Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah
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श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम्
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फलपूजायां फलसारकथा
॥११॥
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रत्तनेत्तपहभरपिसंगियग्गनहो। तहुगदहणनिमित्तं निसट्टगुरुतेउलेसोच ॥ ७१ ॥ तो ताण मारणत्थं काउं वेगं गतो | गिरिसिरे सो। नट्ठाई दुयं दोन्निवि को ठाइ पुरो दुजयरिउणो ॥ ७२ ॥ नढे दुगेवि वेरग्गवासणावासिओ विचिंतेइ ॥ पेच्छ अहं वेलवितो विवेयकलिओवि पावाए ॥ ७३ ॥ तुहविरहविहुरियाहं ठाउं चेट्ठामि नो निमेसपि । ताण भणियाण जायं अवसाणं एरिसमिमीए ॥ ७४ ॥ घिद्धी धिरत्थु इत्थीण ताण जाहिं विमोहिया संता । मइरामत्तव विवेइणोवि मृढत्तणं जंति ॥ ७५ ॥ जिणचवणजम्मदिक्खाकेवलनिवाणपत्वपूयणओ । सुकयं समजियं नो मए पियामोहमूढेण ॥ ७६ ॥ जाण कए पाणावि हु तणगणणाए सया गणिजंति । तासिं इमं सरूवं ता घिद्धी धी सिणेहस्स ॥ ७७ ।। घेप्पंति रूवजोवणविज्जाविन्नाणनाणदविणेहिं । नो पावप्पयईतो ता धिद्धी थीसिणेहस्स ॥ ७८ ॥ विस्सासिऊण वाहंति दासवित्तीए मह समं मूढं । अप्पंति पुण न अप्पं ता घिद्धी थीसिणेहस्स ॥ ७९ ॥ वञ्चंतु खयं विसया पजत्तं मज्झ सबभजाहिं । जो हं अणप्पवसओ विंडंबणं एवमणुपत्तो॥३८०॥ वेरग्गसंगओवि हु न सबविरइवयस्स जोग्गो हं । |ता इह लोयसुहस्सव चुक्को परलोयसोक्खस्स ॥ ८१ ॥ ता इह भजादुच्चरियसुमरणत्थं करेमि किंपि अहं । जं दर्दु परलोए उप्पज्जा मज्झ पडिबोहो ॥ ८२ ॥ इय चिंतिऊण तेणामरेण विप्फुरियकिरणरयणेहिं । गेहणगिरिसिहरंपिव रुंद जिणमंदिरं रइयं ॥८३॥ गीयत्थसूरिमज्झ(हत्थ?)प्पइट्ठियं तत्थ कारियं तेण । सिरिरिसहनाहबिंब जाणंव भवन्नबुत्तरणे - ॥ ८४ ॥ ता सक्केण सयं तत्थ अट्ठदिवसाइं ऊसवो विहिओ । इय अणुदिण जिणपूयणसजियसुकओ चुओ अमरो॥ ८५ ॥ उपपन्नो वेयड्ढे दाहिणसणीए अयलनामाए । नयरीए विजयप्पहरायपियाए जयाए सुतो ।। ८६ ॥ विजुप्पहोत्ति विजावियक्खणो मित्तमंडलीकलिओ। चलिओ नहेण कइयावि कीलिउं तं गिरि पत्तो ॥ ८७ ॥ दह्ण जिणहरं जायजाइसरणो पयासइ सु(स?)हीण । कुमरो अमरत्ते नियपियाकुसीलत्तवेरग्गं ॥ ८८ ॥ निंदइ दुस्सीलाओ
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