Book Title: Adhyatmavichar Jeet Sangraha
Author(s): Jitmuni, 
Publisher: Pannibai Upashray Aradhak Bikaner

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Page 17
________________ अध्यात्म- Mall करलेता हैं महाभाग्य. ॥ २५ ॥ भावार्थ:-जैसे उदयहुआ सूर्य तिभिर रूपी अंधकारकों अर्थात् अंधकारके पडलको करता हमहामाग्य. ।। ५. JE जीतसंग्रह विचार | दूर करदेता है तैसे सम्यग्दर्शन चारित्रको प्राप्त हुआ अर्थात् आत्मज्योतिके प्रकाशसें प्रकाशितवाला योगीराज अज्ञानरूपी तिमिरको एक समयमात्रमें दरकरके सिद्धपदकों प्राप्त करलेता है. गाथा-मोहप्रसंगेचेतन, चाऊंगतिमेंभटके, मोहतजी शीवजातां, समयमात्रनविअटके. ॥१॥ मु०-परकीयप्रवृतो ये । मृकान्धवधिरोपमाः ॥ स्वगुणाऽर्जनसज्जास्तैः । परमज्योतिराप्यते ॥ २६ ॥ | शब्दार्थ:-जब आत्मज्ञानध्यानसे योगीराजके हृदयकमलमें यथार्थ प्रकाश होजाता है तब उसकी वृत्ति एसी होजाती है कि मृकांधयधिरोपमाः गंगा अंध और बधिर आदि पुरुषकी ओपमाकों प्रास होजाता है अर्थात् आत्मज्योतिका प्रकाश होनेपर उस महापुरुषकी वृत्तिपर दोष देखनेकेलिये अंधे बधिर और मुककी तरह होजाती हैं (ये च ) तब यही आत्मा (स्वगुणार्जनसन्जा) अपने स्वगुगोंको उपार्जन करके निजगुणोंका भागी बनशक्ता है और तैः] तरही वह महापुरुष (परमम्योति आप्पते) परमआत्मज्योतिके प्रकाशकों प्राप्त करशका है. ॥ २६ ॥ भावार्थ:-जय आत्मज्ञानध्यानसे योगीराजके हृदयकमलके विसे परिपूर्ण प्रकाश होजाताहै तब उसयोगीराजकीवृत्ति | एसी होजाती है कि-परगुण परदोष देखनेकेलिये गूंगे अंधे और बधिर आदि पुरुषकी ओपमाको प्राप्त होजाता है | अर्थात आत्मज्ञानका प्रकाश होनेपर उन महापुरूषको दृष्टि परगुण और ओगण देखने के लिये अंधे बधिर और Jan Education n ational For Personal & Private Use Only Gaindiainelibrary.org

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