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श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम्
फलपूजायां फलसारकथा
॥१३॥
खयरिंदो नमिय केवलिं भणइ । पहु मह सुयाभवंतरपई कई कत्थ उप्पन्नो ॥ ४२ ॥ तो कहइ विमलनाणी फलपूया- करणपत्तपुन्नभरो। मरिउ सो सूरप्पहपुररायपयावसारस्स ॥ ४३ ॥ पुत्तो जाओ फलसारनामओ अत्थि चारुतारुन्नो । तं सोउं खयरवई पणयपहू मंदिरे पत्तो॥४४॥ तो हं आलोचेउं सह भज्जासवमंडलीएहिं । तुब्भ सयासे पत्तो नियतणयाए वरनिमित्तं ॥४५॥ ता राय भणसु नियपुत्तयं जहा मह सुयं विवाहेइ । तं सोउं नरनाहो जंपइ खेयरवई एवं ॥ ४६ ॥ पाविजइ खयराहिव अणप्पपुन्नेहिं तुह समो सयणो । चिंतामणिसंजोगो जायइ कि मंदभग्गाण ॥४७॥ इयरंपि खयरकुमरिं कल्लाणसिरिव को न ईहेइ । किं पुण भवंतरस्सरणजायनेहं तुहंगरुहं ॥ ४८ ॥ एत्थंतरे कुमारो जाइसरणेण नायपुत्वभवो । जंपइ तह ताय तयं जह कहियमिमेण तुम्ह परो ॥ ४९ ॥ तं सोउं गुरुपरिओसपूरितो कुमरमाह नरनाहो। गंतुं खेयरकन्नं विवाहिउं वच्छ आगच्छ ॥ ४५० ॥ इय जंपिय सम्माणियखयरवई वत्थभूसणगणेण । पेसइ सह तेण सुयं राया चउरंगबलकलियं ॥ ५१ ॥ विजाहरिंदविजाबलेण पत्तो नहेण वेयड्ढे । विहितो | तस्स पवेसे महूसवो खेयरजणेण ॥ ५२ ।। सबुत्तुमम्मि लग्गे घणाणुराया महाणुरायेण । परिणीया कुमरेणं सिंगारतरंगिणी कुमरी ॥५३॥ गुरुगोरवप्पहिट्ठो दिणदसगं तत्थ संठिओ कुमरो। पच्छा ससुरमणुनविय आगओ नियपुरे सपिओ ॥५४॥ पिउणा पुरप्पवेसे सुयस्स असमो महूसवो विहिओ । अत्थाणठियं जणयं नमिय निविट्ठो तयाणाए ॥५५॥ नवरंगयनीरंगीअवगुंठियवयणपंकया वहुया। नयससुरा तस्सासीतुट्ठा अंतेउरे पत्ता ॥ ५६ ॥ अत्थाणट्ठियं जणयं सेवइ गोसप्पओससमएसु । न मुयइ कयाइ कुमरो कलाण पुणरुत्तमब्भासं ॥ ५७ ॥ काउं कयाइ रज्जाहिसेयपरमूसवं कुमारस्स । गहियवउ निवो पत्तकेवलो मोक्खमणुपत्तो ॥ ५८ ॥ नवनिवईवि नएणं पालेइ पयाओ दंडए दुढे । मन्नइ महायणीए पूयइ पुजे खले चयइ ।। ५९ ॥ पुत्वभवोवज्जियसुकयकम्मसंभारभावतो सके। खोणीवइणो तं देवयंव
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