Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah
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श्री अनन्त - नाथचरित्रादुद्धृतं
पूजाष्टकम् ॥ २१ ॥
RAK
खित्तो पावाए कूवंमि ॥ २६ ॥ दट्ठूण कूडकवडाई नूण महिलाण पुबरायाणो । मुत्तुं तणंव ताओ झत्ति तवञ्चरणमकरिंसु ||२७|| पवगिव चलसहावा महिला लूयव जणियसंतावा । उप्पाइयवसणसया कुविंदसालब पडिहाइ ॥ २८ ॥ सुंदरवन्ना आमोयमणहरा सुहरसाय भुज्जंती । महिला किंपागफलावलिब उप्पायइ अणत्थं ॥ २९ ॥ सूरोवि कयत्थिज्जइ खंडिज्जइ सबयावि रायावि । राहुसिरीए इव महिलयाए कलुसस्सहावा ॥ ७३० ॥ अंतोहुंतुम्मीलियपकामरसपूरिया परिब्भमरी । गयणं व कुलं मइलइ महिला नवमेहमालब ॥ ३१ ॥ दुहन्ता कुडिलगई परमपियविवज्जिया सुइविहूणा । कस्स न भयमुप्पायइ नियंबिणी सप्पिणीव सया ॥ ३२ ॥ कज्जम्मि जाण कीरइ धणज्जणं चोरियाइ काऊण । ताणेरिसं सरूवं ता “पज्जत्तं ममित्थीहि " ॥ ३३ ॥ असरिसवेरग्गविभावणाव सुल्लसियगुरुतरविवेए । अस्सोवहार पुरिसे एवं परिभावयंतम्मि ||३४|| पविसिय हिंमि गहिऊण हलकुसिं पइगिहे खणइ खत्तं । " किमकज्जं वा वज्जियमज्जायाणं महिलियाण” ||३५|| गंतुं मज्झे धाहावए जह धाह धाह धाहत्ति । पविसिय चोरेणं ठक्कुरो हओ नीयमाभरणं ॥ ३६ ॥ तं सोऊणं सहसा ससंभ्रमा साउहा सपाइका । ठक्कुरपुत्ता परिवेढयन्ति गिहमुग्गहक्करवा ॥ ३७ ॥ तुरयकुडिप्पमुहाई ठाणाइं नियंति केवि दीवकरा । अन्ने उ अंनिसंति य चोरपयं पयइनिउणनरा ॥ ३८ ॥ दहूण गिहावेढं हयावहारी विचिंतए एवं । मह संकडमावडियं छुट्टिस्सं ता कहं इहि ॥ ३९ ॥ न तरेमि विणिग्गंतुं भडपडलावेढियाओ भवणाओ । दुक्कम्मभरावरिओ नरट्ठाणा जीव || ७४०|| जइ देमि गिहा बाहिं निग्गयसाहाए झत्ति झंपमहं । ता वियडे अयडम्मि पडामि सुहडोछ नि भन्तं ॥ ४१ ॥ नूणं मह हयहरणप्पवेसभवपाव पडल विडविस्स । इह मरणेणं कुसुमं फलं तु होही नरयपडणं ॥ ४२ ॥ मं दट्टुमिमे गोसे चोरोत्ति विचिन्तिउं हणिस्सन्ति । ता तमतिरोहिओ वडठिओवि अप्पं पयामि ॥ ४३ ॥ इय चिन्तिय तेणुत्ता ते तुम्हाणं कहेमि सर्वपि । वृत्तंतं मं पच्छा मुंचेज्जहवा हणेज्जाह ॥ ४४ ॥ तं सोउं तेह्रुत्तं इट्ठि -
धूपपूजायां धूपसुंदरकथा
॥ २१ ॥

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