Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah
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श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम्
नैवेद्यपूजायां भुवनप्रमोदककथा
॥३६॥
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रणझणिरकिंकिणीनियररमणीयं ।। ६२ ॥ जम्मि जिणसम्मुहानिलचालियबलिनिहियसेयकुसुमाई । पूएउंव जिणिदं जताई जवेण सोहंति ॥ ६३ ॥ पुष्फोवहारचुंबणपराई बहुचंचरीयचकाई। जम्मि जिणवंदयतुट्टकम्मनियलाईव सहन्ति ॥ ६४ ॥ तम्मि पविट्ठो पेच्छइ पसंतकंतं जिणेसरं रिसह। जय जय जय तिजयपहुत्ति जंपिरो नमइ भत्तीए ॥ ६५ ॥ चित्तभंतरअसमुल्संतबहुमाणजायरोमंचो। आणंदवसपवित्तं सुविसरजलधोयगंडयलो ॥६६॥ तं पावमोयगं मोयगं सयं मुयइ सामिकरकमले । सहलत्तं कलयंतो सजम्मजीवियनरत्ताणं ॥ ६७ ॥ पुणरवि पणमित्तु पहुं खोणीमंडलमिलन्तभालयलं । पत्तो निययावासे सो उक्कंठियपियापासे ॥ ६८ ॥ अन्नोन्नं मिलियाणं ताणुप्पन्नो महासुहुक्करिसो। "अवरे वि निए मिलिए होइ सुहं किं न कंताए" ॥ ६९॥ कइया वि तस्स कंता वुत्ता सालिप्पियष्पिय|यमाए। किं रूवरसो सो तुह पियस्स जो मोयगो दिन्नो ॥ १२७० ॥ तं सोउं सा चिंतइ किं मह न पिएण दिन्न| मद्धपि । “जइवा न वल्लहेवि हु लोहपराणं हवइ नेहो" ॥ ७१ ॥ नियघरजुत्ताजुत्ता वत्ता नन्नस्स साहिउं जुत्ता । इय चिंतिय तीउत्तं अञ्चतं तम्मि रसवत्ता ॥ ७२ ॥ धणरहियाणवि गेहे लोओ पेसइ जमुत्तमं वत्थु । किं पुण ससुरकुलम्मि वि सेसओ तम्मिवि धणड्डे ॥ ७३ ॥ इय जंपिय नियगेहे पत्ता पियविसयजायअवमाणा। विप्फुरियफारअरई उवविट्ठा दूरमुबिग्गा ॥ ७४ ॥ वामकरक्खित्तमुही सरलस्सासा अलद्धलक्खत्थी। पियगयअणप्पकुवियप्पकप्पणुप्पन्नसंतावा ॥७५|| चिंतइ पिएणमविभइय मज्झ न कयाइ अत्तणा भुत्तं । अजं तु सुयमिमं "नो दीसइ किं जीवमाणेहिं" ॥ ७६ ॥ तं चिय निवससि महमाणसंमि न तरामि तं विणा ठाउं । इय मायावयणेहिं अहमप्पवसा कया तेण ॥७७॥
॥७॥ धुत्तपउत्तीहिं नरा एवं रमणीओ वेलवेऊण । निम्मल्लमालियाउव कयकज्जा ज्झत्ति उज्झति ॥ ७८ ॥ मंदमईओ अविवेइ. | णीओ तुच्छाओ अपढियसुयाओ । वरईओ विप्पयारिय विडा विडंबंति विलयाओ॥ ७९ ॥ जेत्तियमेत्ता विज्जा हुंति
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॥३६॥

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