Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah
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अक्षतपूजायां अक्षतकीर्तिकथा
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साणुरायच्छी ॥ ४५ ॥ भंजइ अविरयमंगं समुबहती समुच्चरोमंचं । परिकंपिरंगजट्ठी सज्झसासेयमुबहइ ॥ ४६॥ दहण वानरीविलसियं तयं सत्वमेव निवपुत्तो। असरिसविम्हयपरवसमणवित्ती चिंतिउं लग्गो ॥ ४७ ॥ एद्दहदूरयरा निवडिरं न मं वानरी जइ धरती। ता नूण विवजंतो अहं विभिन्न ट्ठिसंहाणो ॥४८॥ आसणपयसोहणभोयणाई तंबोलदाणपज्जंतं । अणुरत्तपियाए इव इमीए मह सागयं विहियं ॥ ४९ ॥ एयं तु महच्छरियं जमिमा मं साणुराय
नयणेहिं । मयणवियारविनडिया नियइ तिरिच्छीवि तरुणिव ॥ २५० ॥ तह वानराण जाई सया चला होइ विजुलहाइयव । एसा उ थिरप्पयई दूरं लक्खिजइ महिव ॥५१॥ ता निच्छयमेयाए वानरित्तम्मि कारणं किंपि । इय | चिंतिय निवपुत्तो सप्पणयं तं पयंपेइ ॥५२॥ मह पाणे दाऊणं उवयारपरंपरा कया तुमए । ता तुह साहामई कं करेमि मह कहसु उवयारं ॥ ५३॥ रायसुओवि हु उवयारकरणपवणोवि तुह तिरिच्छीए। किमहं काहं दिन्ना ता नियपाणावि तुब्भ मए ॥ ५४॥ तो कामवियारेहिं विनडिजंतीए तीए कुमरपुरो । गहिऊण गवलखंडं लिहिया गाहा महीए इमा ॥५५॥ मह दाहिणं वियारिय ऊरं कवित्तु मूलियं नाह । नामेण कित्तिमालं मं निवकन्नं विवाहेसु ॥५६॥ तं वाइऊण ऊरू वियारिया निवसुएण छुरियाए। कड्रिय मूलि बद्धा वणम्मि संरोहिणीमूली ॥ ५७॥ तो सा जाया रयणीयराणणा तय हरिणसमनयणी। कंचणगोरी घणपीवरत्थणी नववया रमणी ॥ ५८ ॥ दट्ठण तमच्छरियं उच्छलियअतुच्छकोउओ कुमरो। भणइ मयच्छि असद्धेयमत्तणो कहसु वुत्ततं ।। ५९॥ सा आह नाह निसुणसु अस्थि जहत्थे पुरे धरासारे । सिरिरयणसुंदरनिवो तस्स अपुत्तस्स पुत्ती हं ॥ २६० ॥ नामेण कित्तिमाला कीलंती सह सहीहिं भवणग्गे। खयराहमेण हरिऊणमेत्थ एक्केण आणीया ॥ ६१ ॥ भणिया य मह महातेखयरचक्किस्स भारिया भवसु । अविरुद्धमिणं जं कन्नया तुमं हमवि तुह रत्तो ॥ ६२ ॥ इय भोगत्थं अब्भत्थिया बहुं सामदाण

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