधेणं निवेण मोयाविओ सेट्ठी ॥ ३ ॥ जणणीवि तत्थ पत्ता पुत्तेण कमे नमित्तु विणयपरं । पाएसु लम्गिऊणं बलावि मोयाविया अप्पं ॥४॥ सम्माणिउं विसज्जइ वत्थाईहिं सपियं सुयं सेटिं। राया पवंचमइयंपि भणिय नायुजया होज ॥५॥ कुमइंपि भणइ वाहरिय मा पुणो इय करेज अन्नायं । पुणरुत्तं न खम्मिस्सं ति भणिय तं पि हु विसज्जेइ ॥ ६॥ हाणाइसबसिंगारसुंदरो सिवियमारुहिय पत्तो । इह एसो सेट्ठिसुओ' पवइओ तुज्झ पच्चक्खं ॥ ७॥ खयराहिराय वेरग्गकारणं पुच्छियं जमेयस्स । तं कहियं "ता मोत्तुं कुसंगमायरह गुणिसंगं ॥ ८॥ पायं विणस्सइच्चिय पत्तकुसंगो जणो सुवित्तोवि । उयरगओ असुइत्ते जुज्जइ परमोवि आहारो॥९॥ सगुणमि गुणाहाणं पावइ पत्तो जणो अजन्तोवि । रमणिनयणे कलुसंपि कज्जलं सोहमुबहइ ॥ १०१०॥ कायवो 1955555555555555555555555 Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अनन्त - नाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् ॥ २९ ॥ गुणिसंगो तम्हा पुरिसेण उज्झिय कुसंगं । पत्ते सिणिद्धदुद्धे मुद्धोवि किमंबिलं पियइ" ॥ ११ ॥ खेयरवई पयंपइ पहु सिद्धिवहूवरो इमो होही । जो एक्कम्मिवि एवं पडिबुद्धो आवयाए भवे ॥ १२ ॥ पहु अम्हेवि हु पुन्नेक्कमंदिरं जेहिं थावरे तित्थे । चलिएहिं जंगमं तित्थमुत्तमं तमिह संपत्तो ॥ १३ ॥ एत्थंतरे करेणुक्खंधगओ छत्त अन्तरियतरणी । राया चउरंगबलो पत्तो केवलिकमे नमइ ॥ १४ ॥ वंदिय सेसे मुणिणो सलाहिउं पणमिडं च नवसाहुं । उवविट्ठो तो बंदइ तस्संतेउरमवि समग्गं ॥ १५ ॥ तम्मज्झे निवकन्ना नियरूवजियामरी कणयवन्ना । पत्ता मत्तामरहत्थिमंथरक्कमकयागमणा ॥ १६ ॥ लीलाचलच्छिविच्छोहखोहियासेस तरुणनरनियरा । दीवपहानामेणं सारसुहासारसियहासा ॥ १७ ॥ दहूण केवलिं सा हच्छं मुच्छं गया मयंकमुही। सीओवयारसंपत्तचेयणा पुच्छिया पिउणा ॥ १८ ॥ किं वच्छे मुच्छागमणकारणं तुह परंपए सावि । पुच्छसु गुरुणो इय भणिय केवलिं नमिय उवधिट्ठा ॥ १९ ॥ कयकरकोसो नमिऊण केवलिं पुच्छए निवो भयवं । किमु मुच्छिया मह सुया भणइ पहू निसुणसु नरिंद ॥। १०२० ॥ | सरसाहिट्ठियपहियं सरसाहियसत्तुसुहडसंदोहं । सरसाहिलसियवासं पुरमत्थि विसालसालंति ॥ २१ ॥ रविउदयारद्धदिणंत मुक्कधणिभवणकयकुकम्मेण । पत्तारस आहारो अकिंचणो तत्थ अस्थि नरो ॥ २२ ॥ निम्मंसमुही नित्तेय| कालदुखल करालकाया से । मुत्तिमइचामुंडव भारिया आसि विगयासा ॥ २३ ॥ खंडणरंधणपी सण जलवहणगिहप्पमज्जणाईहिं । परघरपत्तकुभोयणकयट्ठिई गमइ दियद्दे सा ॥ २४ ॥ सिसिरे सहति सीयाई गेम्हसमयमि तिवर| वितावं । मलकलयकुचेलाई दोन्निवि मुणिमंडलाई व ॥ २५ ॥ जुन्नकुडीरयछायणकज्जे कइयावि दोवि दब्भत्थं । भमिराई गुरुअरने नियंति आयावयंतं मं ॥ २६ ॥ भणिया अकिंचणेणं भज्जा नमिमो इमस्स पयपमं । जेणज्जेमो अम्हे अत्तम पुन्नपन्भारं ॥ २७ ॥ तो दोन्नि विभत्तिवसप्पसरियरोमंचअंचियंगाणि । भूमियलमिलियभालयलमणहरं दीपक पूजायां भुवनप्रदीपकथा ॥ २९ ॥ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भुवन मज् पणमन्ति ॥ २८ ॥ दुहुँ विसुद्धभावं तेसि मए तयणु उवविसेऊण । उवविट्ठाणं दिन्नो दोण्हवि सद्धम्मउवएसोज दीपक॥ २९ ॥ आयन्नह भो तुब्भे पंचिंदियजाइपमुहसामगि । पावेउं नायबाई देवगुरुधम्मतत्ताई ॥ १०३० ॥ रागहो पूजायां |साईहिं दोसेहिं अदूसियं मुणह देवं । निग्गंथं गीयत्थं तत्तरयं जाणह गुरुपि ॥ ३१ ॥ जइगिहिभेएहि दुहा बुज्झह धम्म जिणेहिं पन्नत्तं । पढमं दसप्पयारं बारसभेयं पुणो बीयं ॥ ३२ ॥ जीवाजीवा पुन्नं पावासवसंवरो य निज्जरणा । प्रदीपकथा |बंधो मोक्खो य इमं आयन्नह तत्तनवगंपि ॥ ३३ ॥ देवगुरुधम्मतत्तत्थसदहाणेण होइ सम्मत्तं । मूलं सबुत्तममोक्खकप्परुक्खस्स इममेव ॥ ३४ ॥ फलसलिलधूवदीवयअक्खयनेवजगंधकुसुमेहिं । पूयइ सम्मद्दिट्ठी इय जिणमट्ठहिंविपूयाहिं ॥३५॥ सवाउ वि अतरन्तो पईवपूयं करेइ जइ भवो । ता सा एक्कावि हरेइ तस्स पावाई भणियं च ॥ ३६॥ | "जो देइ दीवयं जिणवरस्स पुरओ पराए भत्तीए । तेणेव तस्स डज्झइ पावपयंगो न संदेहो" ॥३७॥ मणुयत्तं संपत्तं मा नेह मुहा करेह सद्धम्मं । तुम्हाण हियं कहियं जुत्तमिमं चिय गुरूणहवा ॥ ३८ ॥ जपंति दोवि नियजोग्गयाणुमाणेण तुम्हमाएसं । काहामो भयवं जं सुकएणम्हेहिं तं पत्तो ॥ ३९ ॥ इय जंपिय भत्तीए मं नमिउं दुब्भभारए गहिउं । दोन्निवि गयाइं गेहे भद्दगभावेणे वटुंत्ति ॥ १०४०॥ नयरप्पहाणजिणदत्तसेट्ठिणो मंदिरंम्मि कम्माइं । कुवंताणं - ताणं दोण्हवि दीवूसवो पत्तो॥४१॥ दाऊण सेट्ठिणा सालिपूयघयपमुहमेवमुत्ताई। सगिहे भुंजह जह जाइ तुम्ह वरिसोवि सोक्खेण ॥ ४२ ॥ ते बिति अम्ह दंससु जिणेसरं सेट्टि जेण तस्स पुरो। काऊण घएणं दीवयं वयं सुकयमजेमो ॥४३॥ दट्टण धम्मबुद्धिं जातो तेसिं कयायरो सेट्ठी । "गरुयाई परंमिवि पक्खवाइणो किन्न धम्मपरे" ॥ ४४ ॥ इण्हिपि चलह इय भणिय तेहिं सह जिणहरम्मि संचलितो। "अवरंपि पत्थियं कुणइ सजणो किं न पुण धम्म" ॥ ४५ ॥ तिन्निवि पत्ताई नियंति रुंदजिणमंदिरं गयणलग्गं । भूयतरुपत्तपंतित्तियतोरणसियदुवारगं ।। ४६ ॥ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अनन्तनाथचरि त्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् ॥ ३० ॥ 1 | अनिलचलिरद्वयावलिकिंकिणिगणघणरणज्झणारावो । घग्घरयखलहलस्सरमिस्सो मुहरइ नहं जत्थ ॥ ४७ ॥ मणिजणियदेव उलियामंडलविष्फुरियकिरण निउरुंबो । रोहिणगिरिव रेहइ जणपुन्नागरिसिओल्ब जहिं ॥ ४८ ॥ केवलनाणालोओ जत्थ लंबंतमोत्तिओजोओ । फलिहम ऊहसमूहो भवविवेओ विव विहाई ॥ ४९ ॥ उज्झिरकप्पूरागरुपरिमलमांसलियसुमणसामोओ | वित्थरइ जत्थ दूरं धम्मियजणपुन्नपसरोब ॥ १०५० ॥ सेट्ठी तेहिं समेओ पविसंतो तम्मि नियइ अजियजिणं । जय जय जयत्ति भणइ य सीमंतयसंगिकरकोसो ॥ ५१ ॥ उवसंतकंतरूवं तेसिं तं दुसए अजियदेवं । बहिरंगअंतरंगारिवग्गनिग्गणपत्तजसं ।। ५२ ।। एसो समग्गसग्गापवग्गसुहसंगदायगो दूरं । ता एयं | पूएडं अप्पहियं कुणह इय भणइ ॥ ५३ ॥ तं सोउं ताइं मणप्फुरंतगुरुभत्तिभरधरंगाई । पसरियपरिओसवसुल्लसंतरो| मंचनिचियाई ॥ ५४ ॥ उल्लसियअमंदाणंदजायथोरंसुपूरियच्छीणि । परिकलयंताई सजम्मजीवियद्वाण सहलत्तं ॥ ५५ ॥ सुरहिघएणं काऊण दीवए ताइं दोन्नि वि मुयंति । जिणपुरओ पणमन्ति य पहुं महीमिलियभालाई ॥ ५६ ॥ कुलयं ॥ | तयणन्तरं पयाहिणपुरस्सरं नमिय रइयकरकोसो । सेट्ठि अजियजिणिदं भत्तिभरो थोउमारो ॥ ५७ ॥ “ जस्सानमंति | सिरिसोणमणिपहापयडभत्तिराय । अमरेसरा थुणिस्सामि तं पहुं अजियनाहमहं ॥ ५८ ॥ मणवयणनयणहत्था ते धन्नाणं सुहा अजिय तुज्झ । सुमरणथवणालोयणपूयणकज्जेसु जे सज्जा ॥ ५९ ॥ वइसाहसेयतेरसितिहीए तं चत्तविजयवासवि । पहु विजयोयरवासं अलंकरंतो कुणसि चोजं ॥ १०६० ॥ जायं तिजगुज्जोयं तं माहसियट्टमीनिसीहम्म । दहूण ससंको लज्जिओ तलमत्थमिओ ॥ ६१ ॥ चइय तए चललच्छि वयं कयं माहसेयनवमीए । इयरोवि अत्थिराए न रज्जए किं पुण तिनाणी || ६२ || पोसे सियाएकारसीए जेउं चलहुपहचंदं (?) । लोयालोयपयासं संजायमणंतनाणं ते ॥ ६३ ॥ चेत्तसियपंचमीए तं सिद्धिबहूए संगमल्लीणो । इयरंपि मोहिउमलं रमणी किं केवलविरायं दीपक पूजायां भुवनप्रदीपकथा ॥ ३० ॥ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनन्त० ६ ॥ ६४ ॥ इय जायपंचकल्लाणमवि पहुं थुणिय चत्तकल्लाणं । मन्नेमिचंदपहुनय भवसायरतिन्नमत्ताणं ॥ ६५ ॥ सेट्ठिस्स पक्खवाओ जिर्णिदभत्तीए तेसु संजाओ । “अहवायरो गुरूणं सगुणे विगुणे पुण उवेहा " ॥ ६६ ॥ पुणरुत्तं पणयजिणो अकिंचणो सेट्ठिणा सभज्जोवि । नेउं नियभवणे दिन्नबहुघओ पेसिओ सगिहे ॥ ६७ ॥ तम्मिवि भवम्मि जिणभत्तिभावओऽकिंचणो धणी जाओ। “अहव न तं कल्लाणं जिणपूयाए न जं होई" ||६८॥ कइयावि आउअंते मज्झिमपरिणामओ मरिय जातो । भुवणप्पईवनामो पुत्तो निवकुलपईवस्स ॥ ६९ ॥ तेणेवय भावेणं तब्भज्जा मरिउमेत्थ उप्पन्ना । एसेवय तुह तणया जिणदीवयपूयपुत्रेण ॥ १०७० ॥ इह पत्ता मं पेच्छिय जाईसरणेण मुच्छिया एसा । निव पुच्छियं तए जं तं मुच्छाकारणं कहियं ॥ ७१ ॥ नमिय गुरुं भणइ सुया रिद्धी पहु तुह पसायओ एसा । मह सपियस्सवि जाया "किंवा न हवइ गुरुपसाया" ॥ ७२ ॥ सोऊण कुमरिचरियं जिणपूयाकयमई जणो सबो । रायाइओ गुरूणं नमिय नियद्वाणमपत्तो ॥ ७३ ॥ नयकेवलिकमो नहयरेसरो मणिविमाणविंद्रेण । नंदीसरंमि पत्तो वलिओयऽभिवंदिय जिणंदे ॥ ७४ ॥ नवरं रायसुयादंसणा अणुरायभरपरायत्तो । निवपासे संपत्तो पणयपरो पत्थए कंनं ॥ ७५ ॥ रायाह | नहयरेसर जुत्तमिणं किंतु पुच्छिमो कन्नं । “जावज्जीवियकज्जे काउं जुत्तो न उवरोहो" ॥७६॥ तो वाहरिया पत्ता निवंतियं रइयरम्मसिंगारा । बाला लीलालससरललोयणुल्ला सलसिरमुही ।। ७७ ।। काउं पसायमाइसह ताय इय भणइ | पिउकमे नमिउं । तो से सायरखयरिंदपत्थणं साहए राया ॥ ७८ ॥ सा आह ताय लग्गइ अंगे सोहग्गसंगओ सो मे । पुबभवुब्भवभत्ता अग्गी वा इह भवे नन्नो ॥ ७९ ॥ नायसुयाअणुबंधो सम्माणिय नहयरं विसज्जेइ । सोवि गतो बेयड्डे "निक्कज्जं किं विएसेण” ॥१०८०॥ चिंतइ नहयरनाहो हिययगया दूमए मयच्छी मां । विरहजरजलणजालाजलि - रंग न (त) इभल्लिव || ८१ ॥ सा मं न मन्नइच्चिय ठाउमसत्तो न तं विणाहमवि । ता हरणमेव जुत्तं महनिवतणयाए दीपक पूजायां भुवनप्रदीपकथा Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ H श्रीअनन्तनाथचरि- त्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् दीपकपूजायां भुवन प्रदीपकथा ॥३१॥ इहिपि ॥ ८२ ॥ अहवा किं हरणेणं सइ कुमरे तंमि मह न सा होही । तसं पछंभ चिय हणेमि इय चिंति झचि ८३॥ एगोच्चिय निसि निग्गंतुमुवगओ कुमरवासभवणंते । मारणमईए अहवा "इत्थीलुद्धाण किमकजं" ॥ ८४॥ तिसिरदुवालसभुयएकतणुलयारद्धपेच्छणयच्छउमा । तमिहाणीओ तेणं मंतेणुग्घाडिय पओलिं ॥ ८५ ॥ तो सहसा संजातो सुहडो आयड्रियासिदुद्धरिसो। साहिक्खेवं रइयम्मि रणभरे सो जितो तुमए ॥८६॥ "जे सत्थप्पडिकूला जे वा वीसत्थघाइणो कुडिला । नियमेण पडंतिच्चिय ते पुरिसा पावपहरहया" ॥ ८७ ॥ ता कुमर सो अहं नियदयाए हणणारिहोवि जो तुमए । मुक्कोत्ति मए कहिओ तुह पुरओ निययवुत्तंतो ॥८८॥ इय जह खयराओ सुयं तह कुमरेणावि जाइसरणेण । सबंचिय सञ्चवियं सिविणयदिटुंव तवेलं ॥ ८९ ॥ भणियं च खयर तुमए जह कहिओ तह मएवि पुत्वभवो। दिहो जाइस्सरणेण तयणु तं खेयरो भणइ ॥१०९० ॥ ता चलसु तुम मुत्तूण मंदिरेहमवि जामि सट्ठाणे। इय जंपिय तमणुट्ठिय नहयरनाहो गओ सपुरे ॥ ९१ ॥ परिभावियपुवभवप्पियाणुरायप्पइन्नकरणस्स । | उम्मीलिओ महंतो अणुराओ रायतणयस्स ॥ ९२ ॥ चिंतइ तेञ्चिय धन्ना जेसिं नियवल्लहेहिं जुत्ताण । विविहविलासेहिं मुहुत्तमेत्तमिव जंति दिवसाइं ॥ ९३ ॥ जह जाइ वल्लहजणे मणो तहा जइ तणूवि वञ्चन्ती। ता नूण न हुंतं चिय | कस्सइ तबिरहविहुरन्तं ॥ ९४ ॥ नूणं जागरणाओ विरहीण वरं समेइ जइ निदा। जा दूइयव वल्लहसंजोगं कुणइ सहसत्ति ॥ ९५ ॥ कामुक्कलियाउ मणे नयणेसु अलद्धलक्खया जाया। दाहो देहे वल्लहअलाहओ तस्स चिन्ताए ॥ ९६ ॥ वल्लहविरहविणोयप्पारद्धयाइकीलकिरियस्स । गच्छन्ति वासरा विरहियस्स कुमरस्स किच्छेण ॥ ९७ ॥ एत्थंतरंमि पत्तो कुमरिपिउपेसिओ महामंती । अत्थाणत्थं निवई नमिउं विन्नवइ विणएण ॥ ९८॥ पहु मणिमंदिरनयरे पयावसारोत्ति नरवई अस्थि । दीवपहामलदेहा दीवपहाभिहसुया तस्स ॥ ९९ ॥ पत्ता केवलिपासं जाईसरणेण | SANS-SHASज SSUESTHA ॥३१॥ नमत Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुच्छिया बाला । निवपुच्छिएण कहिओ केवलिणा तीए पुवभवो ॥ ११०० ॥ इय भणिय तेण सबं सवित्थरं साहियं नरिंदस्स । ता जा पुवभवुब्भवपिए कुमारेणुरता सा ॥ १ ॥ भणियं च खयरवइणा विवाहिउं पत्थियावि न तीए । | पडिवनं तवयणं कुमरं पइ जायरायाए ॥ २ ॥ तुह तणयअलाहविओयदाहदज्यंतगणवणा बाला । लहइ न सुहलवमवि जलिरजलणजालोलिकलियव ॥ ३ ॥ धाईए इव अरईए असुहत्थीए वयंसियाएव । दासीहिं व संगहिया कामुकलियाहिं सा दूरं ॥ ४ ॥ ता पहु पेससु कुमरं परिणयणकए कुरंगनयणीए । जह होइ जीवियं से “गुरूण दुहिए न | जमुवेहा " ॥ ५ ॥ रायाह सा सइथिय जा पुवभवप्पियम्मि अणुरता । सिविणेवि जं सईणं रमइ मणो नन्नरमणम्मि ॥ ६ ॥ इय भणिय समाइट्ठो कुमरो वीवाहिउं नरिंदसुयं । वच्छागच्छसु तो सो नमिय निवाणं सिरे धरइ ॥ ७ ॥ | सम्माणिऊण मंतिं संवाहिय नियसुओ समंतेण । चउरंगचमूचक्को पट्ठविओ हिट्ठहियएण ॥ ८ ॥ अणवरयकयपयाणो सो मणिमंदिरपुरंमि संपत्तो । “ठाणं चलिरो मंदोवि पावए किं न सिग्घगई" ||९|| पट्टओय ( पत्तोय) वत्थकयहट्टसोहगुरुमं चतोरणधयम्मि | रायगरुहो रन्ना रिद्धीए पवेसिओ नयरे ॥ १११० ॥ आवासिओ समप्पियपासाए कणयकलसकमणीए । नरवइकारावियभोयणाइगुरुगोरवमहग्घो || ११ || लग्गदिणे हयगयठियसामंतावेदिओ गयारूढो । छत्तद्धयचामरचय| रायालंकारकमणीओ ॥ १२ ॥ वज्जिरजयआउज्जो पत्तो वीवाहमंदिरदुवारे । रइयायारो पविसिय उवविट्ठो कनयापासे ॥ १३ ॥ इट्ठ से सीए करं करेण गहिउं पयाहिणियजलणो। उवविसिय रायकुमरेहिं तयणु सम्माणिओ लोओ ॥ १४ ॥ तो नियकलत्तकलिओ चलिओ चडिउं करेणुरायम्मि । रिद्धीए नियाबासे पत्तो कीलइ सह पियाए ॥ १५ ॥ ससुरयसम्माणुम्मी लमाणतोसो दिणाण दसगं सो । तत्थच्छिय नमिय निवं सकलत्तो नियपुरे पत्तो ॥ १६ ॥ रन्ना रिद्धीए पुरे सहट्टसोहे पवेसितो कुमरो । नवपरिणीयं पुत्तं मोत्तुं को गोरवद्वाणं ॥ १७ ॥ पणओ पिउणो पथसयदलम्मि दीपकपूजायां भुवनप्रदीपकथा Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् दीपकपूजायां भुवनप्रदीपकथा ॥३२॥ 195555555 सपिओवि पत्तआसीसो । नमिउं जणणिं चलिओ सुद्धतेच्चिय ठिया वहुया ॥१८॥ पियुपयसेवासत्तस्स तस्स कुमरस्स जति दिवसाइं । तं अहिसिंचइ राया रजे रिद्धीए कइयावि ॥ १९॥ गीयत्थगुरुसयासे पत्तवओ कयतवो पहयपावो। उप्पन्नविमलनाणो रायरिसी सिवपुरं पत्तो ॥११२०॥ नवराया निरवजं पालइ रजं पयासए नीइं । ताडइ चरडे मन्नइ महायणं अजइ जसं सो॥ २१ ॥ वंदइ गुरुणो पूयइ जिणेसरे संघमच्चए निच्चं । कारवइ विभूईए रहजत्तात्तो जिणिदाणं ॥ २२॥ इय वच्चंते काले कयाइ दीवयपहाए उप्पन्नो। पुत्तो उत्तमलक्खणगणलंछियहत्थपायतलो ॥ २३ ॥ विरइयवद्धावणओ रयणपईवोत्ति कुणइ पुत्तस्स । नाम संमाणेउं सबजणं नरवई हिट्ठो ॥ २४ ॥ वरिसाई पंच पालित्तु पाढिओ तयणु जोवणं पत्तो। वीवाहिओ य उम्मत्तजोवणाओ निवसुयाओ ॥ २५ ॥ समयंतरम्मि कम्मिवि राया रयणीए तुरियपहरम्मि । जागरमाणो सद्धम्ममग्गमणुचिंतिउं लग्गो ॥२६॥ दीवयमेत्ताएवि मे पूयाए असरिसा सिरी जाया । सुहुमाउ वि वडवीयातो जायए नहलिहो साही ॥ २७ ॥ थोवावि धम्मकिरिया भावेण कया महाफला होई । लहुयावि दीवयसिहा उज्जोयइ मरुयमवि गेहं ॥२८॥ जे पुण कुवंति वयं ते सिद्धिवहूवरा धुवं हुन्ति । “अञ्चब्भुयकल्लाणे अप्पायत्ते पमाओ को" ॥ २९ ॥ ता दाउं रज्जसिरिं पभायसमए वयं गहिस्सामि । इय चिंतिय सुहलग्गे रज्जे अहिसिंचइ कुमारं ॥११३०॥ आरुहिय रयणसिवियं दितो दाणाई वजिराउज्जो । सूरीण चरणसारामिहाण पासे समणुपत्तो ॥ ३१ ॥ सकलत्तो कइवयरायसंगतो तेहिं दिक्खितो राया। जातो य साहुसिक्खावियक्खणो तक्खणे दक्खो ॥ ३२ ॥ उक्किट्ठअट्ठमासंततवविसेसट्ठियट्ठिसंहाणो । पडिबोहियभवो जायकेवलो मोक्खमणुपत्तो ॥ ३३ ॥ दीवयपूया भुवणप्पईवरन्नो जहा महाफलया । जाया तह अन्नस्सवि संपज्जइ तीए ता जयह ॥ ३४ ॥ श्री दीपपूजा . 95555भुवणप्पईवराया दीवयपूयाए साहिओ तुम्ह । भुवणप्पमोयगनिवं निसुणह नेवजपूयाए ॥ ३५॥5555 ॥३२॥ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूजायां सवुत्तमेकरायं समथि बहुलसिररायरयणंपि । भुवणतिलयाभिहपुरं कुरंगसमनयणरमणियणं ॥ ३६॥ जम्मि नैवेद्यमणिभवणपरंपरापहापयरयणितिमिरम्मि । वासहरडज्झिरागरुधूमो उप्पायइ निसं व ॥ ३७॥ परमहिओ सुहयगतो सचंदहासो दुहावि सम्वत्थ । भुवणाणंदो नामेण नरवई अत्थि तत्थ थिरो॥३८॥ तस्सत्थि सबसुद्धंतसारपयसंढिया जा भुवनसलीलगई । कमलमुही भुवणसिरित्ति रायहंसिब पियभजा ॥ ३९ ॥ तीए मणं आणंदइ पुत्तो भुवणप्पमोयओ दूरं । प्रमोदकभुवणप्पमोयओ नाम कामसमरूवरम्मतणू ॥ ११४०॥ सद्धम्मसरुच्छेइयकुकम्मपरपत्तकेवलसिरीओ। अणुसरि- कथा असासयसुहो जइब जो सहइ समरसिओ॥४१॥ कइया वि सो करेणुक्खंधगतो छत्तअंतरिअतरणी। तरुणीकरसंचालिअसिअचामरविअन्जमाणतणु ॥ ४२ ॥ नाणाजाणढ़ियामत्तमंडलामंडलीयकय वेढो। चलिओ कुमरो आराममुत्तमं |पेच्छिउं सबलो ॥४३॥ भूरिकविंजलकलिअं दुहावि जं ठि(वि)उसपामरकुलव । सहइ सुवन्नासणसंगयं सया रायभवणं च ॥४४॥ पत्तो य तम्मि पविसइ तालीहिं तालसालतलकलिउं । कुवलीकयलीलवलीलवंगनारंगचंगम्मि ॥४५॥ अवरावररमणीयारामपरंपरपरिन्भमणखिन्ने । मुत्तुं गयमल्लीणो अंबयवणदक्खमंडवए ॥४६॥ अंबयसाहागयवज्जकिरणभरकिन्नकणयदंडंमि । दोलापल्लंके तूलियाए आरुहिय उवविट्ठो ॥४७॥ पारकधणुद्धरकुंतकरनरा कुमरपिट्ठिमणुसरिया। पुरओ उवविठ्ठा मंडलीयसामंतमंतिसुया ॥४८॥ पडुपडमंजुमद्दलआलवणीवेणुसहसंमिस्सं । पारद्धं गाएउं चरियं कुमरस्स रमणीहिं ॥४९॥ कुमरो वि मणोगयरायवासणावसअलद्धलक्खत्थो। ईसिप्पकपिरसिरो वीणं वायइ नियकरेहिं ॥ ११५०॥ एत्थंतरंमि गयणाओ मणिमयाभरणभूसियसरीरो । अवयरिउंड संपत्तो कुमरपुरो किंनरीनियरो॥५१॥ तम्मज्झाओ उत्तमरूवाए किंनरीए एकाए । नमिय सविणयं पेच्छणयपेच्छमब्भत्थिओ कुमरो ॥५२॥ संपत्ताएसाए महापसाओत्ति जंपिउं तीए । पारद्धं पेच्छणयं कुमरपुरो परियण Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् नन SSETTE नैवेद्यपूजायां भुवनप्रमोदककथा जुयाए ॥ ५३॥ वजंतवेणुवीणासराणुविद्वेण दिवराएण। हुंफियकंपियकुरलियमुद्दियकागलियरूवेण ॥ ५४॥ गुंजतमद्दलुद्दामपडुहुडुकाणुसरियतालरवं । गाएउं पारद्धं कुमारचरियं मिउसरेण ॥ ५५ ॥ तवेउमुवकंतं तम्मज्झा किंनरीए पवराए । मणिमयरसणारणझणिरकणयकिंकिणिकलावाए ॥५६॥ पसरावसरणभमिभमुहभंगकरणकमंगहारेहिं । नच्चइ सा करविन्नासवसपसप्पंतनयणेहिं ॥ ५७ ॥ निब्भच्छियमिउकलकंठकूइयं रायमालवेऊण । नवंती सा गायइ कुमरगुणे चंदकरधवले ॥ ५८ ॥ तन्नट्टगीयदिन्नावहाणिया कुमरपमुहसबसहा । जाया तदेवदिट्ठी अचलंगी चित्तलिहियच ॥५९॥ |पसरंतीए पसरंति उच्छलंतीए उच्छलंति समं । तीए जणनयणाई सययं सेवयकुलाई व ॥ ११६० ॥ अवहियहियओ जाओ रायसुओ तीए गीयनदे॒हिं । दाउमणो नियहारं तमच्छिसन्नाए वाहरइ ॥ ६१ ॥ तो सा चलिया रणझणिर| किंकिणी किंवि कंपमाणथणी । नवनेहरसभरालसनयणेहिं पलोइरी कुमरं ॥ ६२ ॥ सो विहु नियहत्थेहिं थणत्थले जाव ठावए हारं । ता तीए झत्ति आलिंगिऊण नीओ नहयलेण ॥ ६३ ॥ सहसच्चिय सेसोवि हु तिरोहितो किंनरीजणो सयलो । कुमरंगरक्खसंरंभभवभयुभंतनयणोच ॥६४॥ जावारोवियधणुहा धणुद्धरा तमणुपक्खिवंति सरे । जाबुच्छलंति तं पइ फारका खग्गवग्गकरा ॥६५॥ तीए ता रायसुओ नरनयणअगोयरे नहे नीओ। जाओ य गयच्छाओ परिवारो कुमरहरणम्मि ॥ ६६ ॥ गंतुं सहाए कहियं रन्नो मित्तेहिं कुमरअवहरणं । तं सोउं सो जातो मुच्छाए अचेयणो सपिओ ॥ ६७ ॥ सिसिरकिरियासमुवलद्धचेयणो रुयइ दुहभरकंतो। पागयनरोब सह पिययमाए सुयविरहविहुराए ॥ ६८॥ हा सूरकुमर हा धवलचमरवीइयसरीर हा धीर । वुड्डावत्थं मुत्तूण मं गओ कत्थ तं कहसु ॥ ६९ ॥ हा कुंददसण हा विगयवसण हा ईसिहसणपरिलसण । हा कोमलकेस हहा सुवेस हा रंजियसदेस ॥ ११७० ॥ हा जणयभत्त हा सारसत्त हा नायदेवगुरुतत्त । हा पुरिसरयण हा गरिमगयण हा अमियसमवयण ॥ ७१ ॥ को जाय तुम मुत्तुं पहाय ज Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नैवेद्यपूजायां भुवनप्रमोदककथा בורוכותבתבותכתכתבותכתבתבותכתבתכתבתכתבתבכתבתכתבתכתבותכותבת2 UCUCUCUCUSUCUCUCUCUCUCUCUCUELGUGULUCUCUCUCUCUCUZ समएवि मे कमे नमिही। को वा रयणाभरणे दाही बंदीण परितुट्ठो ॥ ७२ ॥ सिंगारसुंदरंगो अप्फालितो करेण को कुंभं । आणंदिस्सइ पउरे करेणुकीलारसं पत्तो ।। ७३ ॥ मंडलियमंतिसीमंतमित्तदासंगरक्खपडिहारा । कुमरावहारगुरुसोयसल्लिया तत्थ कंदंति ॥७४ ॥ एत्थंतरंमि अत्थाणकणयथंभाउ रयणपुत्तलिया। उत्तरिया मणिमंजीरमंजुझंकाररमणीया ॥७५॥ लीलाए चंकमंती पत्ता रायंतियं भणइ एवं । आयनसु निव सुयहरणकारणं चयसु सोयभरं ॥७६॥ टूण सालिहंजियपुत्तलिय विम्हिओ सपरिवारो । भणइ निवो भद्दासणमलंकिउं कहसु मह देवि ॥ ७७ ॥ तो सालिहं| जिया सा उवविट्ठा तम्मि आसणे अहवा। "कीरइ अन्नस्स वि विणयपत्थियं किं न नरवइणो" ॥७८॥ अञ्चंतविम्हियमणो सपरियणो सो निसामिउं लग्गो। कलकंठविलसिरसरा रंनो सा साहिउं लग्गा ॥ ७९ ॥ बहुसामो वि सुतारो सुपत्तनयसुंदरोवि नयरहिओ। अचलो विसवयावि हु वेयड्डो अस्थि गिरिराया ॥ ११८०॥ तत्थत्थिभूरिभूमिगभवणेहिं एकभूमिगविमाणं । सग्गपि निजिणंतं रहनेउरचक्कवालपुरं ॥८१॥ नियतणुतेयविणिज्जियकणयपहो तत्थ अत्थि कणयपहो। खयरवई बहुविज्जाबलदुल्ललिओ ललियदेहो ॥ ८२ ॥ चाईकयकणयसिरि कणयसिरीनाम अत्थि से | कंता । देवगुरूणं पणया पणयावज्जियसयलसयणा ॥ ८३ ॥ सोहग्गेणं गोरिं रूवेण रई सई पहुत्तेण । अणुकुवंती कन्ना समत्थि से भुवणलच्छित्ति ॥ ८४ ॥ उवणजोवणजुत्ता विलसिरलायनपुंनगत्तावि । असईदासीसहियावि च्छेयनिस्सेससहियावि ॥ ८५ ॥ कयउब्भडंगभोगा विनट्ठनिस्सेसरोगसोगावि । विनाणगुणवियडावि थीकलाविसयपोढावि ॥८६॥ जणयजणणीवयंसीदासीहिं सया भणिजमाणावि । ण कुणइ मणयंपि मणो पुरिसं पइ वीयमोहत्व ॥ ८७॥ कुलयं । सिंगारियपि पुरिसं दट्टणं कुट्टियंव नियदिहिं । मउलिज्जतिं वालइ उज्वेयवसेण सहसत्ति ॥ ८८ ॥ चित्तट्ठियं पि द8 रुहाव नरं परंमुही होई । सिविणयसञ्चवियंपि हुन नियइ पुरिसं ससुरयंब ॥ ८९॥ पावकहं व निवारइ कहिज जनजान Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नैवेद्यपूजायां भीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् ॥३४॥ भुवन प्रमोदक कथा माणि पि पुरिसचरियकहं । कज्जेवि नरं नालवइ विहियगोवज्झमिव बाला ॥ ११९०॥ एवंरूवं दुहियं दट्टण विचिंतए खयरराया। कस्सेसा दायबा मए नरबेसिणी कन्ना ॥ ९१ ॥ दंसिज्जए इमाए जो जो सो सो वरो न पडिहाइ । आहारोब अरोयगरोगकंतस्स सबस्स ॥ ९२ ।। देववसा जइ जायइ सीलब्भंसो इमाए ता होइ । गोत्तम्मि गुरुकलंको पावमिमाए अकित्ती मे ॥ ९३ ॥ इय चिन्तासंतत्तो वुत्तो कन्ताए नरवई एवं । मा तम्मसु पिय पुच्छसु वरमइसयनाणिणमिमीए ॥ ९४ ॥ बहुमनियपियवयणो तणयं गहिउं गओ विदेहं सो। माणिक्कपुरारामे दट्टणं केवलिं नमइ ॥ ९५ ॥ उवविसिऊणं सोऊण देसणं पत्तअन्तरो नमिउं । पुच्छइ किं मह दुहिया पहु पुरिसवेसिणी जाया ॥ ९६ ।। तो भणइ विमलनाणी आयन्नसु राय कारणमिमीए । जेणेसा संजाया विद्देसपरा पुरिसविसए ॥ ९७ ॥ सालीणजणावासे रइरुवकुलंगणे जणियसोहो । हसियसरोवसरोहे सालिपुरामिहपुरे रम्मे ॥ ९८ ॥ अत्थि नयज्जियबहुधणदाणकयत्थी कयत्थिसंघाओ। सालिप्पियामिहाणो धणिप्पहाणो धणी विणई ॥ ९९ ॥ जुयलं ॥ अवरोवि खत्तिओ तत्थ | अत्थि रणसूरनामओ चाई । नवरं तणुविहवो "नो पायं चाइम्मि वसइ सिरी" ॥ १२०० ।। जओ-चाइयणकरपरं-- परंपरियत्तणजायगरुयखेयव । अत्था किविणघरत्था सत्थावत्था सुयंतिव ॥ १॥ तस्सोभयहावि पिया विणयवई नयपरा सुसीला य । ईसीसि साहिमाणा "अहव न दोसं विणा कोई" ॥२॥ भत्ता पियमणुवत्तइ पियावि पइणोणुवत्तए चित्तं । वद्धइ दोण्हवि पणओ "जइवा नेहो नयडाण" ॥ ३ ॥ सालिप्पियस्स कज्जाइं साहए सो वि देइ दवणं से । "न निओ वि कुणइ कजं मुहियाए किं पुनन्नजणो"॥४॥ ज किंपि लहइ कत्थइ समप्पए आणि पियाए सो। “पाणावि जम्मि देया तत्थ अदेयं किमवि नत्थि" ॥५॥ सालिप्पिएण कइयावि पेसिओ सो वहूए आणयणे । चलिओ संदणपुरनयरम्मग्गमणुसरिय संनद्धो ॥ ६॥ पत्तो अडईए वहुमयसत्ताए वि अमयसत्ताए। जीए सचित्तकाया अमाणसंगावि Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ES नैवेद्यपूजायां भुवनप्रमोदककथा H तिरियोहा ॥ ७॥ तीए सो नियइ वडाइवियडविडवीहिसंकडिल्लाए । खरतरणिनिहियनयणं आयावंतं मुणिं एगं ॥८॥ दिट्ठो य तेण उप्पाडियासिरोहो भडो तमभिहणिउं । जंतो भित्तीए इव खलिओ मुणिओग्गहमहीए ॥ ९॥ उग्गहमइक्क| मेउं अतरंतो चउदिसिं परिब्भमिरो। दितोब भत्तिजुत्तो पयाहिणाओ सुसाहुस्स ॥ १२१० ॥रे मुंड तुंडभंगं काउं तं निच्छएण मारिस्सं । इय जंपिरो मुणिं पणमिउं च पडिओ अहोवयणो ॥ ११ ॥ पडियं झडत्ति खग्गं मुकंव करेण दूरतरयम्मि । मुणिमारणअज्झवसायजायगुरुपावभीएण ॥ १२ ।। पच्छाहुत्तं वलियं बाहुजुयं साहुवहनिवित्तंव । गंतुमणीहंता इव पत्ता पाया सिरे तस्स ॥ १३ ॥ जातो गीवाभंगो रुहिरं नीहरइ तस्स वयणातो । अहवा जं चिंतिज्जइ परस्स तं अत्तणो एइ ॥ १४ ॥ उद्धढियंमि खग्गे उच्छलिओ सो तयग्गमारूढो। परिभमइ गुरुरएणं वंसारूढो नडनरोध ॥ १५ ॥ एत्थंतरे अणब्भा विजुब नहाओ झत्ति अवइंना । एक्का अमरी पिंजरियदिसिमुहा देहदित्तीए ॥१६॥ कुंडलकिरीडकेकरकडयहारोहसोहधरदेहा । तिपयाहिणिउं नमिउं च सा ठिया साहुणो पुरओ ॥१७॥ दट्टण तमच्छरियं रणसूरो मुणिसमीवमल्लीणो । पणमिय कयंजलिउडो उवविट्ठो समुचियट्ठाणे ॥ १८॥ एत्थंतरे निसंनो उस्सग्गं पारिऊण साहूवि । भणियं च देवयाए पुणरुत्तं पणमिऊणमिमं ॥ १९ ॥ पहु अहमिमाए अडईए सामिणी इह समागयेण तए । नूणं कया पवित्ता असमप्पसमेकरसिएणं ॥ १२२० । एसो हु पञ्चणीओ पावप्पा कोइ तुम्ह हणणत्थं । इंतो एवंविहिओ मए अदिस्साए खलिऊण ॥ २१ ॥ भणइ मुणी कयकरुणा देवि इमं मुयसु जाव नो मरई । उवसग्गगहणकज्जे आगच्छामो वयं जमिह ॥ २२ ॥ साहूणमलंकारो खंतिच्चिय देवि नो पुणो कोवो । उवसग्गपरे नूणं तीए विसओ जओ भणियं ॥ २३ ॥ जं खमसि दोसवंते सो तुह खंतीए होइ अवयासो। अह न खमसि को तुह अविसयाए खंतीए वावारो ॥ २४ ॥ मुत्तुं मुणिमज्जायं को थोपि जइ जई कुणइ । ता सुयतवाइ सबं निरत्थयं तस्स जेणुत्तं ॥ २५ ॥ 555555999 Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअनन्तनाथचरि प्रादुदुतं वालमुलमा नैवेद्यपूजायां भुवनप्रमोदक पूजाष्टकम् कथा ॥३५॥ U LESS पढउ सुयं धरउ वयं कुणउ तवं चरउ बंभचेराइ । तहवि तयं सबंपिहु निरत्थयं कोववसयस्स ॥ २६ ॥ अम्हाण देवि एयं वयसबस्सं रिउमि कुविएवि । अक्कोसाइ कुणंते लाहोत्ति विभावणं जेण ॥ २७ ॥ अक्कोसहणणमारणधम्मभंसाण-15 वालसुलभाण । लाभं मन्नइ धीरो जहोत्तराणं अभावम्मि ॥ २८ ॥ अम्हाण मोक्खपुरपत्थियाणमेएण काउमारद्धं । साहेजमओ एसो उवयारी मुंच ता एयं ॥ २९ ॥ सोऊण साहुदेसणमसमप्पसमामयप्पवहसरिसं । रंजियहियया देवी पयंपिउं एवमारद्धा ॥ १२३० ।। धन्नोसि तुम मुणिरयण तिव्वतवतेयलद्धिजुत्तोवि । काउं खममिममवयारयपि मित्तं व मोइंतो ॥ ३१॥ एवं पसंसिय मुणिं अदिट्ठबंधाउ तं भडं मुत्तुं । धम्ममइ संजाया देवी सहसत्ति मुणिवयणा ॥ ३२ ॥ सोवि भडो पयलग्गो अवराह खामए नियं मुणिणो। "दूरपि पाणदाया पुज्जो अवरोवि उवयारी" ॥३३॥ भणइ य तइ सोमेवि हु सच्चविए कलुसियं मणो मज्झ । अमरकरे वि हु दिढे कमलं संकुयइ जमजोग्गं ॥ ३४ ॥ मारणपरे रिउ|म्मिवि तुह पहु हियए पवडिओ पसमो । दाहकरेवि निदाहे सीयं चिय होइ हिमसेले ॥ ३५ ॥ ता मज्झ देहि दिक्खं पावाओ इमाओ नन्नहा मोक्खो। “वेरग्गे जं न कयं नूणं तं दुकर पच्छा" ॥३६॥ तो से दिना दिक्खा मुणिणा देवीए अप्पिओ वेसो। धम्मुज्जयम्मि जइवा मूलं मोक्खस्स साहेजं ॥ ३७॥ नवदिक्खियं पसंसिय सहाणे देवया गया झत्ति । दट्टण तमच्छरियं भणइ मुणिं नमिय रणसूरो ॥ ३८ ॥ दुक्करदिक्खाए ते मज्झमसत्तस्स कहसु गिहिधम्म । "दिजइ न जओ दुद्धं रोइंमि रसाहिए अहवा" ॥ ३९ ॥ भणइ मुणी गयरायं देवं आयरसु उज्झिय सरायं । मुत्तूण कामधे' किं गिण्हइ गद्दहिं कोवि ॥१२४०॥ नाणालोए गुरुणो गिण्हसु रविणोत्व जयपवित्तकरे । परिहरिऊण कुगुरुणो वहलनिसीहेव तमबहुले ॥४१॥ अंगीकरेसु धम्मं सोक्खकरं दुहयरं चइय पावं । मुत्तुमजरमरममयं को मधुकरं गरं गिलइ ॥ ४२ ॥ कप्पदुमंव वंछियफलयं आयरसु उत्तमं तत्तं । किंपागं पिव संमोहकारयं मा पुण अतत्तं ॥ ४३ ॥ ॥३५॥ SELFISHES Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चत्तारिवि एयाई सुदेवगुरुधम्मतत्तरूवाएं । नारयतिरियनरामरगईउ चउरो अवहरन्ति ॥ ४४ ॥ एयं पवयणसारं काउमसन्तो समग्गमवि भयो । एक्कंचिय जिणपूयं कुणंति भवा जिनिंदाण ।। ४५ ।। सधाओ वि य सत्तो काउं नेवज्जपूयमे| कंपि । कुतो दुक्कम्मं पाणी पडिहणइ सवपि ॥ ४६ ॥ भुज्जइ जंवा तंवा रविउदयत्थमणमज्झयारम्मि । दिज्जइ जिणस्स ता भो कयाइथोपि पुनकए ॥ ४७ ॥ पाविज्जइ परलोए अनंतमप्पंपि इहभवे दिनं । धन्नं ववियं थोवंपि फलइ तं नूण बहुगुणियं ॥ ४८ ॥ नियविहवसमुचिएहिं महुराहारेहिं मोयगाईहिं । जिणमञ्चन्ता सासयतित्तिं पावन्ति भणियं च ॥ ४९ ॥ "खणतित्तिएण लब्भइ नेवज्जेणं जमक्खया तित्ती । तं सासयसिव सुहतितिं तित्थनाहस्स माहपं" ।। १२५० ॥ ता जइ सासयसिव सुहतितिं वंछसि अहो महासत्त । ता कुणसु देवपूयं दाडं भत्तीए नेवज्जं ॥५१॥ सो आह अज्ज पत्ता चिंता| मणिकामधेणुकप्पदुमा | रंनम्मिवि जं जायं मह पहु तुहदंसणममोहं ॥ ५२ ॥ ता इहपरलोयहियं कहियं तुन्भेहिं जं तयं काहं । को नाम सिरिमुर्विति पहणइ पायप्पहारेण ॥ ५३ ॥ इय जंपिय नमिय मुणिं चलिओ संदणपुरम्मि संपत्तो । मोयाविय सालिप्पियवहुयं गहिउं तयं वलिओ ॥ ५४ ॥ गुरुवेयवाहणेहिं वदिणेहिं पि नियपुरे पत्तो । पणमित्तु मोयगा सासुयाए बहुयाए उवणीया ।। ५५ ।। तीए वि सयणभवणेसु पेसिया समुचियकमेणं ते । अहवा उचियायरणं कुलंगणाणं | कुलायारो ॥ ५६ ॥ बहुदुक्खेलानालियरक्खंडकप्पूरमिस्सिओ एगो । दिन्नो रणसूरस्सावि मोयगो माणयपमाणो ॥ ५७ ॥ बंधुरगंधं तं गिव्हिऊण लग्गो सगेहमग्गे सो । अंतो रमंतसद्धम्मपरिणई चिंतए एवं ॥ ५८ ॥ एएण भक्खिएणं जावजीवं न होहिही तित्ती । जाव मुद्दे ता सुरसो एसो पोट्टंगतो असुई ॥ ५९ ॥ ता इमिणा सुरसेणं भक्खेण करेमि | देवनेवज्जं । जं मह पच्छा दुलहो एवंविह उत्तमाहारो ॥ १२६० ॥ इय चिंतिऊण वलिउं चलिओ मग्गे जिनिंदभवणस्स । “अद्दव पमातो काउं किं जुज्जइ धम्मकम्मम्मि " ॥ ६१ ॥ गच्छंतो संपत्तो जिणालयं नियइ सुरविमाणंव । अनिलचलद्धय नैवेद्य पूजायां भुवन प्रमोदककथा Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् नैवेद्यपूजायां भुवनप्रमोदककथा ॥३६॥ FFFFFFFFFFFFFFF रणझणिरकिंकिणीनियररमणीयं ।। ६२ ॥ जम्मि जिणसम्मुहानिलचालियबलिनिहियसेयकुसुमाई । पूएउंव जिणिदं जताई जवेण सोहंति ॥ ६३ ॥ पुष्फोवहारचुंबणपराई बहुचंचरीयचकाई। जम्मि जिणवंदयतुट्टकम्मनियलाईव सहन्ति ॥ ६४ ॥ तम्मि पविट्ठो पेच्छइ पसंतकंतं जिणेसरं रिसह। जय जय जय तिजयपहुत्ति जंपिरो नमइ भत्तीए ॥ ६५ ॥ चित्तभंतरअसमुल्संतबहुमाणजायरोमंचो। आणंदवसपवित्तं सुविसरजलधोयगंडयलो ॥६६॥ तं पावमोयगं मोयगं सयं मुयइ सामिकरकमले । सहलत्तं कलयंतो सजम्मजीवियनरत्ताणं ॥ ६७ ॥ पुणरवि पणमित्तु पहुं खोणीमंडलमिलन्तभालयलं । पत्तो निययावासे सो उक्कंठियपियापासे ॥ ६८ ॥ अन्नोन्नं मिलियाणं ताणुप्पन्नो महासुहुक्करिसो। "अवरे वि निए मिलिए होइ सुहं किं न कंताए" ॥ ६९॥ कइया वि तस्स कंता वुत्ता सालिप्पियष्पिय|यमाए। किं रूवरसो सो तुह पियस्स जो मोयगो दिन्नो ॥ १२७० ॥ तं सोउं सा चिंतइ किं मह न पिएण दिन्न| मद्धपि । “जइवा न वल्लहेवि हु लोहपराणं हवइ नेहो" ॥ ७१ ॥ नियघरजुत्ताजुत्ता वत्ता नन्नस्स साहिउं जुत्ता । इय चिंतिय तीउत्तं अञ्चतं तम्मि रसवत्ता ॥ ७२ ॥ धणरहियाणवि गेहे लोओ पेसइ जमुत्तमं वत्थु । किं पुण ससुरकुलम्मि वि सेसओ तम्मिवि धणड्डे ॥ ७३ ॥ इय जंपिय नियगेहे पत्ता पियविसयजायअवमाणा। विप्फुरियफारअरई उवविट्ठा दूरमुबिग्गा ॥ ७४ ॥ वामकरक्खित्तमुही सरलस्सासा अलद्धलक्खत्थी। पियगयअणप्पकुवियप्पकप्पणुप्पन्नसंतावा ॥७५|| चिंतइ पिएणमविभइय मज्झ न कयाइ अत्तणा भुत्तं । अजं तु सुयमिमं "नो दीसइ किं जीवमाणेहिं" ॥ ७६ ॥ तं चिय निवससि महमाणसंमि न तरामि तं विणा ठाउं । इय मायावयणेहिं अहमप्पवसा कया तेण ॥७७॥ ॥७॥ धुत्तपउत्तीहिं नरा एवं रमणीओ वेलवेऊण । निम्मल्लमालियाउव कयकज्जा ज्झत्ति उज्झति ॥ ७८ ॥ मंदमईओ अविवेइ. | णीओ तुच्छाओ अपढियसुयाओ । वरईओ विप्पयारिय विडा विडंबंति विलयाओ॥ ७९ ॥ जेत्तियमेत्ता विज्जा हुंति SELFLEETTEFFEREFESSSSSSS ॥३६॥ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SSY नैवेद्यपूजायां भुवनप्रमोदककथा पवंधावि तेत्तिया नूणं । तो पुरिसेहिं सवसयाओ सुद्धमहिलाओ कीरति ॥ १२८० ।। दुबिलसियाई काउं कुवियपियाए तमुत्तरं दिति । नियसच्छयाए सवा(सच्चा) इमेत्ति मंनंति तो ताओ ॥ १ ॥ इय चिंतावसअच्चंतजायवरविसयविसयविहेसा । तं चेव गरुयवेरग्गकारणं धरइ हिययंमि ॥ ८२॥ पइविद्देसवसाएवि तीए मुक्कं न विनयकरणिजं । "लंघति न रुहाओवि कुलवहुयाओ कुलायारं" ॥ ८३॥ तेणेवय वेरग्गेण भत्तुणो मोइऊणमत्ताणं । पडिवन्ना बालतवं नवरं न मुयइ पिएणुसयं ॥ ८४ ॥रणसूरो पुण सरलस्सहावओ सरइ नियगुरुक्कमणे । दीणाइयाण दाणाई देइ न करेइ अन्नायं ॥ ८५ ॥ एवं मज्झिमपरिणामवससमजियनराउ निवरिद्धी। मरिऊण भुवणतिलयाभिहपुरनिवनंदणो जाओ ८६ ॥ तब्भज्जावि तवज्जियविज्जाहररिद्धिभोयसंभारा । मरिय सुया तुह जाया रहनेउरचकवालपुरे ॥ ८७ ॥ पुबिल(ल)भवम्मि मया पुरिसवेसेण संजुया जमिमा । इह जम्मेवि तमुबहइ तुह सुया निव नरवेसं ॥८८ ॥ भणियं केवलिणा नहयरिंद तुह कंनयाए पुरिसम्मि । विदेसकारणमिमं पयासियं पुच्छमाणस्स ॥८९॥ तं सोउं जाईसरणनाणविन्नायनियभवा भणइ । पहु तं तहेव सच्चं तुन्भेहिं जहा समक्खायं ॥ १२९० ॥ तो सो ससुओ नयकेवली गओ नियपुरे खयरराया। जाया य निट्ठियप्पा नियामिमाणे भुवणलच्छी ॥ ९१ ॥ चिंतइ महाणुभावेण तेण तइया न विरइयमजुत्तं । जं मोयगेण विहिया पूया देवाहिदेवस्स ॥ ९२ ॥ तइया दइए सरले वि दुवियप्पं पकप्पमाणीए । महिलाण मए पयडीकयं धुवं तुच्छपयइत्तं ॥ ९३ ॥ जइ हं तं पुच्छंती ता सो तइयावि मह पयासंतो। जं पुच्छिएण तेणं कयाइ वट्ठोत्तरं न कयं ॥ ९४ ॥ इय चिंतंती जाया पियम्मि पोढाणुराइणी बाला। नियदुबिलसियसुमरणउविं5 विरफुरियरणरणया॥ ९५॥ चत्तो रत्तोवि पिओ भवम्मि पुवे इमाए कुवियप्पा । इय चिंतिय कुविएणव कामेण सरेहिं पहया सा ॥ ९६ ॥ दाहो वाहो कंपो हियए नयणेसु देहजबीए । तवेलंचिय तीए संजाया सत्तिया भावा ॥ ९ ॥ 5959595555555555555S अनन्त०७ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | नैवेद्य श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् पूजायां भुवनप्रमोदक कथा ॥३७॥ अरईसूयगसिक्कारवसविणिक्खंतरत्तदंतपहं । हिययंमि अमायन्तं उबमइ पियाणुरायं व ॥९८॥ असुहपसरप्पकंपिरकरजुयनहसुत्तिकतिपसरेण । धवलंती चंदणरसपंकेणव ताविलं देहं ।। ९९ ॥ इय पसरियनियपियविरहतावदावग्गिदज्झमाणतणू । उल्वेयावेयवसा बाला क8 दस पत्ता ॥ १३०० ॥ गरुयाणुणयपुरस्सरपुच्छंतसहीण साहिओ तीए । पुवप्पियम्मि भुवणप्पमोयगे निवसुए नेहो ॥१॥ भणई य जइ तमहं पुवभवपियं हे सहीओ न लहेमि । देमि धुवं ता जलणस्स आहुई नियसरीरेण ॥२॥ नहयरनाहस्स सहीहिं साहिओ तीए निवसुए राओ। तो से तोसो जाओ सुयाए कुमराणुरत्ताए ॥३॥ जंपइ पन्नत्तिं देवयं निवो देवि आणसु कुमारं । अञ्चाहियं न जायइ जा महजीवियसमसुयाए ॥ ४ ॥ तो इह देवी पत्ता पत्ते कुमरम्मि रम्ममुजाणं । काऊण किंनरीपेच्छणच्छलं तीए हरिओ सो ॥५॥ नेउं रहनेउरचक्कवालनयरम्मि नयरिंदस्स । सो उवणीओ तीए सह कुमरीए पमोएण ॥ ६॥ कयगोरवेण कुमरस्स राइणा कहिय कंनयाचरियं । भणियं पुत्वभवपियं परिणसु तं वच्छ मह दुहियं ॥ ७ ॥ तं सोउं जाईसरणनायनियपुत्वजम्मवुत्तो । जंपइ तए जमुत्तं काहं सबंपि तं किंतु ॥ ८॥ हरिए मए ममंबापिऊण जायं भविस्सइ दुहंतं । जेण न होहिंति पहूणि ताणि नियपाणधरणस्स ॥ ९॥ तयणु नयरनिवेणं कुमारकुसलप्पउत्तिकहणकए। तुम्हंतियम्मि पंनत्तिदेवया पेसिया एत्थ ॥ १३१० ॥ एवं समहिट्ठिय सालिभंजियं कणयथंभयग्गाओ। अवयरिय मए कहिओ तुह सुयअवहरणवुत्तंतो ॥ ११॥ इय भणिऊणुच्छलिउं सट्ठाणे सालिहंजिया पत्ता । अत्थाणजणो सबोवि विम्हिओ नरवइप्पमुहो ॥ १२ ॥ जंपंति सव्वसामंतमंतिणो देव पेच्छ अच्छरियं । जं जंपति सजीवारमणीओव रयणपडिमाओ ॥ १३ ॥ देवोच्चिय पुन्नपयं जस्स सयं खेयरी, ठिया वहुया । किं कामदुहा घेणू अभद्दनरगेहमल्लियइ ॥ १४ ॥ एवं जपंताणं ताणं सो वासरो वइकतो। माणियसुहनिहाणं झडित्ति रयणिवि अवसरिया ॥ १५ ॥ काऊण दिणयरोदय-1 195959595955555555555595959595555555994 ॥ ३७॥ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नैवेद्य पूजायां भुवनप्रमोदककथा 5 करणिजं रइयरम्मसिंगारो। उवविसइ सहाए निवो नमंतसामंतमन्तियणो ॥ १६॥ एत्थंतरे निलचलइयावलीरणझणन्तकिंकिणियं । मणिकिरणभरियभुवणं विमाणविंदं समणुपत्तं ॥ १७ ॥ गयणंगणमुक्कविमाणचक्का नीहरिय नहरयनिवेहिं । अणुगम्मतो सालयभुयलग्गो आगओ कुमरो ॥१८॥ अत्थाणसन्निविट्ठ जणयं पणमइ महिमिलियमउली । तेणावि गाढमालिंगिऊणमापुच्छिओ कुसलं ॥ १९ ॥ पुणरुत्तं पणमिय भणइ ताय कुसलं तुहप्पसाएण । कयजणणिपय|प्पणई उवविट्ठो पिउपयासन्ने ॥ १३२०॥ सह नहयराहिवइणा रंना काऊणमुचियपडिवत्तिं । उववेसिओ निए सो मणिमयसीहासणद्धम्मि ॥२१॥ सेसावि खयरपहुणो पणमिय दिन्नासणेसु उवविट्ठा । पणयाए वहुआए भव पुत्तवइत्ति भणइ निवो ॥ २२ ॥ तो सा पणमित्तु कुमारमायरं वामपासमुवविट्ठा । सुयहरणाविणयं खमसु राय इय भणइ खय|रवई ॥ २३ ॥ जइ न हरावेतो हं तणयं ता सुया मरंती मे । विहिओ मए अनाओ इमो सुयाजीवणनिमित्तं ॥२४॥ रायाह एस अनओ न होइ खयरिंद नणु इमा नीई । “समयाणुवत्तणं बहुगुणं च जं सो नरिंदनओ" ॥२५॥ खयराहिव बहुसुहमिच्छिरेहिं कटुं सहिजए थोवं । किमणंतसिवसुहत्थे कडं न कुणंति मुणिवसहा ॥ २६॥ विणओच्चिय एसो अविणओवि अहियं नारद तुह मन्ने । कन्ना तए विइन्ना जं मह भूगोयरसुयस्स ॥ २७ ॥ इय जंपिय सम्माणो तस्स कतो राइणा खयरपहुणो। परिवारजुयस्स जहा सविम्हओ सो ढिओ दूरं ॥ २८ ॥ एवं नरवरसम्माणकरणसंजायसमहियसिणेहा । ठाऊणं दिवसदुगं सट्ठाणे खेयरा पत्ता ॥ २९॥ नवकतासंजुत्तो विविहविणोएहिं कीलइ कुमारो। उवविसइ य अत्थाणे पिउपासे उभयसंझपि ॥ १३३० ॥ कइयावि परभवोचियसुकज्जकरणुज्जएण नरवइणा । गुरुरिद्धिवित्थरेणं कुमरो अहिासंचिओ रज्जे ॥३१॥ तो मोहमल्लनामस्स सूरिणो पायपउममणुसरिउं। गहिया दिक्खा रंना तविय तवं सो सिवं पत्तो ॥ ३२ ॥ नवनिवई वि नएणं पालेइ पयं विणिग्गइ दुढे । समुवज्जइ विमलजसं कुणइ य 5 595959559HIS 5555555555555 Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वासपूजायां गन्धबन्धुर श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् 4 59595959 सद्धम्मकिरियाओ ॥ ३३ ॥ कइयावि रणज्झणमाणकिंकिणीगणविमाणमारुहिउं । गंतुं मंदरनंदीसरेसु सासयजिणे थुणइ ॥ ३४ ॥ सुहसिविणसूइयसुयं कइयावि प्पसविया भुवणलच्छी। भुवणाभरणोत्ति कयं नामं सम्माणिय जणं से ॥ ३५ ॥ बालत्तमइकंतो गाहियबावत्तरीकलो कुमरो । अञ्चब्भुयरूवातो विवाहितो रायकन्नातो ॥ ३६॥ समयतरम्मि रजे भुवणाभरणं निवेसिउं राया। विहियवओ वरनाणी होउं पत्तो महाणंदं ॥३७ ॥ नेवजेणं पूया जहा कया राइणा इमेण तहा । सासयसिवसुहकजे कज्जा अवरेणवि जणेण ॥ ३८॥ --8॥ नैवेद्यपूजा ॥ 5+ + +भुवणप्पमोयगनिवो कहिओ नेवजपूयमभिसरिउं । इण्हिं तु वासपूयाए गंधबंधुरकहं भणिमो ॥ ३९॥ 5555 रम्मारामसरोवरपुक्खरिणिविरायमाणचउपासं । वसुहासारं नयरं समत्थि वित्थिन्नपायारं ॥ १३४०॥ नहसनिहफालिहगयणलग्गजिणहरसिरग्गमग्गठिओ। खणमेत्तं लक्खिजइ जम्मि रवी रयणकलसोच ॥ ४१ ॥ रयणियरकिरणसियकित्तिबंधुरो कित्तिबंधुरो नाम । फुरियप्पयावपसरो पयावइ अत्थि तत्थ पुरे॥४२॥ धरणिधररइयसेवो जो विजयाणंदकारओ दूरं । अहिजाइकयविणासो चिरायए गरुडपक्खिव ॥४३॥ सबुत्तमपत्ताहियच्छायापरमालिया सुहप्पसवा । लइयत्व कित्तिलइया समत्थि रन्नो महादेवी ॥४४॥ तीएत्थि तणुत्थसुगंधबंधुरो गंधबंधुरो नाम । कुमरो अमरोवमरूवरम्मयारमणिमणहरणो ॥४५॥ सुकया सियवन्नधरं सिरंव उच्चहइ जो नियसरीरं । परमहसिय-15 गुणजुत्तं मुहमिव रयणाभरणजायं ॥४६॥ नरनाहमंडलेसरसामंतमहन्तमंतिपुत्तेहिं । सययं सेविजंतो कालं अइवाहइ कुमारो ॥