Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah

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Page 36
________________ श्री अनन्तनाथचरि त्रादुद्धृतं. पूजाष्टकम् ॥ १७ ॥ ता वच्छ अपत्थं पिव नराण रज्जपि होइ असहाय । गिम्हनईनीरंपिव झिज्जर अणुदिवसमवि आउं ॥ ८६ ॥ नरनयणाणिमित्तंव जोवणं नो कयाइ ठाइ थिरं । कलुससहावा सया बहुलनिसाओव मयच्छीओ ॥ ८७ ॥ किं बहुणा सपि हु विणस्सरं भवसमुब्भवं वत्थु । सारयघणोव सोयामणिव जलबुबुतोहोव ॥ ८८ ॥ ता वीयरायदेवं पडिवज्जसु तं सरायमुज्झित्ता । पाविय वंछियफलयं कप्पतरुं सरइ को निंबं ॥ ८९ ॥ निग्गंथंमि गुरुंमिं गुरुबुद्धिं कुणसु मा पुण थे । पत्तम्मि सुणसंगे मग्गइ किं कोइ खलगोडं ॥ ५९० ॥ मुत्तुमतत्ते अंगीकरेसु जीवाइयाइं तत्ताई | को गुंजाओ गिण्हइ चइऊण महग्घरयणनिहिं ॥ ९१ ॥ पडिबोहिउं तुममहं जाओ निरिणो नियम्मि पडिवन्ने । तं सुणिय जाइसरणेण नियभवे पेच्छिय कुमारो ॥ ९२ ॥ जंपइ पणामपुवं पडिवनं पालियं तए साभि । तं मत्तुं नन्नो तिहुयणेवि परमोववयारी मे ॥ ९३ ॥ इहिं गिहधम्ममहं काहमसत्तोन्हि सवविरईए । मयमुहगयसज्यं कज्जं काउं तरइ को ॥ ९४ ॥ इय तेणुत्ते तियसे सहसत्ति तिरोहिए गतो तेओ । अब्भंतरिए तरणिंमि दुरवलोओ पावो ।। ९५ ।। संपत्तमित्तजुत्तो पत्तो नयरे गुरुक्कमे नमिउं । गिन्हइ गिहत्थधम्मं कल्लाणे को पमायपरो ॥ ९६ ॥ रंकेण व रयणनिही वरविज्जो वाहिणव संपत्तो । सद्धमो तेणं सो कयकिचं कलइ अप्पाणं ।। ९७ ।। उम्मत्तजोबणुद्दामकामकमणीयकायकंतीओ। नहयर नियंविणीओ पुत्तो परिणाविओ पिउणा ॥ ९८ ॥ तं अहिसिंचिय रज्जे पवज्जं गिण्हए | खयरराया । इहलोइयपारलोइयसुहकज्जे उज्जया गरुया ||१९|| जलसारखयरचक्की परचक्ककमणकयमणुक्करिसो । पालइ परंतपो नियरज्जसिरिं सुरिंदो ॥ ६०० ॥ लीलाए परिचलिरम्मि जम्मि माणिक्कमयविमाणेहिं । गयणयलमलं किज्जइ |सयावि किंकिणिकलरवेहिं ॥ १ ॥ वंदइ गुरुणो पूयइ जिणेसरे कुणइ संघबहुमाणं । जिणजत्ताउ पवत्तइ मंदरनंदी जलपूजायां जलसारकथा ॥ १७ ॥

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