Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah
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श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम्
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दीपकपूजायां भुवनप्रदीपकथा
॥२७॥
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॥ ३९ ॥ पंचिंदियत्तमणुयत्तआरियक्खेत्तेसु सुकुलजम्माई। सबंपि मे निरत्ययमकज्जकरणुज्जमा जायं ॥ ९४०॥ न कओ धम्मो न गुणा समज्जिया सज्जिया न सियकित्ती। चित्तालिहियनरस्स व मणुयत्तं मह मुहा जायं ॥४१॥ आबालकालओ बंभयारिणो जे कयवया जाया । ते पुन्नपयं न वयं विसएहिं विडंबिया इय जे॥ ४२ ॥ जइ देवगुरुपसाया एयवसणाउ कहवि छुट्टिस्सं । गिहिस्सं ता नियमेण सबविरइवयं सुहयं ॥ ४३ ॥ एवं महाणुभावो चिंतइ |सद्धम्ममग्गमणुपत्तो। दूरं धणावलीवि य पकंपए भडभयुब्भंता ॥ ४४ ॥ एत्तोय पवंचमई पहरिसउक्करिसिया कहइ कुमई । इय फाडियं मएयं संधसु जइ संधिउं तरसि ॥ ४५ ॥ इय भणिय गयाए तीए सेद्विणो कहइ सा तमागंतुं । तो सो सुयतवसणो खणं भया निच्चलो जाओ ॥ ४६॥ तियसोब निनिमेसो निब्भरनिदोव नट्ठमणवित्ती । कयमोणो सज्झाणो जायमुच्छोब निच्चेट्ठो ॥४७॥ किं कायश्वविमूढं तं दुटुं जंपए पवंचमई । किं सेट्टि गरिट्ठमई विनबुद्धिव लक्खियसि ॥४८॥ किं कायरोव कंपसि रणरसियभडोब धीरिमं धरसु। केत्तियमेत्तं कजं इमं कुसग्गीयबुद्धीण ॥ ४९ ॥ जइ वि कुमईए कहिए विहिओ रायेण भडदढावेढो । तुह तणओ मरणंतवसणं पत्तो जइवि इहि ॥ ९५०॥ तहवि हु तहा जइस्सं न जहा दबक्खओ ल्हसइ न जसो । न विणस्सइ तुह तणओ जणाणुराओ न जह जाइ ॥५१॥ नवर नियवहुयं मह अप्पसु तं देवमंदिरे खिविउं । जह वंचिय समईए सुहडे कड्डेमि तं असई ॥ ५२ ॥ गोसे वाहरिय निवो जंपइ जइ किंपि ता भणेज तुम । सपिओवि मह सुओ पहु निसाए रुसिउं कहिंपि गओ ॥ ५३॥ एवंति | भणिय बहुयं सिंगारिय से समप्पए सेट्ठी । नियसम्मयमहिलाओ मेलइ गंतुं सगेहे सा ॥ ५४॥ वजिरवद्धावणयच्छंदपणञ्चंततरुणपरियरिया। अयसंकलसंदाणियकमकंतिमईए संजुत्ता ॥ ५५ ॥ सह मियमंजुस्सरतूरिएहिं गायंतकामिणीकलिया। चलिया मंद मंदं पत्ता य कमेण देवउले ॥५६॥ सवणासन्ने ठाउं कित्ती(कंति)मई जंपए पवंचमई । अन्तो गंतुं
Filenahan--5555555555
२७॥

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