Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah

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Page 45
________________ ओवि हु कहे तो तेण । कहिओ आमूलाओ नियओ तीए य वृत्तो ॥ ४५ ॥ भणियं च जइ न पत्तियह मज्झ ता नियह कूवयस्संतो । सुहडं धणुतूणीराभरणजुयं संपयं चैव ॥ ४६ ॥ तं सोउं पक्खित्तो तेहिं वरत्ताए दीवओ कुवे । सच्चविओ य तरंतो जहकहियगुणो मओ सुहडो ॥ ४७|| कुवाओ तमायड्डिय गहिऊणाभरणमुज्झियं मडयं । “निजीवेण वि क जेण तयं धिप्पए नन्नं ॥ ४८ ॥ एयविरहं न सत्ता सहिउंति विचिंतिउंव पुत्तेहिं । लहुमायावि हु बद्धा सद्धिं मडएण कुविएहिं ॥ ४९ ॥ तंपि विणिग्गहणिजो चोरोत्ति पयंपिओ हयहरो वि । “पावन्ति चोरजारा जइ वा किं | कत्थई पूयं । ७५० ॥ नवरं तुमए सबंपि साहियं तेण तं विमुक्कोसि । “उवयारओ सदोसोवि मुच्चए जेणिमा नीई" ॥५१॥ मडयं चडावियं सूलियाए निद्धाडिया य लहुजणणी । " रोसो न मयरिउम्मिवि गच्छइ किं पुण जियंतंमि” ॥५२॥ धरिऊण सबहुमाणं दिणत्तिगं अस्सहरयपुरिसंपि । पिउमय किच्चं काउं सम्माणेउं विसज्जन्ति ।। ५३ ।। अप्पं संपइ जायंव जममुहा निग्गयंव मन्नंतो । वश्चंतो नियगामे पत्तो सो इह अरंनंमि ॥ ५४ ॥ पेच्छइ उस्सग्गठियं मुणिमेगं मुत्तिमंतमिव धम्मं । पञ्चक्खं पसमंपिव संकेयंपिव मुणिगुणाण ॥ ५५ ॥ पुषुप्पन्नविराओ अवलोइय सो मुणिं ठिओ हेट्ठो (हिट्ठो ?) । दारिद्दभरकंतो नरोव संपत्तरयणनिही ॥ ५६ ॥ तो तं पणमइ तच्चलणकमलमिलमाणभालफलओ सो । सहलत्तं कलयंतो सजम्मजीवियनरत्ताणं ॥ ५७ ॥ आबद्धपाणिपउमो पुरओ उवविसिय जंपए एवं । रन्ने अमाणुसे पहु किं तवह तवंति मह कहह ।। ५८ ।। पारियकाउस्सग्गो उवविसिउं तस्स साहए साहु । खेयरमुणी महायस अहमिह आयाविडं पत्तो ॥ ५९ ॥ जेणमिह तिरियविरइयकयत्थणा हणइ मज्झ दुक्कम्मं । वेज्जोवइट्ठपरमोसहं व रोयं समग्गंपि ॥ ७६० ॥ तेत्तं पहु मह कहह कंपि धम्मं गिहत्थजणजोग्गं । "तीरइ निबाहेउं जो सो उक्खिप्पर भारो” ॥ ६१ ॥ आह मुणी गिहिणोवि हु जायड़ धम्मो जिनिंदपूयाए । सा होइ अट्ठभेया अट्ठमयट्ठाणनिम्महणी ॥ ६२ ॥ नेवज्जधूवदीवय अक्खय धूपपूजायां धूपसुंदरकथा :

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