________________
/JF
जीतसंग्रह
अध्यात्म
आपसे आप निर्मल हो जाता है विचार
शङ्का-तब कहो भला मैं ब्राह्मण हुं मैं मुनि हुँ मैं ऋषि हुं इत्यादिक जाति वर्ण करके तथा धर्म अधर्मसे आत्मा प्रतीत हो रहा है तब आप आत्माको असंग कैसे कहते हो ? समाधान-जाति वर्णादिक आत्माकेविषे कल्पित JE आरो है वस्तु गते कुछभी नही है क्योंकि जो देहके धर्म है वह जाति वर्णादिक मिथ्यातपनेसे आरोपण किये हुये
है वह सर्व अज्ञानपनेसें कल्पित है तत्त्व दृष्टिसे देखा जावे तो कुछभी सत्य प्रतीत नहीं होते अब कहते है कि जो अविद्या करके कल्पित उपाधि है उसका स्वरूप बतलाते है जो पञ्चमहाभूत याने पृथ्वी जल तेउ वायु और आकाश यह पश्च उपादान कारनसे जिसकी उत्पति है वह केवल कर्म रचित है वह अज्ञानपनेसे आत्माको सुख दुःख कल्पित भोगनेका एक आयतन याने स्थान है जिसका नाम मनुष्य रखा हुआ है. दोहा-पांचभूतका पूतला । मनुष्य धरिया नाम ॥ दोय दिनोंके कारणे । क्युं धरावे मान ॥ १॥
अपतेहु वायु छरे । धरणी और आकाश ॥ पांच तत्त्वने कोटेमेरे । आय कियो ते वास ॥२॥ शरीरादि कमौकी उपाधि इस आत्माको अनादिसे लगी हुई हैं और प्राण समान अपान उदान व्यात और | मनके संकल्प विकल्प पनेकी अंतःकरनकी वृत्ति और पांच इंद्रियोंके तेवीस विषयकी जो उत्पत्ति वह आत्माकी प्रणंति नहीं हैं वह तो जड पुद्गलमय हैं क्योंकि तत्त्व सल ज्ञानसे रहित जगत्की उत्पत्तिरादि असत्यसे कही जाय नहीं क्योंकि जो जगत्की मायाको सत्य कहोगे तो वह ज्ञान करके याने सल ज्ञानसे नाशवान दिखलाती हैं और जो
و انتقالات تالف
Join Education in
For Personal & Private Use Only
www.
beyond