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अध्यात्म-ISE
गाथा-आप अपने रूपको । जो जाने सो शिव होय ।। परमें अपनी कल्पना । करे भ्रमें जग सोय ॥१॥ | जीतसंग्रह विचार
शंका-जब आत्मा आपही प्रकाशमय ज्ञानरूपही है और जन्म जरा मरणादिक दुःखोंसे सदा मुक्त है तब कहो | भला सर्व जीब कर्मोंसे मुक्त क्युं नहीं होते (समाधान) निश्चय करके आत्मा तो सदैव कर्मोसे मुक्तरूपही है लेकिन | अनादिकालसे अज्ञानरूपी अविधाके वशीभूत हुआ यह आत्मा अजसिंह दृष्टांते भूला हुआ जन्मजरा मरणादिक दुःख भोग रहा है परन्तु अजर्वासी सिंहकी तरह संपूर्ण याने सर्वथा भूल निकलनेपर यही आत्मा परमात्मा है इसमें एक लेशमात्रभी संशे नहीं है क्योंकि यही आत्मा केवल ज्ञानमय संपूर्ण हैं परन्तु आत्माको केवल ज्ञान देने वाला दूसरा कोईभी साहेक नहीं है किन्तु मन बुद्धि और वाणीसे भाष नही हो सक्ता क्योंकि वह तो अनुभव गम्य है और जो मन बुद्धि है वह तो जड है इस लिये आत्मा मन बुद्धिसे कैसे भाष हो सके लेकिन अनुभवसे अवश्यही भाष होता है वही अध्यात्म तत्वज्ञान है जिस अनुभव ज्ञानके प्रभावसे यह जीव कोसे मुक्त होकर सिद्ध पद वरता है
गाथा-अनुभवसंगेरेरंगेप्रभुमिल्या, सफलफल्याराविकाज । निजपदसंपद सहिजे अनुभवे, आनंदघनमहाराज १ शंका-कभी शरीरादिक उपाधिका त्याग नही करतो आत्माकी हानि क्या है?
समाधान-शरीरादिक क्योंकि आत्मा तो सदा अपने स्वरूपमें उपाधिसे भिन्न है सर्व संसारकी उपाधिके Jel| त्यागविना स्वआत्म स्वरूपको जानना अति कठिन है क्योंकि महात्माओने कहा है.
गाथा-जेजेसेनिरउपाधिपणो । तेतेजाणोरेधर्म ॥ सम्यष्टिगुणगणथकी। जावलहैशिवसरम ॥१॥
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