Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah

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Page 55
________________ दीपक पूजायां भुवन प्रदीपकथा त्तमाणसो दंसिओ वयस्सेण । मह कहिऊणं तुह दंसणाणुरायाओ वियलत्तं ॥ २२ ॥ तो तं संठावेउं तुह पासे हं समागया सुब्भु। ता नररयणस्स तुम समीहियं कुणसु पसिऊण ॥ २३ ॥ तं सोउं सा असई नियमणऊम्मीलमाणउम्माया । जंपइ तुहोवरोहा अंब अकजंपि हु करिस्सं ॥ २४ ॥ तो तीए जंपियं पुत्वगोउरदारदेसदेवउले । आगंतुं मिलियब निसाए पहरस्स तस्स तए ।। २५ ॥ एवं निसुय तदुत्तीए तीए गंतूण कित्तिसारते । नीओ देवउले सो धणावलीविय समणुपत्ता ॥ २६ ॥ कुमईए जंपियं इह पविसिय मज्झम्मि रमह सच्छंदं । लोयागमणालोयणपरा दुवारेहमच्छिस्सं ॥ २७ ॥ तो मज्झपविढेसुं तेसुकंठाविसंठुलंगेसु । तीए कहियं आरक्खियस्स गंतूण तं ज्झत्ति ॥ २८ ॥ तो संनद्धधणुद्धरअसिखेडयकरभडेहिं चउपासं । परिवेढिय देवउलं स आह गोसे धरिस्समिमे ॥ २९ ॥ नो निग्गंमप्पवेसा कस्सइ देया इहत्ति भणिय भडे । गंतूण मंतिनिवईण कहिय तबइयरं सुत्तो ॥ ९३० ॥ दट्ठणं सेविसुओ देवउलं घडियभडढावेढं । उन्भूयभूरिभयवेविरंगजट्ठी विचिंतेइ ॥ ३१ ॥ पेच्छ जहा मज्झ महावसणमिणं दुस्सहं समणुपत्तं । जीवियमरणसरूवे संदेहे जेण पडिओहं ॥ ३२ ॥ "पुबिल्लभवसमुब्भवपावप्पन्भारभावओवस्सं । सुनयापि अवाया इंति न किं कयअनीईणं" ॥ ३३ ॥ गोसे बंधेउं मं नेही आरक्खिओ विवणिवीहिं । जणयाइजणसमक्खं विडं बिही विविहवियणाहिं ॥ ३४ ॥ तुच्छतरविसयलालसमणस्स मह केत्तियं इमं दुक्खं । पररमणिरमणपावा णरए तमणंतसो होही ॥ ३५ ॥ न कयाइ कओ अनओ मए न अनईहिं सह पसंगोवि । एयं चिय गोत्तक्खयहेऊ पढमं कयमकजं ॥ ३६ ॥ अपविणासाय महापावुल्लासाय अयसपसराय । खलओकरिसाय मए एयं दुबिलसियं विहियं ॥ ३७॥ मरणं दारिदं वा विएसवासो व सयणविरहो वा । हुंतु वरं एयाइं मा पुण एसो कुलकलंको ॥ ३८ ॥ न कुणंति जे परिक्खिय कजं ते दुक्खमंदिरं हुंति । पहसिज्जंति जणेणं मइलिजंतिय अकित्तीए SSSSSSSSSFET

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