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धूपपूजाया धूपसुंदरऋथा.
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पत्तो स पमायं कुणइ किं तम्मि" ॥७२॥ गामाहिवस्स गेहे गया हया सूरतेयनामस्स । दारेश्चिय सो रहिओ "परघरमाविसइ को सहसा" ॥७३॥ पविसन्तगोउलुच्छलियरयभरादिस्सदेहजट्ठी सो।तम्मि पविट्ठो "अप्पं न चोरजारा पयासन्ति" ॥७४॥ मं पेच्छिही महीए कोवित्ति विचिन्तिउं वडे चडिओ। "जह होइ अप्परक्खा दक्खा तह संपयट्टति" ॥ ७५ ॥ वडसंठिएण दिट्ठी पक्खित्ता तेण गेहमज्झम्मि । दिट्ठा य दीवउज्जोयपयडिया अंगणा एगा ॥ ७६ ॥ हरिजिंदखाममज्झा हरिणंकमुहीय हरिणसमनयणी । विहुमअहरा पीवरपओहरा कणयवन्नधरा ॥७॥ तं पेच्छिऊणमस्सावहारओ चिंतए कयत्थो सो । नियरूवसिरी अहरीकयस्सिरी जस्सिमा भज्जा ॥ ७८ ॥ एत्थंतरम्मि दुद्धासु सयलसुरहीसु | सेरहीसुं च । बढेसु तुरंगेसुं जणप्पयारे ठिए विरले ।। ७९ ॥ परिपालन्ते अस्सावहारिपुरिसम्मि हयहरणसमयं । मंदं |मंदं गेहाओ निग्गया सा मयंकमुही ॥६८०॥ तं दटुं संचरिओ सो झत्ति वरंडओवरिमसाहं । आगच्छंति तो नियइ वडतले दारमग्गेण ॥८१॥ संपत्ता वडतलवियडअयडतडनियडविडभडसयासे । तीए अवलोइओसो नववयदिढदेहसंठाणो॥८२॥ मयणाहिमांसलामोयमणहरो रइयरम्मसिंगारो। परिपीडियतूणीरो करकलियपयंडकोदंडो॥ ८३ ॥ दट्टण तयं उक|ठियाए तकंठठवियबाहाए । आलिंगिऊण भणियं किं सुहय तुहेत्तिया वेला ॥ ८४ ॥ सो जंपइ सुयणु जणप्पयारपसमं ठिओम्हि पालन्तो। "अहवेरिसकजरओ पयडइ किं कोवि अत्ताणं" ॥८५॥ तुह मोहमोहियमई मयच्छि अहमागतो गुरुरएण । “लीलावईविलासावहियमणाणं कुओ थिरया" ॥८६॥ गयगमणि तुह कज्जे मुत्तुं कंतं सिरिं च इह पत्तो । | "अहवा तं सबस्सं जंमि मणो निबुइं वहइ" ॥ ८७ ॥ सा आह कहं तुमए नाओ अपयासिओ वि संकेओ। तेणुत्तं |बिंबाहरि आयन्नसु तुज्झ साहेमि ॥ ८८ ॥ गुरुरयतुरयं आरुहिय 'आगतोहमिह अप्पकज्जेण । सञ्चविओ तुमएवि हु वियसियकुवलयदलच्छीए ॥८९॥ यकीलणच्छलेणं मयच्छि तं पेच्छिया मए सुइर। "तुह रुवस्स न तित्ती पत्ता जरि