Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah

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Page 30
________________ श्रीअनन्तनाथचरित्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् जलपूजायां जलसार कथा ॥१४॥ SSSSSSSSSSSSSFEREFESSES तारयसमूहोच ॥ ७७ ॥ तम्मि समित्तो कुमरो आरामपरंपरं परिभमिरो । आयन्नइ पक्काओ हक्काओ भिडंतसुहडाण ॥ ७८ ॥ के नाम इमे जुझंति किंवि (वा?) वेरस्स कारणमिमेसिं। पेच्छामो पुच्छामोत्ति जंपिरो सो गतो तत्थ ॥ ७९ ॥ तो तेण ज्झत्ति दिट्ठा दोन्नि भडा दंतदट्ठनियउट्ठा । कयभीमभिउडिभाला रोसारुणलोयणकराला ॥ ४८० ॥ समरारंभस्समवसगलंतपस्सेयबिंदुजालेण । रेणुप्पसमणकजे रणरंगं सिंचयंतव ॥८१॥ जुयलं ॥ मा जुज्झह मा जुज्झह ता मह नियवेरकारणं कहह । इय कुमरवारियावि हु जुझंति समच्छरा दोवि ॥ ८२॥ परारंति (पेरंति ?) अवसरंति य घडंति विहडन्ति दिति करणाई । उम्मुक्कसीहनाया वग्गंतिय खग्गवग्गकरा ॥ ८३ ॥ अन्नोन्नछलप्पहरप्पवंचअन्नायखग्गघाएहिं । दोण्हवि पडियाई महीयलम्मि सहसत्ति सीसाइं ॥ ८४ ॥ ता तेसिं सीसाई पमुक्कहुंकारपेक्कहकाहिं । अन्नोन्नं उच्छलिउं दंतेहिं डसंति अणुवेलं ॥ ८५ ॥ अवरोप्परासिदंडप्पहारजज्जरियअंगुवंगाई । जुझंति कबंधाइंवि अच्छरियकराई कुमरस्स ॥ ८६ ॥ कुमरेणुत्तं मित्ता सीसकबंधाण रणरसुक्करिसं । पेच्छह अतुच्छअच्छरियकारयं रोसवस याण ॥८७॥ ते बिंति देव सिविणेवि नेव जं तंपि एत्थ सच्चवियं । इय जंपिराण पडियं धडदुगमवि पहरजजरियं ॥८८॥ सियदंतकोडितोडियअवरोप्परवयणगंडखंडाई। निच्चेट्टाई होउं तस्सीसाइंपि पडियाई ॥ ८९ ॥ तो ज्झत्ति पिंगकेसरसडाकडारियसमग्गदिसियत । तडिपुंजपिंजरीकयजयंव जायं सरहजुयलं ॥ ४९० ॥ उक्खित्तकरप्पमुक्कफारफुत्कारसिकरोसारो। वित्थारिजइ जेहिं दिणेवि तारयभरोब नहे ॥ ९१ ॥ अइघोरगजियारवरोद्दत्तं पेच्छिउं नरिंदसुओ। विम्हियहियओ जाओ भएण नट्ठा पुण वयस्सा ॥ ९२ ॥ तो भेरवभयजणयं सरहदुगंपि हु तिरोहियं सहसा । पेच्छइ य पुरो बहुसूरकिरणभरसमहियं तेयं ॥ ९३ ॥ तं पेच्छिय विम्यतो चिंतइ कुमरो किमिंदयालमिमं । मइमोहधाउखोहाणमहब मह किंपि अन्नयरं ॥ ९४ ॥ इय चिंतंतो कुमरो जा थिरकयलोयणो तयं नियइ । ता तेयअंतरट्ठियनर ॥१४॥

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