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- उत्तराध्ययन/५८. थी। राजा सोचने लगा-वृक्ष फलसहित था, तब तक उसे भय था। धनवान् को सर्वत्र भय होता है। अकिंचन को कहीं भी भय नहीं। मुझे भी फलरहित वृक्ष की तरह होना चाहिए। वह विचारों की तीव्रता से प्रत्येकबुद्ध हो गया।
द्विमुख पांचाल के राजा थे। ये इन्द्रध्वज को देखकर प्रतिबोधित हुए। बौद्ध साहित्य में भी दुमुख राजा का वर्णन है।१७६ वे उत्तरपांचाल राष्ट्र में कम्पिल नगर के अधिपति थे। वे भोजन से निवृत्त होकर राजाङ्गण की श्री को निहार रहे थे। उसी समय ग्वालों ने व्रज का द्वार खोल दिया। दो सांडों ने कामुकता के अधीन होकर एक गाय का पीछा किया। दोनों परस्पर लड़ने लगे। एक के सींग से दूसरे सांड की आंतें बाहर निकल आई
और वह मर गया। राजा चिन्तन करने लगा सभी प्राणी विकारों के वशीभूत होकर कष्ट प्राप्त करते हैं। ऐसा चिन्तन करते हुए वह प्रत्येकबोधि को प्राप्त हो गया।
नग्गति गांधार का राजा था। वह मंजरी-विहीन आम्रवृक्ष को निहारकर प्रत्येकबुद्ध हुआ। बौद्ध साहित्य में भी 'नग्गजी' का नाम के राजा का वर्णन है।१७७ वह गांधार राष्ट्र के तक्षशिला का अधिपति था। उसकी एक स्त्री थी। वह एक हाथ में एक कंगन पहन कर सुगन्धित द्रव्य को पीस रही थी। राजा ने देखा-एक कंगन के कारण न परस्पर रगड़ होती है और न ध्वनि ही होती है। उस स्त्री ने कुछ समय के बाद दूसरे हाथ से पीसना प्रारम्भ किया। उस हाथ में दो कंगन थे। परस्पर घर्षण से शब्द होने लगा। राजा सोचने लगा-दो होने से रगड़ होती है और साथ ही ध्वनि भी। मैं भी अकेला हो जाऊँ जिससे संघर्ष नहीं होगा और वह प्रत्येकबुद्ध हो गया।
उत्तराध्ययन में जिन चार प्रत्येकबुद्धों का उल्लेख है, वैसा ही उल्लेख बौद्ध साहित्य में भी हुआ है किन्तु वैराग्य के निमित्तों में व्यत्यय है। जैन कथा में वैराग्य का जो निमित्त नग्गति और नमि का है, वह बौद्ध कथाओं में करकण्डु और नग्गजी का है। उत्तराध्ययन सुखबोधावृत्ति में तथा अन्य ग्रन्थों में इन चार प्रत्येकबुद्धों की कथाएँ बहुत विस्तार के साथ आई हैं। उनमें अनेक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक तथ्यों का संकलन है, जबकि बौद्ध कथाओं में केवल प्रतिबुद्ध होने के निमित्त का ही वर्णन है।
विण्टरनीत्ज का अभिमत है—जैन और बौद्ध साहित्य में जो प्रत्येकबुद्धों की कथाएँ आई हैं, वे प्राचीन भारत के श्रमण-साहित्य की निधि हैं।१७८ प्रत्येकबुद्धों का उल्लेख वैदिक परम्परा के साहित्य में नहीं हुआ है। महाभारत१७९ में जनक के रूप में जिस व्यक्ति का उल्लेख हुआ है, उसका उत्तराध्ययन में नमि के रूप में उल्लेख है। यद्यपि मूलपाठ में उनके प्रत्येकबुद्ध होने का उल्लेख नहीं है। यह उल्लेख सर्वप्रथम उत्तराध्ययन नियुक्ति में हुआ है। इसके पश्चात् टीका-साहित्य में।
उदायन : एक परिचय
'उदायन' सिन्धु सौवीर जनपद के राजा थे। इनके अधीन सोलह जनपद, वीतभय आदि तीन सौ तिरेसठ नगर और महासेन आदि दश मुकुटधारी राजा थे। वैशाली के गणतंत्र के राजा चेटक की पुत्री उदायन की पटरानी थी। भगवती सूत्र१८० में उदायन का प्रसंग प्राप्त है। उदायन का पुत्र अभीचकुमार निर्ग्रन्थ धर्म का
१७६. कुम्भकारजातक (संख्या ४०८) जातक, चतुर्थ खण्ड, पृष्ठ ३९-४० १७७. कुम्भकारजातक (संख्या ४०८) जातक, चतुर्थ खण्ड, पृष्ठ ३९ . १७८. The Jainas in the history of Indian Literature, P. 8. १७९. महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय-१७८, २१८, २७६. १८०. भगवतीसूत्र शतक-१३, उद्देशक ६