________________ निशीथ प्रस्तुत आगम का नाम निशीथ है / प्राचाराङ्गनियुक्ति में 'आयारपकप्प' और 'निसीह ये दो नाम प्राप्त होते है / ' अन्य कई स्थलों पर ये दो नाम आये हैं / नन्दीसूत्र और पक्खियसुत्त 3 ग्रन्थ में 'निसीह' शब्द का प्रयोग प्रस्तत आगम के लिए हुआ है / धवला और जयधवला में क्रमश: 'णिसिहिय' और 'णिसीहीय' का प्रयोग हमा है। अंग-प्रज्ञप्तिलिका में 'मिसेहिय' शब्द प्राया है।" निसीह शब्द का संस्कृत रूप निशीथ है। णिसीहिय और णिसीहीय का संस्कृत अर्थ निषिधक है। वेबर ने निसीह शब्द पर चिन्तन करते हुए लिखा है कि निसीह शब्द का अर्थ निषेध होना चाहिए। उन्होंने अपने मन्तव्य को सिद्ध करने हेत उत्तराध्ययन में व्यवहृते समाचारी प्रकरण में 'निसीहिया' 'नषेधिकी' शब्द समुपस्थित किया है और उन शब्दों की परिभाषा देकर यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि निसीह शब्द का अर्थ 'निशीथ' नहीं 'निषेध' है। दिगम्बर ग्रन्थों में निसीह के स्थान में निसीहिया शब्द का व्यवहार किया गया। गोम्मटसार में भी यही शब्द प्राप्त होता है / गोम्मटसार की टीका में निसीहिया का संस्कृत रूप निषीधिका किया है। आचार्य जिनसेन ने हरिवंशपुराण में निशीथ के लिए 'निषद्यक' शब्द का व्यवहार किया है। तत्वार्थभाष्य में निसीह शब्द का संस्कृत रूप निशीथ माना है। नियुक्तिकार को भी यही अर्थ अभिप्रेत है। इस प्रकार श्वेताम्बर साहित्य के अभिमतानुसार निसीह का संस्कृत रूप निशीथ और उसका अर्थ अप्रकाश्य है। दिगम्बर साहित्य की दृष्टि से निसीहिया का संस्कृत रूप निशीधिका है और उसका अर्थ प्रायश्चित्त-शास्त्र या प्रमाददोष का निषेध करने वाला शास्त्र है। शास्त्रदष्टि से निसीह शब्द पर चिन्तन किया जाय तो निसीह शब्द के संस्कृत रूप निशीथ और निशीध दोनों हो सकते हैं, क्योंकि 'थ' और 'ध' दोनों को प्राकृत भाषा में हकार आदेश होता है। अत: मिसिहिया या मिसीहिया शब्द के संस्कृत निषिधिका और निशीथिका अर्थ की दृष्टि से चिन्तन करें तो निषिध या निषिधिका की अपेक्षा निशीथ या निशीथिका अर्थ अधिकः संगत प्रतीत होता है। क्योंकि यह पागम विधिनिषेध का प्रतिपादन 1. आचारांगनियुक्ति गा. 291-347 नन्दीसूत्र, पृ. 44 / पक्खियसुत्त, पृ. 66 / षट्खण्डागम, भाग 1 पृ. 96, कसायपाहुड, भाग 1 पृ. 25,121 टिप्पणों के साथ देखें। अंगप्रज्ञप्तिचलिका गाथा 34 / इण्डियन एण्टीक्वेरी, भाग 21 पृ. 97 / This Name ( f e) is Explained Strangely Enough By Nishitha Though the Character of the Contents would lead us to Expect Nishitha. (निषेध) षट्खण्डागम, प्रथम खण्ड, पृ. 96 / गोम्मटसार जीवकाण्ड 367 / / निषेधनं प्रमाददोषनिराकरणं निषिद्धिः संज्ञायां 'क' प्रत्यये निषिद्धिका तच्च प्रमाददोषविशुद्धयर्थ बहप्रकार प्रायश्चित्तं वर्णयति / --गोम्मटसार जीवकाण्ड 367 10. निषधकाख्यमाख्याति प्रायश्चितविधि परम् / —हरिवंशपुराण 10 / 138 ; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org