Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah

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Page 58
________________ दापक पूजायां श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् सुवनप्रदीपकथा ॥२८॥ FFEREFERESHERSITE भडविंदे । सपिओवि कित्तिसारो निग्गंतुं ते पयंपेइ ॥ ७५ ॥ किं तुब्भे सन्नझह पिउणा अवमाणिओ गहिय भजं । इह | वसिय निसिविरामे जाव विएसम्मि वञ्चिस्सं ॥७६॥ ता इह पविट्ठमेत्तोवि वेढिओ कहह को विणासो मे । ते बेंति निवामच्चे पुच्छसु जे तं धरावेंति ॥७७॥ तेणुत्तं मह ताणवि तणओ न भओ जओ विसुद्धोहं । "किं काहि भवो वि हु विजो नीरोयदेहाए(ण)" ॥७८॥ इय भणिरे सेट्ठिसुए आरक्खियमंतिणो समणुपत्ता । दळूण सेट्ठिपुत्तं सकलत्तं विम्हिया दोवि ॥ ७९ ॥ सुहडाण व तेसि पि हु कहियं सबंपि कित्तिसारेण । रायसयासे नीओ भज्जाजुत्तो वि सो तेहिं ॥ ९८०॥ रायउले निजंतं तणयं नाउं समागओ सेट्ठी । "इयरेवि सायरच्चिय सुयणा किं पुण न नियपुत्ते" ॥८१॥ सुयसेहिसुयनिवंतियनयणा पत्ता दुयं पवंचमई । “का संका सक्खं रायवयणपत्ताभयाणवा" ॥८२॥ असमाणपवंचमइमईए विजियत्ति नागया कुमई । "तत्थ न जन्ति सयन्ना पराजओ जायए जत्थ" ॥ ८३ ॥ गंतूणस्थाणत्थं सब्वेवि निवं नमित्तु उवविट्ठा । "विणयप्पणई सस्सा सव्वत्थवि किं न नमणिजे" ॥८४॥ मंतिसयासा सोउं भणइ निवो कित्तिसार किं एयं । सो आह जह पहू मुणइ तह इमं किं अलीएण ॥ ८५ ॥ "सयमेव देव विसयाहिलासिणो पाणिणो सया तम्मि । जो पुण परोवएसो घयाहुई सा हुयासम्मि" ॥ ८६ ॥ इय जंपिय कुमइविप्पयारणुप्पन्नरायरसपमुहं । कहियं रन्नो "भन्नइ पमाणभूमीए नो अलिय" ॥८७॥ जेण सरीरेण कयं सहउ तयं देव निग्गहदुहाई । "देए पच्छावि रिणे सइ दवे दिजइ न किं तं" ॥ ८८ ॥ आह निवो मा बीहसु जमेकवारं इमाण महिलाणं । अभओ मए विइन्नो फाडणसंधाणकोउयओ ॥८९॥ नामाणुसारिणिच्चिय कुमईए मई महा अणत्थयरी । “अहवा परिपज्जलिरो दहणो दहणोच्चिय जहत्थो" ॥९९०॥ पेच्छ पवंचमईए भजं पक्खिविय कड्डिया असई । नो विनायं केणइ "बुद्धीए अगोयरो नत्थि" ॥९१॥ सेहिसुय नो कयाइवि विस्ससियचं तए कुमहिलाण । जं संपइ विस्ससियस्स आगओ आसि तुह मचू ॥ ९२ ॥ विन्नवइ कित्ति ॥२८॥ S

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