४७॥ कइयावि नियप्पासायचंदसालागवक्खमल्लीणो। विविहविणोयक्खित्तो जा चिट्ठइ सह वयस्सेहिं॥४८॥ ताव सहसत्ति एगो कीरो नियपक्खनीलकन्तीए। हरियालीकलियंपिव नहं कुणंतो समणुपत्तो॥४९॥ 95959545 Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वासपूजायां गन्धबन्धुरकथा अच्छरियं जणयन्तो जणस्स कुमरक्कमे नमेउं सो । महुरगिरं पयडक्खरमेवं विनविउमारद्धो ॥१३५०॥ आरामाहिय- वासो रायसुओ रत्तवयणविन्नासो । तुममिव कुमर अहंपि हु तेणाहं तं समल्लीणो ॥५१॥ ता आयन्नसु कजेणमागतो जेण विनवेमि तयं । निक्कजाओ पवित्तीओ हुंति जइवा न सउणाण ॥५२॥ तं सोऊण पयंपइ कुमरो कीराहिराय उवविसिउं । रयणासणम्मि साहसु तो सो उवविसिय साहेइ ॥ ५३ ॥ अत्थिरयाहियतुरयं अत्थिरयाहियसुवन्नवरदाणं । अत्थिरयाहियजणं उदयाणंदाभिहं नयरं ॥ ५४॥ तम्मि नमिरनरेसरसिरसोणमणिप्पहापिसंगपओ । उदियप्पयावराया समत्थि वित्थरियजसपसरो ॥ ५५ ॥ सच्छप्पयई कालुस्सहारिणी सारसोहसंजुत्ता। उदयावलिब उदयावली पिया अत्थि नरवइणो ॥५६॥ विलसंतविमलसंखाकयसयवत्तालिचक्कसंखोहा । उदयस्सिरित्ति उदय|स्सिरिब तीए समत्थि सुया ॥ ५७॥ सरलसहावा नियनासियत्व सिहणस्सिरिब सुपवित्ता । दूरं रत्तं अहरं व धरइ जा वयणविन्नासं ॥५८॥ निरुवमरूवं कमणीयजोवणं तं समग्गसोहग्गं । अवलोइउं जुवाणा वहंति दूरं मणुम्मायं ॥ ५९॥ दखूण तट्ठहरिणच्छिपेच्छियं तीए नीइनिउणा वि । मुणिणोवि अणप्पवसा हवन्ति किं निविवेयातो ॥ १३६०॥ कइयावि सा सहीयणसहिया सिंगारगारवग्घविया । आरुहिय कणयमणिमयसुहासणं चलिरसियचमरा |॥ ६१ ॥ मुत्तावचूलविलसंतछत्तअंतरियतरणिकरपसरा । सहयारसारमुजाणमागया कीलिङ बाला ॥ ६२॥ परि पक्कफुट्टदाडिमबीयावलिनिद्धदन्तपंतीहिं । हसइब जं नरेसरसुयासमागमणतोसेण ॥ ६३ ॥ विलसंतकुसुमलइयासिय| कलियाचकवालकलियं । कुमरीसंगवसुल्लसियपुलयपन्भारभरियंव ॥ ६४॥ अंबयवणकयलीहरदक्खामंडवमणोमि राममि । तंमि पविठ्ठा बहुकुसुमपरिमलब्भमिरभमरंमि ॥ ६५ ॥ पेच्छइ अतुच्छअच्छरियकारयं नरमुहं मऊरं सा। जविलसिरसुतारचंदयविरायमाणं नहयलंब ॥६६॥ मुत्तावलइयमरगयकुंडलकरच्छुरियनिम्मलकवोलं । चंदणमयणा Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अनन्तनाथचरि त्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् ॥ ३९ ॥ हीरेहरइयबहुभंगिपत्तंव ॥ ६७ ॥ भमरउलकालकुंतलधम्मिल्लुल्लसियसियकुसुममालं । सामचउद्दसिनिसिदिस्सविमलरयरकलं ॥ ६८ ॥ दद्धुं कुमरिं नियचरणचारुसंचाररणिरघग्घरिओ । गंतूण संमुहो भणइ कुमरि तुह सागयं एत्थ ॥ ६९ ॥ एहि इहं च वर्णतो कयलीहरए सदक्खमंडवए । उवविसिउं आयन्नसु जं किंपि अहं तुह कहेमि ॥ १३७० ॥ तं अवलोइय अञ्चब्भुएकहेउं सहीउ सा भणइ । कोऊहलमवलोयह जमिमो दीसइ नरमऊरो ॥ ७१ ॥ तह वाहरइ सविणयं मं किंपि हु मज्झ कहिउमिच्छन्तो । ता तं आयनेमो उववसिउं साहए जमिमो ॥ ७२ ॥ जंपंति ताउ सामिणि तुम्हाऽऽणच्चिय पमाणमम्हाण । कल्लेसु समग्गेसु वि किं पुण एवंविहच्छरिए ॥ ७३ ॥ तं सोउं मुक्कसुहसणावि कुमरी सुहासणे ठाइ । उबविट्ठासु सहीसुं कहिउं लग्गो नरमऊरो ॥ ७४ ॥ अत्थि गरिट्ठसुरट्ठाविसिट्टवसुहावयंससंकासं । वसुहावयंसयं नाम नयरमइरम्मरमणियणं ।। ७५ ।। रयणावयंसयनिवो तं पालइ जो रणागयंपि रिडं । अस्सत्थमुभयहाविहु मुंचइ अस्सत्थमवि सदओ ॥ ७६ ॥ तत्थ निवमाणणिज्जो पुज्जो पउराण पउरगुणभवणं । दीहरदिट्ठी सेट्ठी निवसइ नयवद्धणो नाम ॥ ७७ ॥ तस्सत्थि भाइपुत्तो सुरुववंतो धणावहो नाम । उवरयजणउत्ति करेइ तस्स गुरुगोरवं सेट्ठी ॥ ७८ ॥ मुत्तूण नियंगरुहे वियरइ वत्थाइ तस्स परमं से | अहव “गुरुयासयाणं अप्पपरवियारणा नत्थि" ।। ७९ ।। परिणाविओ य उम्मीलमाणनवजोबणाभिरामतनुं । धणसेट्ठिसुयं नामेण धणवईं सीलकुलभवणं ।। १३८० ॥ कइयावि हु असुहोदयवसओ सो सेट्ठिमाह मह ताय । वियरसु घरस्सिरीए अद्धं भिन्नो भविस्समहं ॥ ८१ ॥ तं सोऊण पर्यपइ सेट्ठी किं वच्छ एवमुल्लवसि । तं मोत्तुं को अंनो घरस्सिरीसामिओ कहसु ॥ ८२ ॥ अञ्चन्भुयभोयअमाणदाणकज्जे धणवयं कुणसु । अणुकूलंमि मए वच्छ तुज्झ को नाम पडिकूलो ॥ ८३ ॥ अवरं च तमेगागी पडिवालसु जाव पुत्तउप्पत्तिं । नूणं जं न मुणेमो वियंभियं विहिविलासस्स ॥ ८४ ॥ इय जंपिओवि न मुयइ वासपूजायां गन्धबन्धुरकथा ॥ ३९ ॥ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुग्गाहं तयणु ससुरयस्सावि । न कुणइ भणियमजोग्गाणहवा कत्तो गुणाहाणं ।। ८५ ।। तो एगंते कंताए जंपिओ नाह एव किं भणसि । मा पेच्छसु अच्छीहिं हियएण सुदीहमिक्खे || ८६|| निश्चितं संपज्जइ सर्व्वपि ठियाण गुरुसमीवंमि । लवणपि सचिंताए भविही भिन्नट्ठियाण पुणो ॥ ८७ ॥ कस्सइ पुत्रेण इमा लच्छी उल्लसइ नज्जइ न एयं । ता का नाम कुबुद्धी तुम्हाणं भवह जं भिन्ना ॥ ८८ ॥ इय तीउत्तो जंपइ तुच्छमई तं न पेच्छसि किमेयं । अहमेगागी एवं गरुयकुटुंबं सिरी जाइ ॥ ८९ ॥ इय जंपिय सेट्ठिसयासओ सिरिं विभइडं ठिओ भिन्नो । कारावियं च गरुयं तिभूमियं तेण धवलहरं ।। १३९० ॥ पारद्धो ववहरिउं जलथलमग्गेसु भूरिदविणे स । वुड्ढनिमित्तं दितो दबं पहुयाइवी न लेइ ॥ ९१ ॥ तुरयारूढो माऊरछत्तअंतरियतरणिसंतावो । हिंडइ वणिउत्तबूहावेढिओ रम्मासंगारो ॥ ९२ ॥ नो सयणाण न मित्ताण नेव लिंगीण जायगाणवि नो । वियरइ कस्सइ किंपि हु दितिं दइयंपि वारेइ ॥ ९३ ॥ कूडबवहारेहिं हृत्थं चिय वच्छ गच्छिही लच्छी । इय सेट्ठिपउत्तो भणइ ताय सगिहं विचिंतेसु ॥ ९४ ॥ गहियधणाओ लोगोवि किंपि से देइ सेट्ठिलज्जाए । “दूरे गुरूण आणा तेसिं लज्जावि सिरिजणणी" ।। ९५ ।। देव (ब) वसेणं कालकमेण | पंचत्तमुवगओ सेट्ठी । पच्छा सो निस्संको अहियअरे कुणइ ववहारे ॥ ९६ ॥ अह तस्स असुहवसओ सिरी समग्गावि नासिउं लग्गा । मग्गिज्जंतो लोगो दुबयणे देइ नो दबं ॥ ९७ || देसंतरेसु वि ठिया वणिउत्ता जायभूरिधणलाहा । दिट्ठावि लोहिडमलं लच्छी किं नो सहत्थगया ॥ ९८ ॥ सो निक्खिणिही नूणं दाहइ न कयाइ मं सुपत्ताण । इय भीयब | सिरी भिन्नपवहणा सायरे मग्गा ॥ ९९ ॥ देइ न कर्णपि कस्सइ एसो बहुधन्नसंगहपरोवि । इय भाविअ कुविएणव दड्डा जलणेण कोद्वारा ॥ १४०० ॥ नवि जाओ नयभोगो किमस्स ता निरुवयारिदविणेण । इय चिंतिऊणव तयं नीयं खत्तेण चोरहि ॥ १ ॥ इंगालच्चिय जाया धणे निहाणीकए कुकम्मवसा । अवरदविणज्जणासा कुओ करत्थे विण वासपूजायां गन्धबन्धुरकथा Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9 श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् वासपूजायां गन्धबन्धुरकथा ॥४०॥ स्सन्ते ॥ २॥ सयमवि दिन्नं न लहइ जणाओ कत्तो कलंतरधणं सो। "उयरट्ठियतणयासा का अंगुलिलग्गसुयमरणे" ॥३॥ मग्गियजणनीयाई न मग्गमाणोवि लहइ रित्याइं । नियवत्थुपि न लब्भइ जत्थ कहिं तत्थ परवत्थु ॥४॥ ससुरेणावि विइन्नं बहुवाराओ धणं तयंपि गयं । “पत्तावि सिरी झिजइ नूणमकल्लाणकलियाण" ॥ ५॥ किं बहुणा संजायं दवं सबंपि से कहासेसं । तो दुटुं सीयंत कंतं कंता विहियविणया ॥ ६॥ उल्लवइ दइय तइया न कयं कस्सावि जंपियं तुमए । जइवा दइवाभिहयाण होइ एवंविहकुबुद्धी ॥ ७ ॥ इय जंपिऊण तीए ववहारकए समप्पियं पइणो । निययाभरणं अहवा “पइभत्ता होइ कुलकंता" ॥८॥ तंपि हु कइवि हु दिवसेहिं पेसियं तेण पुवधणमग्गे। अहवा जं जं खिप्पइ हुयासणो दहइ तं तंपि ॥ ९ ॥ पच्छारच्छाइंवि विक्किऊण भुत्ताई तेण सवाई। आयविहूणे वित्ते वइज्जमाणे कुओ रिद्धी ॥ १४१० ॥ घरहट्टोवरि गहिऊण कंचणे भक्खियमि तेसिंपि । मुक्को अहव अभग्गाण जाइ पिउदिन्नमवि रजं ॥ ११ ॥ जर्सि देयं दवं न तेसि पासाउ लहइ अवरत्थ । गंतुं तो तत्थेवय निवसइ अञ्चंतदोगच्चो ॥ १२॥ जो वसिओ धवलहरे विचित्तचित्ते तिभूमिए सययं । सो वसइ ताव जलसीयधूमिओ जलकुडीरम्मि ॥ १३ ॥ जो मंदपवणपरितरलसिक्किरिच्छायमस्सिओ भमिओ। विकयकजे सो भमइ कट्ठहारकयच्छाओ ॥ १४॥ जो संसुत्तो दोलाचलंतपल्लंकतूलियासु सया। सो सुयइ दब्भसत्थरयमुवगओ बाहुउवहाणो ॥ १५॥ पडिजद्दरंबरेहिं सिंगारो जेण सबया विहिओ। बहुछिद्दडंडियाई परिहइ सो मलिणवत्थाई ॥ १६ ॥ जो गरुयतुरंगसुहासणेसु आरुहिय सबया भमिओ । परियडइ फुडणखंजंतपयजुत्तो सोणुवाहणओ ॥ १७ ॥ नवरं इस्सरियम्मिव दारिदेवि हु पिया न तं मुयइ । "उद्यक्खएसु दइए समचित्ताओ सईउ सया॥१८॥ अइसुहिओ होउं सो अञ्चतं दुहभरं समणुहवइ । पाविय संपुन्न|सिरी किं खंडिजइ नय मयंको॥१९॥ समयंतरम्मि कम्मिवि वीवाहे सेट्टिपुत्तकन्नाए । पारद्धे नयरजणो निमंतिओ 959555555555559999 ॥४०॥ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वासपूजायां गन्धबन्धुरकथा भोयणनिमित्तं ॥ १४२० ॥ सो चिंतइ अज निमंतणं इहागच्छिही अओ मज्झ । वत्तणकजे जुज्जइ खडाइआहरणगमणं नो ॥ २१ ॥ गेहेचिय अच्छिस्सं जमिह निमंतयनरो खडप्फुडिही। इय चिंतंतो तत्थ ढिओ दिणप्पहर|जुयलं जा ॥ २२ ॥ मज्झंदिणेवि जाए जा को विन से निमंतओ पत्तो। ता परिभावइ एवं नाहं नाओ गिहठि| ओत्ति ॥ २३ ॥ ता जामि तत्थ सयमवि नियघरगमणम्मि मज्झ का लज्जा। अगयस्स पुणो सयणा लहु रुसिरसंति जा जीवं ॥ २४॥ इय कहियं कन्ताए सा जंपइ नाह मोहमूढोसि । धणिणो सहोयरेणवि दरिहिणा किं न लजन्ति | ॥२५॥ नाह कुचेलोत्ति दरिद्दिओत्ति ववहारकरणअखमोत्ति । न निमंतिओ धुवं कुणसु नियमणे मा तुमं भंतिं ॥ २६ ॥ न कयाइ मज्झ भणियं तए कयं कुणसु संपर्यपि तुमं । जं पडिहाइ मणे तं जइ जंपिय सा ठिया मोणे ॥ २७ ॥ इय संगयंपि भणिरि अवगंनिय तं गओ स वीवाहे । "अहव हियाहियविसये कुओ विवेओ जडमईणं" ॥ २८ ॥ अन्भुक्खणभदासणउववेसणपायसोहणप्पमुहं । विरइज्जतिं पेच्छइ पडिवत्तिं ईसरजणस्स ॥ २९॥ तंबो लकरे विरइयविलेवणे पत्तपट्टउयवत्थे । भुत्तुत्तरे पलोयइ निग्गच्छन्ते धणड्डनरे ॥३०॥ अब्भुक्खणंपि न लहइ आसनाणपयसोयणाइ कत्तो सो। तो तंबकडाहिजलेणन्मुक्खिय धोयए पाए ॥ ३१ ॥ उवविट्ठो पडिवालइ आमंतणमत्तणो निरिक्खइ य । वाहरिय गोरवेणं भोइजंतं परजणंपि ॥ ३२॥ विहिय अदिस्सीकरणेव तम्मि दिहिँपि न खिवए कोवि । दूरे चिट्ठउ पकं न वंजणप्पमुहभोज से ॥ ३३ ॥ तस्स तह संठियस्सवि दिणमद्धप्पहरसेसयं जायं । भोज्जत्थे | निवसन्ति पेच्छइ पजतपतिं सो ॥ ३४ ॥ चिंतइ य किं अवन्ना इमाणमवाउलत्तमचंतं । ज मह नियडा भोयणकज्जे नीया न चेव अहं ॥ ३५॥ ता जामि सममिमेहिं भुंजामि निए गिहमि का लज्जा । एवं परिभावन्तो पत्तो नर|पंतिमझमि ॥ ३६॥ दोपासरुभद्दासणोवविट्ठाण ईसरनराणं । मज्झे उवविट्ठो गहियभायणो विट्ठरे नीए ॥ ३७ ॥ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अनन्त - नाथचरिश्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् ॥ ४१ ॥ पित्तलपडिग्गहट्ठिय गुरुपरियलजुयलमिलणअंतरियं । भूमिगयभायणं से नयणाणमगोयरं जायं ॥ ३८ ॥ खज्जूरदक्खदाडिमअंबयखार कसकराईयं । दिन्नं अन्नाण न दायगेण से भायणं दिहं ॥ ३९ ॥ तह सालिसूवसालणय सप्पिपक्कन्नपेयपमुहाण । किंपि न क्खित्तं अद्दिस्सभूमितलमुक्कथाले से || १४४० ॥ दट्ठूण दहिविमिस्सं भुंजतो फुरियगरुयअवमाणो । सिररइयभायणो तेसिमग्गओ नञ्चिरो पढइ ॥ ४१ ॥ " हे दारिद्र्य नमस्तुभ्यं सिद्धोऽहं त्वत्प्रसादतः । जगत्पश्यामि येनाहं न मां पश्यति कश्चन ॥ ४२ ॥ एए मह जणयसहोयरस्स पुत्तत्ति भायरो मज्झ । भाउज्जायाउ इमाउ भाइणिज्जा इमे सबे ॥ ४३ ॥ जह मंततंतविज्जाइएहिं सिद्धा हवन्ति अहिस्सा । जाणह तहा ममंपि हु नूणं दारिद्द - सिद्धोति ॥ ४४ ॥ जइ होमि न सिद्धोहं ता दिट्ठो किं निएहिं वि इमेहिं । सयणेहिं सबेहिंवि भोयणकरणोवविट्ठोवि ॥ ४५ ॥ सोजनं सुहिभावं सयणत्तं परिचयं च दक्खिन्नं । कुणइ धणद्वेण समं दरिद्दिणा नेव सजणो ॥ ४६ ॥ जे भोयणवत्थाइयवहारे काउमक्खमा नूणं । जह मह तह अन्नाणवि न कीरए क़ावि पडिवत्ती ॥ ४७ ॥ सुद्धा जाई सबुत्तमं कुलं निम्मला कलाओवि । धणरहियाण न किंचिवि सयावि जेणेरिसं भणियं ॥ ४८ ॥ " जाई कुलं कलाओ तिन्निवि पविसंतु कंदरे विवरे । अत्थोचिय परिवडउ जेण गुणा पायडा हुंति” ॥ ४९ ॥ केणावि कारणेणं न इमेहिं | पलोइतो इय भणतो । नीहरिडं सो अवमाणदूमिओ नियगिहं पत्तो ॥ १४५०।। पिय मइ वारंतीएवि न द्विओ ता एत्तियस्स जोग्गो तं । इय जंपिरीए भज्जाए भोइओ सीयरबाइ ॥ ५१ ॥ दारिद्देणं दूरं दूमिज्जं तस्स तस्स वञ्चन्ति । दिवसा विसायवसयस्स अन्नया सो गओ रन्ने ॥ ५२ ॥ पेच्छइ य तरुछायाए संनिविट्ठे मुणीसरे संते । सिद्धंतसुंदरक्खे दक्खे सिक्खाए साहूण ॥ ५३ ॥ जे समयग्ग्रंथा इव सहति आयारवाणसमवाया । विन्नाया धम्मकहापण्हवायरणपरमाया ॥ ५४ ॥ धणनाससयणपरिहव दुस्सहदोगञ्चदूमियगणो सो । ते दट्ठूण सुहोदयवसओ तेसिं गतो पासं ॥ ५५ ॥ वासपूजायां गन्धबन्धुरकथा ॥ ४१ ॥ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भत्तिभरनिव्भरंगो पण मिय पयकमलमिलियभालयलो । उवविट्ठो जंपर पहु गिहिजोग्गं कहह मह धम्मं ॥ ५६ ॥ आह पहू आयन्नसु नारयतेरिच्छनरसुरविभेया । भवइ भवो चउभेओ "दुहमेवय चउसुवि गईसु ॥ ५७ ॥ पाणिवहप्पमुहमहापावा निवडंति पाणिणोणेगे । नरएस तेसु वि सहति वेयणं विरसमारसिरा ॥ ५८ ॥ तिरियनरभवंतरिया | पुणरुत्तणुभूयसवनरयदुहा । बहुसो वि तिरिच्छंते सहन्ति समुवज्जिऊण दुहं ॥ ५९ ॥ सासयविरोहवहवाहदोहमंसासिमारणाईणि । असुहाई समणुहविऊण केवि अज्जंति मणुयत्तं ॥ १४६० ।। तम्मि वि धम्मविरहिया दीणा दारिद्ददुहभरकंता । विहली हूयमणोरहमाला परिभवपयं हुंति ॥ ६१ ॥ देवावि परप्पेसत्तदुसहईसाविसायवियलंगा । अत्ताणामकयकयं निंदता दुहमणुहवंति ॥ ६२ ॥ एवं पावंति सुहं न गइचउक्केवि धम्मपरिहीणा । धणवज्जियब विवणीए नियमणोभिमयवरवत्युं ॥ ६३ ॥ ता धम्मोश्चिय कज्जो दुविहो सो साहुगिहिविभेएहिं । पढमे दसेव भेया भैया वीयम्मि बारस उ ॥ ६४ ॥ संमत्तजुया दोन्निवि दिंति सिवं तंपि मुणसु संमत्तं । गयरायदेव-निग्गंथसुगुरु-नवतत्तसदहणा ॥ ६५ ॥ एगयरंपि असत्तो धमं काउं करेइ भावेणं । अट्टप्पयारपूयं जिणाण जं सा वि सिवजणणी ॥ ६६ ॥ |नेवज्जकुसुमअक्खयदीवयफलसालिधूववासेहिं । इय अट्ठविहा पूया कया जिनिंदाण भवहरणी ॥ ६७ ॥ अट्ठवि काउमसत्तो सत्तो जइ कुणइ वासपूर्वपि । तित्थेसरस्स ता जाइ तस्स पावं जओ भणियं ॥ ६८ ॥ घणसारहरिणनाहीसुयंधवरवासखेयपूयमिसा । जिणपवणसंगमेणव पावरयं दूरमुडेइ ॥ ६९ ॥ ता धम्मसील पत्तं मणुयत्तं मा मुद्दा तुमं नेसु । समुवज्जसु वासेहिंवि पूइत्तु जिणं परमपुन्नं ॥। १४७० ॥ इय सोउं सो सद्धम्मदेसणं सूरिणो नमिय भणइ । पहु मह महापसाओं कओ इमं साहिउं धम्मं ॥ ७१ ॥ नूण निरीहा तुम्भे परोवयारेकबद्धवावारा । जं मह दरिद्दियत्सवि एवं धम्मं समाइसह ॥ ७२ ॥ इय जंपिय पणयगुरु गहियतणाई गओ गिद्दे नियए । कहिओ य भारियाए पूयाफल वासपूजायां गन्धबन्धुरकथा Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अनन्त - नाथचरि त्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् ॥ ४२ ॥ सवणवुत्तो ॥ ७३ ॥ तीउत्तमहम्मफलं पिय तुह सबंपि कुणसु ता धम्मं । जेण न भवंतरेवि हु विडंबणा एरिसी होइ ॥ ७४ ॥ तेणुत्तमिमं काहूं जंपेउं गंधियावणम्मि गओ । तेण भारयमुल्लेणं गहिया सबुत्तमा वासा ॥ ७५ ॥ तत्तो | हिययब्भन्तरवियंभिओद्दामभत्तिपब्भारो । जिणमंदिरंमि चलिओ रयणमए तम्मि पत्तो य ॥ ७६ ॥ सच्छप्फालिहदीहरदंडेनिलपसरिया सियवडाया । जम्मि सुरेहिंवि नज्जइ सविम्हयं गयणगंगव ॥ ७७ ॥ कंकेल्लितमालवणेसु जस्स पविसंति रयणकरंडा । रागद्दोसवणारयणमुक्कजिणरायबाणव ॥ ७८ ॥ तो सो पहिट्ठचित्तो तम्मि पविट्ठो विसिहजिणभवणे । उवसन्तकन्तरूवं अवलोयइ उसहजिणनाहं ॥ ७९ ॥ तो विष्फुरंतबहुमाणपसरवसपुलयकलियतणुजट्ठी । आणंदअंसुजलभरपक्खालियवयणवच्छयलो ॥ १४८०॥ उल्लसियमणो वियसन्तलोयणों कुणइ सुरहिवासेहिं । पूर्व पहुणो | नियजम्मसहलयं मन्नमाणो सो ॥ ८१ ॥ असरिसबहुमाणवसो पुणरुत्तं भूमितलमिलियभालो । पणमिय पलोइय चिरं | जिणेसरं आगतो सगिहे ॥ ८२ ॥ कहियं पियाए वासेहि जिणवरो पूइओत्ति तो सावि । बंधइ अणुवमपुन्नं पसंसमाणी इमं अट्ठ ॥ ८३ ॥ कइयावि दोवि निययाउअंतमणुसरिय मरिय जायाई । अमरत्तेणं आरणकप्पे सुररायसरि - साई ॥ ८४ ॥ एगवीससागराई भुत्तुं सुरलोयलच्छिविच्छडुं । सिद्धाययणजिणञ्चणकरणज्जियसुकयसंभारा ॥ ८५ ॥ चविय तओ वसुहासारपट्टणे कित्तिबंधुरनिवस्स । जाओ धणावहसुरो पुत्तो असमाणगुणत्तो ॥ ८६ ॥ धणवइ| अमरोवि पुणो उदयाणंदे पुरम्मि उप्पन्ना । उदियप्पयावरन्नो कन्ना उदयस्सिरी नाम ॥ ८७ ॥ हुंतो हं पुवभवे तुह | जणओ मरिय बारसमकप्पे । बावीससायराऊ संजाओ भासुरो अमरो ॥ ८८ ॥ तं जोबणमणुपत्ता पत्ता कीलाकए इहुज्जाणे । पुवविदेहा वलिओ वंदिय जंगमजिणिंदे हं ॥ ८९ ॥ मह दिट्ठिपट्टे पत्ता उल्लसिओ पुवभवभवो नेहो । नाया य ओहिणा पुवभवसुया तं तओ ज्झति ॥१४९० ॥ कयनरमऊररूवेण एत्थ उववेसिउं मए कुमरि । तुह पुवभवा वासपूजायां गन्धबन्धुरकथा ॥ ४२ ॥ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ L Eदान वासपूजायां गन्धबन्धुर कथा दोनिवि कहिया नियभवदुगेण समं ॥ ९१ ॥ तं सोउं कुमरी जाइसरणसच्चवियपुवभवचरिया। सिरिगंधबंधुरम्मि अणुरत्ता पुब्वभवदइए ॥ ९२ ॥ तो झत्ति नरमऊरो चलकुंडलहारकंठकयसोहो । जाओ अमरो बहुरविपयावपब्भारदुनिरिक्खो ।। ९३ ॥ तो सा कयप्पणामा पूयइ तं सुरहिपरमवत्थूहिं । "इयरम्मि वि कुलबाला विणयवई किन्न जणयंमि" ॥ ९४ ॥ जंपइ य ताय तुमए जह कहियं तह मएवि सञ्चवियं । पुत्वभवहुगचरियं सिविणे दिवसाणुभूयं व ॥९५॥ ता तुमए मह कहिओ जो पुवभवुब्भवो पिओ कुमरो । इण्हिपि तं वरिस्सं "सईओ न नरंतरमईओ" ॥९६॥ आह सुरो रिद्धीकरी पूया अणुमोइयावि तुह जाया। फलइ बहुं थेवंपिहु बीयं ववियं सुभूमीए ॥ ९७ ॥ तो दिट्ठपञ्चया तं करेज धम्मुज्जमं सया वच्छे । “निच्छइए कल्लाणे न पमाओ जुज्जए जइवा" ॥ ९८ ॥ एवं धम्मुवएसं दाउं सहसा तिरोहिओ तियसो । कुमरी वि गंधबंधुरकुमरे रत्ता गया सगिहे ॥ ९९ ॥ न मुणइ छुहं न पावइ निदं न वियाणए तिसं बाला । जलणजालाजलियंव विरहविहुरा वहइ देहं ।।१५००॥ मन्नइ वीयंव सा चित्तसालियं मुम्मुरंपिव मुणालं । आभरणं दुम्मरणंव पावपूरं व कप्पूरं ॥१॥ एवमवत्थं कुमरिं दहण सहीओ तीए नरवइणो । साहिति पुवभवभवदइए रत्ता तुह सुयत्ति ॥ २॥ नाऊण निवेणवि सहिमुहेण दुहियाए पुत्वभवदइयं । कन्नपि जाणि पियविओयसहणासहं दूरं ॥ ३ ॥ तवेलंञ्चिय मंडलियमंतिसामंतधाइसंजुत्ता । बलकलिया पट्टविया सयंवरा कन्नया तुज्झ ॥ ४ ॥ तीए अहं सत्थकहाकवविणोएसु सब्बया सचिवो। तो तं मोयावेउं तं वद्धाविउमिहं पत्तो ॥५॥ चउपंचदिवसमज्झे सावि हु |तुह पुत्वभवपिया एही । इय विनविउ कुमरं कीरो मोणं समल्लीणो ॥ ६॥ तं सोउं जाईसरणनायनियपुषभवदुगो कुमरो। कुमरिं पइ जायदढाणुरायवसपरवसो जाओ ॥ ७ ॥ चिंतइ तइया दइया निचंपि हियं पयंपमाणीवि । न मए तिणंव गणिया अहो अहंकारमूढेण ॥ ८ ॥ दुईत्तोवि दरिदोवि दुम्मुहोवि हु सईए तीए अहं । ईसरसेहिसुयाएवि 55555555555SE ELGUPUCUPUCAPO अनन्त०८ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअनन्त- नाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् वासपूजायां गन्धबन्धुर कथा पुवभवे नेव परिहरिओ ॥ ९॥ ताहमवि पुत्वभवभवकंतं मोत्तुं न काहमन्नपियं । रंजिजइ इहभविएवि किं न परभवभवेरत्ते ॥ १५१० ॥ इय परिभाविय विजावणट्ठ नियमुद्दियाउ कीरस्सा । निक्खिवइ चरणजुयले कंठमि पुणो रयणकडयं ॥ ११ ॥ भणइय कीर तुम उभयहावि सउणो कहेसि कल्लाणं । नहि निग्गुणाण एवंरूवपवित्ती हवइ नियमा ॥ १२ ॥ ता तं गंतुं कुमरीए कहसु कीरेस इय मह पइन्नं । तीए जहा संपज्जइ मह विसए मणसमाहाणं ॥ १३ ॥ आएसोत्ति भणित्ता तयणु सुओ उडिऊण संपत्तो । कुमरीपासे सोऊण तं ठिया सावि संतुट्ठा ॥१४॥ कुमरवयंसेहिं इमं सबंपि हु साहियं नरिंदस्स । तं सोउं तेणुत्तं किमजुत्तमिमम्मि कल्लाणे ॥१५॥ जं गुरुयरायकुमरी सयंवरा एइ गुरुनिवसुयस्स । इहभवभवावि किं पुण भवन्तरुप्पत्तअणुराया ॥१६।। इय जंपिय कारविया पुरसोहा राइणा पहिडेण । मोत्तुं वीवाहमहं गिहीण परमूसवो नन्नो ॥१७॥ पञ्चोणीए तीए पेसइ सामन्तमंतिमंडलिए। “गोरवमियरेवि गुरू विरयइ कि नोणुरायपरे" ॥ १८ ॥ आवासदाणसम्माणकरणसमुहपसागयं तीसे । विहियमियरोवि अतिहि पुज्जो किं पुण नरिंदसुया ॥ १९ ॥ उत्तमलग्गे कुमरो कुमरिं वीवाहिओ नरिंदेण । कुलवुट्टिकरे कजे किं कोइ पमायमायरइ ॥ १५२०॥ तीए सह विसय सोक्खं माणइ कुणइ य सुधम्मकम्मं सो। इहलोइयपरलोइयकज्जेसु समुज्जया गरुया ।। २१ ॥ समयंतरम्मि कम्मिवि कुमरं रजंमि ठविय नरनाहो । कयपधजो संजायकेवलो मोक्खमणुपत्तो ॥ २२ ॥ नवनिवई नीईए पालइ रजं अभिहवइ दुढे । सिट्टे पूयइ, मन्नइ महायगं गुणिगुणे थुणइ ॥ २३ ॥ एवं निरवजसरजकजकरणुजयस्स नरवइणो । जति दिणाई दिणमणिकरभरसरिसपयावस्स ॥ २४ ॥ जाओ कयाइ देवीए तीए सुह लक्खगो सुओ तस्स । काउं वद्धावणयं नाम गुणबंधुरोत्ति कयं ॥ २५॥ लालिज्जतो धाईहिं वद्धिओ जाव पंचवरिसाई। परिपाढिओ य अज्झावएहिं सबाउ वि कलाओ॥२६।। पत्तो य जोवणं तरुणकामिणी नयणमणहरं रंना । परिणाविओ नरिंदाण रम्मरूवाओ जप ॥४३॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वासपूजायां गन्धबन्धुरकथा कन्नाओ ॥ २७ ॥ दटुं तं रजमहाभरधरणसमत्थमुत्तमे लग्गे । अहिसिंचइ नियरजे राया रिद्धिप्पबंधेण ॥ २८ ।। काराविऊण जिणइंदमंदिराई गिरिंदरुंदाई । सूरीहिं पइट्ठाविय मणिमयतित्थेसरे तेसु ॥ २९ ॥ सिद्धंतपोत्थयाइं लिहाविउं पूइउं च सिरिसंघं । घोसाविउं अमारिं मोयाविय सबगुत्तिनरे ।। १५३०॥ आरुहिय रयणसिवियं दितो दाणाई दीणदुत्थाण । गुरुरिद्धीए गंतूण सुगुरुपासंमि पवइओ ॥ ३१ ॥ अहिगयसुयसभावा पाउब्भूयप्पभूयसंवेगो। निम्मूलुम्मूलियघाइकम्मवसपत्तनवनाणो ॥ ३२ ॥ महुरस्सरसदेसणपडिबोहियभूरिसवसंघाओ। संपत्तो सो सासयसोक्खसमिद्धीए सिद्धीए ॥ ३३ ॥ एयस्स वासपूया जह जाया सिद्धिसोक्खसंजणणी । तह अन्नस्सवि जायइ जइयत्वं ता सया तीए॥३४॥ वासपूजा ॥ ॥ इय तिहुयणसामिअणन्तनाहकहियम्मि अट्ठपूयफले। बहुमाणपसअकलिओ कयंबपरिमल. महीनाहो ॥ ३५ ॥ ॥ इति श्रीअनंतनाथचरित्रगतपूजाष्टककथानकानि । समाप्तोयं ग्रन्थः ॥ श्रीरस्तु । शुभं भवतु ॥ ॥श्रीः॥ यादृशं पुस्तकं वीक्ष्य तादृशं लिखितं मया ॥ हीनाधिक्यैः स्वरैर्वणैरस्माकं दूषणं नहि ॥ १॥ * * ॥ | धम्मधरुद्धरणमहावराहजिणचंदसुरिसिस्साण । सिरिअम्मएवसूरीण पायपंकयपरेणेह ॥ १॥ सिरिविजयसेणगणहरकणिट्ठजसदेवसूरिजेटेहि । सिरिनेमिचंदसूरीहिं भवलोओवएसट्ठा ॥ २ ॥ सयमेव कयाउ अणंतसामि जिणरायचारुचरियाउ । पूयट्ठगमुद्धरियं तं नंदउ तिहुयणं जा उ ॥ ३ ॥ पञ्चक्खरगणणाए सिलोगमाणेणमेत्थ जायाई। पूयट्ठगम्मि |सयरीसमहियअट्ठारससयाई ॥ ४ ॥ छ । ग्रंथानं १८७० ॥ छ ।। श्रीः ।। श्रीः॥ * ॥ * ॥ * ॥ पान Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निवेदनम् FULLETELLIGEET EALTH नकल श्रीअनन्त * संपादकीय निवेदन नाथचरि अनंत कल्याणकारी श्री अनंतनाथप्रभु प्रसादित अतिसुन्दर कथाओंसे युक्त श्री पूजाष्टक वाचकोंके करकमलोंमें समर्पण करते त्रादुद्धृतं IHIअति आनंद होता है, इस चरित्रकी प्रेसकापी संवत् 1994 में सूरत में ही तैयार हो चुकी थी, परंतु प्रकाशित करने का साम्यूब पूजाष्टकम् तो इस वर्ष पंन्यासप्रवर श्री सुमति विजयजी गणिवर्यादिकी प्रेरणा द्वारा इन गृहस्थोने प्राप्त किया है, सहायक नाम // 44 // मुकाम __सहायक नाम शाह रायचंद गुलाबचंद अच्छारी 200 शाह धनजी ज्वेरभाइ। ,, दलाजी जेताजी कोपरली 125 ,, नगीनचंद धूलाजी ,, धनराज खीमचंद वापी 120 , रायचंद प्रागजी , रायचंद हरखचंद ,, पूनमचंद वीरचंद , छगनलाल प्रेमचंद , कस्तुरचंद धनाजी अच्छारी विद्वान् वाचक और व्याख्याता इस ग्रंथरत्नसे अनंतलाभ , मगनीराम रामसुख वापी उठावें इति शम् हरखचंद वालाजी आ. विजयक्षमाभद्रसूरि , चूनीलाल जसरूपजी , ज्वेरचंद प्रेमचंद मोरी बेडा (मारवाड) शाह केसरीचंद परागजी कोपरली अक्षयतृतीया सं. 1997 वापा H 100 FOR // 44 // देगाम