Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah
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| महिलाओ कहइ धम्मसबस्सं । भणइय भवं जायं जमज्जमिह कीलिडं पत्ता ॥ ८९ ॥ भज्जा दुच्चरियस्सरणकारणविरइयं जिणाययणं । जायइ जेण विराया भवंतरे सङ्घविरई मे ॥ ३९० ॥ ता गिव्हिय सामन्नं निस्सामन्नं तवं चरिसामि । ता मित्ता खमियवं जं तुम्ह मए कयमजुत्तं ॥ ९१ ॥ तो संविग्गा ते बिंति तुम्ह मग्गं वयंपि अणुसरिमो । तो सबै मा (मो) यावियजणया दिक्खं पवज्जंति ॥ ९२ ॥ कयबालकालबंभवयावि संजायबहुसुया सधे । ता गुरुणा विपज्जुहो ठवितो जोगोत्ति सूरिपए ॥ ९३ ॥ सो सवत्थवि भवे पडिबोहंतो विहारमायरइ । अज्जं पुण नंदीस रजिणबिंबे वंदिउं चलिओ ॥ ४ ॥ इह पत्तो सत्थाहिव तुमए वेरग्गकारणं जमहं । पुट्ठो तं तुह कहियं तं सोउं भणइ सत्थाहो ॥ ९५ ॥ च्छंति मच्छीणं पहु सबेवि हु पभूयविलियाई । नवरं कस्सवि जायइ न पडिबोहो जहा तुम्ह ॥ ९६ ॥ एयाउच्चिय भवसंभव सुहसवरसमेव मूढाण | रायरहियाण दूरं दुक्खपयं न उणमन्नयरं ॥ ९७ ॥ नूणं पहु | बहुकल्लाणठाणमत्ताणमेत्थ मन्नामि । रन्नेवि जेण पत्ता तुब्भे ता कहह सुहहेउ ।। ९८ ।। आह पहु भववासो आवासो तिक्खदुक्खलक्खाण । ता पत्तं मणुयत्तं मा हारह करह अप्पहियं ॥ ९९ ॥ तं पुण सु- देवगुरुधम्मतत्तजोएण जायए | नियमा । ता रागद्दोस अदूसियंमि देवे मई कुणह || ४०० ॥ आराहह निग्गंथं अणीहयं धम्मियं सुसीलगुरुं । जम्मि चराचरजीवाण रक्खणं कुणह तं धम्मं ॥ १ ॥ वीयरायदोसेहिं दंसियं मुणह तं सया तत्तं । जं चत्तारि वि | चउगइहराई एयाई भवाण ॥ २ ॥ जइ वि हु गुरुप्पमाया गिहिणो न कुणंति सव्वगिहिधम्मं । तहवि हु जिणपूया तेहिं | अट्ठहा भवहरी कुज्जा ॥ ३ ॥ तहाहि । जलधूवदीवनेवज्जकुसुमफलवास अक्खयसहावा । पूया अट्ठपयारा कीरइ बेहिं अरिहाण ॥ ४ ॥ इय जइवि बहुविहा सा तहवि हु सुमहुररसुत्तमफलेहिं । अंबयबिज्जउराईहि विरइया वियरइ सुहाई ॥ ५ ॥ सुनरामरत्तसिवसुहफलाई भत्तीए विरइया नूणं ॥ फलपूयकराण वियरए जेणिमं भणियं ॥ ६ ॥
फलपूजायां
फलसारकथा

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