Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah
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श्री अनन्तनाथचरिश्रादुद्धृतं
पूजाष्टकम्
॥ १६ ॥
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अन्नं पूयापत्तं समत्थि तिजएवि । ता पूइऊणमेयं सहलं मणुयत्तणं कुणसु ।। ५५० ॥ तं सोउं सो जंपइ नमिऊण मुणिं निबद्ध कर कोसो । भयवमणुग्गहिओ हं समयोचियधम्मकणेण ॥ ५१ ॥ इय जंपिउं गओ गिरिनिज्झरणनि वायरुंदकुंडम्मि । कयकमलपत्तपुडए गहिय जलं जिणहरं पत्तो ॥ ५२ ॥ दहूणं भुवणगुरुं सुमरियपुबिल्लनियसिरिष्फुरणो । चिंतइ तइया नाहो जिणनाहो मज्झ जइ हुंतो ॥५३॥ ता हूं नियसिरिवित्थर समवत्थगणेण (?) नूणमच्चंतो । इहि एयावत्थो करे मि एपि जलपूयं ॥ ५४ ॥ इय चिंतिय असमुल्लसियभत्तिपव्भारपुलइयसरीरो । पसरन्तभूरिआणंद सुदंतु रियपम्हच्छो ॥ ५५ ॥ मुंबई पहुणो पुरतो जलपुडयं अत्तणो परिकलंतो । नरजम्मजीवियबाण सहलयं भुवणपणयस्स ॥ ५६ ॥ भणइ मुणी धन्नो तं पयडइ पुलओ तुहतरं भक्तिं । इति न दुद्धे पीए उग्गारा आरेनालस्स ॥ ५७ ॥ सिवलच्छिपेच्छियाणं उच्छाहो होइ एरिसोवम्मं । नहि सुकयसंगयाणं धम्मम्मि अणायरो होइ ॥ ५८ ॥ तेणुत्तं भयवं मे भवंतरे विहु भवेज तं चैव । देवगुरुधम्मतत्ताण देसओ विरइयपसाओ ॥ ५९ ॥ इय जंपिय तेण नओ गओ मुणी नहह्यलं अलंकरिउं । सोवि गुरुविरहविहुरो खणमेत्तमचेयणोव ठिओ || ५६० ॥ नमिउं बहुमाणपुरस्सरं जिणं निग्गतो जिणाययणा । नियपुरगमणोवायं चिंतंतो गमइ दिणसेसं ॥ ६१ ॥ एत्थन्तरम्मि नहमग्गसंगिनग्गोहसा हिसिह रम्मि । अल्लीणा आगंतूण पक्खिणो झत्ति भारुंडा ॥ ६२ ॥ ते माणुसभासाए नियवुत्तंते कहिंति पुत्ताणं । एक्केण जंपियमहं जयसारपुराउ संपत्तो ॥ ६३ ॥ तप्पुरसमग्गवणिवग्ग अग्गणीचंद तेयनामो जो । संभिन्नपवहणो सो मओ अपुत्तोत्ति जणवाओ || ६४ || निसुओ निवेण तो से गहितो निल्लूडिऊण घरसारो । जे जोयंति असंतंपि ते न किं संतमिह छिद्दं ॥ ६५ ॥ गुत्तपि धणं कहियं कयत्थणाकंपिराए कंताए । अप्पंमि व णस्संते कज्जं किं सयणदविणेहिं ॥ ६६ ॥ एवं आरामियजणकहिज्जमाणं मए सुयं वच्छा । इय भारुंडपर्यंपियसवणा सो चिंतइ ससोओ ॥ ६७ ॥ पेच्छ जहा मह लच्छी पसरंत
जलपूजायां जलसारकथा
॥ १६ ॥

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