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श्रीअनन्तनाथचरि
LEUCLELELES AS A
त्रादुद्धृत
पूजाष्टकम्
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६॥ ता जिसो चिंतइ न पुचजम्मेवाहवि जो। भोत्तुं सय
देसेसु परियडतो कयाइ उववासतिगसुसियदेहो । पत्तो मज्झण्हे कणयसालपुर-तिलयउजाणे ॥ ३००॥ दट्टण तत्थ अक्षतनवसालितंदुले विकिणंतए वणिए । आह अहं पहसंतो तिलंघणो देह ता किं पि ॥ १॥ तो तेहिं सालितंदुलपसइदुगं पूजायां गुरुदयाए दिन्नं से । तं घेत्तूण पविट्ठो उज्जाणभंतरे जाव ॥ २ ॥ ता नियइ केवलिमुणिं जिणपूयफलं जणाण अक्षतसाहंतं । जो कुणइ जिणस्सट्ठवि पूया तो लहइ सो सिद्धिं ॥ ३ ॥ ताओ फलजलनेवजदीवधूवक्खएहिं परमेहिं । वासेहिं कीर्तिकथा कुसुमेहि य भणियाओ समयसन्थेसु ॥ ४ ॥ सवाओ वि असत्तो तं कुणइ जिणस्स अक्खएहिंवि जो। भोत्तुं सयलसिरीओ सो अक्खयसोक्खमवि लहइ ॥ ५ ॥ तं सोउं सो चिंतइ न पुबजम्मे मए कओ धम्मो । तेण न संपज्जइ मे
भमिरस्स वि भेक्खमेत्तंपि ॥ ६ ॥ ता जिणपूयं सालीए काउमज्जेमि सुकयसंभारं । जं भिक्खाभमणेणवि भविहीर | मह छहपरित्ताणं ॥ ७ ॥ इय चिंतिय भत्तीए नमिय मुणिं भणइ कहह कत्थ जिणो । पूएमि जहा तो सावएण सो जिणहरे नीओ ॥ ८ ॥ जं कणयमयं मणि किरणकिन्नवणराइविलसिरउवंतं । कंचणगिरिव कप्पडमावलीवेढियं सहइ ॥ ९ ॥ तंमि पविट्ठो पेच्छइ पसंतरूवं जिणेसरं रिसहं । आणदअंसुजलकलियलोयणो भत्तिकंटइओ ॥ ३१०॥ मणिमयकुट्टिममिलमाणभालमभिनमिय सामिणो तेण । अक्खयढोयणपूया विहिया बहुमाणसारेण ॥ ११॥ दडूण तस्स भत्तिं नियगेहे सावएण से दिन्नं । निडुण्हभोयणं तद्दिणाउ सो सुत्थिओ जातो ॥ १२ ॥ तो कालगतो समभावसंगतो निवसुतो हमुप्पन्नो । दट्रूण केवलिमिमं जाईसरणं समुप्पन्नं ॥ १३ ॥ निब्भग्गस्सवि मज्झं रिद्धी सुगुरूवएसनायाए । | जिणपूयाए कयाए जाया इय साहियं तुम्ह ॥ १४ ॥ तं सोउं संजाओ जणस्स जिणपूयणम्मि बहुमाणो। रायावि
॥९ ॥ सावरोहो दिक्खं गिण्हइ गुरुसयासे ॥ १५॥ पणमिय गुरुणो नवदिक्खिए य संभासिऊण नवनिवई । खेयरवई च अमरो गओ सठाणम्मि कयकिच्चो ॥१६॥ नवदिक्खियमुणिजुयकेवलिक्कमे नमिय नहरिंदजुतो। पत्तो पासाए तत्थ सुस्थयं
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