Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah
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श्रीअनन्त- नाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम्
वासपूजायां गन्धबन्धुर
कथा
पुवभवे नेव परिहरिओ ॥ ९॥ ताहमवि पुत्वभवभवकंतं मोत्तुं न काहमन्नपियं । रंजिजइ इहभविएवि किं न परभवभवेरत्ते ॥ १५१० ॥ इय परिभाविय विजावणट्ठ नियमुद्दियाउ कीरस्सा । निक्खिवइ चरणजुयले कंठमि पुणो रयणकडयं ॥ ११ ॥ भणइय कीर तुम उभयहावि सउणो कहेसि कल्लाणं । नहि निग्गुणाण एवंरूवपवित्ती हवइ नियमा ॥ १२ ॥ ता तं गंतुं कुमरीए कहसु कीरेस इय मह पइन्नं । तीए जहा संपज्जइ मह विसए मणसमाहाणं ॥ १३ ॥ आएसोत्ति भणित्ता तयणु सुओ उडिऊण संपत्तो । कुमरीपासे सोऊण तं ठिया सावि संतुट्ठा ॥१४॥ कुमरवयंसेहिं इमं सबंपि हु साहियं नरिंदस्स । तं सोउं तेणुत्तं किमजुत्तमिमम्मि कल्लाणे ॥१५॥ जं गुरुयरायकुमरी सयंवरा एइ गुरुनिवसुयस्स । इहभवभवावि किं पुण भवन्तरुप्पत्तअणुराया ॥१६।। इय जंपिय कारविया पुरसोहा राइणा पहिडेण । मोत्तुं वीवाहमहं गिहीण परमूसवो नन्नो ॥१७॥ पञ्चोणीए तीए पेसइ सामन्तमंतिमंडलिए। “गोरवमियरेवि गुरू विरयइ कि नोणुरायपरे" ॥ १८ ॥ आवासदाणसम्माणकरणसमुहपसागयं तीसे । विहियमियरोवि अतिहि पुज्जो किं पुण नरिंदसुया ॥ १९ ॥ उत्तमलग्गे कुमरो कुमरिं वीवाहिओ नरिंदेण । कुलवुट्टिकरे कजे किं कोइ पमायमायरइ ॥ १५२०॥ तीए सह विसय सोक्खं माणइ कुणइ य सुधम्मकम्मं सो। इहलोइयपरलोइयकज्जेसु समुज्जया गरुया ।। २१ ॥ समयंतरम्मि कम्मिवि कुमरं रजंमि ठविय नरनाहो । कयपधजो संजायकेवलो मोक्खमणुपत्तो ॥ २२ ॥ नवनिवई नीईए पालइ रजं अभिहवइ दुढे । सिट्टे पूयइ, मन्नइ महायगं गुणिगुणे थुणइ ॥ २३ ॥ एवं निरवजसरजकजकरणुजयस्स नरवइणो । जति दिणाई दिणमणिकरभरसरिसपयावस्स ॥ २४ ॥ जाओ कयाइ देवीए तीए सुह लक्खगो सुओ तस्स । काउं वद्धावणयं नाम गुणबंधुरोत्ति कयं ॥ २५॥ लालिज्जतो धाईहिं वद्धिओ जाव पंचवरिसाई। परिपाढिओ य अज्झावएहिं सबाउ वि कलाओ॥२६।। पत्तो य जोवणं तरुणकामिणी नयणमणहरं रंना । परिणाविओ नरिंदाण रम्मरूवाओ
जप
॥४३॥

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