________________
अध्यात्मविचार
जीतसंग्रह
प्राप्ति केवल शुद्ध आत्म उपयोगमें रहनेपरही होती है और आत्मउपयोगसे रहित होनेपर आप्रव तैयारही है
दोहा-निजस्वरूपमें लीनता । निश्चय संघरजाग ॥ निश्चयत्वरूप समझा विना । होय न पापकी हाण ।१।
निजस्वरूप में लीन होनेपर निश्चय संवर होता है और दश प्रकारे क्षमादि यतिधर्म पालनेपर वह व्यवहार संवर है अर्थात् ब्रतपञ्चखान आदिव्यवहार करणीस व्यवहार संबर है और स्वस्वरूपमें रमन करनेपर निश्चय संबर भावनासे केशीकुमारने अपना कल्याण किया.. अथ निर्जरा भावना.दोहा-संबरयोगनिर्मललही, विविधतपोनिरधार । यहीनिर्जराकारणकह्या, देखोज्ञानविचार ।।
तपके द्वादश भेद है छैयाध छैअभ्यन्तर अनशन सर्वथा आहारका त्याग २ उणोदरी ३ वृत्तिसंक्षेप ४ ईस भावनासें अर्जुनमालीने सर्व कांके समूहको नाश करके निर्वाण पदकों प्राप्त किया ॥१॥
दोहा-पंचमहाबत पालके । सुमति पश्च प्रकार ॥ पांचो इन्द्रिय विजय कर । यही निर्जरा सार ॥२॥
अथ लोकभावना--इस लोकभावनामें ऐसा विचार करना चाहिये कि में नवलोकके विसे और सब स्थानकों विषे सब उंच नीच जातिके विषे सब तरह के सुख दुःख अनन्तीवेर भोगके आया हूं ऐसा कोइभी स्थान कोइभी स्थल बाकी नहीं रहाकि जहांपर मैरा जन्म मरण नही हवाहो और वहांपर अच्छे अच्छे और बुरेसेबुरे मांस विष्ठादि पदार्थोका भोजन अनतीवेर करके आया हुं तोभी हे चैतन्य तेरी तृष्णा नहीं बुझी संतोष नहीं आया इसलिये इस लोकमें मेरे आत्मिक सुख सिवाय और कोडभी पदार्थमें और कोइभी स्थानके विषे सुग्व
DP
Jin dictionem
For Personal & Private Use Only
how jainelibrary.org