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भुवन
मज् पणमन्ति ॥ २८ ॥ दुहुँ विसुद्धभावं तेसि मए तयणु उवविसेऊण । उवविट्ठाणं दिन्नो दोण्हवि सद्धम्मउवएसोज दीपक॥ २९ ॥ आयन्नह भो तुब्भे पंचिंदियजाइपमुहसामगि । पावेउं नायबाई देवगुरुधम्मतत्ताई ॥ १०३० ॥ रागहो
पूजायां |साईहिं दोसेहिं अदूसियं मुणह देवं । निग्गंथं गीयत्थं तत्तरयं जाणह गुरुपि ॥ ३१ ॥ जइगिहिभेएहि दुहा बुज्झह
धम्म जिणेहिं पन्नत्तं । पढमं दसप्पयारं बारसभेयं पुणो बीयं ॥ ३२ ॥ जीवाजीवा पुन्नं पावासवसंवरो य निज्जरणा । प्रदीपकथा |बंधो मोक्खो य इमं आयन्नह तत्तनवगंपि ॥ ३३ ॥ देवगुरुधम्मतत्तत्थसदहाणेण होइ सम्मत्तं । मूलं सबुत्तममोक्खकप्परुक्खस्स इममेव ॥ ३४ ॥ फलसलिलधूवदीवयअक्खयनेवजगंधकुसुमेहिं । पूयइ सम्मद्दिट्ठी इय जिणमट्ठहिंविपूयाहिं ॥३५॥ सवाउ वि अतरन्तो पईवपूयं करेइ जइ भवो । ता सा एक्कावि हरेइ तस्स पावाई भणियं च ॥ ३६॥ | "जो देइ दीवयं जिणवरस्स पुरओ पराए भत्तीए । तेणेव तस्स डज्झइ पावपयंगो न संदेहो" ॥३७॥ मणुयत्तं संपत्तं मा नेह मुहा करेह सद्धम्मं । तुम्हाण हियं कहियं जुत्तमिमं चिय गुरूणहवा ॥ ३८ ॥ जपंति दोवि नियजोग्गयाणुमाणेण तुम्हमाएसं । काहामो भयवं जं सुकएणम्हेहिं तं पत्तो ॥ ३९ ॥ इय जंपिय भत्तीए मं नमिउं दुब्भभारए गहिउं । दोन्निवि गयाइं गेहे भद्दगभावेणे वटुंत्ति ॥ १०४०॥ नयरप्पहाणजिणदत्तसेट्ठिणो मंदिरंम्मि कम्माइं । कुवंताणं - ताणं दोण्हवि दीवूसवो पत्तो॥४१॥ दाऊण सेट्ठिणा सालिपूयघयपमुहमेवमुत्ताई। सगिहे भुंजह जह जाइ तुम्ह वरिसोवि सोक्खेण ॥ ४२ ॥ ते बिति अम्ह दंससु जिणेसरं सेट्टि जेण तस्स पुरो। काऊण घएणं दीवयं वयं सुकयमजेमो ॥४३॥ दट्टण धम्मबुद्धिं जातो तेसिं कयायरो सेट्ठी । "गरुयाई परंमिवि पक्खवाइणो किन्न धम्मपरे" ॥ ४४ ॥ इण्हिपि चलह इय भणिय तेहिं सह जिणहरम्मि संचलितो। "अवरंपि पत्थियं कुणइ सजणो किं न पुण धम्म" ॥ ४५ ॥ तिन्निवि पत्ताई नियंति रुंदजिणमंदिरं गयणलग्गं । भूयतरुपत्तपंतित्तियतोरणसियदुवारगं ।। ४६ ॥