Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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शभकामना
मुख्यमन्त्री
उत्तर प्रदेश
विधान भवन, लखनऊ
१-१-७५ प्रिय सुराना जी,
आपका २४, १२, १६७४ का पत्र सधन्यवाद प्राप्त हुआ।
जानकर प्रसन्नता हुई कि आचार्य प्रवर श्री आनन्दऋषि जी का सार्वजनिक अभिनन्दन कर अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित कर उनके प्रति अपने प्रेम, आस्था एवं कृतज्ञता का परिचय दे रहे हैं। ऐसे समाज सेवी के प्रति यह विचार आना स्वाभाविक ही है। । उक्त समारोह के सोल्लास सम्पन्न होने के लिए कृपया मेरी शुभ कामनायें स्वीकार करें।
सद्भावनाओं सहित,
आपका .-हेमवतीनन्दन बहुगुणा
मुख्यमन्त्री राजस्थान
जयपुर
४ दिसम्बर, १९७३ प्रिय महोदय, ____ मुझे यह जानकर बड़ी प्रन्नसता हुई कि आचार्य श्री आनन्दऋषि जी के ७५ वें वर्ष प्रवेश के अवसर पर उनका सार्वजनिक अभिनन्दन कर उन्हें अभिनन्दन-ग्रन्थ समर्पित करने का आयोजन किया जा रहा है। श्री आनन्द ऋषि जी ने साधुपन के दीर्घकाल में शिक्षा संस्थाओं को स्थापित कर और अनेक भाषाओं तथा गहन विषयों का ज्ञान प्रसारित कर समाज को विशिष्ट देन दी है। मैं इस अवसर पर अपनी शुभ कामनाएं प्रेषित करता हूँ।
-हरिदेव जोशी
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