Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah
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959595555
फलपूजायां फलसारकथा
कइयावि करहखरवसहसगडसेरहसहस्स-संजुत्तो। संपत्तो सत्थाहो नामेण धणावहो तत्थ ॥ ५३॥ आवासिओ य वडविडवितडकए गडुरे गहीरम्मि । गुणिणीविमाणयाइसु जहजोग्गं सेखलोगोवि ॥ ५४॥ एत्थंतरंमि तवतेयभासुरो रइयउत्तरासंगो । गिम्हतरणिव चारणसमणमुणिंदो हयतमोहो ॥५५॥ अंगीकयविरइरतो अनिरुद्धसुओ अविग्गहो सययं । जयजणमणकयवासो सोहंतो कामदेवोव ॥५६॥ गयणंगणेण पत्तो तत्तो सत्थाहिवो सबहुमाणं । तं नमिय निसीयावइ पट्टम्मि निसीयइ सयंपि ॥ ५७ ॥ दटुं तं नवजोवणमब्भुयरूवं भणेइ सत्थाहो । किं पहु तुह वेरग्गं जं लहुएणवि वयं गहियं ॥ ५८ ॥ आह पहू सत्थाहिव आयन्नसु अत्थि उडलोगम्मि । बहुपुन्नपावणिज्जो सोहम्मो नाम सुरलोओ ॥५९॥ जम्मि बहुरविकरदुरवलोयमणिमयविमाणहयतिमिरे। लज्जंतोब न पविसइ कायरपुरिसोब सूरोवि ॥ ३६० ॥ पुन्नप्पयरिसवसही निरुवमरूवो असीमइस्सरिओ। तं परिपालइ सक्को कयरिउगणमाणसधसको ॥६१ ॥ तस्सत्थि परममित्तो समस्सिरीओ समाणसिंगारो । नामेण सरीरेणय विक्खाओ अमियतेओत्ति ॥ ६२ ॥ विलसिरतणुकंतिमई कंतिमई नाम सहयरी तस्स । दइयवियोगं सा विसयलालसा न सहइ खणंपि ॥ ६३ ॥ भणइय में मोत्तुं तं मा गच्छसु सामि सक्कपासम्मि । जंतुह विरहुकरिसो दूरं विहुरइ सरीरं मे ॥६४॥ पत्तमहाणंदा इव अमयदहसंगसुहियदेहव । तुहसंगसंगया सामिसाल हं होमि नियमेण ॥६५॥ इय तब्बयणस्सवणा नियदेहाओ वि नियधणाओ वि। अब्भहियं तं मन्नइ दइयं सो जीवियाओवि ॥ ६६ ॥ सुरलोयसंभवासमविसयस्सासंगसत्तचित्तस्स । अन्नाओञ्चिय गच्छइ कालो से चत्तधम्मस्स ॥६७॥ समयंतरंमि महई वेलं ठाउं सुरिंदपासम्मि । जा गच्छइ ता पेच्छइ न भारियं नियविमाणमि ॥६८॥ कत्थ गया मे कंता कंतिमई इय विभाविउं जाव । तविरहविहुरिओ तं नाणेण पलोइउं लग्गो ॥६९॥ ता अंबरसिहरगिरिंदसंदवणदक्खमंडवतलम्मि । विसयासत्तं अवरामरेण सद्धिं तमिक्खेइ ॥ ३७० ॥ गुरुरोसावेगा

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