Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah
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श्री अनन्त - नाथचरि
त्रादुद्धृतं
पूजाष्टकम् ॥ १९ ॥
सुओ । “पशुवयरियबे नो कालविलंब कुणइ गरुओ" ॥ ५४ ॥ चलिओ सदेससमुहो रायंगरुहो जयज्जियजसोहो । "सिद्धे कज्जे को वा वसइ सयन्नो विएसम्मि" ॥५५॥ कुमरेण समं नवनरवईवि चलिओ सकीयबलकलिओ । “नियपहुपयसेवच्चिय मूलं लच्छीए न पमाओ" ॥५६॥ आगच्छंतो कुमरो पत्तो वियडाडईए एक्काए । हिंतालतालतालीतमालवडसालकलियाए ॥ ५७ ॥ जा उत्तमसोहंजणविसालअक्खा मणोहर पवाला । पाडलअहरा पबयपओहरा सहइ रमणिव ॥ ५८ ॥ विलसंतसरलचित्ता गुरुहयमाराय साहुसेणिव । भवावलिब संजायपत्तबोही असोया जा ॥ ५९ ॥ मज्झमि ती वणसंडवेढियं गयणलग्गगुरुसिहरं । सप्पायारंपि भयावहारयं नियइ जिणभवणं ॥ ६० ॥ रेहन्तरूवदारं नरिंद मिव पत्तमूलरेहं जं । संपूरियसुयणासं लसिरामलसारसहियं च ॥ ६१ ॥ सबत्तो अनिलचला कंकेल्लितमालसाहिणो जस्स | जिणरायभयुब्भन्ता रागद्दोसब कंपंति ॥ ६२ ॥ दद्दूण देवमंदिरमावासइ तत्थ निवसुओ सबलो । तम्मि पविट्ठोश्चिय झत्ति मुच्छिओ पेच्छिऊण जिणं ॥ ६३ ॥ सिसिरकिरियाविरयणा संपावियचेयणो ठिओ सत्थो । आपुच्छिओ य मुच्छाए कारणं मंतिवग्गेण ॥ ६४ ॥ जंपइ कुमरो मह देवदंसणा जाइसरणमुप्पन्नं । सञ्चवियं तेण भवद्दुगमायनह तयं तुभे ॥ ६५ ॥ पत्तरहराइयंमि सरेब आरामरम्मगामंमि । साहससारो नामेण आसि एगो तुरयचोरो ॥६६॥ गंतूण दूरदेसे अत्थत्थी हरइ गुरुरयतुरंगे । विक्किणइ य दूरतरे “का वा लुद्धाण मज्जाया" ॥ ६७ ॥ नियभोगंमि निजुंजइ दविणं वियरइ य दीणबंदीणं । "मोत्तूण चागभोगे नन्नं लच्छिफलं अहवा" ।। ६८ ।। कइयावि कडीतडबद्धखग्गघेणू तुरंगहरणत्थं । पत्तो सुवासनामे गामे दिणपच्छिमे जामे ।। ६९ ।। मणपवणजवे विलसन्तलक्खणे |तेयतरलयाकलिए । पेच्छइ अतुच्छदुवादलाई चरमाणए तुरए ॥ ६७० ॥ तो सो चिन्तइ एयाण मज्झओ जइ हरामि एक्कंपि । दालिहस्साजंमं ता देमि जलंजलिं नूणं ॥ ७१ ॥ इय चिंतियप्पओसे लग्गो मग्गंमि सो तुरंगाण । "जो जक्कज्जे
धूपपूजायां धूपसुंदरकथा
॥ १९ ॥

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