Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah
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वासपूजायां गन्धबन्धुरकथा
भोयणनिमित्तं ॥ १४२० ॥ सो चिंतइ अज निमंतणं इहागच्छिही अओ मज्झ । वत्तणकजे जुज्जइ खडाइआहरणगमणं नो ॥ २१ ॥ गेहेचिय अच्छिस्सं जमिह निमंतयनरो खडप्फुडिही। इय चिंतंतो तत्थ ढिओ दिणप्पहर|जुयलं जा ॥ २२ ॥ मज्झंदिणेवि जाए जा को विन से निमंतओ पत्तो। ता परिभावइ एवं नाहं नाओ गिहठि| ओत्ति ॥ २३ ॥ ता जामि तत्थ सयमवि नियघरगमणम्मि मज्झ का लज्जा। अगयस्स पुणो सयणा लहु रुसिरसंति
जा जीवं ॥ २४॥ इय कहियं कन्ताए सा जंपइ नाह मोहमूढोसि । धणिणो सहोयरेणवि दरिहिणा किं न लजन्ति | ॥२५॥ नाह कुचेलोत्ति दरिद्दिओत्ति ववहारकरणअखमोत्ति । न निमंतिओ धुवं कुणसु नियमणे मा तुमं भंतिं ॥ २६ ॥ न कयाइ मज्झ भणियं तए कयं कुणसु संपर्यपि तुमं । जं पडिहाइ मणे तं जइ जंपिय सा ठिया मोणे ॥ २७ ॥ इय संगयंपि भणिरि अवगंनिय तं गओ स वीवाहे । "अहव हियाहियविसये कुओ विवेओ जडमईणं" ॥ २८ ॥ अन्भुक्खणभदासणउववेसणपायसोहणप्पमुहं । विरइज्जतिं पेच्छइ पडिवत्तिं ईसरजणस्स ॥ २९॥ तंबो
लकरे विरइयविलेवणे पत्तपट्टउयवत्थे । भुत्तुत्तरे पलोयइ निग्गच्छन्ते धणड्डनरे ॥३०॥ अब्भुक्खणंपि न लहइ आसनाणपयसोयणाइ कत्तो सो। तो तंबकडाहिजलेणन्मुक्खिय धोयए पाए ॥ ३१ ॥ उवविट्ठो पडिवालइ आमंतणमत्तणो निरिक्खइ य । वाहरिय गोरवेणं भोइजंतं परजणंपि ॥ ३२॥ विहिय अदिस्सीकरणेव तम्मि दिहिँपि न खिवए कोवि । दूरे चिट्ठउ पकं न वंजणप्पमुहभोज से ॥ ३३ ॥ तस्स तह संठियस्सवि दिणमद्धप्पहरसेसयं जायं । भोज्जत्थे | निवसन्ति पेच्छइ पजतपतिं सो ॥ ३४ ॥ चिंतइ य किं अवन्ना इमाणमवाउलत्तमचंतं । ज मह नियडा भोयणकज्जे
नीया न चेव अहं ॥ ३५॥ ता जामि सममिमेहिं भुंजामि निए गिहमि का लज्जा । एवं परिभावन्तो पत्तो नर|पंतिमझमि ॥ ३६॥ दोपासरुभद्दासणोवविट्ठाण ईसरनराणं । मज्झे उवविट्ठो गहियभायणो विट्ठरे नीए ॥ ३७ ॥

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