Book Title: Adhyatmavichar Jeet Sangraha
Author(s): Jitmuni, 
Publisher: Pannibai Upashray Aradhak Bikaner

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Page 14
________________ जीतसंग्रह नहीं सुररायने, नहिरायां नहिराय, ते सुख एक पलकमें, निले ध्यानमें आय ॥२॥ भावार्थ-पुनः आत्मपरम ज्योति अध्यात्म-DE विचार JE प्रभाव कैसा है मानु कि दंभ याने कपटरूपीपर्वतको छेदनेकेलिये मानु एक वज्रके समानही हैं अर्थात् दंभ रूपी कपटको छेदनेकेलिये अध्यात्मज्ञानके समाम दुसरा कोइभी शस्त्र नहीं हैं तैसेंही मोहरायकों मारनेके लिये आत्मज्ञानके समान दूसरा कोइभी शस्त्र या औषधि नहीं हैं इसलिये सदैव आत्मज्ञानरूपी धनवाले मुनियोंको इंद्रसेभी अधिक सुख और स्थानकी प्राप्ति होती है कहाभी है ॥२०॥ JE] मु०-श्रामण्ये वर्षपर्यायात् । प्राति परम शुक्लताम् ॥ सवार्थसिद्धदेवेभ्यो । प्यधिकंज्योतिरुल्लसेत २१ शब्दार्थ:-[श्रामण्येवर्षपर्यायात् ] मुनिपर्यायमें एकवर्षरहनेपर (प्राप्तेपरमशुक्लतां) परन उत्कृष्टशुक्लज्ञानकी प्राप्ती होती है अर्थात् जिससुखकीप्राति साधुमुनिराजको होती हैं ऐसे सुखकी प्राप्ति (सर्वार्थसिद्धदेवेभ्यः) सर्वार्थसिद्धवासी देवोंकोंभी नहीहोती क्योंकि [ज्योतिः] आत्मअनुभवज्योतिकेबिसे जोसुख हैं वहसुख सर्वार्थसिद्धवासी देवोंसेंभी [अधिकं] अधिक (उल्लसेत् ) उल्लासकों प्राप्त होता है २१ भा०-कि मुनिपर्यायमें एकवर्ष में जो सुखकी प्राप्तिहोती हैं वह सुखकी प्राप्ति सर्वार्थसिद्धवासी देवोंकोभी नहीं होशकती क्योंकि आत्मअनुभाव समाधिका सुख अधिक है २१ म०–विस्तारिपरमज्योति । द्योंतिताभ्यंतराशयाः ॥ जीवनमुक्तामहात्मानो । जायन्ते विगतस्पृहाः ॥२२ | शब्दार्थः-ऐसें [ विस्तारि ] विस्तारको प्राप्तहुइ [ परमज्योतिः] परमआत्म ज्योतिके प्रभावसे (द्योति ताऽभ्यंन्तराशयाः) महानिर्मलहुआ है अंतःकरण जिस महात्माका वही [ जीवन्मुक्ताः) जीवनमुक्त हैं अर्थात् DDCDDROIDचालन SupendepenDGBDDLODGUADOD For Personal Price Only

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