Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah
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कुग्गाहं तयणु ससुरयस्सावि । न कुणइ भणियमजोग्गाणहवा कत्तो गुणाहाणं ।। ८५ ।। तो एगंते कंताए जंपिओ नाह एव किं भणसि । मा पेच्छसु अच्छीहिं हियएण सुदीहमिक्खे || ८६|| निश्चितं संपज्जइ सर्व्वपि ठियाण गुरुसमीवंमि । लवणपि सचिंताए भविही भिन्नट्ठियाण पुणो ॥ ८७ ॥ कस्सइ पुत्रेण इमा लच्छी उल्लसइ नज्जइ न एयं । ता का नाम कुबुद्धी तुम्हाणं भवह जं भिन्ना ॥ ८८ ॥ इय तीउत्तो जंपइ तुच्छमई तं न पेच्छसि किमेयं । अहमेगागी एवं गरुयकुटुंबं सिरी जाइ ॥ ८९ ॥ इय जंपिय सेट्ठिसयासओ सिरिं विभइडं ठिओ भिन्नो । कारावियं च गरुयं तिभूमियं तेण धवलहरं ।। १३९० ॥ पारद्धो ववहरिउं जलथलमग्गेसु भूरिदविणे स । वुड्ढनिमित्तं दितो दबं पहुयाइवी न लेइ ॥ ९१ ॥ तुरयारूढो माऊरछत्तअंतरियतरणिसंतावो । हिंडइ वणिउत्तबूहावेढिओ रम्मासंगारो ॥ ९२ ॥ नो सयणाण न मित्ताण नेव लिंगीण जायगाणवि नो । वियरइ कस्सइ किंपि हु दितिं दइयंपि वारेइ ॥ ९३ ॥ कूडबवहारेहिं हृत्थं चिय वच्छ गच्छिही लच्छी । इय सेट्ठिपउत्तो भणइ ताय सगिहं विचिंतेसु ॥ ९४ ॥ गहियधणाओ लोगोवि किंपि से देइ सेट्ठिलज्जाए । “दूरे गुरूण आणा तेसिं लज्जावि सिरिजणणी" ।। ९५ ।। देव (ब) वसेणं कालकमेण | पंचत्तमुवगओ सेट्ठी । पच्छा सो निस्संको अहियअरे कुणइ ववहारे ॥ ९६ ॥ अह तस्स असुहवसओ सिरी समग्गावि नासिउं लग्गा । मग्गिज्जंतो लोगो दुबयणे देइ नो दबं ॥ ९७ || देसंतरेसु वि ठिया वणिउत्ता जायभूरिधणलाहा । दिट्ठावि लोहिडमलं लच्छी किं नो सहत्थगया ॥ ९८ ॥ सो निक्खिणिही नूणं दाहइ न कयाइ मं सुपत्ताण । इय भीयब | सिरी भिन्नपवहणा सायरे मग्गा ॥ ९९ ॥ देइ न कर्णपि कस्सइ एसो बहुधन्नसंगहपरोवि । इय भाविअ कुविएणव दड्डा जलणेण कोद्वारा ॥ १४०० ॥ नवि जाओ नयभोगो किमस्स ता निरुवयारिदविणेण । इय चिंतिऊणव तयं नीयं खत्तेण चोरहि ॥ १ ॥ इंगालच्चिय जाया धणे निहाणीकए कुकम्मवसा । अवरदविणज्जणासा कुओ करत्थे विण
वासपूजायां गन्धबन्धुरकथा

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