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समीक्षात्मक अध्ययन/५७ चक्रवर्तियों का उल्लेख हुआ है। भरत चक्रवर्ती भगवान् ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे। इन्हीं के नाम पर प्रस्तुत देश का नाम 'भारतवर्ष' हुआ। इन्होंने षट्खण्ड के साम्राज्य का परित्याग कर श्रमणधर्म स्वीकार किया था। दूसरे चक्रवर्ती सगर थे। अयोध्या में इक्ष्वाकुवंशीय राजा जितशत्रु का राज्य था। उसके भाई का नाम सुमित्रविजय था। विजया और यशोमती ये दो पत्नियाँ थीं। विजया के पुत्र का नाम अजित था, जो द्वितीय तीर्थंकर के नाम से विश्रुत हुए और यशोमती के पुत्र का नाम सगर था, जो द्वितीय चक्रवर्ती हुआ।
तृतीय चक्रवर्ती का नाम मघव था। ये श्रावस्ती नगरी के राजा समुद्रविजय की महारानी भद्रा के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। सनत्कुमार चतुर्थ चक्रवर्ती थे। ये कुरु जांगल जनपद में हस्तिनापुर नगर के निवासी थे। उनके पिता का नाम अश्वसेन और माता का नाम सह देवी था। शान्तिनाथ हस्तिनापुर के राजा विश्वसेन के पुत्र थे। इनकी माता का नाम अचिरा देवी था। ये पाँचवें चक्रवर्ती हुए। राज्य परित्याग कर श्रमण बने और सोलहवें तीर्थकर हुए। कुन्थु हस्तिनापुर के राजा सूर के पुत्र थे। इनकी माता का नाम श्री देवी था। ये छठे चक्रवर्ती हुए। अन्त में राज्य का परित्याग कर श्रमण बने। तीर्थ की स्थापना कर सत्तरहवें तीर्थंकर हुए। 'अर' गजपुर के राजा सुदर्शन के पुत्र थे। इनकी माता का नाम देवी था। ये सातवें चक्रवर्ती हुए। राज्य-भार को छोड़कर श्रमणधर्म में दीक्षित हए। तीर्थ की स्थापना करके अठारहवें तीर्थंकर हुए। नवें चक्रवर्ती महापद्म थे। ये हस्तिनापुर के पद्मोत्तर राजा के पुत्र थे। इनकी माता का नाम झाला था। उनके दो पुत्र हुए-विष्णुकुमार और महापद्म । महापद्म नौवें चक्रवर्ती हुए। हरिसेण दसवें चक्रवर्ती हुए। ये काम्पिल्यपुर नगर के निवासी थे। इनके पिता का नाम महाहरिश था और माता का नाम 'मेरा' था। जय राजगृह नगर के राजा समुद्रविजय के पुत्र थे। इनकी माँ का नाम वप्रका था। ये ग्यारहवें चक्रवर्ती के रूप में विश्रुत हुए।
___ भरत से लेकर जय तक तीर्थंकरों और चक्रवर्तियों का अस्तित्वकाल प्राग-ऐतिहासिक काल है। इन सभी ने संयम-मार्ग को ग्रहण किया। दशार्णभद्र दशार्ण जनपद के राजा थे। ये भगवान् महावीर के समकालीन थे। नमि विदेह के राजा थे। चूड़ी की नीरवता के निमित्त से प्रतिबुद्ध हुए थे। कुम्भजातक में मिथिला के निमि राजा का उल्लेख है। वह गवाक्ष में बैठा हुआ राजपथ की शोभा निहार रहा था। एक चील मांस का टुकड़ा लिए हुए आकाश में जा रही थी। इधर-उधर से गिद्धों ने उसे घेर लिया। एक गिद्ध ने उस मांस के टुकड़े को पकड लिया। दसरा छोड कर चल दिया। राजा ने देखा जिस पक्षी ने मांस का टुकड़ा लिया, उसे दुःख सहन करना पड़ा है और जिसने मांस का टुकड़ा छोड़ा उसे सुख मिला। जो कामभोगों को ग्रहण करता है, उसे दुःख मिलता है। मेरी सोलह हजार पत्नियाँ हैं। मुझे उनका परित्याग कर सुखपूर्वक रहना चाहिए। निमि ने भावना की वृद्धि से प्रत्येकबोधि को प्राप्त किया।१७४ करकण्डु कलिंग के राजा थे। वे बूढ़े बैल को देखकर प्रतिबुद्ध हुए। वे सोचने लगे-एक दिन यह बैल बछड़ा था, युवा हुआ। इसमें अपार शक्ति थी। आज इसकी आँखें गड़ी जा रही हैं, पैर लड़खड़ा रहे हैं। उसका मन वैराग्य से भर गया। संसार की परिवर्तनशीलता का भान होने से वह प्रत्येकबुद्ध हुआ।
बौद्ध साहित्य१७५ में भी कलिंग राष्ट्र के दन्तपुर नगर का राजा करकण्डु था। एक दिन उसने फलों से लदे हुए आम्र वृक्ष को देखा। उसने एक आम तोड़ा। राजा के साथ जो अन्य व्यक्ति थे उन सभी ने आमों को एक-एक कर तोड़ लिया। वृक्ष फलहीन हो गया। लौटते समय राजा ने उसे देखा। उसकी शोभा नष्ट हो चुकी
१७४. कुम्भकारजातक (संख्या ४०८) जातक, चतुर्थ खण्ड, पृष्ठ ३९ १७५. कुम्भकारजातक (संख्या ४०८) जातक, चतुर्थ खण्ड, पृष्ठ ३७ .