Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah

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Page 47
________________ 1 धम्मो । अप्पस्स वि जस्स कयस्स हुंति महईओ रिद्धीओ ॥ ८१ ॥ तयणु कुमारेण रिसहस्स सामिणो भत्तिपुलयकलिएण । पणमिय विहिओ अट्ठाहियामहो गरुयरिद्धीए ॥ ८२ ॥ तो चउरंगचमूचयसंचाराऊरियक्खमावीढो । अभंलिहधवलहरे संपत्तो नियपुरे कुमरो ॥ ८३ ॥ ऊसियसिद्धयोहे निम्मियमंचाइमंचकयसोहे । पविसइ पुरम्मि कुमरो विल| सिरसिंगारजियअमरो ॥ ८४ ॥ गंतुं सहाए पणओ पिउणो पयसयदलं तओ तेण । आलिंगिऊण कुसलप्पउत्तिमापुच्छिओ पुत्तो ॥ ८५ ॥ सो आह ताय मह तुह पसायसुहियस्स सबया कुसलं । इय जंपिय उवणीया पिउपुरओ तेण | सन्तुसिरी ॥ ८६ ॥ पणओ सत्तुसुओवि हु तस्स कओ राइणावि सम्माणो । “पणयम्मि वच्छलच्चिय पहुणो सम्मिवि निए " ॥ ८७ ॥ पणयाए वहुयाए भव पुत्तवइत्ति जंपियं रन्ना । "भणइ परे वि हियं चिय गरुओ कि माणुसे न निए" ॥ ८८ ॥ कइवयदिणावसाणे रज्जम्मि निवेसिओ सुओ रन्ना । पुत्तं मुत्तुं नन्नस्स होइ सबरससामित्तं ॥ ८९ ॥ सुवि हियसूरिसयासे गहिया दिक्खा निवेण रिद्धीए । “इहलोइयं जहा तह परभवकज्जंपि कुणइ गुरू" || ७९० ।। चरिय तवं उप्पाडिय केवलनाणं निवो सिवं पत्तो । “किमसज्यं वा दुक्करतवस्स भावेण विहियस्स" ॥ ९१ ॥ नवनिवईवि नयपरो पयाड पालइ अभिद्दवइ दुट्ठे । वंदइ गुरुणो पूयइ जिणेसरे मन्नए मित्ते ॥ ९२ ॥ साहम्मियवच्छलं कुणइ पयट्टावए अमारीओ । किं बहुणा तित्थसमुन्नईकरं कुणइ सर्व्वपि ॥ ९३ ॥ तप्पुन्नपगरिसागरिसियब आगंतुमवणिवइणो तं । सेवंति सबदेसुब्भवावि गुरुभत्तिरायण ।। ९४ ।। तेणावलोइओ जो मन्नइ सो अप्पगममयसित्तं व । आभासिओ पुणो |तिहुयणेकरज्जाहिसित्व ॥ ९५ ॥ एवं बहुकालं पालिऊणमकलंकरज्जमवणिवई । कुमरं पयावसाराभिहं ठवेऊण रज्जमि ॥ ९६ ॥ निग्गंथगुरुसमीवे दिक्खं घेत्तुं कयुग्गतवचरणो । उप्पन्न विमलनाणो संपत्तो मोक्खमक्खेवा ॥ ९७ ॥ जह धूपपूजायां धूपसुंदरकथा

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