Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah

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Page 26
________________ श्रीअनन्तनाथचरि फलपूजायां फलसारकथा त्रादुद्धृतं पण पूजाष्टकम् ॥१२॥ एकंपि फलं पुरओ जो ठवइ जिणस्स परमभत्तीए । तस्स फलंति अवस्सं नरस्स सयलाउ विदिसाउ ॥७॥ तं सोउं सत्थवई भत्तिभरप्पणयगुरुकमंबुरुहो । अंगीकरइ सयावि हु जिणपूयाभिग्गहं विणई ॥८॥ साहागयेण साहामएण इय देसणं सुणेऊण । भणिया भज्जा दइए सुकरो धम्मो इमो अम्ह ॥ ९॥ जेणेह फलाहारो विहिणा अम्हाण निम्मिओ पायं । संतिच्चय सुरसफला इह रत्ने भूरितरुणोवि ॥४१०॥ नूणं न किंपि सुकयं कयमम्हेहिं भवंतरम्मि पिए। जायाइं तेण दोन्नि वि निंदियतेरिच्छजाईए ॥११॥ एत्तो विहु नियचावल्लदोससंजायपाय(व)पोसाण । अम्हाणं उप्पत्ती कत्थइ भविही न याणामो ॥ १२॥ ता सुलहफलेहिं वयं पूइत्तु जिणं भवन्नवं तरिमो। साहामई पयंपइ कुणह इमं चलह पउणम्हि ॥ १३ ॥ एत्थंतरम्मि भणिओ गुरुणा सत्थाहिवो वयं जामो। अंबरसिहरगिरिम्मि जिणिंद-15 पयवंदणनिमित्तं ॥ १४ ॥ तो आह सत्थवाहो पहु सो केत्तियपहे गिरी कहह । भणइ गुरू एसोच्चिय आसण्णो गयणगयसिंगो ॥ १५ ॥ सत्थाहिवो पयंपइ अहंपि पहु तत्थ आगमिस्सामि । तो संचलिया गुरुणो सपरियणो) सत्थवाहोवि ॥ १६ ॥ उत्तरिय दुमाओ दुयं कइद्गमवि सूरिणोणुमग्गेण । गच्छइ तरच्छकरिहरिणसवरसंचरजुए रन्ने ॥ १७ ॥ तंमज्झे तरणिभया पिंडीहूओब तमभरो तेहिं । अंबरसिहरो नामेण सामलो सो गिरी दिट्ठो ॥१८॥ सामलसिहरानिलचलतमालदल अंतरुल्लसिरधाऊ । जो नवघणोब ईसिप्फुरंततडिसजुतो सहइ ॥ १९ ॥ तम्मि सीयर| निवडिरनिज्झरणनीरसिक्करसमूहवि(व)हवाए(?) । आरूढा गुरुसत्थाहि(य)वानरा(र)म्मआरामे ॥ ४२० ॥ तस्सग्गे पिंगमणिप्पहापिसंगियसमग्गदिसियकं । रविरहरयणंव नियंति उदयसेलम्मि जिणभवणं ॥ २१ ॥ रयणीसु जं विरायइ पडिबिंबिय भूरितारयप्पयरं । केवलमुत्ताजालयविरइयसिंगारचंगव ॥ २२ ॥ पेच्छंति तत्थ उवसंतकंतमुत्तिं जिणेसरं रिसहं । जहजोग्गं ण्हवणचणथवणे काउं निवट्टा(विट्ठा ?)ते ॥२३॥ दट्टण जिणवरं वानराइं बहुमाणजायपुलयाई । आणं जनजनमानपत

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