Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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६ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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को खमनौर ले गये । किन्तु हल्दीघाटी तो वीरभूमि ठहरी। वहाँ किसी का वीरत्व हट पाए, यह तो सम्भव नहीं था, फिर चाहे वह वीरत्व त्याग का हो या रण का !
एक दिन अम्बालालजी ने एक सुदृढ़ निश्चय किया और किसी को बिना बताये ही खमनौर छोड़ दिया । बावीस मील चले होंगे, सनवाड़ पहुँच गये। पूज्यश्री मोतीलालजी महाराज वहीं विराजमान थे। जहाँ चाह वहाँ राह ! उत्साह होता है तो शक्ति और साधन आ जुटते हैं । महाराणा के चंगुल में
___अम्बालालजी खमनौर से नदारद हो गये । माहोली खबर पहुँची। अधिक ढूंढ़ने की आवश्यकता न थी, अम्बालालजी के गन्तव्य को सभी जानते थे । सनवाड़ पूज्यश्री की सेवा में वे पाये गये । पारिवारिक-जनों में फिर नई हैरानी व्याप्त हो गई। हाथ आये अम्बालालजी फिर चले गये। कुछ लोगों ने सोचा-अम्बालालजी संसार में रह पाएँ, यह सम्भव नहीं, किन्तु दादी का मोह अभी थमना नहीं चाहता था। उसने अब एक नया ही रास्ता ढूंढ़ लिया, अम्बालालजी को रखने का । दो भाइयों को साथ लेकर बुढ़िया उदयपुर पहुँची। तत्कालीन महाराणा फतहसिंह जी बग्घी में बैठ-घमने को निकले ही थे कि वह बग्घी के सामने जाकर खड़ी हो गई। महाराणा के पूछने पर एकमात्र सहारा अम्बालालजी के संयम लेने के आग्रह को उसने प्रकट बता दिया । बुढ़िया ने कहा-अम्बालाल साधु बन जाएगा तो मेरा कोई सहारा न रहेगा, वही मेरा एकमात्र आधार है। आप बचाएँ ! महाराणा ने कर्मचारियों को अम्बालालजी को उदयपुर ले आने का आदेश दे दिया ।
आदेश स्वयं महाराणा का था। अतः पूर्ण होने में अब कोई संशय नहीं रहा । माहोली थाने में आदेश पहुँचते ही पुलिस के दल ने 'हिन्दू' गाँव में, जहाँ पूज्यश्री विराज रहे थे और अम्बालालजी त्याग-वैराग्यपूर्वक ज्ञानाभ्यास कर रहे थे, अम्बालालजी को हस्तगत कर लिया और माहोली लेकर चले आये। माहोली में थाना ही अम्बालालजी का निवास था। भोजन दादी के वहाँ पहुँचकर लेते, वहाँ भी पुलिस का कड़ा पहरा रहता था। लगभग एक माह माहोली थाने में अम्बालालजी को ठहराया गया। इस बीच कई तरह के परिषह पुलिस वालों ने दिये । वे यह चाहते थे कि लिख दो कि दीक्षा नहीं लूंगा । किन्तु अम्बालालजी इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे। कभी धोवन पानी नहीं मिलता तो प्यासे ही रह जाते ।
माहोली थाने में रहते हुए इन्हें सामायिक करने में भी कठिनाई का सामना करना पड़ता था । किसी से बात करना तो दूर, मिलने तक की सख्त मनाई थी। एक माह के बाद उदयपुर पहुंचने का आदेश पाकर पुलिस इन्हें उदयपुर ले गई और महाराणा के सामने प्रस्तुत कर दिया। महाराणा से सीधी बातचीत
महाराणा फतहसिंहजी बड़े जबरदस्त व्यक्तित्व के धनी, ओजस्वी और स्पष्टवक्ता थे। उनके आसपास एक आतंकपूर्ण वातावरण छाया रहता था। बड़े से बड़े प्रखर व्यक्ति भी उनके सामने आने में कांपते थे। कहते हैं, एक बार लार्ड कर्जन उदयपुर आया और उसके पास कई शिकायतों का पुलिन्दा था जो महाराणा के सामने बड़े जोरदार ढंग से पेश करना चाहते थे। किन्तु महाराणा के प्रभावशाली व्यक्तित्व का उसके मन पर ऐसा असर हुआ कि वह पुलिन्दा केवल सहायक के बस्ते में ही बन्द रह गया ।
ऐसे प्रभावशाली नर-नाहर महाराणा फतहसिंहजी के सामने अम्बालालजी को प्रस्तुत किया गया तो सभी को विश्वास था कि महाराणा की एक ही हुँकार से यह अपना विचार बदल देंगे। किन्तु ऐसा कुछ हुआ नहीं। महाराणा ने अम्बालालजी से कई धार्मिक प्रश्न किये । संयम का हेतु पुछा, गृहस्थाश्रम की विशेषता प्रकट की। अम्बालालजी ने निर्भयतापूर्वक सभी प्रश्नों का यथोचित उत्तर देकर दीक्षित होने का दृढ़ निश्चय प्रकट किया तो महाराणा ने एक नया प्रसंग रखा । व्यापार के लिये यथावश्यक धन और कुछ विशेष अधिकार देने का लालच भी दिया । किन्तु अम्बालालजी दृढ़तापूर्वक इन्कार कर गये । अन्त में महाराणा ने कहा- "हम तुम्हें यदि दीक्षा लेने की आज्ञा ही न दें तो ?" इस पर