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श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम्
॥२०॥
एणव जलस्स" ॥६९०॥ असमस्सिणेहसबस्सरसवसुप्फुल्लनयणकमलेहिं । अवलोइओ तए वि हु अहमणिमिसविन्भम-15 पपूजायां धराए ॥ ९१ ॥ नाओ तुहाणुराओ मए तए वि हु ममाणुराओवि । "नयणेहिंचिय नजइ अहवा हिययडिओ भावो"
धूपसुंदर॥ ९२ ॥ एत्यंतरम्मि तुमए धम्मिल्ला छोडिऊण कुसुमाइं। खित्ताई इह पएसे अमिलाणाई पि तवेलं ॥ ९३ ॥ मं
कथा। पेच्छिरीए उबेल्लिऊण केसेहि विरइया वेणी । आमीलिय नयणाई मं पेच्छिय तं गया सगिहं ॥ ९४ ॥ नाओ मएवि भावो जह मह दिन्नो इमाए संकेओ। कहमन्नह अमिलाणाई एत्थ कुसुमाइं खित्ताई ॥ ९५ ॥ केसेहिं निसितमंमि तह नयणनिमीलणेण सुत्तजणे । अहमाहूओत्ति वियड्याए नायं मए जेण ॥ ९६॥ "वंकभणियाई कत्तो कत्तो अद्धच्छिपेच्छियाइं च । ऊससियंपि मुणिजइ छइल्लजणसंकुले गामे" ॥९७॥ ता रंभोरु तुहत्थे एत्थ अहं आगओ तुह विओगा। पजलियजलणजालाजलिरंगो इव दिणं गमिउं ॥ ९८ ॥ सा जंपइ चउजामोवि सामि मह वासरो सहसजामो । तुह | विरहविहुरयुम्मायजायतावाय संजाओ ॥९९॥ अमयमओ पिय तं जं तुह मिलणे मे गओ विरहतावो। "किं सिसिर-2 किरणजोण्हाजोगो धम्मं न पसमेइ" ॥ ७० ॥ इय रम्मपेम्मसबस्समुखहंतेहिं तेहिं तत्थेव । रइया रयकीला उल्लसंतमयमयणमत्तेहिं ।। १ ॥ तविरइयरयविनाणविरयणा हरियहिययवावारा । सा आह कुणसु तह नाह जह सया होइ णे जोगो ॥२॥ फुट्टइ हिययं दज्झइ सरीरयं जाइ जीवियद्धपि । मह तुह विरहे ताहमवि सहं तए आगमिस्सामि ॥३॥ तन्नेहमोहिओ सो जंपइ ता चलसु तयणु तीउत्तं । गहिउँ निययाभरणं इहिपि समागमिस्सामि ॥ ४॥ ता अप्पसु नियच्छुरियं जह पेडं दारिगं तमाणेमि । जायइ खडक्खडा तालयस्स उग्घाडणे जेण ॥५॥ तेणावि खग्गघेणू समप्पिया
॥२०॥ गहिय तं गया सावि । नवरं महईवेलाए आगया तस्स पासंमि ॥ ६॥ कूवयकंठनिविट्ठस्स ज्झत्ति तीए समप्पिया छुरिया। "सिद्धे कजे को वा परवत्थु धरइ सकरम्मि"॥७॥ सह अप्पणा इमंपि हु पहु दिन्नं तुह सममामाभरणं । इय
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