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श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम्
वासपूजायां गन्धबन्धुरकथा
॥४०॥
स्सन्ते ॥ २॥ सयमवि दिन्नं न लहइ जणाओ कत्तो कलंतरधणं सो। "उयरट्ठियतणयासा का अंगुलिलग्गसुयमरणे" ॥३॥ मग्गियजणनीयाई न मग्गमाणोवि लहइ रित्याइं । नियवत्थुपि न लब्भइ जत्थ कहिं तत्थ परवत्थु ॥४॥ ससुरेणावि विइन्नं बहुवाराओ धणं तयंपि गयं । “पत्तावि सिरी झिजइ नूणमकल्लाणकलियाण" ॥ ५॥ किं बहुणा संजायं दवं सबंपि से कहासेसं । तो दुटुं सीयंत कंतं कंता विहियविणया ॥ ६॥ उल्लवइ दइय तइया न कयं कस्सावि जंपियं तुमए । जइवा दइवाभिहयाण होइ एवंविहकुबुद्धी ॥ ७ ॥ इय जंपिऊण तीए ववहारकए समप्पियं पइणो । निययाभरणं अहवा “पइभत्ता होइ कुलकंता" ॥८॥ तंपि हु कइवि हु दिवसेहिं पेसियं तेण पुवधणमग्गे। अहवा जं जं खिप्पइ हुयासणो दहइ तं तंपि ॥ ९ ॥ पच्छारच्छाइंवि विक्किऊण भुत्ताई तेण सवाई। आयविहूणे वित्ते वइज्जमाणे कुओ रिद्धी ॥ १४१० ॥ घरहट्टोवरि गहिऊण कंचणे भक्खियमि तेसिंपि । मुक्को अहव अभग्गाण जाइ पिउदिन्नमवि रजं ॥ ११ ॥ जर्सि देयं दवं न तेसि पासाउ लहइ अवरत्थ । गंतुं तो तत्थेवय निवसइ अञ्चंतदोगच्चो ॥ १२॥ जो वसिओ धवलहरे विचित्तचित्ते तिभूमिए सययं । सो वसइ ताव जलसीयधूमिओ जलकुडीरम्मि ॥ १३ ॥ जो मंदपवणपरितरलसिक्किरिच्छायमस्सिओ भमिओ। विकयकजे सो भमइ कट्ठहारकयच्छाओ ॥ १४॥ जो संसुत्तो दोलाचलंतपल्लंकतूलियासु सया। सो सुयइ दब्भसत्थरयमुवगओ बाहुउवहाणो ॥ १५॥ पडिजद्दरंबरेहिं सिंगारो जेण सबया विहिओ। बहुछिद्दडंडियाई परिहइ सो मलिणवत्थाई ॥ १६ ॥ जो गरुयतुरंगसुहासणेसु आरुहिय सबया भमिओ । परियडइ फुडणखंजंतपयजुत्तो सोणुवाहणओ ॥ १७ ॥ नवरं इस्सरियम्मिव दारिदेवि हु पिया न तं मुयइ । "उद्यक्खएसु दइए समचित्ताओ सईउ सया॥१८॥ अइसुहिओ होउं सो अञ्चतं दुहभरं समणुहवइ । पाविय संपुन्न|सिरी किं खंडिजइ नय मयंको॥१९॥ समयंतरम्मि कम्मिवि वीवाहे सेट्टिपुत्तकन्नाए । पारद्धे नयरजणो निमंतिओ
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