Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam Author(s): Nemichandrasuri Publisher: Raichand Gulabchand Shah View full book textPage 8
________________ श्री अनन्त - नाथचरि त्रादुद्धृतं पूजाष्टकम् ॥३॥ कप्पाए कज्जे भुवणोवयारकरणखमं । नररयण मा विणाससु अत्ताणं करिकयंताओ ॥ ८३ ॥ सुयकुमरीविन्नवणो सो जंपइ तंपि भुवणगब्भम्मि । वससि तओ रक्खिस्सं चइउं पाणेवि तं नियमा ॥ ८४ ॥ मह करगयावि चाटूणि करेइ कुमरस्स इय विभावेउं । कुविएण व करिणा सा खित्ता दूरं गयणमगे ॥ ८५ ॥ विज्जाहरिं व गयणे गच्छंतिं तं पलोइरो कुमरो । जाओ पमत्तचित्तो तो संगहियो गईदेण ॥ ८६ ॥ मिलसु नियवल्लहाए तुमंपि इय चिंतिउं व कुविएण । करिणा कुमरो वि नहे खित्तो तीए पडतीए ||८७|| मरिही एसा एद्दहद्दूरा रयनिवडियत्ति कलिऊण । परिसत्ता करुणाए नेहेण व | तेण सा गाढं ॥ ८८ ॥ आलिंगियाए तीए पडइ अहो निवसुओ निराहारो । थीफासलालसाणं अहोगईए न संदेहो ॥ ८९ ॥ एत्थंतरंमि वेगागएण नहयरनरेण एक्केण । तद्दुगमवि अवरुंडिय नरनयणागोयरे नीयं ॥ ९०॥ तो पलवंतो लोगो अतरंतो लग्गिउं खयरमग्गे । गंतूण कहइ रन्नो कुमारकुमरीणमवहरणं ॥ ९१ ॥ तं सोउं आउलितो चलितो राया निरिक्खणे ताणं । पेरियतरलतुरंगो परियडइ पुरस्स चउपासं ॥ ९२ ॥ अप्पत्ततप्पउत्ती दुरयरमहिं पलोइउं वलिओ । रुयइ रुयावि - | यलोगो सहमागंतुं गुरुसरेण ॥९३॥ हा वच्छे हा वच्छे हहा अतुच्छे हहा विणयदच्छे(क्खे) । हा सुकुमाले बाले अवरिया केण तं कह || ९४|| हे देव निद्दतो तं बालं पुत्तं तया हरेऊण । कंन्नंपि अवहरंतो खयंमि खारं खिवसि खुद्द ॥ ९५ ॥ हा मह सहा वि सुन्ना तुह विरहे कुसुमसेहरकुमार। एरिसदुह (दं) सणत्थं पवसंतो तं मए धरिओ ॥ ९६ ॥ अंतेउरपरजणेणं राइणा तह तथा तर्हि रुन्नं । जह नयणजलासारो वित्थरितो वरिसयालोव ॥ ९७ ॥ एवं पलवंताणं ताणं तइए दिणे तरणिउदये । | खयरविमाणगणेणं पत्तो कुमरीजुतो कुमरो ॥ ९८ ॥ पणतो य महीवइणो सखेयरो निवसुयावि तं नमइ । आपुच्छिय कुसलाई ताइं निविट्ठाइं निवपुरतो ।। ९९ ।। रायाह कुमर साहसु हरणागमणाण निययवुत्तंतं । तो तं कुमराणाए कहि | लग्गो खयरचक्की ॥ १००॥ देवत्थि दियवरम्मिँ व वेयड्डे गुरुगिरिम्मि मणिभवणं । नयरं रहनेउर चक्कवाल नामं मणभि कुसुम पूजायां कुसुमशेखरकथा ॥ ३ ॥Page Navigation
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