Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah
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धूपपूजायां
श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम्
धूपसुंदरकथा
॥१८॥
जइ न धरसि तस्स सासणं सीसे । हरिणाहिवम्मि हरिणावमाणणा नणु अणत्थाय ॥ ६२० ॥ कहियं हियं तुह मए तं कुणसु नरिंद जं मणोमिमयं । सप्पुरिसपयडियंपिहु गिण्हंति हियं न देवया ॥ २१ ॥ छन्नोवि रायरोसो दूउत्तस्सवणओ ठिओ पयडो। किं उद्यहिओ अग्गी जालिजंतो न पज्जलई ॥ २२ ॥ भिउडिघडणा निवइणो समंपि विसमत्तमुवगयं भालं । धिजाइयस्स वत्थंवमंदपवमाणतरलणओ ।। २३ ॥ भणियं निवेण रे दूय तुह पहू मह कर गहितुकामो। अयं तु नियकरेणं रणे गहिस्सं सिरं तस्स ॥ २४ ॥ तं पेसिय तुह पिहुणा विरोहिओ हं धुवं सनासाय । निदायत्तमइंदप्पडिबोहो कि सुहं देइ ॥ २५ ॥ आणसु तं नियनाहं नाहं जं से सहिस्समवराहं । साहूणं सिंगारो अविणयसहणे न निवईणं ॥ २६ ॥ दूएणुत्तं निव नियघरट्ठिओ जह वहेसि भडवायं। तह जइ समरुच्छंगेवि ता तुमं चेव वीरवई ॥ २७ ॥रायाह जाहि आणेहि नियनिवं दूय देससीमाए । जह रणनिहसो दसइ पोरुसकणयुब्भवं | वन्नं ॥ २८ ॥ इय जंपिय सम्माणिय विसज्जितो राइणा गतो दूतो । अञ्चत्तं कुवियावि हु उज्झंति नरेसरा न नयं ॥ २९ ॥ ताडाविया निवइणा रणभेरी भीरुभूरिभयजणणी । तो नयनिवेण कुमरेण पत्थिया समरगमणाणा ।। ६३०॥ नाऊण निबंधममञ्चमंडलीजंपिएण दिन्ना से । रणगमणाणा तो सो चलिओ चउरंगबलकलिओ॥ ३१ ॥ गुरुगयघडासु तुरयावलीसु रणझणिरकिंकिणिरहेसु । रायाणो सामंता मंडलिया चडिय संचलिया ॥ ३२ ॥ परिकलयंता बहुआउहाई आओहणाय जोहोहा । कुमरं परिचारता जंति पहे समरनिवडिया ॥ ३३ ॥ विरइयबहुप्पयाणयसयलंघियनिययदे|ससीमाए। पत्तो कुमरो रिउनरवईवि सबलो सदेसंते ॥ ३४ ॥ उवभुत्तसपहुगरुयप्पसायनिक्यकयुजमा सुहडा । | अब्भिडिया असमुच्छलियमच्छरुच्छाहसंजुत्ता ॥ ३५ ।। हरिकरिरहचडिएहिं हयगयसंदणठिया पडिक्खलिया। पय
॥१८॥

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