Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah

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Page 86
________________ श्री अनन्त - नाथचरि त्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् ॥ ४२ ॥ सवणवुत्तो ॥ ७३ ॥ तीउत्तमहम्मफलं पिय तुह सबंपि कुणसु ता धम्मं । जेण न भवंतरेवि हु विडंबणा एरिसी होइ ॥ ७४ ॥ तेणुत्तमिमं काहूं जंपेउं गंधियावणम्मि गओ । तेण भारयमुल्लेणं गहिया सबुत्तमा वासा ॥ ७५ ॥ तत्तो | हिययब्भन्तरवियंभिओद्दामभत्तिपब्भारो । जिणमंदिरंमि चलिओ रयणमए तम्मि पत्तो य ॥ ७६ ॥ सच्छप्फालिहदीहरदंडेनिलपसरिया सियवडाया । जम्मि सुरेहिंवि नज्जइ सविम्हयं गयणगंगव ॥ ७७ ॥ कंकेल्लितमालवणेसु जस्स पविसंति रयणकरंडा । रागद्दोसवणारयणमुक्कजिणरायबाणव ॥ ७८ ॥ तो सो पहिट्ठचित्तो तम्मि पविट्ठो विसिहजिणभवणे । उवसन्तकन्तरूवं अवलोयइ उसहजिणनाहं ॥ ७९ ॥ तो विष्फुरंतबहुमाणपसरवसपुलयकलियतणुजट्ठी । आणंदअंसुजलभरपक्खालियवयणवच्छयलो ॥ १४८०॥ उल्लसियमणो वियसन्तलोयणों कुणइ सुरहिवासेहिं । पूर्व पहुणो | नियजम्मसहलयं मन्नमाणो सो ॥ ८१ ॥ असरिसबहुमाणवसो पुणरुत्तं भूमितलमिलियभालो । पणमिय पलोइय चिरं | जिणेसरं आगतो सगिहे ॥ ८२ ॥ कहियं पियाए वासेहि जिणवरो पूइओत्ति तो सावि । बंधइ अणुवमपुन्नं पसंसमाणी इमं अट्ठ ॥ ८३ ॥ कइयावि दोवि निययाउअंतमणुसरिय मरिय जायाई । अमरत्तेणं आरणकप्पे सुररायसरि - साई ॥ ८४ ॥ एगवीससागराई भुत्तुं सुरलोयलच्छिविच्छडुं । सिद्धाययणजिणञ्चणकरणज्जियसुकयसंभारा ॥ ८५ ॥ चविय तओ वसुहासारपट्टणे कित्तिबंधुरनिवस्स । जाओ धणावहसुरो पुत्तो असमाणगुणत्तो ॥ ८६ ॥ धणवइ| अमरोवि पुणो उदयाणंदे पुरम्मि उप्पन्ना । उदियप्पयावरन्नो कन्ना उदयस्सिरी नाम ॥ ८७ ॥ हुंतो हं पुवभवे तुह | जणओ मरिय बारसमकप्पे । बावीससायराऊ संजाओ भासुरो अमरो ॥ ८८ ॥ तं जोबणमणुपत्ता पत्ता कीलाकए इहुज्जाणे । पुवविदेहा वलिओ वंदिय जंगमजिणिंदे हं ॥ ८९ ॥ मह दिट्ठिपट्टे पत्ता उल्लसिओ पुवभवभवो नेहो । नाया य ओहिणा पुवभवसुया तं तओ ज्झति ॥१४९० ॥ कयनरमऊररूवेण एत्थ उववेसिउं मए कुमरि । तुह पुवभवा वासपूजायां गन्धबन्धुरकथा ॥ ४२ ॥

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