Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah
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अनन्त० ५
हु तस्स किं न कहणिज्जं । इय जंपिय उवविसिउं सो कहइ निविट्ठकुमरस्स ।। ५१ । गुरुनयपत्तछाओ घणकसिणसुतारसारसरलक्खो । सुयणो भरहखेत्ते वेयड्डो नाम अस्थि गिरी ॥ ५२ ॥ तम्मि प्फुरंतमणिगणरहनेउरचक्क वालर मणियणं । रयणमयं अस्थि पुरं रहनेउरचक्कवालंति ॥ ५३ ॥ दरियरिउवारवारणगणकुंभवियारणेक्कखरनहरो । तं परिपालइ सिरिश्यणसेहरो नहयराहिवई ॥ ५४ ॥ तस्सत्थि सबसुद्धंतकंत कंता हिवत्तअहिसित्ता । हारस्सिरिब हारस्सिरी पिया वित्तमुत्तगुणा ॥ ५५ ॥ अन्नोन्नरम्मपेम्माणुबंधवर्द्धतमणपमोयाण । पंचविह विसयसत्ताण ताण कालो अइक्कमइ ॥ ५६ ॥ कइयावि हु रयणविमाणसेणिसिंगारियंबरो चलिओ । नंदीसरंमि सिद्धप्प डिमानमणाय खयरिंदो ॥ ५७ ॥ दाहिणिदिसिगयणेणं गच्छंतो नियइ सम्मुहमहीए । मणिमंदिरपुरबाहिं निगच्छंतं जणसमूहं ॥ ५८ ॥ तस्संतोनिलतरलद्वया लिझणहणिर किंकिणिगणाए । सिवियाए समारूढं अवलोयइ तरुणनररयणं ।। ५९ ।। दितं किवणवणीमगजायगदीर्णघदुत्थलोयाण । वछाविच्छेयकरं दाणे मणिकणयरित्थाई ॥। ८६० ।। अवलोयतं पुरतो लउडारसरासए सपेच्छणए । उबवूहिज्जंतं जय जीव तं चिरं इय जणासीहिं ॥ ६१ ॥ दाहिणपास महा सण निविट्ठजणएण संसुवयणेण । समलंकियमप्पंतेण दाणक्कज्जम्मि कणयाई ॥ ६२ ॥ वामद्वाणपरिट्ठियगरिट्ठ विट्ठरनिविट्ठजणणीए । कयलवणुत्तारणयं सोयं सुतंविरच्छी ॥ ६३ ॥ वज्जंतढक्कदुक्का भेरीभंकारभरियभुवणयलं । रम्मारामुज्जाणंमि गुरुयरिद्धीए संपत्तं ॥ ६४ ॥ ॥ कुलयं ॥ को एस किं करिस्सर इह इय बुद्धीए नहयरवईवि । तत्थुत्तिन्नो कंचणकमलगयं केवलिं नियइ ।। ६५ ।। पालियसमग्गसत्तं विरइयछज्जीवकायरक्खंपि । सोमंपि मित्तरूवं सुरयपुरं बंभयारिंपि ॥ ६६ ॥ दहृण केवलिं नहयरेसरो भत्तिनिब्भरो नमइ । “धम्मत्थं पवित्तीओ जइ वा धम्मीण होन्ति सया " ||६७ ॥ सिवियाए समुत्तिन्नो पणयपहू माइपिइअणुन्नातो । परिहरियालंकारो संवेगुलसियरोमंचो ॥ ६८ ॥ सो विज्जाहरवइणो अवलोयंतस्स भक्तिभस्यि
दीपकपूजायां
भुवनप्रदीपकथा

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