Book Title: Adhyatmavichar Jeet Sangraha
Author(s): Jitmuni, 
Publisher: Pannibai Upashray Aradhak Bikaner

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Page 15
________________ IJAL अध्यात्म- विचार مقالات بارداری वह महापुरुष जिंदाही मुक्त है वह (महात्मानः) महात्मा (विगतस्पृहाः) सर्वतरहकी इच्छाओसें मुक्त (जायन्ते) होकर | Bीतसंग्रह आत्मअनुभवरूपी अमृतका पान करता है. ॥ २२॥ भावार्थ:-विस्तारको प्राप्तहई परमआत्मज्योतिके प्रभावसे | महानिर्मलहआ हैं अंतःकरण जिसमहात्माका वही महापुरुष जीवन्मुक्त अर्थात् जींदाही मुक्तरूप है वही महापुरुष कर्मोसे मुक्त होकर मोक्षसुखको प्राप्त कर शक्ता है मेरे जैसे (पुद्गलानंदियों विचारे क्या करेगे वह महानुभाव सर्वतरहकी इच्छाओसे मुक्त होकर अखीरमें निर्वाणपदकों प्राप्त करलेता है ॥ २२॥ मु०-जागत्यात्मनितेनित्यं । बहिर्भावेषुशेरते ॥ उदासतेपरद्रव्ये । लिंगंतेस्वगुणामृते ॥२३॥ | शब्दार्थः-(ते) वह महापुरुष (नित्यं ) सदैव (आत्मनि) आत्मस्वरूपमेंही (जाग्रति) जाग्रत रहता है और जो संसारिक पुद्गलानंदियो हैं (बहिर्भावेषु) अर्थात् बहिरात्म पुद्गलीक सुखोमेंही (शेरते) सोतेहुये हैं, परद्रव्यके विषे परंतु जो महात्मा होते है वहतो [परद्रव्ये परद्रव्य परधनके विसे [उदासते] उदासवृत्तिमें रहकर [स्वगुणामृते] अपनें स्वआत्मरूपी अमृतके विसेही [लिंगंते आलिंगन करतेहुये सदैव सुखमेंही मग्न रहते है २३ भावार्थः-वह महा| पुरुष सदैव आत्मस्वरूपके विसेही जाग्रत रहते है लेकिन संसारीजीवों बहिरात्मभावमं अर्थात् पुद्गलानंदियो पुगलीक सुखोमें सोतेहुए कालक्षेप करते है परपुद्गलके विषे परंतु जो योगीराज हैं वहतो परद्रव्य परधन में उदास वृत्तिमें रहकर अपने स्वआत्मगुणरूपी अर्थात् आत्मज्ञानरूपी अमृतकाही पान करतेहुए निरभे विचरते है.॥२३॥ Jain Elucio For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org ज

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