Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah
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फलपूजायां फलसारकथा
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दवसपवत्तंसुपन्ननयणाई पणमन्ति ॥ २४ ॥ तो तेहिं पक्कगंवरअंबयनारंगबीजपूरेहिं । कयलीफलदक्खादाडिमेहि गंतुं जिणिंदपुरो ॥ २५ ॥ पसरियभत्तिभरुभिजमाणरोमंचअंचियंगेहिं । रइय बलिं मुक्कं बीजपूरयं सामिकरकमले ॥ २६ ॥ जुयलं ॥ तत्तो अन्तो उल्लसियअसमआणंदमंदिरच्छीणि । भूपुट्ठभालवटुं नमंति तिहुयणपहुं ताई ।। २७ ॥ तो भत्तीए गुरूणं नमिउं जंपंति निययभासाए । पहु तुम्ह पसाएणं अम्हेहिं समजिओ धम्मो ॥२८॥ भणइ गुरू धम्माओ नन्नं भुवणे वि अत्थि सारतरं । ता तिरियावि हु तुब्भे धन्नाइं जेसिमिय बुद्धी ॥ २९ ॥ इय अणुसासिय वानरजुयलं आपुच्छिऊण सत्थाहं । नमिय जिणं अन्नत्तो गयणेणं विहरिया गुरुणो ॥ ४३०॥ उत्तरिउ सत्याहो गओ जहाभिमयदेसमसढमई । पावित्तु आउयंतं वानरजुयलंपि कइयावि ॥ ३१ ॥ मज्झिमपरिणामज्जियनरत्तभावाहमेत्थ वेयड्ढे । उप्पन्ना सो कत्थइ मज्झ पिओ तं न याणामि ॥ ३२ ॥ जह पुत्वजम्मसद्धम्मदायगो एस चारणमुणिंदो। जं दटुं संजायमह जाइसरणनाणमिणं ॥ ३३ ॥ मोत्तुं परभवदइयं सद्धम्मुच्छाहयं पवंग मे । न नरंतरपरिणयणे मणो मणोरहमवि करेइ ॥ ३४ ॥ तं सोऊण सहीहिं सबंपि हु साहियं खयरपहुणो। तेणवि वाहरिय सुयं वुत्तं जुत्तं इमं पुत्ति ॥ ३५ ॥ किंतु न नजइ चउगइभवगहणे सो कहिंपि उप्पन्नो । ता मोत्तुमसग्गाहं अवरवरं (वर) सु तं वच्छे ।।३६॥ सा आह मज्झ अंगे लग्गइ सो सुहयरो अहव अग्गी । तं सोऊणं जणओ जाओ चिंताउरो दूरं ॥ ३७ ॥ एत्थंतरंमि सुयदुंदुहिस्सरो दारवालमवणिवई । किमिमंति पुच्छिओ सोवि तस्स |तं मुणिय विन्नवइ ॥ ३८ ॥ पहु इण्हिचिय पत्तस्स सूरिणोणतनाणमुप्पन्नं । तो केवलिमहिममिणं कुणंति अमरा सबहुमाणं ॥ ३९ ॥ तं सोउं भत्तीए खयरवई कन्नयाजुओ सबलो। केवलिपासे पत्तो पणमिय तं देसणं सुणइ ॥ ४४०॥ आह पहू संसारो धुवं असारो विणस्सरा रिद्धी । खणरायिणीउ रमणीउ गंतुरं जीवियत्तंपि ॥४१॥ इय देसणावसाणे
अनन्त०३

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