Book Title: Adhyatmavichar Jeet Sangraha
Author(s): Jitmuni, 
Publisher: Pannibai Upashray Aradhak Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 120
________________ जीतसंग्रह ॥ ५९ ॥ भावार्थ:-सर्वका ज्ञायकरूप और अनंत सक्तिका नायक में ही हूं और ज्ञानादिक अनंत गुणोके स्वामी मेंही हूँ! अध्यात्मविचार JE और जो बाहेरके स्त्री पुत्र धन आदि जो पुद्गलीक संयोग मिला है वह सर्व मेरेसे सदा भिन्नरुप है और अनंतिवेर ॥ ५९॥ | मिलभी चुके है इससे मेरा क्या कल्याण होने वाला है ।।१५।। __करकंडूने मिने माइयेरे । दुम्मुहप्रमुख ऋषिराय ।। मृगापुत्र हरिकेशीनारें । वंदु हुं नित पायरे प्रा० ॥१६॥ भावार्थ-करकंड मुनि नमिराज ऋषिको तथा दुम्मइ आदि महा ऋषिओंको तथा मृगापुत्र हरिकेशी मुनि आदिकों में सदा वारंवार वन्दन करता हूं. ॥१६॥ फेर-साधूचिलाती सुत भलोरे। वली अनाथी तेम ॥ एम मुनि गुण अनुमोदतारे । देवचन्द्र सुखखेमरे प्रा० ॥१७॥ पुनः महापुरुष चेलाति पुत्र मुनिको तैसेही अनाथी आदि निग्रंथ मुनियोंके गुणकी पुनः पुनः अनुमादना करनेपर देवचन्द्र मुनि कहता है कि अवश्यही कुशलतासे शिवपदकी प्राप्ति होती है. ॥१७॥ ॥ॐ परम सुखंधिमही॥ ॥ इति श्रीअध्यात्मविचारजोत संग्रह समाप्तम् ॥ de Jain Education International For Personal & Private Use Only dainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122