Book Title: Anantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Raichand Gulabchand Shah
View full book text
________________
श्री अनन्तनाथचरश्रादुद्धृतं पूजाष्टकम्
॥ ६॥
रविरहतुरंगे ॥ ९१ ॥ उग्गीवाणं मं पेच्छिराण पीडा भडाण भवहित्ति । परिभाविडं व तुरओ तन्नयणागोयरे पत्तो ॥ ९२ ॥ रायगरुहे हरिए हियहियतो इव समग्गपरिवारो । कायद्यविमूढमई पत्तो रायंतियं झत्ति ॥ ९३ ॥ साहइ कुमारहरणं तं सोउं मुच्छिओ महीनाहो । तबेलमेव जाओ निचेट्ठो चत्तपाणो ॥ ९४ ॥ चंदण रसछडासेयवस समुवलद्धचेयण सहावो । रुयइ सकरुणं पागयनरोब अंतेउरेण जुतो ।। ९५ ।। हा हा कुमार हा भुवणसार हा रइयरम्मसिंगार । हा विहलिय अब्भुद्धार हा हहा समरदुबार ॥ ९६ ॥ हा जाय जाय हा विहियनाय हा धरियरायमज्जाय । हा हा पररमणीभाय हा हहा भुवणविक्खाय ॥ ९७ ॥ को उच्छंगे धरिऊण मह काम कुमर कोमलकरेहिं । संवाहंतो काही आणंद महूसवुक्करिसं ॥ ९८ ॥ कुंडलसरलुत्तरियाकंकण के ऊरमणिमयाभरणे । रंजिज्जतो दाही दाणे को बंदिविंदाण ॥ ९९ ॥ इय पलवंते संतेउरे निवेमंतिणा विमलमइणा । कुमरनिरिक्खणकज्जे तुरयाणीयं समाइटुं ॥ २०० ॥ तंपि दुवाल सजोयणमाणम्मि महियले परिब्भमिडं । नवरं कुमारवत्तामेतंपि न तेण संपत्तं ॥ १ ॥ तइयम्मि दिणे पसरंतसोय संभारनिब्भरे नयरे । कुमरो खयरविमाणाऊरिय गयणंगणो पत्तो ॥ २ ॥ नयणेहिं समं हरिसं वियासयंतो नरिंदलोयाण । पणओ जणणीजणयाण तेहिं आलिंगिओ गाढं ॥ ३ ॥ तो चेडीचक्कजुया कुमरगुरूणं नया कुमरवहुया । आसिहिं ताण तुट्ठा सुद्धते संठिया गंतुं ॥ ४ ॥ जंपइ जणओ तुमए दिनो किं अम्ह पुत्त दुःखभरो । सो भणइ सुहदुहाणं दाया देखो न चैव अहं ॥ ५ ॥ रायाह सुहदुहाणं जं अणुभूयं तएवहरिएण । तं साहसुति तो कुमरसुमरिओ आगओ अमरो ॥ ६ ॥ तं दहुं मणिकुंडलकिरी डकेयूरकंकणाहरणं । बिम्हियमणो नि ( वो ) पूई ऊण तस्सासणं देइ ॥ ७ ॥ तत्थुवविसिउं सो कुमरपेरिओ कहइ हरिणवृत्तंतं । प्रायामि पुरी अस्थि चमरचंचत्ति मणिभवणा ॥ ८ ॥ जीए सामारुणसियमणिभवण पहाहिं संवलिज्जन्ता । अमरा भ्रमन्ति मयणाहिघुसिणचंदणविलित्तव ॥ ९ ॥ तथावट्ठियजोवणसुरंगणा
अक्षत
पूजायां
अक्षतकीर्तिकथा
॥ ६॥

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90