Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah
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श्री अनन्त - नाथचरिश्रादुद्धृतं पूजाष्टकम्
॥ ४१ ॥
पित्तलपडिग्गहट्ठिय गुरुपरियलजुयलमिलणअंतरियं । भूमिगयभायणं से नयणाणमगोयरं जायं ॥ ३८ ॥ खज्जूरदक्खदाडिमअंबयखार कसकराईयं । दिन्नं अन्नाण न दायगेण से भायणं दिहं ॥ ३९ ॥ तह सालिसूवसालणय सप्पिपक्कन्नपेयपमुहाण । किंपि न क्खित्तं अद्दिस्सभूमितलमुक्कथाले से || १४४० ॥ दट्ठूण दहिविमिस्सं भुंजतो फुरियगरुयअवमाणो । सिररइयभायणो तेसिमग्गओ नञ्चिरो पढइ ॥ ४१ ॥ " हे दारिद्र्य नमस्तुभ्यं सिद्धोऽहं त्वत्प्रसादतः । जगत्पश्यामि येनाहं न मां पश्यति कश्चन ॥ ४२ ॥ एए मह जणयसहोयरस्स पुत्तत्ति भायरो मज्झ । भाउज्जायाउ इमाउ भाइणिज्जा इमे सबे ॥ ४३ ॥ जह मंततंतविज्जाइएहिं सिद्धा हवन्ति अहिस्सा । जाणह तहा ममंपि हु नूणं दारिद्द - सिद्धोति ॥ ४४ ॥ जइ होमि न सिद्धोहं ता दिट्ठो किं निएहिं वि इमेहिं । सयणेहिं सबेहिंवि भोयणकरणोवविट्ठोवि ॥ ४५ ॥ सोजनं सुहिभावं सयणत्तं परिचयं च दक्खिन्नं । कुणइ धणद्वेण समं दरिद्दिणा नेव सजणो ॥ ४६ ॥ जे भोयणवत्थाइयवहारे काउमक्खमा नूणं । जह मह तह अन्नाणवि न कीरए क़ावि पडिवत्ती ॥ ४७ ॥ सुद्धा जाई सबुत्तमं कुलं निम्मला कलाओवि । धणरहियाण न किंचिवि सयावि जेणेरिसं भणियं ॥ ४८ ॥ " जाई कुलं कलाओ तिन्निवि पविसंतु कंदरे विवरे । अत्थोचिय परिवडउ जेण गुणा पायडा हुंति” ॥ ४९ ॥ केणावि कारणेणं न इमेहिं | पलोइतो इय भणतो । नीहरिडं सो अवमाणदूमिओ नियगिहं पत्तो ॥ १४५०।। पिय मइ वारंतीएवि न द्विओ ता एत्तियस्स जोग्गो तं । इय जंपिरीए भज्जाए भोइओ सीयरबाइ ॥ ५१ ॥ दारिद्देणं दूरं दूमिज्जं तस्स तस्स वञ्चन्ति । दिवसा विसायवसयस्स अन्नया सो गओ रन्ने ॥ ५२ ॥ पेच्छइ य तरुछायाए संनिविट्ठे मुणीसरे संते । सिद्धंतसुंदरक्खे दक्खे सिक्खाए साहूण ॥ ५३ ॥ जे समयग्ग्रंथा इव सहति आयारवाणसमवाया । विन्नाया धम्मकहापण्हवायरणपरमाया ॥ ५४ ॥ धणनाससयणपरिहव दुस्सहदोगञ्चदूमियगणो सो । ते दट्ठूण सुहोदयवसओ तेसिं गतो पासं ॥ ५५ ॥
वासपूजायां गन्धबन्धुरकथा
॥ ४१ ॥

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